top of page

हिंदी में अधिक बाइबल अध्ययन देखने के लिए, यहाँ क्लिक करें।

6. The Parable of The Fig Tree

6. अंजीर के पेड़ का दृश्टान्त

शुरुआती प्रश्न: जब आप समय के अंत के बारे में वचनों को पढ़ते हैं, तो आपकी क्या भावनाएं होती हैं? क्या यह एक नकारात्मक या सकारात्मक विचार है? आपकी चिंता किस बारे में है?

 

25और सूरज और चाँद और तारों में चिन्ह दिखाई देंगें, और पृथ्वी पर, देश देश के लोगों को संकट होगा; क्योंकि वे समुद्र के गरजने और लहरों के कोलाहल से घबरा जाएंगे। 26और भय के कारण और संसार पर आनेवाली घटनाओं की बाट देखते देखते लोगों के जी में जी रहेगा क्योंकि आकाश की शक्तियाँ हिलाई जाएंगी। 27 तब वे मनुष्य के पुत्र को सामर्थ और बड़ी महिमा के साथ बादल पर आते देखेंगे। 28जब ये बातें होने लगें, तो सीधे होकर अपने सिर ऊपर उठाना; क्योंकि तुम्हारा छुटकारा निकट होगा। 29उसने उनसे एक दृष्टान्त भी कहा कि अंजीर के पेड़ और सब पेड़ों को देखो। 30ज्यों ही उनकी कोंपलें निकलती हैं, तो तुम देखकर आप ही जान लेते हो, कि ग्रीष्मकाल निकट है। 31इसी रीति से जब तुम ये बातें होते देखो, तब जान लो कि परमेश्वर का राज्य निकट है। 32मैं तुमसे सच कहता हूँ, कि जब तक ये सब बातें हो लें, तब तक इस पीढ़ी का कदापि अन्त होगा। 33आकाश और पृथ्वी टल जाएंगे, परन्तु मेरी बातें कभी टलेंगी। 34इसलिये सावधान रहो, ऐसा हो कि तुम्हारे मन खुमार और मतवालेपन, और इस जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाएं, और वह दिन तुम पर फन्दे की नाई अचानक पड़े। 35क्योंकि वह सारी पृथ्वी के सब रहनेवालों पर इसी प्रकार पड़ेगा। 36इसलिये जागते रहो और हर समय प्रार्थना करते रहो कि तुम इन सब आनेवाली घटनाओं से बचने, और मनुष्य के पुत्र के सामने खड़े होने के योग्य बनो। (लूका 21:25-36)

 

आने वाले समय के चिन्ह

 

लूका 21 में, यीशु अपने शिष्यों के साथ भविष्य में होने वाली बातों के बारे में भविष्यवाणी करते हुए बात करता है, जो ओलिवेट प्रवचन के रूप में जानी जाती हैं। यीशु की यह बातचीत हम मत्ती 24 और मरकुस 13 में भी पाते हैं। मत्ती एक बार उल्लेख करता है कि यह बातचीत जैतून (ओलिव) के पहाड़ पर होती है (मत्ती 24:3), इसलिए इसे ओलिवेट प्रवचन का नाम मिला है। जब यीशु और चेले एक साथ बैठते हैं, वे नीचे पश्चिम की ओर मंदिर की पहाड़ी की ओर देखते हैं। इस श्रेष्ठ स्थान से दृश्य शानदार है। यह यहीं था कि यीशु ने शिष्यों से यरूशलेम के विनाश और समय के अंत में आने वाले संकेतों के बारे में बात की।

 

जब वे मंदिर की पहाड़ी से निकल रहे थे, तो शिष्यों में से एक ने टिप्पणी की कि किस प्रकार इमारतें सुन्दर पत्थरों और भेंट की वस्तुओं से संवारीं गईं हैं यीशु ने उत्तर दिया कि एक पत्थर दूसरे पर छूटेगा (लूका 21: 6) इस उत्तर से वह गहराई में सिंहर गए। उन्होंने सोचा कि वह अपने दूसरे आगमन के बारे में बात कर रहा था, इसलिए उन्होंने पूछा कि उसके आगमन के समय को पहचानने के लिए उन्हें क्या चिन्ह दिया जाएगा। बेशक, यीशु 70 ईसा पश्चात् में हुए मंदिर के विनाश की बात कर रहा था, लेकिन जैतून के पहाड़ पर अपनी बात में उसने केवल मंदिर के विनाश के बारे में भविष्यवाणी की, बल्कि राजा के रूप में अपनी वापसी के बारे में भी भविष्यवाणी की।

 

