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28. Jesus The Way

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28. यीशु, पिता की ओर ले जाने का मार्ग

हम अंतिम भोज की रात एक नीची मेज़ पर झुके हुए अपने चेलों को कहे यीशु के शब्दों का अध्ययन कर रहे हैं। प्रभु उन्हें अपने क्रूस पर चढ़ाए जाने के अंधकारमय समय के लिए तैयार करने के लिए उन्हें महत्वपूर्ण चीजें सिखा रहा था। जल्द ही, वे गतसमनी के बाग में जाएंगे, जहां मसीह जानता था कि उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा। अपने अंतिम अध्ययन में, हमने यहूदा के प्रस्थान के साथ प्रभु को चेलों को यह बताते हुए देखा कि वे सभी उस से दूर चले जाएंगे और पतरस तीन बार उसका इंकार करेगा। यीशु ने यह भी कहा था, "हे बालको, मैं और थोड़ी देर तुम्हारे पास हूँ (यहुन्ना 13:33)। उसके इन शब्दों को सुनकर कक्ष दुःख और चिंता से भर गया। वह फिर से बोला;

 

1तुम्हारा मन व्याकुल न हो, तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते हो मुझ पर भी विश्वास रखो। 2मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं, यदि न होते, तो मैं तुमसे कह देता क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। 3और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊंगा, कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो। 4और जहाँ मैं जाता हूँ तुम वहाँ का मार्ग जानते हो।” 5थोमा ने उससे कहा, “हे प्रभु, हम नहीं जानते कि तू कहाँ जाता है? तो मार्ग कैसे जानें?” 6यीशु ने उससे कहा, “मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता।” (यहुन्ना 14:1-6)

 

परमेश्वर के हर एक जन के लिए स्थान

 

बारहवीं शताब्दी में, स्टीफन लैंगटन ने पवित्र शास्त्र के लैटिन वालगेट अनुवाद में अध्याय विभाजन को जोड़ा। दुर्भाग्य से, चौदहवें अध्याय का विभाजन पाठक को इस खंड के सम्पूर्ण अर्थ को समझने की अनुमति नहीं देता। अध्याय विभाजन के बिना गौर से देखना यह समझाने में मदद करता है कि चेले अपने मनों में व्याकुल क्यों हुए थे। यह विचार कि उनके पास उसके साथ केवल थोड़ा और समय बचा था, उन सभी को परेशान कर रहा था। जब वे इस मेज़ के चारों ओर झुके हुए थे, हम कल्पना कर सकते हैं कि वे कितने हैरान और दुखी होंगे। शिष्यों में से प्रत्येक पतरस को बहुत शेर-दिल और साहसिक विश्वासी मानते थे। जब उन्होंने यीशु को यह कहते सुना कि पतरस भी तीन बार उसका इंकार करेगा, तो इसने उन्हें काफी परेशान और हतोत्साहित किया होगा।

 

उस रात हुई सभी घटनाओं के बारे में पढ़ने से हमारे पास पूर्व जानकारी का लाभ है, लेकिन यह अधिक संभव है कि उनमें से प्रत्येक के मन में यह प्रश्न होगा कि जल्द ही वे किस तरह के दबाव का सामना करेंगे। उन्हें इस बात की चिंता होगी कि क्या वे आगे आने वाली बातों का सामना कर पाएंगे। उन्हें सबसे ज्यादा चिंता इस बात की थी कि वे उसके साथ नहीं आ सकते थे, लेकिन वे उसके पीछे बाद में आएंगे (यूहन्ना 13:36)। केवल एक ही मनुष्य को परमेश्वर के निकट लाने की कीमत चुका सकता था, और वह था मसीह, देहधारी परमेश्वर। वह उनसे आगे जाकर उनके लिए मार्ग तैयार करेगा।

 

7उनमें से कोई अपने भाई को किसी भांति छुड़ा नहीं सकता है; और न परमेश्वर को उसके प्रायश्चित्त में कुछ दे सकता है, 8(क्योंकि उनके प्राण की छुड़ौती भारी है वह अन्त तक कभी न चुका सकेंगे)9कोई ऐसा नहीं जो सदैव जीवित रहे, और कब्र को न देखे। (भजन 49:7-9)

 

