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6. The Truth about Hell

6. नरक की सच्चाई

नरक-एक ऐसा विषय जिसे अन्देखा नही किया जा सकता

 

आज हम एक ऐसे विषय का अध्ययन करेंगें जिसे अधिकाँश पासबान अध्यापक अन्देखा कर देते हैं। सच्चाई यह है कि हम सब ही इस विषय पर बात करना भी पसन्द नही करते, यह विषय कोई और नही बल्कि नरक का ही विषय है। सी.एस. लिविस के बारे में एक कहानी प्रचलित है कि वह एक जवान प्राचारक को पाप पर परमेश्वर के न्याय के विषय पर सुन रहे थे। प्रचार के अन्त में वह प्रचारक बोला यदि तुम परमेश्वर को अपने उद्धारकर्ता के रूप में नही मानोगे तो तुम्हे अंनतकालीन समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।प्रार्थना सभा के बाद लिविस ने उनसे प्रश्न किया, “क्या आप यह कहना चाहते हो कि जो व्यक्ति परमेश्वर पर विश्वास नही करता वह नरक जायेगा?” “हाँ बिल्कुल सहीप्रचारक ने उत्तर दिया। लिविस ने कहा, “अच्छा ठीक है।¹ चाहे यह हमारे लिए असुविधाजनक क्यों हो इस विषय का अध्ययन हम सब के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है।    

 

कुछ तो यह भी कहेंगे, “क्यों हम इस नरक के विषय को दरकिनार कर दें?” चाल्र्स स्परजन (जो एक महान प्रचारक थे) ने कहा था, यदि हम नरक के विषय को महत्व नही देंगे तो हम क्रूस को भी महत्व नही देंगे। दुःखी और खोई हुई आत्माओं को अनदेखा करने से हम अपने उद्धारकर्ता को अनदेखा करते हैं, जिसने हमें दुखों से छुटकारा दिया है। यह कह सकते है कि कुछ लोग नरक के विषय को इसलिए अनदेखा करते हैं, क्योंकि वह मृत्यु को एक जीवन के अन्त के रूप में देखते हैं, जबकि यह तो जीवन की शुरूआत हैं। जब हम इसकी सच्चाई को समझेंगे और जानेंगे कि हमारा जीवन परमेश्वर के बिना क्या है, तभी हम समझ पायेंगे और सराहना कर पायेंगें कि परमेश्वर ने हमारे लिए क्रूस पर क्या किया।

 

जब हम यीशु के पुर्नागमन की प्रतीक्षा करते हैं तो हम सब का कर्तव्य है कि सच्चे मसीही की तरह हम लोगों को शैतान के चंगुल से बचाँए ताकि नरक में डाले जाँए। प्रत्येक व्यक्ति को परमेश्वर अत्याधिक प्रेम करता है, तथा वह यह नही चाहता कि उस व्यक्ति का विनाश हो, परन्तु परमेश्वर चाहता है कि वह प्रायश्चित करे। ( पन्नस :) परन्तु क्या होगा अगर वे ऐसा नही करतें? क्या होगा यदि उसकी मृत्यु यीशु को बिना जाने हो जाती है? क्या हो यदि वह परमेश्वर के प्रेम के संदेश सुसमाचार के प्रति प्रतिउत्तर देते? यीशु के पुर्नागमन पर वह भेड़ों (विश्वासी) को बकरियों से (अविश्वासी) से अलग करेगा और यह बताया गया है कि तब दण्ड अनंतकालीन होगा।

 

            ४१ तब वह बाईं ओर वालों से कहेगा, हे स्त्रापित लोगो, मेरे सामने से उस अनन्त आग में चले जाओ, जो शैतान और उसके दूतों के लिये तैयार की गई है। ४२ क्योंकि मैं भूखा था, और तुम ने मुझे खाने को नहीं दिया, मैं प्यासा था, और तुम ने मुझे पानी नहीं पिलाया।  ४३ मैं परदेशी था, और तुम ने मुझे अपने घर में नही ठहराया; मैं नंगा था, और तुम ने मुझे कपडे़ नहीं पहिनाए; बीमार और बन्दीगृह में था, और तुम ने मेरी सुधि ली।