अंजीर के वृक्ष के दृष्टान्त (29-36 पद) के विषय में इस खंड के वचनों को समझने के लिए हमारे लिए कुछ संदर्भ उपयोगी होगा। लूका के इस अध्याय के पहले के पद हमें पिछले 1900 वर्षों से यरूशलेम के विनाश और यहूदी लोगों के फैलाव के विषय में एक अन्धकार भरी तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। अध्याय में विभिन्न जगहों पर, अंत के दिनों में और समय की समाप्ति पर मसीह की वापसी (लूका 21:8-11 और पद 25 से 36 भी) के बारे में विभिन्न भविष्यवाणियाँ हैं। सूरज, चंद्रमा और सितारों में चिन्ह होंगे, और पृथ्वी पर सारी जातियों में पीड़ा होगी। सभी राष्ट्र के लोग समस्या और परिस्थितियों के कारण परेशान होंगे क्योंकि मानव जाति के पास उन कठिन परिस्थितियों के विषय में जिनका वे सामना कर रहे हैं, कोई जवाब नहीं होगा (पद 25)। यीशु ने कहा कि उनकी पीड़ा और उलझन "समुद्र की लहरों के गर्जन" के कारण थी। यह वाक्यांश अक्सर लोगों के बीच अशांति और दंगों की तस्वीर होती है। “हाय, हाय! देश देश के बहुत से लोगों का कैसा नाद हो रहा है, वे समुद्र की लहरों की नाईं गरजते हैं। राज्य राज्य के लोगों का कैसा गर्जन हो रहा है, वे प्रचण्ड धारा के समान नाद करते हैं!” (यशायाह 17:12) धरती पर जो कुछ भी हो रहा होगा वो लोगों को "जी में जी" (मूर्छित) न रहने देंगी (लूका 21:26)। अंग्रेजी बाइबिल (एन आई वी) के एक अनुवाद में यूनानी शब्द अपोसाइको के लिए मूर्छा शब्द का प्रयोग किया गया है। इस यूनानी शब्द का शाब्दिक अर्थ है:

 

जीवन त्याग देना। समाप्त होना, मर जाना, अपने जीवन की श्वास छोड़ना; बेहोश होना और मूर्छित हो जाना। यह दिल का हिम्मत खो देना और डर से मर जाना हो सकता है (लूका 21:26), या इसका अर्थ भयानक और भयावर घटनाओं के सम्मुख असल में बेहोश होना हो सकता है। वचन में इस समय का वर्णन इतनी विनाशकारी किया गया है कि लोग आतंक से अभिभूत हो जाएंगे और अपने आस-पास भयानक कृत्य देखने से अति व्यथित होंगे। क्योंकि वे परमेश्वर के आने का सामना करने के लिए तैयार नहीं हैं, वो धरती पर आ रही बातों की प्रत्याशा में भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक विनाश सहेंगे।

 

जिस सब से संसार होकर गुज़र रहा होगा, उसके कारण कई लोग जीवन त्याग देंगे और आत्महत्या करे लेंगे। दूसरों के लिए, महान तनाव और डर होगा जिसके कारण उन्हें वास्तविकता में दिल का दौरा आ जाएगा। आशा बहुत दूर दिखाई पड़ेगी। जब संसार अपने सबसे अंधकारमय क्षण में होगा, तब प्रभु यीशु आ जाएगा। तब वे मनुष्य के पुत्र को सामर्थ्य और बड़ी महिमा के साथ बादल पर आते देखेंगे।” (लूका 21:27)

 

पद 28 में ये बातों का क्या अर्थ है?

 

मेरा मानना ​​है कि प्रभु यीशु उन विभिन्न चिन्हों के बारे में बात कर रहा है जो उसके आगमन से पहले होंगे, जिनहें पद 8-11 में उल्लिखित किया गया है और दोबारा, पद 25-26 में। हमें धरती पर क्या हो रहा है इस बारे में चिंतित और इसपर ध्यान केन्द्रित नहीं करना है, परन्तु हमें अपने सिरों को ऊपर उठा कर अपने स्वामी के आने और सब बातों को सही करने व हमें अपनाने के उपर केन्द्रित होना है।

 

मसीह का आगमन उन लोगों के लिए महान आतंक लेकर आएगा जिन्होंने परमेश्वर के उद्धार और करुणा के अनुग्रहकारी उपहार को प्राप्त नहीं किया है:

 

और पहाड़ों, और चट्टानों से कहने लगे कि, “हम पर गिर पड़ो; और हमें उसके मुंह से जो सिंहासन पर बैठा है और मेम्ने के प्रकोप से छिपा लो।(प्रकाशितवाक्य 6:16)

 

बहुत से लोग क्रीष्ट-विरोधी द्वारा छले जाएंगे, दुनिया का वह अगवा सभी जीवित लोगों को खरीदने या बेचने के लिए सक्षम होने के लिए उनके हाथों या माथे पर छाप प्राप्त करना आवश्यक कर देगा (प्रकाशितवाक्य 13: 16-17)। जो लोग इस छाप को प्राप्त करते हैं, वे प्रभु के आगमन पर आतंक में छिप जाएंगे। वचन उन लोगों के लिए अनन्त दंड की चेतावनी देता है, जो कि क्रीष्ट-विरोधी के धोखे में आ जाएंगे:

 

9फिर इनके बाद एक और स्वर्गदूत बड़े शब्द से यह कहता हुआ आया, कि जो कोई उस पशु और उस की मूरत की पूजा करे, और अपने माथे या अपने हाथ पर उसकी छाप ले। 10तो वह परमेश्वर का प्रकोप की निरी मदिरा जो उसके क्रोध के कटोरे में डाली गई है, पीएगा और पवित्र स्वर्गदूतों के सामने, और मेम्ने के सामने आग और गन्धक की पीड़ा में पड़ेगा। 11और उनकी पीड़ा का धुआं युगानुयुग उठता रहेगा, और जो उस पशु और उस की मूरत की पूजा करते हैं, और जो उसके नाम ही छाप लेते हैं, उनको रात दिन चैन मिलेगा। 12पवित्र लोगों का धीरज इसी में है, जो परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते, और यीशु पर विश्वास रखते हैं। (प्रकाशितवाक्य 14:9-12)

