top of page

30. Jesus The True Vine

हिंदी में अधिक बाइबल अध्ययन देखने के लिए, यहाँ क्लिक करें।

30. यीशु, सच्ची दाखलता

हम अपने आखिरी अध्यन 29: प्रतिज्ञा किया हुआ पवित्र आत्मा को जारी कर रहे हैं। यहूदा पहले ही ऊपरी कक्ष को छोड़ चुका था, और ग्यारह शिष्य एक निचली मेज के चारों ओर झुके बैठे हुए फसह का भोज खा रहे थे। प्रभु उन्हें आने वाले घंटों में घटने वाली बातों के लिए तैयार करते हुए उनके साथ अपने दिल की गहराई से बाँट रहा था। उसने उन्हें ऐसे शब्द दिए जो आगे के अंधकार भरे समय में उन्हें प्रोत्साहित करेंगे। यीशु उनसे पवित्र आत्मा के आने के बारे में बात करने के बाद, उठकर जाने लगा (यहुन्ना 14:31)। ऊपरी कक्ष का पारंपरिक स्थल, जहाँ यीशु ने उनके साथ अंतिम भोज खाया था, ऊपरी नगर में मंदिर के टापू के पश्चिम में था। गतसमनी के बगीचे में जाने के लिए, उन्हें मंदिर क्षेत्र से होकर गुज़रना पड़ता होता। उस समय के किसी भी रब्बी की तरह ही, यीशु ने उनसे बात करना जारी रखा।

 

यह संभावना है कि जब वे चल रहे थे, वे मंदिर के प्रवेश द्वार के चार स्तंभों में लटकी सुनहरे अंगूर की बेलों को देख सकते थे। अंगूर का प्रत्येक गुच्छा एक आदमी जितना बड़ा था। यहूदी व्यवस्था की मौखिक परंपरा को संगठित करने वाली पुस्तक, मिश्नाह, कहती है कि लोग एक सुनहरा पत्ता, बेरी, या गुच्छा खरीदकर परमेश्वर को स्वेच्छा से भेंट अर्पित करते थे, जिसे पुजारी फिर से बेल में जोड़ देता था। जो यहूदी मंदिर में उदारता से देते, वह लोग अपने नाम सुनहरे पत्तों पर अंकित कर देते थे। यह संभव है कि जब उन्होंने मंदिर की स्वर्ण बेल को देखा होगा, तब यीशु ने उस आत्मिक फल के बारे में बाँटना जारी रखा, जिसे परमेश्वर उनके जीवन से उत्पन्न करेगा;

 

1सच्ची दाखलता मैं हूँ; और मेरा पिता किसान है। 2जो डाली मुझ में है, और नहीं फलती, उसे वह काट डालता है, और जो फलती है, उसे वह छांटता है ताकि और फले। 3तुम तो उस वचन के कारण जो मैंने तुमसे कहा है, शुद्ध हो। 4 तुम मुझमें बने रहो, और मैं तुम में; जैसे डाली यदि दाखलता में बनी न रहे, तो अपने आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझमें बने न रहो तो नहीं फल सकते। 5मैं दाखलता हूँ; तुम डालियाँ हो; जो मुझमें बना रहता है, और मैं उसमें, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझसे अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते। 6यदि कोई मुझमें बना न रहे, तो वह डाली की नाई फेंक दिया जाता, और सूख जाता है; और लोग उन्हें बटोरकर आग में झोंक देते हैं, और वे जल जाती हैं। 7यदि तुम मुझमें बने रहो, और मेरी बातें तुम में बनी रहें तो जो चाहो मांगो और वह तुम्हारे लिये हो जाएगा। 8मेरे पिता की महिमा इसी से होती है, कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरोगे। (यहुन्ना 15:1-8)

 

सच्ची दाखलता मैं हूँ

 