 

४४ तब वे उत्तर देंगे, कि हे प्रभु, हमने तुझे कब भूखा, या प्यासा, या परदेशी, या नंगा, या बीमार, या बन्दीगृह में देखा, और तेरी सेवा टहल की ? ४५  तब वह उन्हें उत्तर देगा, मैं तुमसे सच कहता हूँ कि तुमने जो इन छोटे से छोटों में से किसी एक के साथ नहीं किया, वह मेरे साथ भी नहीं किया। ४६ और यह अनन्त दण्ड भोगेंगे परन्तु धर्मी अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे। (मत्ती२५:४१-४६)

 

जैसे कि हम पहले भी बता चुके हैं, कि आज के समय के जीवन और मृत्यु के अनुभवों के विषय पर लोगों का अधिक रूझान है। इस विषय पर पुस्तकें आसानी से मिल जाती है। इस श्रृंखला की प्रथम श्रेणी में हमने डॉ रेयमंड . मूडी की पुस्तक ‘‘लाईफ ऑफ्टर लाईफ’’ (जीवन के बाद जीवन) के बारे में बताया था। उन्होंने एक सौ पच्चास से अधिक मृत्यु के करीब पहुंचने वाले व्यक्तियों के अनुभवों पर शोध कार्य किए। इसी प्रकार एक और डॉक्टर, डॉ. मौरिस रॉलिंग्स ने अपनी पुस्तक ‘‘टू हेल एण्ड बैक’’ (नरक तक और वापस) जिससे उन्होंने भी मृत्यु के करीब पहुंचने वाले लोगों के अनुभव लिखे, बताया कि लोगों ने ऐसे में नरक का अनुभव किया पर कुछ समय तक ही उन्हें वह याद रहा। उन्होंने यह भी कहा कि, वह सत्य है कि मनुष्य वह ही याद रखता है जो अच्छा है वरन वह बाकी सब जो बुरा है भूल जाता है और इसलिए यदि ऐसे व्यक्तियों का अनुभव जानने के लिए उनका साक्षात्कार देर से लिया जाए (दिन, हफ्ते, या महीने के बाद), तब उनको केवल सकारात्मक अनुभव ही याद रहते हैं।

 

डॉ. रालिंगस ने एक व्यक्ति का अनुभव बताया है जिसके हृदय में पेसमेकर शल्य क्रिया द्वारा लगाया गया था। उस व्यक्ति ने डॉ. रालिंगस को बताया कि उसने नरक को देखा ही नहीं बल्कि अनुभव भी किया। उसने एक लम्बी सुरंग देखी जो रौशनी की तरफ खुल रही थी, परन्तु फिर उस सुरंग में आग लग गयी। उस व्यक्ति को ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह तेजी से उस आग के तालाब की ओर बढ़ रहा है, मानों जैसे स्वयं ही घी और आग की ज्वाला तेजी से उसकी ओर बढ़ रही है। उस व्यक्ति ने गहरी लम्बी परछाइयां भी देखीं जो आगे-पीेछे घूम रही थीं, मानों जैसे बन्द पिंजरे में जंगली जानवर घूमते हैं। वह व्यक्ति जोर से चिल्लाया यीशु ही परमेश्वर है’’ और फिर अचानक वह अपने शरीर में वापस लौट आया। इसी प्रकार डॉ. रौलिंगस ने एक और वाक्या बताया, डॉक्टर उस व्यक्ति को सी.पी.आर. दे रहे थे, उसको भी पेसमेकर लगा था और वह व्यक्ति बार-बार होश में आता और फिर बेहोश हो जाता। जब वह होश में आता तो वह डॉ. रौलिंगस से चिल्ला-चिल्लाकर आग्रह करता कि वह उसके लिए परमेश्वर से प्रार्थना करें क्योंकि वह नरक में है। डॉ रौलिंगस उस व्यक्ति के लिए प्रार्थना नहीं करना चाहते थे क्योंकि वह तब तक स्वयं भी विश्वासी नहीं थे। परन्तु वह उस व्यक्ति की व्यथा को देखकर अंततः उन्होंने उसके लिए एक प्रार्थना की।

