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23. Jesus Anointed at Bethany

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23. बैतनिय्याहमें यीशु का अभिषेक

प्रेरित यहुन्ना ने लिखा कि लाज़र को जिलाने के बाद, अपने जीवन पर कई खतरों के कारण (यहुन्ना 11:53),यीशु अपने शिष्यों संग यरूशलेम से दूर होकर बंजर बियाबान क्षेत्र के निकट इफ्रईम गाँव में आया (यहुन्ना 11:54)। महायाजक द्वारा आदेश दिए जा चुके थे, कि अगर किसी को पता चले कि यीशु कहाँ है, तो इसकी जानकारी उन्हें देनी थी ताकि उसे गिरफ्तार किया जा सके (यहुन्ना 11:57)। ऐसी बातों ने प्रभु यीशु को डराया नहीं; वह जानता था कि उसका समय परमेश्वर के हाथों में था। जैसे ही उसके फसह और क्रूस पर चढ़ाए जाने का समय निकट आया, वह यरूशलेम से जैतून पर्वत के दूसरी तरफ बैतनिय्याह वापस गया:

 

1फिर यीशु फसह से छ: दिन पहले बैतनिय्याह में आया, जहाँ लाज़र था; जिसे यीशु ने मरे हुओं में से जिलाया था। 2वहाँ उन्होंने उसके लिये भोजन तैयार किया, और मार्था सेवा कर रही थी, और लाज़र उनमें से एक था, जो उसके साथ भोजन करने के लिये बैठे थे। 3तब मरियम ने जटामासी का आधा सेर बहुमोल इत्र लेकर यीशु के पाँवों पर डाला, और अपने बालों से उसके पाँव पोंछे, और इत्र की सुगंध से घर सुगन्धित हो गया। 4परन्तु उसके चेलों में से यहूदा इस्करियोती नामक एक चेला जो उसे पकड़वाने पर था, कहने लगा, 5यह इत्र तीन सौ दीनार में बेचकर कंगालों को क्यों न दिया गया?” 6उसने यह बात इसलिये न कही, कि उसे कंगालों की चिन्ता थी, परन्तु इसलिये कि वह चोर था और उसके पास उन की थैली रहती थी, और उसमें जो कुछ डाला जाता था, वह निकाल लेता था। 7यीशु ने कहा, “उसे मेरे गाड़े जाने के दिन के लिये रहने दे। 8क्योंकि कंगाल तो तुम्हारे साथ सदा रहते हैं, परन्तु मैं तुम्हारे साथ सदा न रहूँगा।” 9यहूदियों में से साधारण लोग जान गए, कि वह वहाँ है, और वे न केवल यीशु के कारण आए परन्तु इसलिये भी कि लाज़र को देंखें, जिसे उसने मरे हुओं में से जिलाया था। 10तब महायाजकों ने लाज़र को भी मार डालने की सम्मति की। 11क्योंकि उसके कारण बहुत से यहूदी चले गए, और यीशु पर विश्वास किया। (यहुन्ना 12:1-11)

 

अब प्रेरित यहुन्ना क्रूस पर चढ़ाए जाने से पहले यीशु के जीवन के आखिरी छः दिनों के लिए अपनी पुस्तक के आठ अध्याय समर्पित करता है। इस छोटे समयकाल में यीशु द्वारा सिखाई और की गई चीजों के कारण वह पिछले कुछ दिनों को इतना महत्वपूर्ण मानता है। अध्याय बारह की शुरुआत में, निसंदेह लाज़र, मार्था और मरियम से भेंट करने, मसीह वापस बैतनिय्याह में आता है। वह उस खतरे से अवगत था जो यरूशलेम में उसके लिए बढ़ता जा रहा था, लेकिन शायद वह लाज़र के लिए बढ़ते खतरे के प्रति भी जागरूक था। महायाजकों ने उसके मरे हुओं में से जी उठने में मसीह की सामर्थ्य की गवाही के कारण लाज़र को मारने की योजना बनाई थी (यहुन्ना 12:10)

 

जहाँ भी यीशु जाता, भीड़ एकत्र होती। इसलिए, लाज़र के लिए यीशु का पास होना ज्यादा सुरक्षित था। बहुत सारे गवाह एक हत्यारे की योजनाओं को खराब कर देते। शायद, आपने अपने जीवन में भी मसीह की सामर्थ्य की गवाही के कारण आत्मिक विरोध और घृणा का सामना किया है। परमेश्वर के शत्रु परमेश्वर की जीवन बदलने वाले सामर्थ्य के प्रमाण को दबाना चाहते हैं। प्रभु यीशु हमारे लिए अपने मित्रों से मिलने और उनके कल्याण के लिए चिंतित होने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। मुझे यकीन है कि जब यीशु ने दरवाजा खटखटाया होगा, तब उस घर में बहुत आनंद मनाया गया होगा। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि यीशु के आपके घर में आना कितना सुंदर होगा?