 

अंजीर के पेड़ का दृष्टान्त

 

जो चीज़ें धरती पर हो रही हैं, हम अब उनके सन्दर्भ में लूका 21:29-36 को देखेंगे और यह समझने की कोशिश करेंगे कि यीशु अंजीर के पेड़ के दृष्टान्त के द्वारा क्या कह रहा है। हम मसीह की वापसी का सही समय निर्धारित नहीं कर सकते, क्योंकि कोई मनुष्य नहीं जानता कि दिन या समय क्या है। यहाँ तक ​​कि यीशु भी, जब वह पृथ्वी पर मानव रूप में चला, ज्ञान के लिए पिता पर निर्भर था (यहुन्ना 8:38) और वह यह निर्धारित करने में सक्षम नहीं था कि यह समय कब होगा:

 

32उस दिन या उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, स्वर्ग के दूत और पुत्र; परन्तु केवल पिता। 33 देखो, जागते और प्रार्थना करते रहो; क्योंकि तुम नहीं जानते कि वह समय कब आएगा। (मरकुस 13:32-33)

 

हमें दिन या समय के बारे में चिंतित नहीं होना हैं, लेकिन हमें स्पष्ट रूप से बताया गया है कि जो लोग स्वर्ग के परिप्रेक्ष्य से अपने जीवन जी रहे हैं उन्हें मौसम का ज्ञान और पृथ्वी पर हो रही उन बातों के बारे में सचेत होना चाहिए जो हमारे प्रभु के जल्द आने के चिन्ह हैं। जब हम समय के चिन्हों को होते देखते हैं, तो हमें अपने सिरों को लटकाना नहीं है, बल्कि इसके बजाय, हमें प्रभु के आगमन की अपेक्षा में स्वर्ग की ओर नज़रें उठानी हैं। प्रेरित पौलुस ने लिखा:

 

1पर हे भाइयो, इसका प्रयोजन नहीं, कि समयों और कालों के विषय में तुम्हारे पास कुछ लिखा जाए। 2क्योंकि तुम आप ठीक जानते हो कि जैसा रात को चोर आता है, वैसा ही प्रभु का दिन आनेवाला है। 3जब लोग कहते होंगे, कि कुशल हैं, और कुछ भय नहीं, तो उन पर एकाएक विनाश पड़ेगा, जिस प्रकार गर्भवती पर पीड़ा; और वे किसी रीति से बचेंगे। 4पर हे भाइयों, तुम तो अन्धकार में नहीं हो, कि वह दिन तुम पर चोर की नाई पड़े। 5क्योंकि तुम सब ज्योति की सन्तान, और दिन की सन्तान हो, हम रात के हैं, अन्धकार के हैं। 6इसलिये हम औरों की नाई सोते रहें, पर जागते और सावधान रहें। 7क्योंकि जो सोते हैं, वे रात ही को सोतें हैं, और जो मतवाले होते हैं, वे रात ही को मतवाले होते हैं। 8पर हम जो दिन के हैं, विश्वास और प्रेम की झिलम पहिनकर और उद्धार की टोप पहिनकर सावधान रहें। 9क्योंकि परमेश्वर ने हमें क्रोध के लिये नहीं, परन्तु इसलिये ठहराया कि हम अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा उद्धार प्राप्त करें। 10वह हमारे लिये इस कारण मरा, कि हम चाहे जागते हों, चाहे सोते हों: सब मिलकर उसी के साथ जिएँ। 11इस कारण एक दूसरे को शान्ति दो, और एक दूसरे की उन्नति के कारण बनो, जैसा कि तुम करते भी हो। (1 थिस्सलुनीकियों 5:1-11)

 

प्रभु के आगमन की तुलना “रात में चोर की नाई” का क्या अर्थ है?

 

इस खंड के पद 4-6 को देखते हुए, आपको क्या लगता है कि रात में चोर की नाई का सादृश्य पौलुस द्वारा उल्लेखित दोनों समूहों पर लागू होता है?

 

मेरी राय में, यह वाक्यांश, रात में चोर की नाई” कई बार गलत संदर्भ में इस्तेमाल किया गया है। मैंने अक्सर लोगों को यह कहते सुना है कि हमें, मसीही लोगों के रूप में, प्रभु के आगमन के समय का नहीं पता होगा क्योंकि वह रात में चोर की नाई आएगा। वह तब आएगा जब हमें उसके आने की सबसे कम उम्मीद होगी। इस विचार को यह सुझाव देने में और आगे भी ले जाया गया है कि इस विषय पर बात करना भी निरर्थक है, क्योंकि हम संभवत: यह जान ही नहीं सकते हैं कि यह कब होगा। जब हम इस पूरे खंड को

 