 

उन्होंने प्रभु यीशु से कहा कि वह इस व्यक्ति को नरक के द्वार से दूर रखें। और वह व्यक्ति उसी क्षण शान्त हो गया। वह व्यक्ति अब पागलों की तरह नहीं चिल्ला रहा था। डॉ. रौलिंगस कहते हैं कि उनके इस अनुभव ने उनके जीवन पर अत्याधिक प्रभाव डाला और उन्होंने अपना जीवन यीशु को दे दिया। डॉ. रालिंग्स कोई शास्त्री या प्रचारक नहीं है बल्कि वह एक डाक्टर है, जिन्होंने अपने अनुभव लिखे हैं, कि किस प्रकार उनहोंने अपने मरीज को पुनर्जीवित किया।

 

बहुत से लोग यह दावा करते हैं कि उन्होंने मृत्यु को नजदीक से देखा और अनुभव किया है, किन्तु यह कितना सत्य है, इसका कोई प्रमाण नहीं है। यह माना जा सकता है, कि यदि ईश्वर ने पौलूस को तीसरे स्वर्ग तक जाने की अनुमति दी थी, और यदि इस्तिफनुस ने यीशु को अपनी मृत्यु से ठीक पहले परमेश्वर के दायने हाथ खड़े देखा, तो यह सत्य है कि आज के युग में भी बहुत से ऐसे लोग होंगे, जिन्हे परमेश्वर ने मृत्यु के पश्चात के जीवन की एक झलक देखने की अनुमति दी होगी।            

 

परन्तु हमारा विश्वास लोगों के अनुभव पर नहीं वरन परमेश्वर के वचन पर आधारित होना चाहिए क्योंकि ऐसे भी लोग हैं, जो यह विश्वास करते हैं कि प्रत्येक जन चाहे जैसा भी जीवन जीने वाला हो उसका शान्ति और प्रकाश से भरे हुए अनन्त जीवन में स्वागत किया जाता है। परन्तु यह सब वचन के अनुसार मान्य नहीं है।² प्रभु यीशु प्रेम और सत्य का रूप है, उन्होंने अपने शिष्यों से कुछ भी नहीं छिपाया।

 

परमेश्वर अकसर नरक के बारे में बातें करते थे तथा उनके बहुत से दृष्टान्त स्वर्ग, नरक, अन्तिम न्याय तथा अनन्त पुरूस्कार पर आधारित हैं। यदि यीशु के लिए यह विषय महत्वपूर्ण था, कि वह अपने शिष्यों को इन सबका ज्ञान दें तो यह सही होगा कि हम भी इन तथ्यों पर गहन विचार करें और गम्भीरता से स्वर्ग तथा नरक के विषय पर ध्यान दें। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि शैतान धोका देता है, वह झूठ का पिता है तथा उसको प्रकाश का स्वर्गदूत भी कहा जाता है। कुछ कहानियां ऐसी हो सकती है जिसमें परमेश्वर को महिमानवित किया जाता है और वह सत्य भी हो सकती है। परन्तु हमारा विश्वास केवल परमेश्वर पर और उसके वचन पर होना चाहिए, कहानियों पर नहीं। यह माना जा सकता है कि शैतान सच्चाई को छिपाकर अथवा बदलकर यह जताना चाहता है कि सभी रास्ते जो परमेश्वर को महिमानवित करते हैं, वह अन्त में परमेश्वर तक पहुंच पाते हैं।

 

क्या मृत्यु विनाश की दशा है?

