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7. He Must Become Greater

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7. अवश्य है कि वह बढ़े

शुरुआती प्रश्न: जब आप इतिहास के महान लोगों के बारे में सोचते हैं, तो आपके मन में कौन आता है? आप क्या सोचते हैं कि वह क्या था जिससे उन्हें प्रेरणा मिलती थी?

 

22इस के बाद यीशु और उसके चेले यहूदिया देश में आए; और वह वहाँ उन के साथर रहकर बपतिस्मा देने लगा। 23और यहुन्ना भी शालेम् के निकट ऐनोन में बपतिस्मा देता था। क्योंकि वहाँ बहुत जल था और लोग आकर बपतिस्मा लेते थे। 24क्योंकि यहुन्ना उस समय तक जेलखाने में नहीं डाला गया था। 25वहाँ यहुन्ना के चेलों का किसी यहूदी के साथ शुद्धि के विषय में वाद- विवाद हुआ। 26और उन्होंने यहुन्ना के पास आकर उस से कहा, हे रब्बी, जो व्यक्ति यरदन के पार तेरे साथ था, और जिस की तू ने गवाही दी है देख, वह बपतिस्मा देता है, और सब उसके पास आते हैं। 27यहुन्ना ने उत्तर दिया, जब तक मनुष्य को स्वर्ग से न दिया जाए तब तक वह कुछ नहीं पा सकता। 28तुम तो आप ही मेरे गवाह हो, कि मैं ने कहा, मैं मसीह नहीं, परन्तु उसके आगे भेजा गया हूँ। 29जिसकी दुलहन है, वही दूल्हा है: परन्तु दूल्हे का मित्र जो खड़ा हुआ उसकी सुनता है, दूल्हे के शब्द से बहुत हर्षित होता है; अब मेरा यह हर्ष पूरा हुआ है। 30अवश्य है कि वह बढ़े और मैं घटूँ। 31जो ऊपर से आता है, वह सर्वोत्तम है, जो पृथ्वी से आता है वह पृथ्वी का है और पृथ्वी की ही बातें कहता है; जो स्वर्ग से आता है, वह सब के ऊपर है। 32जो कुछ उस ने देखा, और सुना है, उसी की गवाही देता है; और कोई उस की गवाही ग्रहण नहीं करता। 33जिस ने उसकी गवाही ग्रहण कर ली उसने इस बात पर छाप दे दी कि परमेश्वर सच्चा है। 34क्योंकि जिसे परमेश्वर ने भेजा है, वह परमेश्वर की बातें कहता है: क्योंकि वह आत्मा नाप नापकर नहीं देता। 35पिता पुत्र से प्रेम रखता है, और उसने सब वस्तुएं उसके हाथ में दे दी हैं। 36जो पुत्र पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है; परन्तु जो पुत्र की नहीं मानता, वह जीवन को नहीं देखेगा, परन्तु परमेश्वर का क्रोध उस पर रहता है। (यहुन्ना 3:22-36)

 

उद्देश्य है कि सर्वप्रथम हमें मसीह के साथ जीना है

 