हम में से प्रत्येक के पाप के ऋण का भुगतान कोई सामान्य व्यक्ति नहीं कर सकता। एक उद्धारकर्ता आवश्यक था, अर्थात्, स्वयं परमेश्वर द्वारा किया एक बलिदान जो मनुष्यों के लिए मसीह के पीछे पिता के घर में प्रवेश के लिए मार्ग बनाए। पुराने नियम में विभिन्न पशुओं का बलिदान देना उस आने वाले दिन की सिर्फ एक तस्वीर थी, संसार के पाप के लिए एक और अंतिम बार परमेश्वर के मेम्ने का बलिदान (यहुन्ना 1:29)। प्रभु ने अपने चेलों को यह याद दिलाते हुए दिलासा दिया कि वे पहले से ही पिता के घर का मार्ग जानते हैं। शिष्य थोमा ने उनकी ओर से बोलते हुए कहा कि उन्हें नहीं पता कि वह कहाँ जा रहा था, इसलिए वे मार्ग कैसे जान सकते थे (पद 5)

 

भले ही प्रभु ने उन्हें बार-बार बताया था कि उसे मार दिया जाएगा, उन्होंने इस पर विश्वास करने से इनकार कर दिया। लेकिन, इस पल में, सच्चाई सहज होने लगी; उसे अकेले ही यह कीमत चुकानी होगी, तभी वह उसके पीछे आ सकेंगे। भविष्य का यह डर और उसका जाना ही उनके मनों के व्याकुल होने का कारण था। यहाँ हम यीशु की कोमलता को देखते हैं, जहाँ वो जानता था कि वह जल्द ही अपार पीड़ा और मृत्यु की अपरिहार्यता से गुज़रेगा, तब भी वो आने वाले समय के लिए अपने शिष्यों को तैयार करने के बारे में सोच रहा था। वह उन्हें आशा देकर उनके दुख: को कम करना चाहता था।

 

जब मसीह ने मेज़ के चारों ओर अपने शिष्यों की देखा, उसका दिल उनके लिए उमड़ पड़ा। वह देख सकता था कि वे उसके शब्दों से व्याकुल थे। कल्पना कीजिए कि पतरस को यह बताए जाने पर कैसा लगा होगा कि वह मसीह का इनकार करेगा। जब हमारे हृदय व्याकुल, तनावग्रस्त, भयभीत और अनिश्चित होते हैं या जब ऐसा लगता है जैसे हमारा संसार बिखर रहा है, तो हमें याद रखना चाहिए कि यीशु ने इस खंड में क्या कहा; "मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं (यहुन्ना 14:2)। कोई फर्क नहीं पड़ता कि तेरे मन और दिल में क्या चल रहा है पतरस, चाहे तू कितना भी टूटा क्यों न हो, तू भले ही जो कुछ भी अनुभव कर रहा हो, पिता के घर में तुम्हारे लिए एक जगह है। वह इसे पतरस और शिष्यों के लिए कह रहा है, लेकिन वह यह हमें भी कह रहा है। हम में से प्रत्येक के प्राण के भीतर गहराई में, एक बेहतर स्थान के लिए हमारे आंतरिक अस्तित्व में बोई एक तड़प है:

 

उसने सब कुछ ऐसा बनाया कि अपने अपने समय पर वे सुन्दर होते है; फिर उसने मनुष्यों के मन में अनादि-अनन्त काल का ज्ञान उत्पन्न किया है, तौभी काल का ज्ञान उत्पन्न किया है, वह आदि से अन्त तक मनुष्य बूझ नहीं सकता। (सभोपदेशक 3:11)

 

क्या आप अपने जीवन में एक ऐसा समय याद कर सकते हैं जब आपको अनंत काल के विचार आना शुरू हो गए थे? क्या कोई परिस्थिति थी, मृत्यु से निकटतम सामना, या एक रिश्तेदार का निधन, जिसने आपको यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि मृत्यु के बाद आपके साथ क्या होगा?