 

कुछ लोगों के अनुसार नरक वह स्थान है, जहां उन लोगों का विनाश किया जाता है, जो प्रभु यीशु के द्वारा दी गयी मुफ्त क्षमा को स्वीकार नहीं करते। विनाश का सही अर्थ है, ‘‘पूर्णतः समाप्त हो जाना अथवा बर्बाद हो जाना।’’ प्रभु यीशु ने वचन में युनानी भाषा का शब्द एइनोइस का दो बार प्रयोग किया जब वह अपने शिष्यों के आनन्द को व्यक्त कर रहे थे। जिसका अर्थ है, ‘‘अनन्त, लगातार। जब अनन्त जीवन की बात करते हैं, तो उसका अर्थ है एक ऐसा जीवन जो परमेश्वर के जीवन को दर्शाता है, जिससे समय की प्रतिबंद्धता नहीं है।२ परन्तु यह विनाश जैसा नहीं है। प्रभू यीशु ने यह स्पष्ट सिखाया है कि यदि कोई व्यक्ति वचन को नकारता है और पाप के जीवन में जीता है, तो वह अपने जीवन के अन्त में अनन्त दण्ड का भोगी होगा।

 

स्वेतलाना स्तालिन, जोसेफ स्तालिन की पुत्री (जो १९२२ से १९५३ तक रूस के अगवा थे) ने जब अपने पिता के साथ उनके जीवन के अंतिम पलों को बिताया तब उन्होंने अपने अनुभव से बताया कि वह अब किसी भी अविश्वासी के साथ उनके अन्त समय में साथ नहीं रहेगी। उन्होंने बताया कि उनके पिता नरक में चीखते-चिल्लाते हुए गये। ‘‘जीवते परमेश्वर के हाथों में पड़ना भयानक बात है।’’ (इब्रानियों १०:३१)

 

 कहते है कि बोल्यैर की मृत्यु अत्यन्त दर्दनाक थी, इसी तरह फ्राँस राजा चाल्र्स , डेविड हुए तथा थाॅमस पेन की भी मृत्यु अत्यन्त दर्दनाक थी। सी. एम. वाॅर्ड उन लोगों के लिए कहते हैं जो परमेश्वर को जानते हैं’’ कोई भी विश्वासी आज तक, अपनी मृत्यु शैय्या पर (परमेश्वर के प्रेम से) फिरे नहीं है।

 

) प्रेमी परमेश्वर क्यों किसी मनुष्य को नरक में भेजेगा? किसी व्यक्ति को कितना बुरा होना होगा कि वह नरक में भेजा जाए? क्या कोई ऐसी रेखा निश्चित है जिसे किसी व्यक्ति को पार करना होगा?

 

१६ क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। १७ परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिये नहीं भेजा, कि जगत पर दंड की आज्ञा दे परन्तु इसलिये कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए। १८ जो उस पर विश्वास करता है, उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती, परन्तु जो उस पर विश्वास नही करता, वह दोषी ठहर चुका; इसलिये कि उस ने परमेश्वर के एकलौते पुत्र के नाम पर विश्वा नहीं किया। (यहुत्रा :१६-१८)

 