इस खंड से सबसे पहली बात जो हम यीशु के बारे में सीखते हैं वह है यीशु की अपने चेलों के साथ होने की इच्छा। यूनानी वाक्यांश जिसका अनुवाद “वहाँ उनके साथ रहकर” (पद 22) किया गया है, का अर्थ “ज़ोर से रगड़ना” या “रगड़ते हुए” है। यहाँ विचार निकट, घनिष्ठ संगती का है जिसमें वह साथ में कंधे से कंधा रगड़ते हुए सबकुछ करते। सुसमाचार लेखक मरकुस भी यीशु की अपने चेलों के साथ होने की इच्छा का उल्लेख करता है। वह लिखता है, तब उसने बारह पुरूषों को नियुक्त किया, कि वे उसके साथ साथ रहें, और वह उन्हें भेजे, कि प्रचार करें। (मरकुस 3:14, बल मेरी ओर से दिया गया है) उसकी मंशा निकट घनिष्ठ संगति के द्वारा उनके हृदयों को जीत उनको अपना चरित्र विदित करने की थी। केवल यीशु के साथ जीवन जीने के द्वारा, उसकी छाप उनपर पड़ी। उनके पास क्या ही सौभाग्य था, यहाँ पृथ्वी पर यीशु के साथ चलने और बातचीत करने का! क्या आपने कभी सोचा है कि यह कैसा रहा होगा? आज भी, यीशु हमें यही करने का आमंत्रण देता है। जितना समय आप परमेश्वर का वचन पढने और प्रार्थना के द्वारा मसीह के निकट आने में बिताएंगे, उसके चरित्र की उतनी ही छाप आप पर पड़ेगी! कोई एक व्यक्ति पर दूर से असर डाल सकता है, लेकिन अगर आपको किसी को प्रभावित करते हुए उसके जीवन में बदलाव लाना है, तो यह निकट सम्बन्ध के द्वरा होगा। यीशु ने कहा, यदि तुम ने मुझे जाना होता, तो मेरे पिता को भी जानते।(यहुन्ना 14:7) यह जानना कितना उत्साहवर्दक है कि परमेश्वर बस अपने लोगों के साथ होने में, और उनके साथ समय बिताने में आनंदित है। यहाँ तक कि, अगर आप चारों सुसमाचारों को देखें, तो आप इस निष्कर्ष से भाग नहीं पाएंगे कि जब वह पृथ्वी पर था तो मसीह के दो मुख्य उद्देश्य थे। 1) पिता को क्रूस पर मृत्यु के द्वारा मानवजाति के पाप की कीमत चुकाने के द्वारा संतुष्ट करना। 2) एक छोटे आदमियों का समूह बनाना जिन्हे वो पृथ्वी पर भरपूरी से जीवन जीने का नमूना पेश कर सके, और उसने जो कुछ हासिल किया था उसके आधार पर वह उन्हें अपने उद्धार का सन्देश लेकर आगे भेजे।

 

जिस खंड का अध्यन हम कर रहे हैं उसमें हमें बताया गया है कि यीशु का समूह भी यहुन्ना बप्तिस्मा देने वाले की तरह बप्तिस्मा दे रहे थे, हालाँकि अपने सुसमाचार में आगे जाकर (4:2) यहुन्ना हमें बताता है कि यीशु स्वयं बप्तिस्में नहीं दे रहा था:

 

1फरीसियों ने सुना है, कि यीशु यहुन्ना से अधिक चेले बनाता, और उन्हें बपतिस्मा देता है। 2(यद्यपि यीशु आप नहीं बरन उसके चेले बपतिस्मा देते थे)

 

यह खंड हमें बताता है कि यहुन्ना शालेम के निकट ऐनोन में बपतिस्मा देता थानोन एक इब्रानी शब्द है जिसका अर्थ “स्रोतें” है और वह उस स्थान पर इसलिये बप्तिस्मा दे रहे थे क्योंकि वहाँ बहुत जल था (पद 23)। यह वाक्य हमें इस बात का इशारा करता है कि यहुन्ना और यीशु के समय बप्तिस्मा कैसे किया जाया करता था। वह वहाँ उस स्थान पर इसलिए थे क्योंकि स्रोतों पर पर्याप्त पानी था कि एक व्यक्ति को पूरा डुबाए जाने के द्वारा उसे बप्तिस्मा दिया जा सके। हम वचन में कहीं भी किसी के भी पानी छिड़कने के द्वारा बपतिस्मे के बारे में नहीं पढ़ते। नोन को बपतिस्मे के लिए स्थान के रूप में इसीलिए चुना गया था क्योंकि वहाँ एक व्यक्ति को पूरा डूब कर बप्तिस्मा देने के लिए पर्याप्त पानी था।

 

जबकि यहुन्ना अब भी बप्तिस्मा दे रहा था, चेलों के बीच में एक मुद्दा उठ खड़ा हुआ।

 

इस खंड में यहुन्ना बप्तिस्मा देने वाले के चेलों की क्या चिंताएं थीं?