 

हमारी आत्मा का दुश्मन, शैतान, झूठ का पिता, इस आशा में कि हम सिर्फ वर्तमान क्षण और इस वर्तमान संसार के लिए जीएं, हमारा मन इस वर्तमान संसार की बातों पर केंद्रित करने की कोशिश करता है। उसने सभी प्रकार के झूठे धर्मों, दर्शनज्ञान और विचारधाराओं का निर्माण करने के लिए युगों से लोगों का उपयोग किया है, जिनका उद्देश्य मानव जाति के मन को अनंत काल के बारे में सोचने से दूर रखना है। प्रेरित यूहन्ना हमें याद दिलाता है कि परमेश्वर इस संसार की बातों से घृणा करता है;

 

15तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो; यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उस में पिता का प्रेम नहीं है। 16क्योंकि जो कुछ संसार में है, अर्थात् शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड, वह पिता की ओर से नहीं, परन्तु संसार ही की ओर से है। (1 यहुन्ना 2:15-16)

 

प्रोफेसर टी.एच. हक्सले के बारे में एक कहानी है, एक प्रसिद्ध अज्ञेयवादी (जिन्होंने “अज्ञेय” शब्द का आविष्कार किया और इसे खुद पर लागू किया था। हक्सले अपनी मृत्यु से पहले अपने विचारों से पलट गए और परमेश्वर और मृत्यु उपरांत जीवन में विश्वास करने लगे। जब वह मर रहे थे (जैसा उसकी नर्स ने बताया), उन्होंने खुद को अपनी कोहनी के बल उठाया, जैसे कि दूर किसी अदृश्य नज़ारे का सर्वेक्षण कर रहा हो, फिर अपने तकिया पर वापस गिरते हुए बड़बड़ाया; तो यह सच था! तो यह सच था!”

 

हाँ यह सच है। पिता के घर में कई कमरे हैं। शायद, आपने किंग जेम्स संस्करण पढ़ा है, जो यूनानी शब्द मोनाई का अनुवाद हवेली के रूप में करता है, लेकिन इस शब्द का अर्थ है निवास स्थान या कमरे। हम उसके घर में परमेश्वर के साथ रहेंगे, और उसके घर में हमारे उसके साथ रहने के लिए कई कमरे हैं। आप में से उन लोगों के लिए जो एक से दूसरा स्थान बदलने की असुरक्षा के साथ और दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में जीते हैं, आशा बाँधिए! हम स्वर्ग में एक अनंत घर होने के बारे में बात कर रहे हैं जहाँ हम हमेशा के लिए परमेश्वर के साथ रहेंगे! (2 कुरिन्थियों 5:1। जब यीशु ने कहा; "मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ” (14:2), तो हमें यीशु के बारे में एक बढ़ई के रूप में हममें से प्रत्येक के लिए एक प्राकृतिक घर बनाने के बारे में नहीं सोचना। “तैयारके रूप में अनुवादित यूनानी शब्द हेतोइमाज़ो है, जिसे सड़कों पर राजाओं की यात्रा से पहले किसी व्यक्ति के जाकर मार्ग को उनके निकलने लायक समतल करने के पूर्वी संस्कृति में प्रयोग किया जाता है। इस शब्द का प्रयोग शिष्यों द्वारा फसह के पर्व के लिए ऊपरी कक्ष को तैयार करने के लिए जाने का वर्णन करने के लिए भी किया गया है (लूका 22:9,12)। मसीह का दुख:द जाना परमेश्वर के सभी लोगों के लिए पिता के घर में उसके पीछे आने का मार्ग तैयार करने के लिए आवश्यक था। वह हमसे आगे गया कि वह हमारे लिए परमेश्वर तक के मार्ग को “निकलने लायकबनाए।  

पवित्रशास्त्र हमें एक ऐसे समय के बारे में बताता है जब एक स्वर्गीय नगर स्वर्ग से धरती पर आएगा एक दुल्हन के रूप में एक नगर जो अपने पति के लिए खूबसूरती से तैयार है। ध्यान दीजिये कि हम किसके साथ रहेंगे;

 

1फिर मैं ने नये आकाश और नयी पृथ्वी को देखा, क्योंकि पहला आकाश और पहली पृथ्वी जाती रही थी, और समुद्र भी न रहा2फिर मैंने पवित्र नगर नये यरूशलेम को स्वर्ग पर से परमेश्वर के पास से उतरते देखा, और वह उस दुल्हिन के समान थी, जो अपने पति के लिये सिंगार किए हो। 3फिर मैंने सिंहासन में से किसी को ऊँचे शब्द से यह कहते सुना, “देख, परमेश्वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है; वह उनके साथ डेरा करेगा, और वे उसके लोग होंगे, और परमेश्वर आप उनके साथ रहेगा; और उनका परमेश्वर होगा। 4और वह उनकी आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा; और इसके बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहली बातें जाती रहीं। (प्रकाशितवाक्य 21:1-4)

 