एक साथ लेते हैं तो यह सच्चाई से कोसों दूर है। परमेश्वर के लोगों को एक दूसरे पर ध्यान देना है, प्रतीक्षा करते रहना है और एक दूसरे को प्रोत्साहित करते हुए उन्हें चिन्हों के बारे में जागरूक रहना है। सन्दर्भ पर विचार करना और यह देखना कि यह खंड क्यों लिखा गया था भी उपयोगी है। उन दिनों कुछ लोग चिंतित थे कि प्रभु पहले से ही वापस लौट चुके हैं। पौलुस एक विशिष्ट भ्रामक अफवाह का जवाब दे रहा था, जो उस समय कलीसिया में चर्चा में थी। वह सच्चाई स्थापित कर रहा था। उसने इसीलिए "समयों और कालों" का उल्लेख किया। प्रश्न के जवाब में पौलुस का उत्तर यह था कि इससे पहले कि हम प्रभु के आगमन की उम्मीद करें, उससे पहले तीन चीजें होंगी।

 

1हे भाइयों, तुम अपने प्रभु यीशु मसीह के आने, और उसके पास अपने इकट्ठे होने के विषय में तुमसे विनती करते हैं। 2कि किसी आत्मा, या वचन, या पत्री के द्वारा जो कि मानों हमारी ओर से हो, यह समझकर कि प्रभु का दिन हुँचा है, तुम्हारा मन अचानक अस्थिर हो जाए; और तुम घबराओ। 3किसी रीति से किसी के धोखे में आना क्योंकि वह दिन आएगा, जब तक धर्म का त्याग हो ले, और वह पाप का पुरूष अर्थात् विनाश का पुत्र प्रगट हो। 4जो विरोध करता है, और हर एक से जो परमेश्वर, या पूज्य कहलाता है, अपने आप को बड़ा ठहराता है, यहाँ तक कि वह परमेश्वर के मन्दिर में बैठकर अपने आप को परमेश्वर ठहराता है। (2 थिस्स्लुनिक्यों 2:1-4)

 

वह तीन चीजें इस प्रकार से हैं: 1) उन कई लोगों का धर्म-त्याग या विद्रोह, जिन्होंने वास्तव में मसीह को अपना जीवन नहीं दिया है (2 थिस्सलुनीकियों 2:3); 2) पाप का पुरुष, जिसे और जगह क्रीष्ट विरोधी कहा गया है, प्रकट किया जाएगा; 3) वो स्वयं परमेश्वर के मंदिर बैठ स्वयं को परमेश्वर घोषित करेगा (2 थिस्सलुनीकियों 2:4), मंदिर का अपवित्रीकरण करेगा, जिसे प्रभु यीशु ने "उजाड़नेवाली घृणित वस्तु(मत्ती 24:15) कहा था। ये वह संकेत हैं जिन्हे देखने के लिए यीशु ने हमें कहा था। जब हम इन चीजों को देखते हैं, तो वह हमें बताता है कि तब हमारा छुटकारा निकट आता है तो हम अपने सिरों को ऊपर उठा लें।

ऐसे कई झूठे भविष्यवक्ता हुए जिन्होंने प्रभु के आने की तारीखें निर्धारित की हैं। कई भटकाने वाले पंथों की बताई तिथियाँ गलत साबित हो गयीं और फिर उन्होंने नई तिथियाँ निर्धारित कीं। हमें इस बड़ी गलती को अपने को इस तथ्य से अँधा नहीं करने देना चाहिए कि हमें बताया गया है कि उसके आगमन का चिन्ह देने वाले चेतावनी के संकेत क्या हैं। हमें प्रभु की आने के विषय में एक दूसरे को देखने, प्रतीक्षा, आराम और प्रोत्साहित करने के लिए कहा गया है। इसके बजाय, हम पाते हैं कि आज, यह विषय ऐसा बन गया है जो अलोकप्रिय है और जिसे उठाना थोड़ा विवादास्पद माना जाता है। आखिरकार, लोगों का तर्क है, क्या यह बेहतर नहीं कि हम इस बात पर केन्द्रित हों कि हम तैयार होने के लिए आज क्या कर सकते हैं? वचन में हर एक बात के लिए एक कारण है। परमेश्वर अपने लोगों को आगाह करना चाहता था और अपने आने के संकेत उन्हें बताना चाहता था।

 

शायद यह शत्रु है जो चाहता है कि हम इस विषय के बारे में इस तरह से सोचें कि "कुछ प्रकार के लोग" ही इसके बारे में बात करते हैं। ऐसे में तुरंत वह व्यक्ति याद आ जाता है जिसके पास एक बैनर था जिस पर लिखा था "अंत निकट है।" हम सभी जानते हैं कि हर कोई उस व्यक्ति को अस्थिर के रूप में ख़ारिज करते हुए उसके बगल से गुज़र कर चले जाएँगे। हो सकता है कि यही वो छवि है जिसे हमारे प्राणों का दुश्मन बढ़ावा देना चाहता है ताकि हम इस अद्भुत घटना के बारे में न सोचें। तारीख तय करना, मौसम के मिजाज़ के बारे में जागरूक रहने जैसा नहीं है, जहाँ हम समय के निकट आने को भाँप सकते हैं। यीशु ने ऐसा ही कुछ कहा:

 

हे कपटियों! तुम धरती और आकाश के रूप में भेद कर सकते हो, परन्तु इस युग के विषय में क्यों भेद करना नहीं जानते? (लूका 12:56)