 

यहुन्ना बप्तिस्मा देने वाले के चेलों के चिंता का कारण एक अज्ञात यहूदी के साथ विवाद था। (पद 25) हमें उस विवाद के विषय के बारे में नहीं पता, लेकिन संभवत: यह इस प्रश्न पर होगा कि किसका बप्तिस्मा ज्यादा श्रेष्ठ है, यहुन्ना का या यीशु का। अब बप्तिस्मा लेने के लिए लोगों को किसके पास जाना चाहिए? यहुन्ना ने पहले ही अपने कुछ चेलों को बता दिया था कि यीशु परमेश्वर का वह मेमना है जो जगत के पाप लेकर जाएगा, और उसने उन्हें उसके पीछे होने के लिए उत्साहित किया। (यहुन्ना 1:35-37) अगर आप यहुन्ना के एक वफादार चेले या अनुयायी होते और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को किसी दूसरी जगह जाते देख रहे होते, तो क्या यह बात आपको चिंतित नहीं करती? उन्होंने कहा:

 

और उन्होंने यहुन्ना के पास आकर उस से कहा, हे रब्बी, जो व्यक्ति यरदन के पार तेरे साथ था, और जिस की तू ने गवाही दी है देख, वह बपतिस्मा देता है, और सब उसके पास आते हैं।” (पद 26)

 

यहुन्ना बप्तिस्मा देने वाले की सेवकाई अब ढल रही थी। शहर में कुछ नया चल रहा था और लोग उसे छोड़ यीशु के पीछे चल रहे थे। वह इस बात से चिंतित थे कि लोग छोड़कर और जगह जा रहे हैं, शायद यह सोचते हुए कि अब हम उन लोगों को वापस अपनी ओर खींचने के लिए क्या रणनीति अपना सकते हैं।

 

जब मैं इंग्लैंड में था, मुझे ऐसे एक पासबान के बारे में सुनना याद है जो अपनी कलीसिया में ऐसी ही परिस्थिति का सामना कर रहा था। लोग उस कलीसिया को छोड़ दूसरी कलीसिया में जा रहे थे। उसकी रणनीति उस समय के एक विख्यात हास्य-अभिनेता का मुखौटा पहन लोगों की बगलों में अपनी “गुदगुदी की छड़ी” से गुदगुदी करना था। उनकी आशा केन डॉड़ की नक़ल कर, लोगों को वापस खींचेने की थी, जो अपने मज़ाक के क्रम में ऐसा किया करते थे। जबकि इससे केन डॉड़ तो लोगों को हंसा दिया करते थे, इस भटके हुए पासबान ने कई लोगों को अचरज में सर हिलाने पर मजबूर किया। जब तक की हमारे पास ऐसा कोई सन्देश नहीं है जो हमारे हृदयों को ज्वलंत करता हो, हम मसीह के प्रेम के विषय में उकसाने वाले सन्देश लोगों तक कैसे लेकर आ सकते हैं? दुर्भाग्य से, कई कलीसियाओं में प्रतिस्पर्धा की आत्मा है। यह एक ऐसी मंशा को उजागर करता है जो भटकी हुई है, और इसी कारण से, उनकी सेवकाई भी भटकी हुई है। कई बार जब मैं पासबानों के सम्मलेन में शामिल हुआ हूँ, मैंने इस बात पर गौर किया है कि एक दूसरे से बातचीत करने के लिए बैठने के कुछ ही मिनटों में, पासबान अक्सर कहेंगे, “आपकी कलीसिया कितनी बड़ी है?” इस प्रश्न के पीछे अनकहा प्रश्न है कि; “क्या तुम मेरे समय के योग्य हो?” या, “तुम्हारे साथ समय बिताने से मेरा फायदा कैसे हो सकता है?” स्पष्ट है कि यह आचरण होना तो गलत है। यहुन्ना की सेवकाई के लिए ऐसी कोई अभिलाषाएं या झूठी मंशाएं नहीं थीं। उसकी इच्छा थी लोगों को मसीह की ओर जाने की दिशा दिखाना। जो करने के लिए उसे बुलाया गया था, वह उसमें सुरक्षित था। एक कारण है कि क्यों यीशु ने यहुन्ना बप्तिस्मा देने वाले के विषय में यह कहा:

 

मैं तुम से सच कहता हूं, कि जो स्त्रियों से जन्मे हैं, उन में से यूहन्ना बपतिस्मा देनेवालों से कोई बड़ा नहीं हुआ; पर जो स्वर्ग के राज्य में छोटे से छोटा है वह उस से बड़ा है।(मत्ती 11:11)

 

यहुन्ना में ऐसा क्या अद्भुत था जो यीशु उसके बारे में ऐसी बातें बोलता है?