अब हम प्रेरित यहुन्ना द्वारा यीशु के सातवें और अंतिम "मैं हूँ" कथन तक पहुँचते हैं, सच्ची दाखलता मैं हूँ” (पद 1)। जब यहोवा अपने लोगों को मिस्र से बाहर लाया था, तब मूसा को इजराइल के बच्चों के लिए एक संदेश दिया गया था। जब इज़राइली मूसा से पूछते कि उसे किसने भेजा है, तो उसे वह उत्तर देना था जो परमेश्वर ने उसे दिया था; मैं जो हूँ सो हूँ। फिर उस ने कहा, तू इजराइलियों से यह कहना, कि जिसका नाम मैं हूँ है उसी ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है” (निर्गमन 3:14)। अंग्रेजी शब्द "मैं हूँ" इब्रानी शब्द YHVH का अनुवाद है, जिसे "याह्वे" के रूप में मुखर किया गया है और अंग्रेजी में इसका अनुवाद प्रभु (LORD) के रूप में किया गया है। यह व्यक्तिगत नाम था जिसके द्वारा परमेश्वर ने स्वयं को प्रकट किया और इसे पुराने नियम में 6,000 से अधिक बार पाया जाता है। YHVH का अर्थ बाइबिल विद्वानों के लिए पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है, लेकिन अधिकांश विद्वानों का मानना ​​है कि नाम का अर्थ है, "मैं जो हूँ सो हूँ" या "मैं वह होऊंगा जो मैं होऊंगा।" प्रभु अपने शिष्यों और हम से यह कह रहा था कि वह हमारे लिए वह सब कुछ होगा जिसकी हमें आवश्यकता होगी। छह अन्य "मैं-हूँ" कथन हैं, "जीवन की रोटी मैं हूँ" (यहुन्ना 6:35), "जगत की ज्योति मैं हूँ" (यहुन्ना 8:12), "द्वार मैं हूँ" (यहुन्ना 10: 9), "अच्छा चरवाहा मैं हूँ" (यहुन्ना 10:11), "पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ" (यहुन्ना 11:25), "मार्ग, सच्चाई और जीवन मैं ही हूँ" (यहुन्ना 14:6)। यीशु के ‘मैं हूँ’ कथनों के कहने ने फरीसियों को इस हद तक क्रोधित किया कि वह परमेश्वर की निंदा करने के लिए उसपर पथराव करने को तैयार हो गए (यहुन्ना 8:58-59)। वे सही समझ गए थे कि यीशु कह रहा था कि वह वही YHVH है जिसने यहूदी लोगों को बंधुवाई से छुड़ाया था। अब, इस खंड में यीशु उन्हें बता रहा है कि वह सच्ची दाखलता है। उसका क्या अर्थ था? यीशु के दाखलता होने के इस सादृश्य पर हम इस अध्ययन में विचार करेंगे।

 

दाखलता या दाख की बारी का विचार इजराइल देश के शास्त्रों में एक प्रसिद्ध प्रतीक था। हम इसे एक सामान्य विषय के तौर पर, अक्सर एक सादृश्य के रूप में उपयोग होते देखते हैं;

 

1अब मैं अपने प्रिय के लिये और उसकी दाख की बारी के विषय में गीत गाऊंगा; एक अति उपजाऊ टीले पर मेरे प्रिय की एक दाख की बारी थी। 2उसने उसकी मिट्टी खोदी और उसके पत्थर बीनकर उसमें उत्तम जाति की एक दाखलता लगाई; उसके बीच में उसने एक गुम्मट बनाया, और दाखरस के लिये एक कुण्ड भी खोदा; तब उसने दाख की आशा की, परन्तु उसमें निकम्मी दाखें ही लगीं3अब हे यरूशलेम के निवासियों और हे यहूदा के मनुष्यों, मेरे और मेरी दाख की बारी के बीच न्याय करो। 4मेरी दाख की बारी के लिये और क्या करना रह गया जो मैंने उसके लिये न किया हो? फिर क्या कारण है कि जब मैंने दाख की आशा की तब उसमें निकम्मी दाखें लगीं? 5अब मैं तुम को जताता हूँ कि अपनी दाख की बारी से क्या करूंगा। मैं उसके कांटेवाले बाड़े को उखाड़ दूंगा कि वह चट की जाए, और उसकी भीत को ढा दूंगा कि वह रौंदी जाए। 6मैं उसे उजाड़ दूंगा; वह न तो फिर छांटी और न खोदी जाएगी और उसमें भांति-भांति के कटीले पेड़ उगेंगे; मैं मेघों को भी आज्ञा दूंगा कि उस पर जल न बरसाएं। 7क्योंकि सेनाओं के यहोवा की दाख की बारी इजराइल का घराना, और उसका मनभाऊ पौधा यहूदा के लोग हैं; और उसने उन में न्याय की आशा की परन्तु अन्याय देख पड़ा; उसने धर्म की आशा की, परन्तु उसे चिल्लाहट ही सुन पड़ी! (यशायाह 5:1-7, बल मेरी ओर से जोड़ा गया है)

 

अपनी दाख की बारी, इजराइल और यहूदा के लोग का निरीक्षण करते समय परमेश्वर किस प्रकार के फल की तलाश में था? वह हमारे जीवन से किस तरह का फल पैदा करना चाहता है?