परमेश्वर के साथ रहना कितना अद्भुत होगा; स्वयं प्रभु के कोमल स्पर्श से इस संसार का दर्द हमारी आँखों से पोंछा जाएगा। (पद 4)। उसने जानबूझकर हमें स्वर्ग के बारे में बहुत कुछ नहीं बताया है क्योंकि हम में से बहुत से लोग अपने समय से पहले इस संसार को छोड़ना चाहेंगे। एक अन्य जगह, प्रेरित पौलुस, हमें निम्नलिखित बताता है;

 

जो आँख ने नहीं देखी, और कान ने नहीं सुना, और जो बातें मनुष्य के चित्त में नहीं चढ़ी वे ही हैं, जो परमेश्वर ने अपने प्रेम रखनेवालों के लिये तैयार की हैं। (1 कुरिन्थियों 2:9)

 

हमारे स्वर्ग के सबसे अद्भुत सपनों और कल्पनाओं में, हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि यह उन लोगों के लिए कितना अच्छा होगा जो इस धरती पर मसीह के साथ चलते हैं। यदि जो कुछ आप अभी अनुभव कर रहे हैं उससे आपका हृदय विचलित है, तो अपने मन को इस तथ्य के साथ मज़बूत होने दें कि एक दिन आप अपने पवित्र घर में स्वयं परमेश्वर के साथ रहेंगे। कल्पना कीजिए कि इस बात ने पतरस को कैसे प्रोत्साहित किया होगा, खासकर तब जब उसने मसीह को अस्वीकार कर दिया था, कि उसके प्रभु का तीन बार इनकार के बाद भी उसके लिए जगह थी।

 

यह जानना कि मृत्यु के बाद हम कहाँ जाएंगे, भय, चिंता और एक व्याकुल हृदय के लिए उपचार है। प्रभु ने प्रतिज्ञा दी है कि वह वापस आएगा और हमें अपने साथ ले जाएगा (यहुन्ना 14:3)। यदि इसके बारे में कोई संदेह था, तो वह हमें यह नहीं बताता। इस पर हम उसके वचन पर भरोसा कर सकते हैं। उसने उनसे कहा, तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते हो मुझ पर भी विश्वास रखो” (यूहन्ना 14:1)। यदि यीशु परमेश्वर नहीं था, तो उनका यह कथन अत्यधिक निंदात्मक होता। वह कह रहा था कि जिस तरह आप परमेश्वर पर भरोसा करते हैं, उसी तरह आप मसीह में भी विश्वासियों के भविष्य के घर के लिए भरोसा कर सकते हैं।

 

यीशु, पिता तक पहुँचने का मार्ग

 

जब यीशु ने उनसे कहा, "जहाँ मैं जाता हूँ तुम वहाँ का मार्ग जानते हो" (यहुन्ना 14:4), शिष्य थोमा ने उससे कहा, "हे प्रभु, हम नहीं जानते कि तू कहाँ जाता है? तो मार्ग कैसे जानें?” (यहुन्ना 14:5) मैं थोमा जैसे लोगों को बहुत पसंद करता हूँ, एक व्यक्ति जो कभी असल होने से नहीं घबराता। वह वास्तव में सब कुछ समझना चाहता था। इस संबंध में मैं उसके साथ पहचान कर सकता हूँ। थोमा स्पष्टता से जानना चाहता था कि मसीह क्या कह रहा है, इसलिए उन्होंने पूछा, "वह जगह कहाँ है जहाँ तू जा रहा है?" उसका प्रेम से उमड़ा हृदय उसके स्वामी को उसके बिना जाने के विचार की अनुमति नहीं दे रहा था। यदि वह अभी पीछे नहीं सकता, तो उसे यह जानना था कि वह बाद में उसके पीछे कैसे सकता है।

 

6यीशु ने उससे कहा, “मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता। यदि तुमने मुझे जाना होता, तो मेरे पिता को भी जानते, और अब उसे जानते हो, और उसे देखा भी है(यहुन्ना 14:6-7)

 