 

शमौन कोढ़ी का घर

 

फसह के पर्व से पूर्व इस समय के दौरान, यीशु को भोजन के लिए शमौन कोढ़ी के घर में आमंत्रित किया गया। यदि हम केवल यहुन्ना के वर्णन को पढ़ते हैं, तो हम यह मान सकते हैं कि यह मार्था के घर पर था, लेकिन यदि हम अन्य सुसमाचारों के साथ इसका मेल करते हैं, तो हम अधिक जानकारी तक पहुँचते हैं। मत्ती (26:6-13) और मरकुस (14:1-11) दोनों ने अभिषेक को शमौन कोढ़ी के घर पर दर्ज किया है। लूका ने यीशु की सेवकाई में एक पापी स्त्री द्वारा प्रभु के पहले हुए अभिषेक का उल्लेख किया है। माना जाता है कि वह वाक्या गलील क्षेत्र में हुआ था, और वो एक अलग घटना है (लूका 7: 36-50) और इसे लाज़र की बहन मरियम द्वारा अभिषेक के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए। यहुन्ना हमें बताता है कि रात्रि भोज यीशु के सम्मान में दिया गया था (पद 2) और लाज़र भी मेज़ पर बैठा हुआ था। मार्था शमौन की रिश्तेदार या करीबी मित्र हो सकती है, क्योंकि हम उसे शमौन के मेहमानों की सेवा करते देखते हैं।

 

हम यह मान सकते हैं कि यीशु ने शमौन को उसके कोढ़ से चंगा कर दिया था क्योंकि वह अब कोढ़ी नहीं था। ऐसे व्यक्ति के लिए जिसे कोढ़ हो, वहाँ सख्त कानून थे, जिनमें से एक यह था कि वह समुदाय में दूसरों के बीच नहीं रह सकते थे (गिनती 5:1-3), उन्हें फटे कपड़े पहनना होता और किसी व्यक्ति को निकट आते देख “अशुद्ध, अशुद्ध!" चिल्लाते और घंटी बजाते हुए अपने चहरे के निचले भाग को ढकना होता था (लैव्यव्यवस्था 13:45)। लैव्यव्यवस्था की पुस्तक यह भी बताती है कि एक कुष्ठरोगी को अकेला रहना होता था (लैव्यव्यवस्था 13:46)

 

प्रश्न 1) इज़राइल में एक कुष्ठरोगी होना कैसा होगा? क्या आपके जीवन में कभी ऐसा समय रहा है जब आपने दूसरों द्वारा बहिष्कृत या बहुत अकेला महसूस किया हो?

 

पवित्रशास्त्र हमें नहीं बताता है कि प्रभु ने शमौन को चंगा किया था, लेकिन मेज़ पर कई मेहमानों के कारण, जिनमें यीशु सम्मानित अतिथि था, ऐसा ही लगता है। शायद, यह रात्रि भोज शमौन का उसकी चंगाई के लिए यीशु को सम्मानित करने और धन्यवाद देने का तरीका था, और मार्था और लाज़र के साथ-साथ सेवा करने वालों के वहाँ होने से, यह रात्रिभोज प्रभु के अनुग्रहकारी कार्यों के लिए धन्यवाद से भरा था।

 

मरियम द्वारा अभिषेक

 