 

यशायाह की इस भविष्यवाणी के माध्यम से प्रभु कह रहा था कि परमेश्वर किसान है और उसने अपने नाम के लिए एक मजबूत गवाही देने के लिए अपनी वाचा के लोगों को भूमि में लगाया था। उनके फलने-फूलने के पूर्ण प्रावधान के बाद वह ऐसे अच्छे अंगूरों की फसल की अपेक्षा में था जो न्याय और धार्मिकता का प्रदर्शन कर रहे हों (यशायाह 5:7), लेकिन इसने केवल बुरा ही फल उत्पन्न किया (यशायाह 5: 2)

 

जब यीशु ने खुद को सच्ची दाखलता के रूप में चित्रित किया, तो मेरा मानना ​​है कि वह अपनी शिक्षाओं में जैसा अक्सर करता था, एक चित्रण का उपयोग कर रहा था। यह सुझाव देते हुए कि यदि शिष्य स्वयं को उसके प्रति इस हद तक समर्पित करेंगे जैसा लोग सुनहरी बेल के प्रति अर्पण करते थे, तो इसका परिणाम प्रचुर मात्रा में आत्मिक फल होगा, वह स्वयं की तुलना इज़राइल राष्ट्र के साथ या मंदिर पर लटकी कृत्रिम दाखलता के साथ कर रहा था।

 

यीशु की गई भविष्यवाणी की नई वाचा को स्थापित करने के लिए आया था; "ऐसे दिन आने वाले हैं," प्रभु की घोषणा करता है, “जब मैं इजराइल और यहूदा के घराने से नई वाचा बांधूंगा" (यिर्मयाह 31:31)। वह उन सभी के लिए अनन्त जीवन और फलने-फूलने का स्रोत बनने के लिए आया था जो उसके पास आकर उसके साथ इस प्रकार एक हो जाएंगे जैसे शाखाएं जीवन स्रोत से जुड़ी होती हैं, जैसे कि बेल अपने तने से। वह सच्ची दाखलता है। वह समय आ रहा था और अब आ चूका है जब यहूदियों और अन्यजातियों दोनों के कलम सच्ची दाखलता में लगा दिए गए हैं। यीशु उन्हें दिखाना चाहता था कि सच्ची वाचा क्या है और वह किस तरह का फल उत्पन्न करेगी। जिस तरह वह "पिता में" था (यहुन्ना 14:20), वह जानता था कि परमेश्वर के लोगों के लिए फल उत्पन्न करने का एक मात्र तरीका उसके जीवन का हमारे भीतर होना और हम में से प्रवाहित होना ही था। कलीसिया एक संगठन नहीं है, बल्कि एक जीव है, और हमें जीवन-स्रोत से जैविक रूप से जुड़े रहना है; हम में मसीह, महिमा की आशा (कुलुस्सियों 1:27)

 

पिता माली है

 

कल्पना कीजिए कि आपने पौध लगाने के मौसम के दौरान एक दाख की बारी में एक मजदूर के रूप में काम किया हो। किसान क्या कर रहा होगा? यह विचार हमारे जीवन में परमेश्वर के कार्य का वर्णन कैसे करते हैं?

 

पौध-रोपण के मौसम के दौरान एक दाख की बारी में काम करना कठिन काम होगा। अन्य फलों और सब्जियों के पौधों के विपरीत, यदि आप फसल के समय अंगूर के गुच्छों को देखना चाहते हैं तो बहुत कुछ करना होगा। यीशु कहता है कि पिता कुछ डालियों को काटने और कुछ को छांटने का कार्य करता है (यूहन्ना 15:2)। यूनानी क्रिया ऐयरो का अनुवाद एन.आई.वी संस्करण द्वारा "काटने" के रूप में किया गया है, लेकिन किंग जेम्स संस्करण में इसका अनुवाद "ले लिया गया” के रूप में किया गया है। कुछ लोग सोचते हैं कि यदि उनकी भलाई पर्याप्त नहीं होती तो क्या वे अपना उद्धार खो सकते हैं। यीशु कहता है कि पिता जिन डालियों पर ध्यान देता है, वे दोनों “उस में हैं”। जो डाली मुझ में है, और नहीं फलती, उसे वह काट डालता है (यूहन्ना 15:2)। यह संभव है कि ले लिया गया यहूदा के संदर्भ में हो, लेकिन यहूदा कभी भी मसीह में नहीं था। वह कभी भी विश्वासी नहीं बना; "परन्तु तुम में से कितने ऐसे हैं जो विश्वास नहीं करते" (यूहन्ना 6:64)। वचन कहता है कि वह एक शैतान था (यूहन्ना 6:70)। जिन डालियों को पिता प्रशिक्षण दे रहा है, वे सभी मसीह में विश्वासी हैं। यूनानी शब्द ऐयरो की प्राथमिक परिभाषा "जमीन से उठाना" है। लेखक चार्ल्स स्विंडोल अपनी टिप्पणी, स्विंडॉलज़ न्यू टेस्टामेंट इनसाइट्स ऑन जॉन में कहते हैं;

 