सृष्टिकर्ता परमेश्वर ने उद्धार का मार्ग बनाया है, और सभी मनुष्य एक नाँव में सवार हैं, क्योंकि हम में से कोई भी व्यक्ति उसके द्वारा तय किए गए मापदंड तक नहीं पहुँचाता। हम में से कोई भी यह नही कह सकता कि हमने पाप नही किया। यदि हमने एक भी पाप किया है तो हम पापी है।हम सब एक ही रोग से ग्रस्त हैं। पाप हमे परमेश्वर से हमेशा के लिए दूर करता है। याकूब अपनी पुस्तक में कहता है क्योंकि जो कोई सारी व्यवस्था का पालन करता है परन्तु एक ही बात में चूक जाए तो वह सब बातों में दोषी ठहरा।” (याकूब :१०)यदि परमेश्वर के पास कोई व्यवस्था होती जिसके द्वारा वह आप सबको स्वर्ग पहुँचा सकता और उसके पुत्र को दर्दनाक मृत्यु का सामना करना पड़ता तो क्या वह उस रास्ते को नही अपनाता? उसने मनुष्य को स्वेच्छा का दान किया है, किन्तु न्याय के अनुसार विद्रोही को दण्डित किया जाना जरूरी हैं। पवित्र परमेश्वर पाप को अपने सम्मुख सर उठाने नही देगा। तेरी आंखें ऐसी शुद्ध हैं कि तू बुराई को देख ही नहीं सकता, और उत्पात को देखकर चुप नहीं रह सकता; फिर तु विश्वासघातियों को क्यों देखता रहता, और जब दुष्ट निर्दोष को निगल जाता है, तब तू क्यों चुप रहता है”? (हबक्कूक :१३) इसलिए परमेश्वर हमें जब हम पश्चताप नहीं करते चुनाव करने की स्वतंत्रता देता है।           

 

परमेश्वर ने अपने असीम प्रेम में हमे बचाने के लिए एक योजना बनायी है। उसका पुत्र मनुष्य का रूप धारण करेगा और हम पापीयों की जगह दण्ड भोगेगा। इस प्रकार परमेश्वर का न्याय पूरा ठहरेगा, और वह प्रेम से उन सब को बचा सकेगा जो अपना जीवन उसे देंगे तथा उसके बताये हुए मार्ग पर चलेंगे। जब हम पश्चताप करते है तब परमेश्वर का आत्मा हमें सामर्थ देता है कि हम अपना जीवन प्रभु यीशु के लिए जी सकें। हम दूसरे के लिए भी उत्तर देने की क्षमता रखते है और पवित्र आत्मा हमे सामर्थ और हियाव देता है कि हम लोगों से परमेश्वर की योजना के बारे में बात कर सकें। जब भी हम परमेश्वर की सच्चाई के बारे में बात करते है, तो हम शैतान के राज्य को नष्ट कर देते है और लोगों को उसके चंगुल से छुडा लेते है। आज के युग में कलीसिया शैतान द्वारा बनायी गयी हर दीवार को ध्वस्त कर रही है। वह हमला कर रही है ताकि वह परमेश्वर के राज्य तक जाने वाले मार्ग को खोल सके। हमे यह बताया गया है, कि नरक के द्वार भी कलीसिया पर प्रबल नहीं हो सकते (मत्ति १६:१८) परन्तु वह लोग कौन हैं, जो नरक में जाएँगें

 

पर डरपोकों, और अविश्वासियों, और घिनौनों, और हत्यारों, और व्यभिचारियों, और टोन्हों, और मूर्तिपूजकों, और सब झूठों का भाग उस झील में मिलेगा, जो आग और गन्धक से जलती रहती हैः यह दूसरी मृत्यु है। (प्रकाशित वाक्य २१:)    

 

ऊपर दी गयी पँक्तियों में हमे सिखाया गया कि वह लोग जो डरपोक है, झूठ बोलते हैं तथा अविश्वासी है, वह सब, पुनरागमन पर एक ऐसे कुण्ड में डाले जाएँगें जहाँ आग और गंधक जलती होगीं हमें यह नही पता कि वह आग का कुण्ड सच्चा और वास्तविक होगा या केवल मृत्यु के बाद के जीवन का प्रतिरूप। व्यक्तिगत रूप से मैं इसके बारे में और जानना भी नही चाहता। वह कैसा भी हो, हम केवल इतना जानते है कि उस आग के कुण्ड में केवल दुःख और सर्वनाश ही होगा। बाईबिल नरक को गहन अन्धकार का नाम देती है (यहूदा :१३) हमे प्रकाश अंधकार के बीच में से एक चुनना है, अंनत जीवन के लिए किसी एक मार्ग को अपनाना है।   

 