प्रभु का आगमन एक ऐसी घटना है जो असल है। यह हमें यह जानने में प्रोत्साहित कर सकता है कि वह आ रहा है और हमें अपने जीवनों को अनन्त सिद्धांतों को मन में रखते हुए जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है। हमें सोए नहीं रहना है, बल्कि जागते रहना है! हम वह दिन या घड़ी नहीं जानते। अगर कोई आपके पास आकर कहता है, "यह वो या फिर वो दिन है," उस व्यक्ति से सावधान रहें। हालांकि, मौसम इस बात से भाँपा जा सकता है कि हमारे चारों तरफ क्या होते दिख रहा है। यह हमें बताता है कि कुछ होने वाला है। आमतौर पर, यदि कोई किसी तिथि की भविष्यवाणी कर रहा है, तो आप यह शर्त लगा सकते हैं कि उसके पास अनुयायियों का एक बहुत ही चुनिंदा समूह होगा जो खुद को अभिजात और चुना हुआ वर्ग मानते होंगे, और आपको उनमें शामिल होने के लिए कहा जाएगा! ऐसा हाल ही में फ्लोरिडा, अमरीका में एक आदमी के नेतृत्व में एक समूह के साथ हुआ। इस व्यक्ति ने अमरीका भर में यह दावा करते सूचना पट्ट लगवा दिए कि वह उस तारीख को जानता है जब यीशु आएगा। वो गलत था। इसलिए, विशिष्ट तिथियों को निर्धारित करने वाले किसी भी व्यक्ति से सावधान रहें। हालांकि, इसे अपने आप को प्रभु के आने के बारे में सीखने और ध्यान देने से हतोत्साहित न करने दें, क्योंकि यह कुछ ऐसा है जिसके बारे में हम मसीही लोगों को प्रोत्साहित होना है!

 

दृश्टान्त की दो व्याख्याएं

 

अंजीर के पेड़ का दृष्टान्त हमारे लिए समय के चिन्हों पर नज़र के लिए एक प्रोत्साहन है। अंजीर के पेड़ के दृष्टांत की दो लोकप्रिय व्याख्याएं हैं।

 

पहली इजरायल राष्ट्र से सम्बंधित है। इस व्याख्या में, अंजीर का पेड़, इज़राइल राष्ट्र का प्रतीक है। इस सिद्धांत का समर्थन करने के लिए अधिक वचन आधारित साक्ष्य नहीं हैं। मैंने केवल एक ही पद में इज़राइल का वर्णन करने के लिए अंजीर के पेड़ का प्रयोग होते हुए पाया है:

 

मैंने इस्राएल को ऐसा पाया जैसे कोई जंगल में दाख पाए; और तुम्हारे पुरखाओं पर ऐसे दृष्टि की जैसे अंजीर के पहले फलों पर दृष्टि की जाती है (होशे 9:10)

 

उन लोगों के लिए जो इस व्याख्या को मानते हैं, वे मानते हैं कि 1948 में इज़राइल की स्थापना के पश्चात् पाँच युद्ध के द्वारा (1948, 1956, 1967, 1973, और 1982) उसके क्षेत्र का लगातार बढ़ना, उसी तरह से है जैसा गर्मी से पहले पत्तों का अंकुरित होना, जहाँ गर्मी मसीह के दूसरे आगमन की एक तस्वीर है। इस नज़रिए के अनुसार, उसके चारों ओर कई दुश्मनों के कारण इजरायल की रक्षात्मक सीमाओं की आवश्यकता ने, उसे राष्ट्र के पूर्वोत्तर में सीरिया से गोलन हाइट्स, यर्दन के पश्चिमी तट, दक्षिणी लेबनान, गाज़ा पट्टी, और मिस्र से सिनाई रेगिस्तान को सुरक्षित करने में नेत्रित्व करना है। वर्तमान स्थिति (फरवरी 2014) में, इस क्षेत्र में से अधिकांश को वापस लौटा दिया गया है। यदि यह व्याख्या सही है, तो फिर यीशु ने इन शब्दों, "और सब पेड़ों कोका उल्लेख क्यों किया?" (लूका 21:29)

 

दूसरी व्याख्या, जिसपर मैं व्यक्तिगत रूप से विश्वास करता हूँ, यह है कि जैसे एक झड़नेवाले वृक्ष पर नए पत्ते और नया विकास इस बात का संकेत है कि वसंत यहाँ है और गर्मियाँ करीब हैं, उसी तरह जब आप समय के चिन्हों को होते पाते हैं (पद 8-11, और 25-2), तब आप जान लेंगे कि मसीह का आगमन जल्द ही होने वाला है। यीशु दो बार "से बातें" के वाक्यांश को पद 31-32 में वर्णित कर इस बात को पुख्ता करता है। मेरा मानना ​​है कि यह दृष्टान्त उन लोगों के लिए एक प्रोत्साहन है, जो ऐसे कठिन समय से होकर गुज़र रहे हैं जिनका उल्लेख किया गया है। जब हम इन चीजों को होते देखेंगे, तब हम यह जान लेंगे कि, परमेश्वर का राज्य, सम्पूर्ण पृथ्वी पर प्रभु यीशु मसीह के धर्मी शासन और राज्य का सम्पूर्ण प्रकटीकरण, जल्द ही पूर्ण हो जाएगा और यह कि बुराई का न्याय किया जाएगा।

क्या आप मानते हैं कि हम उस मौसम में रह रहे हैं जब हम ये बातें होते देखेंगे? आपने समाचारों में क्या घटनाएं होते देखी हैं जिन्हें "पत्ते अंकुरित" होने के संकेत के रूप में वर्णित किया जा सकता है?