के.जे.वी अनुवाद द्वारा "ले जाता है" के रूप में अनुवादित ग्रीक क्रिया ऐयरो की प्राथमिक परिभाषा "जमीन से उठाने" की है, हालांकि अक्सर इस शब्द का अर्थ “ले जाने के लिए उठाना, या उठा ले जाना या रख देना” भी हो सकता है और ऐसा होता भी है। यहुन्ना दोनों अर्थों में ऐयरो का उपयोग करता है; "ले लेना या छीन लेना" (यहुन्ना 11:39; 11:48; 16:22; 17:15;) और "ऊपर उठाना" (5:8-12; 8:59) )। इसलिए, दोनों ही परिभाषाओं को सटीकता से अपनाया जा सकता है। कुछ कारणों से मैं "ऊपर उठाना" की परिभाषा का पक्ष लेता हूँ। पहले, यह दोनों पद सारांश शैली में चित्रण को पेश करते हैं, जिसमें एक दाख की बारी की देखभाल करने वाले एक व्यक्ति की सामान्य देखभाल के बारे में बताया गया है। पौध के बढ़ने के मौसम के दौरान बारी की देखभाल करने वाले को शायद ही कभी डालियों को काटते हुए देखा जाता है। इसके बजाय, उन्हें धागे के गुच्छे और छंटाई की कैंची लिए अपना काम करते पाया जाता है। वे ध्यान से गिरती हुई डालियों को उठा उन्हें सहारे की जाली से बाँधते हैं – जिस प्रक्रिया को "प्रशिक्षण" कहते हैं। वे फल की उपज को बढ़ाने के लिए रणनीतिक रूप से छोटी टहनियों को डालियों में से छांटते हैं, जिसे छंटाई कहा जाता है। दूसरा, "ले लेना या छीन लेना" और "छंटाई" बेल को काटने पर बहुत जोर देता है जबकि यीशु बढ़ने के मौसम के दौरान पिता की देखरेख को उभारने के रूप में प्रतीत करता है। मृत डालियों को ले जाने की छवि का विवरण ऐसा है जो हमें बाद में तब दिखाई देगा जब वह अपने चित्रण को परिष्कृत करता है।

 

जमीन पर पड़े अंगूरों के गुच्छे सभी प्रकार के कीड़ों को भोजन दे सकते हैं, और निश्चित रूप से जब बारिश होगी तो कीचड़ भी फलों को खराब कर देगा। यदि हम चार्ल्स स्विंडोल से सहमत हैं, तो यह मसीह में बढ़ते हुए, पिता की देखभाल और हमें प्रशिक्षण देने की बात करता है। यीशु के चेलों को सहायक, पवित्र आत्मा के विषय में बताने के बाद यह विचार स्वाभाविकत: आते हैं। वही है जो अंगूर के गुच्छों को अधिकतम फलने-फूलने के लिए प्रशिक्षण देना और उठाना जारी रखेगा। मेरे जीवन में कई बार ऐसे अवसर आए हैं जहाँ मैंने पिता की पोषित करने वाली देखभाल को उन मुसीबतों के बीच जो मैं अनुभव कर रहा था पाया है। मेरा मानना ​​है कि इस शिक्षा का प्राथमिक बल उस छंटाई और उसके अपने लोगों के सावधानीपूर्वक विकसित करने और देखभाल को चित्रित करने के बारे में है, जो उसकी दाख की बारी है।

इस सादृश्य के बारे में सोचते हुए, क्या आप ऐसे समय को याद कर सकते हैं, जब परमेश्वर ने आपको जमीन से उठाकर आपके स्थान पर पुन: स्थापित किया था, ताकि आप बढ़ सकें?

 

यदि आप मसीह में विश्वास करते हैं, तो आप फलदायी होंगे। आपके जीवन से कितना फल उत्पन्न होता है, यह आपके जीवन में आपके द्वारा लिए गए चुनावों और निर्णयों पर निर्भर करता है। मसीह के लिए लोगों के बलिदान के जीवन जीने के तरीकों के अनुसार फलदायकता के स्तर हैं। यीशु ने बीज बोने वाले के दृष्टांत में इस विषय पर बात की;

पर कुछ अच्छी भूमि पर गिरे, और फल लाए, कोई सौ गुना, कोई साठ गुना, कोई तीस गुना(मत्ती 13:8)

 