यदि हम प्रकाश और अन्धकार की प्रकृति को समझें तो प्रकाश अच्छे स्वास्थ और पूर्ण संतुष्टि को दर्शाता है। पौधों को जीवन जीने के लिए प्रकाश की आवश्यकता है। प्रकाश हर वस्तु को प्रकाशमय करता है तथा पोषण देता है। वह जीवन भी देता है। हर एक वस्तु प्रकाश में ही चमकती है। अन्धकार ढाँपता है और छिपाता है जहाँ प्रकाश नहीं होता वहाँ अंधकार होता है। मनोवैज्ञानिक बताते है कि यदि कोई व्यक्ति अधिक समय तक अन्धकार में रहता है तो वह जल्द ही उदासीनता अन्य मानसिक रोगों से ग्रसित हो जाता है। अंधकार में रहना लोगों के लिए स्वस्थ विकल्प नहीं है। आग का कुण्ड भी एक ऐसा स्थान है जहाँ केवल अंधकार ही अंधकार है।

 

आज के युग में ऐसे स्थान के बारे में बात करना भी, जहाँ केवल अंधकार हो, पसन्द नही किया जाता। ऐसा कौन है, जो इस स्थान पर जाने के लायक है? मैं यह प्रश्न आप सब से पूछना चाहता हूँ कितने लोगों की हत्या करने के पश्चात् एक व्यक्ति हत्यारा बनता है? केवल एक झूठा व्यक्ति कहलाने के लिए कितने झूठ बोलने होगें? केवल एक एक पापी को कितने पाप करने होंगे, कि वह पापी कहलाया जाये? केवल एक हम सब को एक उद्धारकर्ता की आवश्यकता है, प्रभु यीशु जैसा कोई नही, जो हमारे पापों से तथा दण्ड से छुटकारा दिला सके।        

 

प्रभु की ओर जाने वाले मार्ग का पहल कदम है इस बात को जानना कि हमें उद्धारकर्ता की आवश्यकता है। पौलूस कहता है-१० जैसा लिखा है,कि कोई धर्मो नही, एक भी नहीं। ११ कोई समझदार नहीं, कोई परमेश्वर का खोजने वाला नहीं। १२ सब भटक गए हैं, सब के सब निकम्मे बन गए, कोई भलाई करने वाला नहीं, एक भी नहीं।” (रोमियों :१०-१२) पौलूस कहता है कि कोई भी धर्मी नही ठहराया जाता। व्यक्ति केवल कार्य करके धार्मिक नहीं ठहराया जाता, (न्याय, पद २०) वह कहता है कि बिना व्यवस्था के परमेश्वर की धार्मिकता प्रगट हुई है, अर्थात मसीह की मृत्यु आपके स्थान में। यह धार्मिकता तब आपको मिलती है, जब आप पश्चाताप करते है और उसके मार्ग पर चल देते है तथा उसको अपना राजा और प्रभु मानते हुए अपने जीवन रूपी सिंहासन पर विराजमान करते है। केवल यही एक मार्ग है जिसके द्वारा हम दुःख और विनाश के स्थान पर बच सकते है। (प्रेरितों के काम :१२) जब आप यह करते हैं तो आपका नाम जीवन की पुस्तक में लिखा जाता है (प्रकाशितवाक्य २७) एक ऐसी पुस्तक जहाँ उन सब का नाम लिखा है जिन्होंने अपना जीवन प्रभु को समर्पित कर दिया है और उसे उद्धारकर्ता मानते है। जिन लोगों का नाम उस पुस्तक में नही पाया जायेगा उनको आग के कुण्ड में प्रताड़ित किया जायेगा।

 

१४ और मृत्यु और अधोलोक भी आग की झील में डालें गए;यह आग की झील तो दूसरी मृत्यु है। १५ और जिस किसी का नाम जीवन की पुस्तक में लिखा हुआ मिला, वह आग की झील में डाला गया (प्रकाशित वाक्य २०:१४-१५ )       

 