नए नियम में बार-बार, प्रभु के उनके साथ जीवन साझा करने में, जहाँ वह उनके जीवनों का केंद्र था, हम विश्वासियों के बीच संगति और घनिष्ठता देखते हैं। मेहमान, ट्राइकलिनियम नामक एक मेज़ के चारों ओर झुककर बैठे थे, एक यू आकार की मेज़, जो आमतौर पर ज़मीन से सिर्फ एक या दो फुट उपर होती है। मेज़ के चरों ओर गद्दे या आसन थे जहाँ मेहमान अपनी एक कोहनी पर झुके होते थे, जिससे उनका दूसरा हाथ नीची मेज़ पर भोजन तक पहुँच सके। ट्राइकलिनियम मेज़ तीन लम्बी मेज़ों से बनी होती थी जिसमें यू अकार का खुला भाग सेवकों के लिए बिना मेहमानों को हटाए या परेशान किये भोजन लाने के लिए खुला था। अक्सर, अगले व्यक्ति का सिर उनके साथ बैठे व्यक्ति की छाती को छूता (यहुन्ना 13:25), और पैर पीछे की ओर होते, जिससे दीवार और आसनों के बीच छोटी जगह ही बचती। यही वह जगह थी जिसमें से झुके हुए लोगों के पीछे से आकर मरियम, लाज़र की बहन, अपने बहुमूल्य खजाने के साथ यीशु के पैरों तक पहुँची।

 

वह अपने साथ शुद्ध जटामासी का आध सेर इत्र लाई, जो एक महँगा इत्र था। यह जटामासी किसी भी अन्य सस्ते गुलमेहंदी से मिलावट किया हुआ नहीं था। जटामासी नेपाल में हिमालयी पहाड़ों के किनारे उगाए जाने वाले एक सुगंधित पौधे, नारडोस्टैचशिस जाटमैंसी से निकाला गया था। मत्ती हमें बताता है (26:7) कि शुद्ध जटामासी को एक संगमरमर के मर्तबान में बंद कर दिया जाता था ताकि उसे सही समय तक के लिए ताज़ा और तेज़ सुगंध वाला रखा जा सके। मरियम ने इस बहुमूल्य इत्र को अपने लिए नहीं बचाया था; स्वयं पर खर्च करने के लिए यह बहुत महंगा था। यहूदा का दिमाग आंकड़ों में चलता था और उसने गणना की कि इस इत्र की कीमत एक साल की मजदूरी के बराबर होती है (पद 5)। यूनानी लेख कहता है कि यह तीन सौ दीनार मूल्य का था, जिसमें एक दीनार एक दिन की मजदूरी होती है, इसलिए कुछ अनुवाद इसे सामान्य श्रमिक व्यक्ति के लिए सालाना मजदूरी कहते हैं।

 

ऐसा संभव है कि मरियम को यह नहीं पता था कि वह इसे क्यों बचा रही थी, लेकिन परमेश्वर के आत्मा से प्रेरित, वह आसन पर झुके बैठे प्रभु के पीछे आई। मुझे यकीन है कि जब मेहमानों ने उसके हाथ में बहुमूल्य संगमरमर के मर्तबान के खजाने को देखा होगा तो वहाँ चुप्पी छा गई होगी। उसने मर्तबान की मुहर तोड़ दी और मरकुस ने लिखा है कि मरियम ने इसे खोल उसे यीशु के सिर पर उंढेल दिया (मरकुस 14: 3)। यदि हम उसका चेहरा देख पाते होते, तो मुझे यकीन है कि उसके चेहरे पर छाए प्रेम और धन्यवाद पर हमारे आँसू छलक आते। जब वह कोमलता से जटामासी को नीचे उसकी आँखों तक पहुँचने से रोकने के लिए पोंछ रही थी, तब क्या खूब घनिष्ठता व्यक्त की गई थी।

 

मत्ती और मरकुस दोनों ने यह दर्ज किया कि महंगा इत्र यीशु के सिर पर डाला गया था, जबकि यहुन्ना हमें बताता है कि मरियम ने इसे प्रभु के चरणों पर डाला था। यहाँ कोई विसंगति नहीं है। अभिषेक उनके सिर और उनके पैरों दोनों पर था। मत्ती और मरकुस यह उल्लेख नहीं करते कि यह मरियम थी जिसने ऐसा किया, संभवतः इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने सुसमाचार को वास्तविक घटना के करीब लिखा था और उस सताव के समय मरियम के नाम की रक्षा करना चाहते थे जो हम जानते हैं पेंतेकूस्त के दिन के बाद कलीसिया के विकास पर टूट पड़ा था। यहुन्ना ने सदी के अंत के करीब अपना सुसमाचार लिखा। कई अनुमान इसे 96 ईसा पश्चात में रखते हैं, इसलिए यह हो सकता है कि यहुन्ना को यहूदी नेतृत्व द्वारा किसी प्रतिशोध से नामों की रक्षा करने की आवश्यकता नहीं थी।