कुछ लोग इस हद तक प्रभु के प्रति समर्पित होते हैं कि वे एक ऐसी फसल लाते हैं जो बोई फसल से सौ गुना होती है। हालाँकि, इस बात से अवगत रहें, कि यदि आप प्रार्थना करते हैं कि आप फलदायी हों, तो आपकी छंटाई की जाएगी! यदि आपने कभी प्रार्थना की है कि परमेश्वर आपको उसके साथ अपने खेतों में काम करने के लिए उपयोग करे, तो उसे आपसे दाख की बारी के कार्य के लिए आपके अत्यधिक समर्पण और अधिक अर्पण होने की आवश्यकता होगी। मुझे महान प्रचारक, डी.एल. मूडी के बारे में पढ़ना याद है, जिसने मसीह के कार्य के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया। वो एक सभा में थे जहाँ उपदेशक ने यह शब्द बोले थे; "दुनिया ने अभी तक यह नहीं देखा है कि परमेश्वर एक ऐसे व्यक्ति के साथ और उसके लिए और उसके द्वारा और उस में क्या कुछ करेगा जो उसके प्रति सम्पूर्णता से अर्पित किया हुआ हो।" इन शब्दों ने मूडी को प्रभावित किया। मूडी ने सोचा "उसने ‘एक व्यक्ति’ कहा;" "उसने एक महान व्यक्ति नहीं कहा, न ही एक विद्वान व्यक्ति, न ही एक अमीर व्यक्ति, न ही एक बुद्धिमान व्यक्ति, और न ही एक सुवक्ता व्यक्ति, और न ही एक 'चतुर' व्यक्ति, लेकिन केवल 'एक व्यक्ति' कहा है। मैं एक व्यक्ति हूँ, और उसी एक व्यक्ति पर निर्भर है कि क्या वो सम्पूर्णता से अर्पण किया जायेगा या नहीं। मैं वो व्यक्ति बनने का भरसक प्रयास करूंगा।”

जब उन्होंने भटके हुए लोगों को मसीह के पास लाने के कार्य के लिए खुद को परमेश्वर के प्रति पूर्णत: अर्पित किया, तो डी.एल. मूडी अपने जीवन से एक बड़ा असर छोड़ने की इच्छा रखते थे। हमें मसीह के प्रति समर्पण के अपने शब्दों को हल्के में नहीं बोलना चाहिए क्योंकि आमतौर पर इस तरह के समर्पण की कीमत होती है। मूडी ने अपने जीवन में कठिनाईयों का अनुभव किया। उनकी कलीसिया का भवन 1871 की शिकागो की विशाल आग में जल गया, लेकिन यह उन्हें कई देशों में प्रचार की सेवकाई में ले गया। जब हम शिष्यता के लिए समर्पित होते हैं, तो कठिनाइयाँ हमारे मार्ग में आएँगी, लेकिन अगर हम मसीह की खातिर जीवन बचाने के कार्य में अपने आप को अर्पित करेंगे तो फल महान होगा।

28पतरस उससे कहने लगा, “देख, हम तो सब कुछ छोड़कर तेरे पीछे हो लिये हैं।” 29यीशु ने कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूँ, कि ऐसा कोई नहीं, जिसने मेरे और सुसमाचार के लिये घर या भाइयों या बहिनों या माता या पिता या बालकों या खेतों को छोड़ दिया हो, 30और जो इस युग में घरों, भाईयों, बहनों, माताओं, बच्चों और खेतों को सौ गुना अधिक करके नहीं पायेगा-किन्तु यातना के साथ और आने वाले युग में अनन्त जीवन(मरकुस 10:28-30, बल मेरी ओर से जोड़ा गया है)

 

जब हम मसीह के पीछे चलते हैं तो हमारे समर्पण का एक इनाम होगा; लेकिन, इस बात से अवगत रहें कि इसका अर्थ उपरोक्त खंड में यीशु द्वारा की गई भविष्यवाणी के अनुसार यातना सहना होगा। जिस तरह वह वादा करता है कि उसके पीछे चलने में हम इस जीवन में सौ गुना अधिक प्राप्त करेंगे, वह यह भी वादा करता है कि यातना होगी। हम इस बात में आराम पा सकते हैं कि पिता हमारे जीवन में और फल लाने के लिए छंटाई करते हुए हमारे जीवन में कार्य करता रहेगा। जब कठिनाइयाँ आती हैं, तो परमेश्वर द्वारा हमें दी आशीषों के बारे में सोचना अच्छी बात है, विशेष रूप से हमारे मित्र और वह परिवार जिसका हम मसीह की देह में हिस्सा हैं। प्रभु हमें कठिनाइयों से गुजरने की अनुमति इसलिए देता है क्योंकि जिस प्रकार का फल परमेश्वर हमारे जीवन में चाह रहा है, उसके लिए केवल इस तरह की बातें ही वह आवश्यक बदलाव लाती हैं। आइये, यहुन्ना के सुसमाचार में थोड़ा और आगे जाएँ;

 

वह आत्मिक फल क्या है जिसे परमेश्वर छांट रहा है?