मुझे नहीं लगता कि थोमा को वह उत्तर मिला जो वह ढूंढ रहा था। निर्देशों या ऐसी चीजों की श्रृंखला के बजाय जो उसे करनी हैं, उसे दिया गया उत्तर एक व्यक्ति था, स्वयं मसीह: "मार्ग...मैं ही हूँ।" यह महान “मैं हूँ” कथनों में छठा है (10:11; 10:14; 11:25; 14:6; 15:1; 15:5)। यहाँ, एक बार फिर से यीशु वही महान “मैं हूँ” होने का दावा कर रहा था जो नाम मूसा को बताया गया था कि इजराइल के परमेश्वर और सभी चीजों के रचयिता का नाम था (निर्गमन 3:14)। यीशु के शब्द कि वह सत्य और जीवन है, वे उसके इस कथन का समर्थन करते हैं कि वह मार्ग है। यदि हम परमेश्वर के साथ सही होने की दिशा की तलाश में हैं, तो हमें मसीह के व्यक्ति को देखना होगा। हमें उसके पास आना है और उसे अपने जीवन को भरने देना है।

 

परमेश्वर का सम्पूर्ण सत्य और जीवन जिसकी हमें आवश्यकता है यीशु में सन्निहित है। यदि पिता के घर पहुँचने का कोई और मार्ग होता, तो क्या आपको नहीं लगता कि वह हमें बताता? परमेश्वर संग सही होने का और कोई मार्ग नहीं है। उसने कहा, बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता” (यहुन्ना 14:6)। मनुष्य के रूप में, हम नियमों, निर्देशों, कानूनों, या अनुष्ठानों का एक समूह पसंद करते हैं जिन्हें हम कर सकते हैं, यानी, कुछ ऐसा जिसे हम पुरस्कार हासिल करने के लिए कर सकते हैं। यह हमें आत्म-सिद्धि और इस विचार की अनुभूति देता है कि हम नियंत्रण में हैं। हम अनंत जीवन पाने के लिए कुछ करना चाहते हैं, लेकिन यीशु ने हमें स्वयं के अलावा कोई और मार्ग नहीं दिया है। वह ही मार्ग, सत्य और जीवन है।

 

महान सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टीन एक बार प्रिंसटन से एक ट्रेन में यात्रा कर रहे थे, कंडक्टर प्रत्येक यात्री के टिकट को जाँचते हुए गलियारे से नीचे आया। जब वह प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी के पास आया, तो आइंस्टीन ने अपनी शर्ट की जेब टटोली। जब वह अपना टिकट नहीं खोज पाए, तो उन्होंने अपनी पतलून की जेब टटोली। वह वहाँ भी नहीं था। उन्होंने अपने ब्रीफ़केस में देखा लेकिन उन्हें वह वहाँ भी नहीं मिला। फिर उन्होंने बगल की सीट पर देखा। वह अभी भी उसका पता नहीं लगा सके। कंडक्टर ने उनसे कहा, “डॉ. आइंस्टीन, मुझे पता है कि आप कौन हैं। हम सभी जानते हैं कि आप कौन हैं। मुझे यकीन है कि आपने एक टिकट खरीदा है। इसके बारे में चिंता न करें।" आइंस्टीन ने इसकी सराहना करते हुए अपना सर हिलाया। कंडक्टर टिकट जाँचते हुए आगे बढ़ गया। जैसे ही वह अगली बोगी में जाने के लिए तैयार हुआ, उसने मुड़कर पीछे महान भौतिक विज्ञानी को अपने हाथों और घुटनों के बल अपनी सीट के नीचे टिकेट तो खोजते देखा। कंडक्टर वापस भागते हुए आया और कहा, 'डॉ. आइंस्टीन, डॉ. आइंस्टीन चिंता न करें। मुझे पता है कि आप कौन हैं? कोई समस्या नहीं। आपको टिकट की आवश्यकता नहीं है। मुझे यकीन है कि आपने खरीदा होगा।" आइंस्टीन ने उसकी ओर देखा और कहा, "नौजवान, मैं भी जानता हूँ कि मैं कौन हूँ। लेकिन मुझे यह नहीं पता कि मैं जा कहाँ रहा हूँ।"

 

आप आइंस्टीन की तरह होशियार हो सकते हैं, लेकिन यदि आप यीशु को नहीं जानते हैं, तो आप नहीं जानते कि आप कहाँ जा रहे हैं, अर्थात आप अपने अंतिम गंतव्य को नहीं जानते। यीशु ने हमें बताया कि हम उस मार्ग को जान सकते हैं और वह स्वयं हमारे लिए वह मार्ग प्रदान करता है।

 

क्या आपको लगता है कि हमारे समय में परम-सत्य के विचार पर हमला होता है? आप परमेश्वर तक केवल एक ही मार्ग की इस विशिष्टता को लोगों की अर्थ और सत्य के लिए खोज को कैसे प्रभावित करते देखते हैं?