 

पद 32 समझने के लिए एक मुश्किल वचन है। हम इन शब्दों इस पीढ़ी को कैसे समझते हैं?

 

मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक ये सब बातें हो लें, तब तक इस पीढ़ी का कदापि अन्त होगा (लूका 21:32)

 

कुछ लोग कहते हैं कि इन शब्दों इस पीढ़ी का अर्थ यहूदी राष्ट्र से है, और यह कि यीशु यह कह रहा है कि यद्यपि इज़राइल एक समूह के रूप में मुश्किल समय से होकर गुज़रेगा, वे जीवित रहेंगे और "नाश नहीं" होंगे। अन्य लोग कहते हैं कि जो लोग उसे जैतून के पर्वत पर बैठ उसे सुन रहे थे वह उसके दोबारा आने तक नाश नहीं होंगे। लेकिन, इतिहास हमें बताता है कि यह सच नहीं हो सकता है। यद्यपि यह स्पष्ट है कि शुरुआती शिष्य अपने जीवनकाल में ही प्रभु की वापसी देखने की आकांशा करते थे, मैं इस तथ्य के साथ नहीं जा सकता कि यही वह बात है जिसका यीशु उल्लेख कर रहा था। एक अन्य व्याख्या यह है कि एक पीढ़ी चालीस वर्ष की अवधि होती है। इसमें कुछ विश्वसनीयता है क्योंकि हम जानते हैं कि इसरायली चालीस वर्षों तक जंगल में भटके और मूसा ने, जिसने गिनती की पुस्तक लिखी, उन्हें एक पीढ़ी कहा था:

 

सो यहोवा का को इस्त्राएलियों पर भड़का, और जब तक उस पीढ़ी के सब लोगों का अन्त हुआ, जिन्होंने यहोवा के प्रति बुरा किया था, तब तक अर्थात् चालीस वर्ष तक वह उन्हें जंगल में मारे मारे फिराते रहे। (गिनती 32:13)

 

जो लोग इस दृष्टिकोण को मानते हैं, वे कहते हैं कि वह पीढ़ी जो यरूशलेम शहर के पुन: हासिल (जो 1967 में हुआ था) किये जाने को देखती है, वह भी मसीह का आना देखेगी। बहुत से लोग कहते हैं कि अन्यजातियों का समय पूरा हो गया था और अब हम वह पीढ़ी हैं:

 

और जब तक अन्य जातियों का समय पूरा न हो, तब तक यरूशलेम अन्य जातियों से रौंदा जाएगा।” (लूका 21:24)

 

व्यक्तिगत तौर पर मैं अन्य जातियों के समय को पूरा होते नहीं देखता क्योंकि मंदिर की पहाड़ी अब भी अन्यजातियों के अधीन है। 1967 में, जब मोशे दयान, यहूदी सेनापति ने मुस्लिम कब्ज़े से पश्चिमी दीवार पर, जिसे विलाप की दीवार भी कहा जाता है, फिर से कब्ज़ा कर लिया था, तब मंदिर की पहाड़ी को गैर यहूदीय मुस्लिम शासन के तहत रहने की इजाजत दे दी गई थी।

 

मेरा मानना यह है कि यीशु केवल यह कह रहा है कि समय के चिन्हों को देखने वाले लोगों की पीढ़ी ही वही पीढ़ी होगी, जो इन सभी चीजों की पूर्ति होते देखेंगे। वो चाहता है कि हमारी आंखें संसार में चल रही बातों के लिए खुली हों, और जब हम वचन में लिखी बातों को पूर्ण होते देखते हैं, तो हम उस पर ध्यान केन्द्रित करें जो वास्तविक रूप में मूल्यवान है: मसीह, और वह लोग जिन्हें वो प्रेम करता है। अंत का समय कलीसिया को मसीह के साथ और अधिक घनिष्ठता में लेकर आएगा, जो उनके आसपास मौजूद अंधकार को पीछे धकेल देगा। भविष्यद्वक्ता यशायाह ने एक ऐसे समय के बारे में लिखा था जो उसके लिए भविष्य था, एक ऐसा समय, जो मैं विश्वास करता हूँ, बस आने वाला है, और कुछ हद तक, आ भी चुका है। वो अंधकार के बारे में बात करता है, अर्थात् एक गहरा आत्मिक अंधकार जो पृथ्वी पर छा जाएगा, लेकिन इस भयानक अंधकार के बीच उसके लोगों में मसीह की ज्योति चमकती होगी। वो कहता है:

 

 

1उठ, प्रकाशमान हो; क्योंकि तेरा प्रकाश आ गया है, और यहोवा का तेज तेरे ऊपर उदय हुआ है। 2देख, पृथ्वी पर तो अन्धियारा और राज्य राज्य के लोगों पर घोर अन्धकार छाया हुआ है; परन्तु तेरे ऊपर यहोवा उदय होगा, और उसका तेज तुझ पर प्रगट होगा। (यशायाह 60:1-2)

 

सावधान रहने के लिए चेतावनियाँ (लूका 21:34-36)

 