 

मरियम ने यीशु पर भक्ति का कितना सुंदर कार्य अर्पित किया था। वह अपना वो खजाना लाई जिसे उसने बचा रखा था और उसे तोड़, इसे यीशु के सिर पर उंढेला और फिर उसके पैरों पर जाकर बाकी के सुगंधित इत्र को डाला। यह संभव है कि मरियम ने उस दूसरी घटना के बारे में सुना था जब एक पापी स्त्री ने यीशु के एक फरीसी के घर में भोजन करते समय उसका अभिषेक किया था। ऐसा हो सकता है कि मरियम उसी तरह परमेश्वर की आराधना और धन्यवाद करना चाहती थी (लूका 7:36-39)

 

मरियम ने तब कुछ ऐसा किया जो एक आत्म-सम्मानित यहूदी स्त्री कभी नहीं करती; उसने अपने बालों को खोल उन्हें लटकने दिया और अपने लंबे बालों से उसके पैरों पर इत्र को पोंछने लगी। मुझे यकीन है, जब उन्होंने प्रभु के प्रति शुद्ध भक्ति के इस कार्य को देखा होगा, तो कमरे में कोई आवाज नहीं सुनाई दी होगी। पूरा घर महंगे इत्र की सुंदर सुगंध से भर गया था (पद 3)। जब उसने अपने बालों को खोल दिया, तो मरियम ने कुछ सांस्कृतिक मानदंड तोड़ दिए, जिसने कमरे में कुछ लोगों को चकित कर दिया होगा। वह इस भोजन में सम्मानित अतिथि के चरणों को छू रही थी, और न केवल यह, वो उसके पैरों को अपने बालों से, जो कि एक महिला की महिमा और ताज है, पोंछ रही थी (1 कुरिन्थियों 11:15) इस घटना ने सभी सार्वजनिक मर्यादा को दूर-किनार कर दिया था। मरियम का हृदय जो कुछ भी प्रभु ने किया था उसके कारण प्रेम और आभार से भरा था, न केवल लाज़र के लिए, बल्कि उस समय के लिए जो उन्हें कोमलता से पिता के प्रेम के बारे में सिखाने में मसीह ने उन तीनों को दिया था। सराहना, प्रेम और आभार ने बदले में कुछ करने की तीव्र इच्छा को उभारा, यानी बदले में प्रेम करना, उसे उसके प्रेम के प्रतिउत्तर में उसे कुछ देना।

 

यहाँ हम अगापे प्रेम (आत्म-त्यागी प्रेम) के सामर्थ्य को देखते हैं जिसे परमेश्वर ने हमपर न्योछावर किया है। हम उसे इसलिए प्रेम करते हैं क्योंकि उसने पहले हमें प्रेम किया (1 यहुन्ना 4:19) जब हम वास्तव में प्रेम की उस गहराई को देखते हैं जिसे पिता ने हम पर न्योछावर किया है, तब हम परमेश्वर के और उनके प्रेमी बन जाते हैं जिनसे वह प्रेम करता है। जब हम देखते हैं कि परमेश्वर हमसे कैसा प्रेम करता है तो हम अपने शत्रुओं से भी प्रेम करने में सक्षम हो जाते हैं। यह प्रतिक्रिया में हमारे भीतर प्रेम का हृदय रचता है।

 

प्रश्न 2) कल्पना कीजिए कि आप इस रात्रिभोज में अतिथि थे। आपको क्या लगता है कि कुछ मेहमानों ने मरियम के भक्ति के कार्य पर कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त की होगी? आपको क्या लगता है कि मेहमानों की यीशु से उसके कार्यों के प्रतिउत्तर में क्या करने की उम्मीद होगी?

 

एक चोर का हृदय

 

यहुन्ना हमारा ध्यान प्रेम की इस सबसे महान अभिव्यक्ति से हटा उस व्यक्ति की सबसे बड़ी आलोचना की ओर ले जाता है जिसने अपने भीतरी जीवन को परमेश्वर के पुत्र के सामने छल करने के लिए सौंप दिया था। एक व्यक्ति जैसा अपने मन में विचार करता है, वैसा ही वह आप होता है (नीतिवचन 23:7)। यहूदा की आंतरिक प्रेरणा उसके लालच और छल की अभिव्यक्ति में सामने आई। यहूदा ने कहा: यह इत्र तीन सौ दीनार में बेचकर कंगालों को कयों न दिया गया?” (पद 5)। हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि यहूदा गरीबों की चिंता करता था, क्योंकि यहुन्ना को बाद में पता चला था कि यहूदा पैसे की थैली से चोरी कर रहा था, क्योंकि पैसे की थैली उसी के पास रहती थी (पद 6)। जब भी उसे व्यक्तिगत ज़रूरत होती, तो वह शिष्यों के रोज़मर्रा के खर्चे वाले थैले में हाथ मार बैठता था।