 

यीशु परमेश्वर तक मार्ग है क्योंकि केवल वही सत्य है। जब कोई व्यक्ति मसीह के पास आता है, तो वह पिता के जीवित सत्य पर पहुँचता है। जब कोई व्यक्ति मसीह में आता है, तो वह जीवन के स्रोत पर पहुँचता है (यहुन्ना 1:3)

 

हमें एक जीवन संक्रामण की आवश्यकता है

 

इस स्वर्गीय स्थान तक पहुँचने के लिए, अर्थात्, पिता का घर, हमें परमेश्वर के जीवन को प्राप्त करने की आवश्यकता है। आदम से प्राप्त यह भौतिक जीवन हमारे लिए पर्याप्त नहीं है; हमें प्रकटीकरण की आवश्यकता है, अर्थात्, हमारी आत्मा में परमेश्वर की ओर से एक नए जीवन की जान फूंके जाने की;

 

21क्योंकि जब मनुष्य के द्वारा मृत्यु आई; तो मनुष्य ही के द्वारा मरे हुओं का पुनरूत्थान भी आया। 22और जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसा ही मसीह में सब जिलाए जाएंगे। (1 कुरिन्थियों 15:21-22)

45ऐसा ही लिखा भी है, “प्रथम मनुष्य, अर्थात् आदम, जीवित प्राणी बना और अन्तिम आदम, जीवनदायक आत्मा बना। 46 परन्तु पहले आत्मिक न था, पर स्वाभाविक था, इस के बाद आत्मिक हुआ। 47प्रथम मनुष्य धरती से अर्थात् मिट्टी का था; दूसरा मनुष्य स्वर्गीय है। 48जैसा वह मिट्टी का था वैसे ही और मिट्टी के हैं; और जैसा वह स्वर्गीय है, वैसे ही और भी स्वर्गीय हैं। 49और जैसे हमने उसका रूप जो मिट्टी का था धारण किया वैसे ही उस स्वर्गीय का रूप भी धारण करेंगे। (1 कुरिन्थियों 15:45-49)

 

परमेश्वर का जीवन केवल कलवरी पर मसीह के बहाए गए खून की वाचा के माध्यम से हमारे पास पहुँचता है, अर्थात्, वह स्थान जहाँ यीशु ने हमारे अपराध और शर्म के लिए प्रायश्चित (मुआवजा) किया था। आप नैतिक रूप से एक अच्छे व्यक्ति हो सकते हैं, लेकिन मसीह से नया जीवन प्राप्त करने के अलावा पिता के पास पहुँचने का कोई और मार्ग नहीं है। यह वही सत्य है जो यीशु ने निकुदिमुस को समझाया था, "मैं तुझ से सच सच कहता हूँ, यदि कोई नये सिरे से न जन्में तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता” (यहुन्ना 3:3)। यूनानी शब्द जिसका अनुवाद नये सिरे से जन्म के रूप में किया गया है वह जेननाओ अनोथन है, जिसका अर्थ फिर से या ऊपर से पैदा होना है। परमेश्वर द्वारा दिया गया यह नया जीवन लोगों तक तब पहुँचता है जब वे पश्चाताप कर (अपने पाप से मुड़ते हैं) अपने जीवन की दिशा को प्रभु की ओर मोड़ते हैं। वह मार्ग, सत्य और जीवन है। एक अन्य स्थान पर, यीशु ने कहा;

 

32यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे सच सच कहता हूँ कि मूसा ने तुम्हें वह रोटी स्वर्ग से न दी, परन्तु मेरा पिता तुम्हें सच्ची रोटी स्वर्ग से देता है। 33क्योकि परमेश्वर की रोटी वही है, जो स्वर्ग से उतरकर जगत को जीवन देती है।” 34तब उन्होंने उससे कहा, “हे प्रभु, यह रोटी हमें सर्वदा दिया कर।” 35यीशु ने उनसे कहा, “जीवन की रोटी मैं हूँ; जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी प्यासा न होगा। (यहुन्ना 6:32-35)

 