चेतावनी सावधान रहने के लिए है। एक अंग्रेजी अनुवाद (किंग जेम्स वर्शन) कहता है, "अपने आप पर ध्यान दो।" यहाँ हमें प्रोत्साहित किया जाता है कि हम अपने जीवन के आन्तरिक केंद्र पर ध्यान दें, उदाहरण के लिए हमारे हृदय। जिस अंधेरी दुनिया में हम जीते हैं, उसके तरीकों में एक, हमारे जीवन के आन्तरिक केंद्र को हमारे प्रभु यीशु के साथ घनिष्ठता से दूर आकार देना है। हमें "अपव्यय से थकाया जा सकता है" (यूनानी शब्द क्रेपाले जिसका अर्थ है मादक पेय के कारण सरदर्द होना, और इसके साथ चक्कर आना और लड़खड़ाना भी जुड़ा होता है)। यह एक व्यक्ति के इस प्रकार महसूस करने के विषय में बात करता है जो जीवन के दबावों का सामना करने का एकमात्र तरीका अपनी वर्तमान परिस्थितियों को भूलने की कोशिश कर उन गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करना है जो हमें असंवेदनशील बना दें। हम यहाँ शराब की लत और जीवन की चिंताओं को संदर्भित किये जाता भी देखते हैं। ध्यान दें कि चिंता का अपव्यय और शराबीपन के साथ सम्बन्ध है।

 

दबाव और चिंता के दौरान आप कहाँ रुख करते हैं? जब आप तनाव में होते हैं, तो किस प्रकार की गतिविधियाँ आपको इसका सामना करने में मदद करती हैं?

 

एक स्त्री या पुरुष की जीवात्मा आसानी से दैनिक जीवन की चिंताओं से कुंठित की जा सकती है। लोग विभिन्न प्रकार से दबाव का सामना करने का चुनाव करते हैं। कुछ लोगों के लिए, इस अन्धकार भरे संसार में रहने का दबाव उन्हें प्रभु पर और अधिक भक्ति और निर्भरता के साथ और उसके वचन में पाए जाने वाले सत्य और सांत्वना की ओर ले जाएगा। और लोग, इससे बचने की कोशिश में, शुतुरमुर्ग की तरह अपने सिर रेत में छुपाते हैं। जब यह संसार आपको बोझिल करता है, तो कुछ ऐसा होने दें जो आपको मसीह के निकट ले जाए! अपनी सारी चिन्ता उसी पर डाल दो, क्योंकि उसको तुम्हारा ध्यान है। (1 पतरस 5:7)

 

पद 34 के दूसरे भाग में प्रतीक्षा और सावधानी के उस समय के विषय में चेतावनी के कुछ शब्द हैं जिसके बारे में यीशु जानता था कि उसके चेले यह अनुभव करेंगे। यह मत्ती 25 में दस कुंवारी के दृष्टान्त के समान है। दस कुंवारी के दृष्टांत में, पाँच दूल्हे के साथ शादी में प्रवेश करने की पुकार से चूक गईं। उनके पुकार के समय चूकने का कारण यह था कि वह तैयार नहीं थीं और इंतज़ार नहीं कर रही थीं! (मत्ती 25:12)। यह खंड “जागते रहो, क्योंकि तुम न उस दिन को जानते हो, न उस घड़ी को” की चेतावनी के साथ समाप्त होता है (मत्ती 25:13)

 

हमें लूका 21 अध्याय के 34 पद में बताया गया है, कि प्रभु का दिन पृथ्वी पर वास करने वाले सभी लोगों पर आएगा और यह कईयों के लिए एक फंदे की तरह अप्रत्याशित होगा। बहुत से लोग परमेश्वर के प्रेम और करुणा के संदेश को सुनेंगे और उसकी क्षमा के लिए मसीह की ओर मुड़ने का निर्णय बाद के लिए छोड़ देंगे। इन शब्दों की तस्वीर किसी जानवर या एक पक्षी पर एक अनपेक्षित जाल फेंक देने की है। बहुत से लोग यह नहीं जानते कि परमेश्वर के अनुग्रह की इस अवधि का एक समापन समय है। परमेश्वर के अनुग्रह का दिन अप्रत्याशित रूप से समाप्त हो जाएगा, और वे बाहर रह जाएंगे, और इस प्रकार उन्हें अपने पापों के लिए स्वयं ही दंड का भुगतान करना होगा। यह एक दुख:द दृश्य होगा। मत्ती का सुसमाचार यीशु को इस समय के बारे में और कुछ कहते लिखता है:


21जो मुझसे, ‘हे प्रभु, हे प्रभुकहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। 22उस दिन बहुतेरे मुझ से कहेंगे; ‘हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत अचम्भे के काम नहीं किए?’ 23तब मैं उन से खुलकर कह दूंगा किमैंने तुमको कभी नहीं जाना, हे कुकर्म करनेवालों, मेरे पास से चले जाओ!’” (मत्ती 7:21-23)

 

यह वे अच्छे लोग होंगे जिन्होंने कलीसिया में भाग लिया है और यहाँ तक ​​कि सेवकाई में भी मदद की है, लेकिन मसीह के इन शब्दों के उनके हृदय में गूंजते हुए, "मैंने तुम्हें कभी नहीं जाना है!", द्वार अप्रत्याशित रूप से बंद हो जाएगा।

 