 

यहुन्ना का सन्देश, उद्देश्य और प्रेरणा

 

परमेश्वर ने यहुन्ना बप्तिस्मा देने वाले को तीन कार्य सौंपे थे:

 

1. उसे मार्ग साफ़ करना था उसका कार्य उन सभी लोगों के मनों और हृदयों से अडचनों को हटाना था जो मसीह को ग्रहण करेंगे(लूका 3:1-20)

 

2. मार्ग तैयार करना। उसके प्रचार से उनमें सच्चा मन फिराव उत्पन्न होना था जो परमेश्वर के साथ चलने की इच्छा रखते।
 

3. मार्ग से हट जाना। उसे इतना छोटा बन जाना था कि लोग मसीह को देखें ना कि यहुन्ना को। यह तीसरा कार्य अब उसके समक्ष था। अपने चेलों के लिए उसका प्रतिउत्तर लोगों को अपने आस-पास इकट्ठा करने की तुच्छ मन की अभिलाषा से नफरत करना था। वह लोग जो परमेश्वर के लिए भूखे थे उसके नहीं थे। उसने कहा:

 

जब तक मनुष्य को स्वर्ग से न दिया जाए तब तक वह कुछ नहीं पा सकता। (पद 27)

 

वह अपनी बुलाहट के प्रति विश्वासयोग्य रहना चाहता था, और अब मार्ग साफ़ और तैयार करने के बाद, मार्ग से हट जाने का समय है। इस कथन से यहुन्ना की दीनता चमचमा रही है। निचोड़ देखें तो वह यह कह रहा है कि परमेश्वर की ओर से उसका वरदान लोगों को केवल इतनी ही दूर लेकर जा सकता है। यहुन्ना लोगों को अपनी ओर खींचने की इच्छा नहीं रखता था; उसकी बुलाहट मनुष्यों को उद्धारकर्ता तक पहुँचने में मदद करने की थी। उसकी सेवकाई मसीह की ओर इशारा करने की थी। यही सेवकों प्रेरितों, भविष्यद्वक्ताओं, प्रचारकों, पासबानों और शिक्षकों की सेवकाई है, वह जो दूसरों को तैयार कर मार्ग से हट सकते हैं ताकि परमेश्वर के लोग अपनी बुलाहट पूरी कर सकें। (इफिसियों 4:11-12) हमें पुरुषों और स्त्रीयों को यीशु मसीह की ओर इशारा कर मार्ग से हट जाना है। हम सेवकाई में तभी सफल हो सकते हैं जब परमेश्वर के लोग मसीह के लिए अपने प्रेम में बढ़ रहे हों। हम लोगों को कलीसिया में लाने में तो सफल हो सकते हैं, लेकिन क्या उन्हें मसीह की ओर इशारा कर दिशा दी जा रही है? यह मसीह में हर एक जन की सेवकाई है: दूसरों के लिए उद्धारकर्ता से प्रेम में पड़ जाने के लिए मार्ग की ओर इशारा करना। अक्सर कलीसिया में लोग अपने वरदानों और परमेश्वर की बुलाहट में कार्य नहीं करते। यह लोग जिनके पास परमेश्वर के वरदान हैं; प्रेरित, भविष्यद्वक्ता, प्रचारक, पासबान और शिक्षक, और जिन्हें परमेश्वर द्वारा अपनी कलीसिया के लिए वरदान होने के लिए बुलाया, प्रशिक्षित और तैयार किया गया है, इन्हें बस अपने आप ही सेवकाई नहीं करनी; बल्कि उन्हें नमूना ठहरते हुए औरों को अपने जैसे सेवकाई करने के लिए प्रशिक्षित और तैयार करना है। सेवकाई को आगे दे देना यीशु के ह्रदय में है। कलीसिया में, व्यवसाय की तरह ही, क्षमता का प्रयोग न होना बहुत आम है। छोटे समूह लोगों के वरदान और गुणों के देखे जाने, प्रयोग करने, बढ़ावा देने और फलने फूलने के लिए उत्तम स्थान हैं, जैसा कि यीशु ने अपने छोटे समूह में किया। लेकिन फिर भी, हम उतना ही पा सकते हैं जितना हमें स्वर्ग से दिया जाए। ऐसा ही हो कि सम्पूर्ण संसार में पुरुषों और स्त्रीयों को यीशु की ओर इशारा करने वाले वरदान हमारे भीतर उजागर हों।