हम आत्मिक रूप से मृत हैं (इफिसियों 2:1,5) और यीशु, जो मसीहा है, उसके द्वारा दिए गए परमेश्वर के जीवन के संक्रामण के बिना स्वर्गीय राज्य में रहने में असमर्थ हैं। हमें इस संसार में एक बेहतर जीवन से ज्यादा की आवश्यकता है; हमें जीवन के आदान-प्रदान की आवश्यकता है। यीशु हमें ऊपर के खंड में दो बातें बताता है;

 

1.) जो सच्ची रोटी पिता देता है वह यीशु है।

2.) हमें जीवन की इस रोटी की आवश्यकता है। इसके बिना, हमारे पास वह सच्चा जीवन नहीं है जो परमेश्वर हमारे लिए चाहता है।

 

यीशु को देखना मतलब पिता को देखना

 

यीशु ने फिर एक बार पिता से समानता का दावा किया;

 

7यदि तुम ने मुझे जाना होता, तो मेरे पिता को भी जानते, और अब उसे जानते हो, और उसे देखा भी है।” 8फिलिप्पुस ने उससे कहा, “हे प्रभु, पिता को हमें दिखा दे; यही हमारे लिये बहुत है।” 9 यीशु ने उससे कहा; “हे फिलिप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साथ हूँ, और क्या तू मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है, तू क्यों कहता है कि पिता को हमें दिखा। 10क्या तू प्रतीति नहीं करता, कि मैं पिता में हूँ, और पिता मुझ में हैं? ये बातें जो मैं तुम से कहता हूँ, अपनी ओर से नहीं कहता, परन्तु पिता मुझ में रहकर अपने काम करता है। 11मेरी ही प्रतीति करो, कि मैं पिता में हूँ; और पिता मुझ में है; नहीं तो कामों ही के कारण मेरी प्रतीति करो।” (यहुन्ना 14:7-11)

 

क्रूस और पुनरुत्थान के बाद, शिष्य नए और घनिष्ठ तरीके से परमेश्वर को जान पाएंगे। मसीह ने कहा, अब उसे जानते हो, और उसे देखा भी है” (पद 7)। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में, कई तथाकथित परमेश्वर हैं, लेकिन प्रभु जैसा कोई नहीं है। क्रूस पर, यीशु ने हम में से प्रत्येक को दिखाया कि सच्चा परमेश्वर कैसा है। क्रूस पर मसीह को देखने का अर्थ हम सभी के प्रति परमेश्वर के हृदय को देखना है। परमेश्वर हमसे इतना प्रेम करता है, कि वह हमारे जैसे और हमारे लिए एक भयानक मौत मर जाए।

 

यहाँ संदिग्धता के लिए कोई स्थान नहीं है। यदि किसी को इस बारे में ज़रा भी संदेह है कि यीशु कौन है तो इस कथन को उस संदेह को शांत कर देना चाहिए। फिलिप्पुस बोल पड़ा,हे प्रभु, पिता को हमें दिखा दे; यही हमारे लिये बहुत है” (यूहन्ना 14:8)। फिलिप्पुस के इस कथन पर प्रभु निराश लग रहा था।

 

चेले यह समझने में धीमे थे कि मसीह कौन था और क्या है। हाँ, वह उस विश्वास तक पहुँच गए थे कि वह मसीहा है, लेकिन यह सोचना भी कि स्वयं परमेश्वर पृथ्वी पर उनके बीच चलेंगे और अपना डेरा डालेंगे, इसने उनके मन को भौंचक्का कर दिया। यीशु को देखना पिता को देखना है। यीशु ने जो शब्द कहे और कार्य किए, वे इसलिए थे क्योंकि पिता उसमें था और अपना कार्य उसके द्वारा कर रहा था। परमेश्वर का आत्मा हमें इस सुंदर सत्य का सम्पूर्ण ज्ञान उजागर करे!

 

पिता यीशु के द्वारा बोले गए हर शब्द और उनके द्वारा किए गए करुणा के हर कार्य में कार्य कर रहा था। यीशु ने स्वयं कहा कि ऐसा ही था (यूहन्ना 14:10)

 

क्या इससे आपकी परमेश्वर पिता की छवि बदलती है? कैसे?

 

आपको क्या लगता है कि प्रभु के पद 12-14 से क्या अर्थ है?