 

9जैसा पिता ने मुझसे प्रेम रखा, वैसे ही मैंने तुमसे प्रेम रखा, मेरे प्रेम में बने रहो। 10यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे; जैसा कि मैंने अपने पिता की आज्ञाओं को माना है, और उसके प्रेम में बना रहता हूँ। 11मैंने ये बातें तुमसे इसलिये कही हैं, कि मेरा आनन्द तुम में बना रहे, और तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए। 12मेरी आज्ञा यह है, कि जैसा मैंने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो। 13इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे। 14जो कुछ मैं तुम्हें आज्ञा देता हूँ, यदि उसे करो, तो तुम मेरे मित्र हो। 15अब से मैं तुम्हें दास न कहूँगा, क्योंकि दास नहीं जानता, कि उसका स्वामी क्या करता है; परन्तु मैंने तुम्हें मित्र कहा है, क्योंकि मैंने जो बातें अपने पिता से सुनीं, वे सब तुम्हें बता दीं। 16तुमने मुझे नहीं चुना परन्तु मैंने तुम्हें चुना है और तुम्हें ठहराया ताकि तुम जाकर फल लाओ; और तुम्हारा फल बना रहे, कि तुम मेरे नाम से जो कुछ पिता से मांगो, वह तुम्हें दे। 17इन बातें की आज्ञा मैं तुम्हें इसलिये देता हूँ, कि तुम एक दूसरे से प्रेम रखो। (यहुन्ना 15:9-17)

 

जब यीशु यहुन्ना अध्याय 15 के पद 5, 8 और 16 में फल की बात करता है, तो आपको क्या लगता है कि वह क्या बात कर रहा है?

 

यदि आप मसीह में विश्वास करते हैं, तो आपके जीवन में फल होगा। कोई जड़ नहीं, तो कोई फल नहीं! यदि आप अपने अस्तित्व के गहनतम स्तर पर, प्रभु यीशु मसीह के साथ प्रेम में जड़ पकड़े और नेव डाले हैं (इफिसियों 3:17), तो आपके जीवन से फल न होना संभव नहीं। क्यों? क्योंकि बेल, प्रभु यीशु मसीह का जीवनदायी रस आपके आत्मिक अस्तित्व में बह रहा है, और शाश्वत पिता, किसान, मसीह के साथ आपके मिलन के द्वारा आप में फल उत्पन्न करने के लिए कार्य कर रहा है।

 

परमेश्वर आपके जीवन से दो प्रकार के फल उत्पन्न करना चाहता है। सबसे पहले, आत्मा का फल है;

 

22पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, 23और कृपा, भालाई, विश्वास, नम्रता, और संयम हैं; ऐसे ऐसे कामों के विरोध में कोई व्यवस्था नहीं। (गलातियों 5:22-23)

 

इस प्रकार का फल वह है जिसके बारे में यशायाह नबी ने कहा कि परमेश्वर अपने दाख की बारी, इजरायल के राष्ट्र में खोजता है, अर्थात्, न्याय और धार्मिकता जो उन विश्वासियों के जीवन से जो इजराइल के परमेश्वर में हैं, उमड़ता है। यह वे आंतरिक गुण हैं जिन्हें परमेश्वर हमारे जीवन में तब उत्पन्न करता है जब हम उसके आत्मा के साथ सहयोग करते हैं। अक्सर, हम उसे अपनी परिस्थितियों में कार्य करते देख नहीं पाते हैं। यह केवल बाद में होता है जब हम अपने जीवन में पीछे मुड़कर देखते हैं, कि हम परमेश्वर के विनम्रता, धार्मिकता, प्रेम, आनंद, शांति आदि गुणों को उत्पन्न करने के लिए हमारे भीतर किये कार्य करते देख पाते हैं। हम तभी देख पाते हैं कि वहाँ परमेश्वर की छंटाई की कैंची काम कर रही थी। अनंतकाल में किसान के छंटाई की कैंची के कार्य के लिए आपका अनुभव धन्यवादित होना होगा।

 

दूसरा, और लोगों के जीवनों का फल है जो हम मसीह के लिए प्रभावित करते हैं - वह जीवन, जो आपके कार्य और शब्दों और आपके जीवन में आत्मा के फल के कारण, उनके साथ आपके संबंधों द्वारा हमेशा के लिए बदले गए हैं।

 

और हे भाइयों, मैं नहीं चाहता, कि तुम इस से अनजान रहो, कि मैंने बार-बार तुम्हारे पास आना चाहा, कि जैसा मुझे और अन्यजातियों में फल मिला, वैसा ही तुम में भी मिले, परन्तु अब तक रूका रहा। (रोमियों 1:13)

 