 

मसीह की देह में (सार्वभौमिक), अगर सभी परमेश्वर द्वारा दिए गए वरदान और योग्यताओं को उसकी मंशा के अनुसार प्रयोग करने लग जाएं तो आप क्या बदलाव देखने की अपेक्षा रख सकते हैं? यह संसार पर और मसीह के सन्देश के प्रचार पर कैसे प्रभाव डालेगा?

 

(ऐसे स्थापित छोटे समूह के लोगों के लिए जो एक दूसरे को अच्छे से जानते हैं):

 

इस कमरे में आपके आस-पास लोगों में आपने स्वर्ग से मिले कौन से वरदान और गुण देखे हैं?

 

जिसकी दुल्हन है वही दूल्हा है

 

फिर यहुन्ना इसे दर्शाने के लिए कि वह अपने आप को किस प्रकार देखता है, एक उदहारण का प्रयोग करता है:

 

जिसकी दुलहन है, वही दूल्हा है: परन्तु दूल्हे का मित्र जो खड़ा हुआ उसकी सुनता है, दूल्हे के शब्द से बहुत हर्षित होता है; अब मेरा यह हर्ष पूरा हुआ है। (29 पद)

 

वह अपने आप को दूल्हे के मित्र के रूप में देखता है, ऐसा कोई जिसे आज हम विवाह समारोह में बेस्ट मैन कहेंगे। समीक्षक विलियम बार्क्ले की इस “दूल्हे का मित्र जो खड़ा उसकी सुनता है” के विषय में कुछ रोचक अंतर्दृष्टि हैं”:

 

दूल्हे का मित्र,” शोश्बें, का एक यहूदी विवाह समारोह में विशेष स्थान था। वह दुल्हन और दूल्हे के बीच एक बिचौलिए की तरह काम करता था; वह समारोह आयोजित करता; निमंत्रण बाँटता; वह विवाह भोज का अध्यक्ष होता। वह दुल्हन और दूल्हे को साथ लाता। और उसकी एक खास ज़िम्मेदारी थी। विवाह कक्ष की सुरक्षा उसकी ज़िम्मेदारी थी ताकि कोई झूठा प्रेमी अन्दर प्रवेश न कर सके। वह द्वार तभी खोलेगा जब अँधेरे में वह दूल्हे की आवाज़ सुन उसे पहचान लेता। जब वह दूल्हे की आवाज़ सुनता तो वह प्रसन्न होता और उसे अंदर प्रवेश करने देता, और फिर आनंद मनाता वहां से चला जाता क्यूंकि उसका कार्य संपन्न हो गया1

 

एक व्यक्ति को अचरज होता है कि याकूब के अपने ससुर लाबान के धोखा देने के बाद, एक निकट मित्र के लिए ऐसे काम, या दूल्हे के लिए बेस्ट मैन की आवश्यकता थी या नहीं। लाबान और याकूब इस बात के लिए सहमत हुए थे कि याकूब विवाह में लाबान की बेटी राहेल के हाथ के बदले उसके लिए सात वर्ष काम करेगा। सात वर्ष काम करने के बाद, विवाहोत्सव की रात, अंधेरे में राहेल को उसकी बहन लिआ से बदल दिया गया। याकूब को केवल सुबह ही यह पता लग पाया कि वह लड़की जिसके साथ वो रात को

 