 

12मैं तुम से सच सच कहता हूँ, कि जो मुझ पर विश्वास रखता है, ये काम जो मैं करता हूँ वही भी करेगा, वरन इनसे भी बड़े काम करेगा, क्योंकि मैं पिता के पास जाता हूँ। 13और जो कुछ तुम मेरे नाम से माँगोगे, वही मैं करूंगा कि पुत्र के द्वारा पिता की महिमा हो। 14यदि तुम मुझसे मेरे नाम से कुछ माँगोगे, तो मैं उसे करूंगा। (यहुन्ना 14:12-14)

 

यीशु ने एक कथन कहा, जिसने उन्हें आश्चर्यचकित कर दिया होगा। उसने उन्हें बताया कि जो कोई भी उस पर विश्वास करता है वह वही कार्य करेगा जो वह कर रहा था, और उससे भी बड़े कार्य। प्रभु ने कहा कि ऐसा इसलिए होगा क्योंकि वह पिता के पास जा रहा था, और पिता की ओर से, वह मसीह की देह, अपने लोगों के माध्यम से कलीसिया का निर्माण जारी रखेगा। विचार यह है कि उसकी सेवकाई स्वर्ग में पिता के बगल के स्थान से उनके द्वारा जारी रहेगा। उसने कहा, "मैं... अपनी कलीसिया बनाऊँगा" (मत्ती 16:18)। हाँ, प्रभु पासबान, सुसमाचार सुनाने वालों आदि जैसे लोगों का उपयोग करता है, लेकिन उसके बिना हम कुछ भी नहीं कर सकते। कार्य करने वाला प्रभु ही है। हम केवल वे पात्र हैं जिनके द्वारा वह कार्य करने का चुनाव करता है। उसके हमारे द्वारा कार्य करने के लिए, वह हमें उसके नाम में कुछ भी मांगने की चुनौती देता है, और वह उसे करेगा।

 

कुछ लोग ऊपर दिए गए खंड में शब्दों के विषय में कहते हैं, अर्थात, इनसे भी बड़े कार्यों का संदर्भ (पद 12), इस तथ्य का उल्लेख करते हैं कि, चूंकि यीशु अपने शिष्यों के हाथों में अपनी सांसारिक सेवकाई को छोड़ रहे थे, इसलिए यह कार्य और अधिक पूरे संसार में लोगों तक पहुँचने के कारण गुणा हो जाएगा। जैसे-जैसे उसके चेले बढ़ेंगे, पृथ्वी पर पिता के कार्यों में वृद्धि होगी। अन्य लोगों ने इस तथ्य की ओर संकेत दिया है कि, उदाहरण के लिए, प्रेरितों की पुस्तक में, लोगों को केवल पौलुस के रूमाल (प्रेरितों 19:11-12) और पतरस की छाया उन पर पड़ने से चंगाई मिली थी (प्रेरितों 5:15-16)। क्या ये वह बड़े चमत्कार थे?

 

प्रभु ने यह नहीं कहा था कि केवल प्रेरित ही मसीह का महिमा करेंगे, लेकिन वे सभी जो विश्वास करेंगे वह कार्य करेंगे जो वह करता आ रहा था। शब्दों और वाक्यों के खेल से परमेश्वर को सीमित न करें। पतरस और पौलुस और अन्य प्रेरितों द्वारा की गई चंगाई और चिन्ह वह अलौकिक चिन्ह और सामर्थ्य थे जो यीशु ने उनके द्वारा किए थे क्योंकि वे आत्मा के नेतृत्व में किये गए थे और वे सशक्त बनाए गए थे। परमेश्वर के शिष्य दस्ताने हैं, लेकिन यह कार्य करने वाले दस्ताने के अंदर प्रभु का अनदेखा हाथ है। उसके बिना हम कुछ नहीं कर सकते। विश्वासी मसीह की देह हैं, यीशु के जीवन और कार्यों का विस्तार। वह हम में से प्रत्येक के द्वारा जो विश्वास करते हैं, अपनी सेवकाई जारी रखता है। परमेश्वर का वचन और परमेश्वर के कार्य फैल और बढ़ गए हैं। पिता की महिमा हो रही है और पुत्र में उसकी महिमा होना जारी है।

 

प्रार्थना: धन्यवाद पिता, कि तूने हमें हमेशा के लिए अपने घर में अपने साथ रहने का एक मार्ग प्रदान किया है। इस जीवन में हम जिस सब से भी होकर गुज़रते हैं, हम उत्साहित हैं मृत्यु से परे हमारा आपके घर में आपके साथ एक स्थान है। हम आपके साथ होने और आपकी महिमा देखने के अभिलाषी हैं। आमिन!

 

कीथ थॉमस

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