हमारे प्राणों का शत्रु हमें इस धोखे में सुलाना चाहता है कि हम तो प्रतीक्षा कर सकते हैं, कि समय हमारे साथ है। वह हमें यह यकीन दिलाने की कोशिश करना चाहता है कि हमारे पास परमेश्वर के साथ शांति बनाने के लिए, या अपने भाई के साथ चीज़ें सही करने के लिए, या अपने जीवन में वह आवश्यक परिवर्तन करने के लिए जो हमें परमेश्वर के निकट आने में मदद करेंगे, कल का दिन हमेशा रहेगा। शत्रु हमारी चेतनाओं को इस संसार की चीज़ों से बांधे रखना चाहता है। सच्चाई यह है, हम नहीं जानते कि हमारे पास कितना समय है। हमें समय का कोई आश्वासन नहीं दिया गया है। उद्धार का आश्वासन केवल आज के लिए ही है।

 

क्योंकि वह तो कहता है, “कि अपनी प्रसन्नता के समय मैंने तेरी सुन ली, और उद्धार के दिन मैंने तेरी सहायता की: देखो, अभी उद्धार का दिन है।देखो, अभी वह प्रसन्नता का समय है; देखो, अभी वह उद्धार का दिन है। (2 कुरिन्थियों 6:2)

 

हममें से उन लोगों को जिन्होंने परमेश्वर के उद्धार की नि:शुल्क पेशकश को स्वीकार कर उसपर कार्य किया है, प्रतीक्षा में हमेशा जागते रहना रहना चाहिए (लूका 21:36)

 

प्रतीक्षा में जागते रहने का क्या मतलब है? जागते रहने के लिए हम क्या व्यावहारिक बातें कर सकते हैं?

 

यूनानी क्रिया, एग्रुप्नेओ, जिसका अनुवाद "जागते रहो" किया गया है, का शाब्दिक अर्थ है अपने आप को जगाए रखना, भयंकर खतरे से सतर्क रहना, चौकस बने रहना। इस शब्द की तस्वीर एक हमले से बचने के लिए, और शेष सैनिकों को सतर्क करने के लिए खड़े एक चौकस सैनिक की है। वह लोग जो संसार में चल रही बातों के प्रति जागरूक हैं उन्हें अपने साथी सैनिकों को जागृत करना चाहिए, और वह लोग जो अभी तक नागरिक हैं, उन्हें मसीह के सैनिक बनना चाहिए। हमारा परमेश्वर नहीं चाहता है कि कोई भी नाश हो, परन्तु सभी उसके पास आ अपने जीवनों को उसे सौंप दें (2 पतरस 3: 9)। जब एक क्षण में, एक पलक झपकने में, हम बदल जाएंगे, तब हम कितने आनन्द से भर जाएंगे (1 कुरिन्थियों 15:51)। पौलुस हमें बताता है कि प्रभु स्वर्ग से बड़ी हुंकार के साथ आएगा (हमारे परमेश्वर के शत्रु कैसे कांपेंगे!), और हम में से जो भी मसीह में जीवित हैं, उन सब लोगों के साथ मिल जाएंगे जो पहले से ही स्वर्ग में हैं। हम मसीह में उन लोगों के साथ जो परमेश्वर में सो गए हैं हवा में मिलेंगे, कि हम भी हमेशा के लिए प्रभु के साथ हों (1 थिस्सलुनीकियों 4:13-18)। मसीह को आते और सबकुछ ठीक करते देखने के आनंद की कल्पना करें। इस संसार का दुःख समाप्त हो जाएगा। परमेश्वर चाहता है कि हम में से प्रत्येक इस दिन के लिए तत्पर रहे और उसके आने का स्वागत करे। उन्होंने क्रूस पर अपनी मृत्यु के द्वारा हम में से प्रत्येक के लिए न्याय की कीमत से छुड़ाए जाने का भुगतान कर दिया है।

 

अगर आपने अपने जीवन पर शासन करने के लिए कभी भी प्रभु यीशु को आमंत्रित नहीं किया है, तो आज से बेहतर कोई समय नहीं। परमेश्वर के सम्मुख सचाई और ईमानदारी से, उसे बताएं:

 

प्रार्थना: पिता, मैं अब यह स्वीकार करने के लिए तैयार हूँ कि मुझे आपकी आवश्यकता है। मैंने अपने जीवन को अपने तरीके से जिया है, और अब मैं चाहता हूँ कि आप मेरे प्रभु और मार्गदर्शक हों। मेरा विश्वास ​​है कि आपका पुत्र, यीशु मसीह, मेरे पापों का भुगतान करने के लिए मेरे स्थान पर क्रूस पर मरा। मेरे सारे पापों के लिए मुझे क्षमा करें। मुझे उन समयों के लिए भी क्षमा करें जब मैंने दूसरों के विर्रुद्ध पाप किये हैं। मैं अब मुड़ता हूँ और आपको अपने जीवन का स्वामित्व देता हूँ और आपसे मेरी अगवाई और अपना मार्गदर्शन करने के लिए माँगता हूँ। आपकी क्षमा के लिए धन्यवाद और मुझे वह व्यक्ति होना सिखाएं जो आप चाहते हैं मैं बनूँ। अमीन।

 

कीथ थॉमस

नि:शुल्क बाइबिल अध्यन के लिए वेबसाइट: www.groupbiblestudy.com

-मेल: keiththomas7@gmail.com

bottom of page