यहुन्ना, “दुल्हन जिसकी है वही दूल्हा है” कहने के द्वारा, अपने उन चेलों तक जो जलन रख रहे थे क्या सच्चाई पहुँचाना चाहता था? (पद 29)

न्यू लिविंग ट्रांसलेशन (एन.एल.टी) इन शब्दों का अनुवाद इस प्रकार करती है: “दुल्हन वहीँ जाएगी जहाँ दूल्हा है।” हमें कलीसिया के लोगों के विषय में “मेरे लोग” की सोच कभी नहीं रखनी चाहिए। यह कभी भी “मेरी कलीसिया” नहीं होती। कलीसिया यीशु की है और हम में से जो पासबान हैं, वह तो मात्र चरवाहे हैं। जब लोग और जगह झुण्ड बनाएं तो हमारा आचरण कभी भी प्रतिस्पर्धा का नहीं होना चाहिए। हमें परमेश्वर में हम जो कुछ भी हो सकते हैं वह होना है और इस बात को समझना है कि हम लोगों को उन वरदानों के अनुसार जो हमें मिले हैं केवल उतना दूर ही ले जा सकते हैं। दुल्हन वहीँ जाएगी जहाँ दूल्हा है! हम में से हर एक को एक दूसरे को बढ़ाने की और दूल्हे यीशु जो मसीह है, से परिचय कराने की सेवकाई दी गयी है। जितना ज्यादा वह मसीह को देख उससे प्रेम में पड़ेंगे, हम उतना ही ज्यादा उन्हें मसीह की ओर इशारा करने में यहुन्ना बप्तिस्मा देने वाले की तरह बन रहे हैं। यहुन्ना की तरह, परमेश्वर के सम्मुख हम में से हर एक के पास जिसने इस उद्देश्य के लिए परिश्रम किया है, उन बहुमूल्य लोगों को जिन्हें हमने प्रभावित किया है दूल्हे की बाँहों में ग्रहण होते और यह बताए जाते हुए, “धन्य है अच्छे और विश्वासयोग्य दास(मत्ती 25:23), महान आनंद होगा। न केवल हमारे अपने लिए यह शब्द सुनना अति आनंद और महिमा भरा होगा, लेकिन उनके लिए भी यह कहे जाना जिन्हें हमने प्रभावित किया है – यह कितना अद्भुत होगा!

 

स्वयं के लिए मरना

 

यहुन्ना बप्तिस्मा देने वाला आगे एक और गहन कथन करता है: वश्य है कि वह बढ़े और मैं घटूँ” (पद 30)

 

यहुन्ना यहाँ क्या कह रहा है? संडे स्कूल में एक आठ साल के बच्चे को इसे समझाने के लिए आप इसे अपने शब्दों में कैसे कहेंगे?

 

यह एक आत्मिक सत्य है कि हम जितना मसीह के व्यक्ति से प्रेम में पड़ेंगे; उतना ही ज़्यादा हम स्वयं, आत्म-रूचि और आत्म-संतुष्टि से दूर होते चले जाएंगे। यह हमारे भीतर आत्मा के कार्य के द्वारा उत्पन्न होता है। जैसे-जैसे हम परिपक्वता में बढ़ते हैं, हम स्वयं के बारे में कम और औरों के बारे में ज़्यादा चिंता करते हैं। मसीही जीवन स्वयं के लिए मृत होने के बारे में है ताकि हम हर मायने में पूर्णत: जीवित हो सकें। एक स्वार्थी व्यक्ति जो कुछ समय से मसीह में है धोखा खाया हुआ है – उसने बदले हुए जीवन का अनुभव नहीं किया है। (यहुन्ना 3:3) विलियम कैरी, इंग्लैंड के महान मिशनरी ने, अपनी मृत्यु शैय्या के आस-पास एकत्रित लोगों से कहा, “जब मैं चला जाऊं तो विलियम कैरी के बारे में बात मत करना; मगर विलियम कैरी के उद्धारकर्ता के बारे में बात करना। मेरी इच्छा यह है के केवल मसीह ही बढाया जाए।”2 मसीह के प्रेम में पड़ा व्यक्ति स्वयं को खो देता है। समय और अवसर उसके लिए प्रयोग होते हैं जो जीवन में वाकई महत्वपूर्ण है – वह लोग जिन्हें बचाने के लिए यीशु मरा।

 

आत्मा हमारे भीतर मसीह को और बढ़ाने का कार्य कैसे करता है?