1991-1998 के वर्षों में, मैंने इंग्लैंड में कलीसिया स्थापना के कार्य में प्रवेश किया था। जिस शहर में मैंने स्तापना का कार्य शुरू किया था, वहाँ मुझे परमेश्वर के कार्य द्वारा लोगों के जीवनों को बदलते देखने का सौभाग्य मिला। उस समय के अंत में जब कलीसिया बढौतरी के दर्द से गुज़री, तब बड़ी कठिनाई हुई। जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो अब देख पाता हूँ कि हम आत्मिक युद्ध के दौर से गुजर रहे थे। कलीसिया में एक संघर्ष था, जिस पर मुझे लगता था कि मेरा थोड़ा ही नियंत्रण था। जो मैं अब जानता हूँ, काश तब समझ पाता, लेकिन परमेश्वर हमें ऐसे ही प्रशिक्षित करता है। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि समस्या के निवारण के लिए ऐसा कुछ भी नहीं है जो मैं कर सकता हूँ जिससे एकता और व्यवस्था पुन: स्थापित हो सके। आखिरकार, हमारे आत्मिक अग्वों और मित्रों के बहुत परामर्श और सलाह के बाद, मैंने नेतृत्व की भूमिका को त्याग दिया। यह एक कठिन समय था, और यद्यपि मैं उस स्थिति में शत्रु के कार्य को भाँप पा रहा था, परमेश्वर भी कार्य कर रहा था। वह अधिक फल उत्पन्न करने के लिए, अपनी छंटाई की कैंची लेकर मेरे जीवन में कार्य कर रहा था। पीछे मुड़कर देखूँ, तो अगर मैंने प्रभु के कार्य का हठीलेपन से विरोध किया होता, तो शायद आज मैं उस हद तक नहीं लिख पाता जितना मैं अब लिखता हूँ। परमेश्वर मुझे एक नई दिशा में ले गया है। लिखित शब्द अकेले एक कलीसिया को दिए मेरे उपदेश से कई गुना अधिक लोगों को प्रभावित और प्रशिक्षित कर सकते हैं। कभी-कभी, हमें पिता की छटनी की कैंची पर भरोसा करना पड़ता है। वह अपने सभी लोगों के लिए अच्छा चरवाहा है, और वह हमें सिखाने और नेतृत्व करने में सक्षम है।

 

जिस तरह से पिता अपनी छटनी की कैंची के साथ कार्य करता है वह हमें कठोर लग सकता है, खासकर तब जब हम उनकी कैंची का निशाना होते हैं। मैंने पाया है कि परमेश्वर हमारे समर्पण का प्रतिउत्तर अपनी विश्वासयोग्यता के द्वारा देगा। यदि आप दाख की बारी में उसके साथ श्रम करने के लिए तैयार हैं, तो आप उन जीवनदायक रस के भागीदार होंगे जो सच्ची दाखलता का हिस्सा होने से प्राप्त होता है। आप यीशु के लिए एक गवाही के रूप में बहुत फल उत्पन्न करेंगे। जब हम उसकी आज्ञा का पालन करेंगे तो प्रभु हमें भीतर से बाहर बदल देगा। जबकि हम परीक्षाओं और चुनौतियों से गुजरते हैं और उन में उसके साथ चलेंगे, तो हम पिता की उस निकटता का अनुभव करेंगे जो हमें उनसे उबरने में मदद करता है और आनंद देता है। किसान हमें विभिन्न उन परिस्थितियों में परीक्षाओं के द्वारा बदलेगा जिनसे वह हमें होकर गुज़रने देता है;

जब अमेरिकन एयरलाइंस अपने पायलटों को प्रशिक्षित करती है, तो वे पहले एक सिम्युलेटर द्वारा उनकी परीक्षा लेती है। सिम्युलेटर को पायलट के सम्मुख विभिन्न संभावित समस्याओं को पेश करने के लिए रचा गया है ताकि वह भविष्य में प्रस्तुत की जाने वाले किसी भी आपात स्थिति को संभाल सके। सबसे पहले, पायलट को सरल चुनौतियों से परखा जाता है, जो अंततः विनाशकारी परिस्थितियों तक गहराती जाती हैं। पिछली चुनौतियों पर महारत हासिल करने के बाद ही पायलटों को अधिक कठिन समस्याएं दी जाती हैं। इसका परिणाम यह है कि जब पायलट अपने पाठ्यक्रम पूरे कर लेते हैं, तो वे अपने मार्ग में आने वाली किसी भी चुनौती को संभालने के लिए तैयार होते हैं। यह परमेश्वर के हमारे साथ कार्य करने के तरीके के समान है। परमेश्वर हमें जीवन की समस्याओं से निपटना सिखाता है लेकिन हमें उससे ज्यादा कभी नहीं देता जितना हम संभाल सकते हैं। वह हमें प्रत्येक परिस्थिति के द्वारा सिखाता है ताकि हम पूरी तरह से तैयार और परिपक्व जन हो सकें, जो जीवन के मार्ग में आने वाली चुनौती को संभालने के लिए तैयार हों।

 

मसीह में बने रहना

 

जब वह यूहन्ना 15: 4-7 में बार-बार उसमें बने रहने को कहता है, तो इससे प्रभु का क्या मतलब है?