यह व्यक्ति परमेश्वर के क्रोध रूपी दाखरस को चखेगा तथा उसे स्वर्गदूतों मेमने के सामने आग के कुण्ड में प्रताणित किया जायेगा। १० तो वह परमेश्वर का प्रकोप की निरी मदिरा जो उसके क्रोध के कटोरे में डाली गई है, पीएगा और पवित्र स्वर्गदूतों के सामने और मेम्ने आग और गन्धक की पीड़ा में पडे़गा। ११ और उन की पीड़ा का धुआं युगानुयुग उठता रहेगा, और जो उस पशु और उस की मूरत की पूजा करते है, और उसके नाम की छाप लेते है, उन को रात दिन चैन मिलेगा।” (प्रकाशितवाक्य १४:१०-११)

 

जो बचाये नही गये उनका न्याय उनके द्वारा प्राप्त प्रकाश की मात्रा को देखकर किया जायेगा।

 

मैं समझता हूँ कि उस भयानक स्थान पर प्रताड़ना के अलग-अलग रूप होगे। कुछ ऐसे जन होगें जिन्हे उतना आलोकिक प्रकाश नहीं मिला होगा, जितना औरों को मिलता है। सच तो यह है कि वहाँ अनंतकाल की सज़ा विभिन्न स्तरों पे दी जाएगी। इससे पहले कि आप मुझे मारने के लिए पत्थर उठायें, आईए हम परमेश्वर के वचन को ध्यान से देखें।

 

४७ और वह दास जो अपने स्वामी की इच्छा जानता था, और तैयार रहा और उस की इच्छा के अनुसार चला बहुत मार खाएगा। ४८ परन्तु जो नहीं जानकर मार खाने के योग्य काम करे वह थोड़ी मार खाएगा, इसलिये जिसे बहुत दिया गया है, उस से बहुत मांगा जाएगा, और जिसे बहुत सौंपा गया है, उस से बहुत मांगेगें।। (लूका १२:४७-४८)

 

हम सबको यह समझना चाहिए कि हम मे से कोई भी प्रभु येशु के बिना स्वर्ग में अनंत जीवन नही पा सकता परन्तु प्रभु उन लोगों को जानता है जिन्होने प्रभु के बारे मे नही सुना और वह उनकी सज़ा उसी के अनुसार तय करेगा। किन्तु हमे इसका कतई सन्देह नही कि उन लोगों को स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होगी।

 

) क्या तुम सोचते हो कि इस पृथ्वी पर प्रत्येक व्यक्ति के प्रभाव के अनुसार ही उसको अनन्त जीवन प्राप्त होगा?

 

जितना अधिक हमारा प्रभाव है उतनी ही अधिक हमारी जिम्मेदारी और जवाबदेही हो जाती है। वह लोग जो टेलीविजन पर आते है और लोकप्रिय होते है उनका जवानो पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है परन्तु फिर भी वे अनैतिक जीवन व्यतीत करते है। ऐसे व्यक्तिओं का न्याय अधिक कठोरता से होगा, क्योंकि उनका दूसरे के जीवन पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।

 

जल्दबाज़ी करके प्रभाव के स्थान को ग्रहण करिए। (मत्ति :-) में यीशु ने हमें बताया कि पहले हम अपनी आँख से लट्ठा निकालें तभी हम दूसरों की आँखों का तिनका निकाल पाएँगें। हम सभी यीशु के अनुयायी दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता रखते है। विशेषकर जब हमें आस पड़ोस के लोग मसीही के रूप में जानते हो या हमारे कार्यस्थल पर हम मसीही होने के लिए जाने जाते हो। वह हमें देखते है कि हम अपना जीवन किस प्रकार व्यतीत करते हैं उनका उद्वार हमारे चाल चलन हद तक किसी किसी रूप में शिक्षा देतें है परन्तु हम शिक्षक नही है।

 

एक शिक्षक के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि वह परमेश्वर को महिमानवित करने वाला जीवन व्यतीत करें।

 

हे मेरे भाइयों, तुम मैं से बहुत उपदेशक