 

आत्मा हमारे मसीह के पास आते ही हमारे जीवनों के उन क्षेत्रों को प्रकट करते हुए जो मसीह के चरित्र से मेल नहीं खाते, हमें मसीह के स्वरुप में ढालते हुए अपना रूपांतरित करने वाला बदलाव करना आरंभ करता है। जैसे यहुन्ना बप्तिस्मा देने वाले ने कहा, हमें कम, और कम होते चले जाना है। हम अब अपने लिए नहीं जीते; सच कहें तो, हमने अपने उपर से सारे अधिकार त्याग दिए हैं। पौलुस प्रेरित लिखते हैं: तुम अपने नहीं हो? 20कयोंकि दाम देकर मोल लिये गए हो” (1 कुरिन्थियों 6:19-20) जब आपने अपना जीवन मसीह को दिया था, तब वह आपके जीवन के मंदिर में प्रवेश कर उसके सिंहासन कक्ष में अपना स्थान ले चुका है। पौलुस, एक अन्य स्थान पर, इस सत्य को अलग रीती से यह कह कर बयां करता है:

 

20मैं मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया हूँ, और अब मैं जीवित न रहा, पर मसीह मुझ में जीवित है: और मैं शरीर में अब जो जीवित हूँ तो केवल उस विश्वास से जीवित हूँ, जो परमेश्वर के पुत्र पर है, जिस ने मुझ से प्रेम किया, और मेरे लिये अपने आप को दे दिया। (गलातियों 2:20)

 

2पृथ्वी पर की नहीं परन्तु स्वर्गीय वस्तुओं पर ध्यान लगाओ3क्योंकि तुम तो मर गए, और तुम्हारा जीवन मसीह के साथ परमेश्वर में छिपा हुआ है। 4जब मसीह जो हमारा जीवन है, प्रगट होगा, तब तुम भी उसके साथ महिमा सहित प्रगट किए जाओगे। (कुलुस्सियों 3:2-4)

 

यहुन्ना बप्तिस्मा देने वाले का प्रतिउत्तर मसीह की पूर्व श्रेष्ठता पर केन्द्रित है। वह मसीह के जाने जाने के लिए जिया और फिर मार्ग से हट गया। आपके बारे में क्या? क्या आपने अपने जीवन में उसे प्रथम स्थान दिया है? यदि आपने ऐसा किया है, तो उस दिन के बाद से आपका जीवन कैसे बदला है? जब आप अपने जीवन का नियंत्रण यीशु को सौंपने के बारे में सोचते हैं तो किन बातों से संघर्ष करते हैं?

 

आज शाम जो कुछ आपने अध्यन किया है उसमें से कौन सा वाक्य आपके लिए बिलकुल ख़ास रहा है? उन शब्दों पर आधारित आप क्या प्रार्थना कर सकते हैं?

 

प्रार्थना: अंत में, इस गीत के शब्दों को प्रार्थना की तरह करें:

 

यीशु, जैसा मैं हूँ मुझे ले ले, मैं और किसी तरह तेरे पास, आ नहीं सकता, मुझे ले चल अपनी गहराईयों

 

2 आर. केंट हुघस, प्रीचिंग द वर्ड सीरीज, द बुक ऑफ़ जॉन, क्रॉसवे पब्लिशर्स, पृष्ठ 94

 

में, कि मेरी शारीरिक अभिलाषाएं, नाश हो जाएं। मुझे नगीना बना दे, सुन्दर तराशा और चमचमाता हुआ। यीशु की ज्योति मुझमें से प्रकट हो, तुझे महिमा वापस देते।” (शब्द द्वारा डेव ब्रायंट)

 

कीथ थॉमस

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-मेल: keiththomas7@gmail.com या pastorthomas@groupbiblestudy.com

 

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