 

7यदि तुम मुझमें बने रहो, और मेरी बातें तुम में बनी रहें तो जो चाहो मांगो और वह तुम्हारे लिये हो जाएगा। (यहुन्ना 15:7)

 

10यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे; जैसा कि मैंने अपने पिता की आज्ञाओं को माना है, और उसके प्रेम में बना रहता हूँ। (यहुन्ना 15:10)

 

जब हम प्रभु के साथ घनिष्ठता विकसित करते हैं और उसके वचन को सुनना और उसका पालन करना सीखते हैं, तब मसीह में बने रहने से उसके जीवन के जीवन-रस को हमारे द्वारा प्रवाहित होकर फल उत्पन्न करने की अनुमति देते हैं। घनिष्ठता बनाना एक सोची-समझी प्रक्रिया है, जैसा कि अन्य संबंधों में भी देखा जाता है। हम बस किसी के बारे में जानकारी प्राप्त कर उनके साथ घनिष्ठ होने की अपेक्षा नहीं कर सकते। किसी के साथ घनिष्ठता तब विकसित होती है जब आप ईमानदार और पारदर्शी होते हैं और सक्रिय रूप से दूसरों की सुनते हैं, जबकि उसी समान बदले में वे भी आपके साथ अपने दिल की बात साझा कर सकते हैं। मसीह के साथ और उसकी देह के लोगों के साथ समय बिताने की सक्रीय मंशा रखें। जबकि लोग उसके साथ के लिए एक दूसरे पर गिर-पड़ रहे थे, तब भी यीशु ने अपने पिता संग होने का समय निकाला।

 

उसकी आज्ञाओं को मानने के लिए (पद 10), हमें उसके वचनों को अपने हृदय में रखना आवश्यक है। प्रभु ने अपने शिष्यों से कहा था कि पवित्र आत्मा उसके द्वारा कहे वचनों को ध्यान दिलाएगा। हमारे पास उसका बोला गया वचन है जो लिखित में हमारे पास उपलब्ध है। जितना अधिक हम उसके वचनों पर मनन करते हैं, उतना ही अधिक हम पवित्र आत्मा को उसके वचनों को हमारे समक्ष उजागर करने की जगह देते हैं।

 

क्या आपके पास नियमित अनुशासन और आदतें हैं जिन्हें आपने मसीह के साथ घनिष्ठता और एकता विकसित करने में सहायक पाया है? किसी भी उपयोगी और उत्साहवर्दक बातों को साझा करें जिसने आपके भक्ति के जीवन को बढ़ाया है।

 

प्रेरित पौलुस ने लिखा; सो विश्वास सुनने से, और सुनना मसीह के वचन से होता है।” (रोमियों 10:17)। पवित्र आत्मा को सुनने के द्वारा परमेश्वर के साथ घनिष्ठता विकसित करें, जो परमेश्वर के वचन के द्वारा हमारे हृदयों से बात करेगा। पवित्र आत्मा को आपके जीवन में अधिक महत्वपूर्ण प्रभाव डालने में तीन चीजें मदद करेंगी;

 

1. परमेश्वर के वचन को पढ़ने और मनन के द्वारा अपने हृदय की गहराई में उसे बोयें। इसके लिए आपकी ओर से प्रयास की आवश्यकता है।

 

2. पवित्र आत्मा के प्रति खुले रहें और उसे अपने वचन को उजागर करने की अनुमति दें। यह उजागर करना पवित्र आत्मा का कार्य है। अपने मनन के साथ-साथ प्रार्थना को जोड़ें।

 

3. पवित्र आत्मा से आपके पास आने वाले संकेत और विचारों के लिए आज्ञाकारी बनें और वचनों की स्पष्ट शिक्षा के प्रति आज्ञाकारी रहें।

 

प्रार्थना: पिता, हमारी प्रार्थना है कि सच्ची दाखलता प्रभु यीशु का जीवन-रस हमारे भीतर और हमारे द्वारा आपके नाम की महिमा के लिए प्रवाहित हो। हमें अपनी आवाज़ सुनने और उसकी आज्ञा मानने के लिए संवेदनशीलता प्रदान करें। आमिन!

 

कीथ थॉमस

-मेल: keiththomas@groupbiblestudy.com

वेबसाइट: www.groupbiblestudy.com

bottom of page