 

जब मरियम ने संगमरमर का मर्तबान तोड़ा, तो यहूदा के दिल में जो था, यानी उसकी लालच और असहमति, वह सभी के देखने और सुनने के लिए बाहर आ गई। वो पैसे बनाने के अवसर के खोने पर निराश था। यह संभव है कि वह शिष्यों से इसलिए जुड़ गया था क्योंकि उसे इसमें खुद का नाम बनाने का अवसर दिखा हो, लेकिन अब तीन साल बाद, शायद वह महसूस कर रहा था कि अब जो कुछ भी वह हासिल कर सके उसे लेकर बाहर निकलने का समय था। एक वर्ष की मजदूरी उसके हाथ से निकल गई थी। मत्ती और मरकुस दोनों हमें बतातें हैं कि यीशु ने क्या कहा:

 

6यीशु ने कहा, “उसे छोड़ दो; उसे क्यों सताते हो? उसने तो मेरे साथ भलाई की है। 7कंगाल तुम्हारे साथ सदा रहते हैं, और तुम जब चाहो तब उन से भलाई कर सकते हो; पर मैं तुम्हारे साथ सदा न रहूँगा। 8जो कुछ वह कर सकी, उसने किया; उसने मेरे गाड़े जाने की तैयारी में पहले से मेरी देह पर इत्र मला है। 9मैं तुम से सच कहता हूँ, कि सारे जगत में जहाँ कहीं सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, वहाँ उसके इस काम की चर्चा भी उसके स्मरण में की जाएगी।” 10तब यहूदा इसकरियोती जो बारह में से एक था, महायाजकों के पास गया, कि उसे उनके हाथ पकड़वा दे। (मरकुस 14:6-10; मत्ती 26:10-13 भी देखें)

जीवन में कई बार ऐसे समय आते हैं जब हमें पैसे के साथ व्यावहारिक होना चाहिए, लेकिन प्रेम की अभिव्यक्ति के ऐसे समय भी होनी चाहिए जो कभी-कभी महंगे पड़ते हों। आप मसीह से प्रेम पर कितना मूल्य रखते हैं? अगर मसीह ने सबकुछ दिया है, और ऐसा है भी, तो हम अपने मूल्यवान खजानों सहित, उससे कुछ भी दूर रखने वाले कौन हैं। प्रभु ने प्रेम की इस अभिव्यक्ति को इतना मूल्यवान जाना कि उसने आदेश दिया कि जहाँ भी सुसमाचार का प्रचार किया जाएगा, मसीह के प्रति भक्ति की यह कहानी भी बाँटी जाएगी। लूका भी इस कहानी के बारे में लूका 7:36-50 में लिखता है।

 

प्रश्न 3) क्या आपको लगता है कि यहूदा के उसके पास रहने वाली पैसे की थैली से खुद के लिए पैसा लेने की आदत ने यीशु के विश्वासघात को जन्म दिया होगा? चर्चा करें कि कैसे एक पाप दूसरे की ओर ले जा सकता है।

 

यह कोई संयोग नहीं है कि मत्ती और मरकुस दोनों हमें बताते हैं कि पैसे के इस नुकसान के बाद, यहूदा धार्मिक अभिजात वर्ग के पास गया और उसने धोखे से मसीह को उनके हाथों में सौंपने के लिए उनसे पैसे मांगे (मत्ती 26:14; मरकुस 14:10)। यहूदा के मसीह को बेचने की प्रेरणा इसलिए थी क्योंकि उसे एहसास हो गया था कि अब पैसे की थैली से कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं मिलने वाला है। जब पाप की बात आती है, तो हमें पाप की जड़ों पर कुल्हाड़ी मार उसे अपने अस्तिव के मूल से उखाड़ फेंकने के लिए सावधान रहना चाहिए, क्योंकि जो कुछ भी हम मृत करने के लिए क्रूस तक नहीं लाते, वह हमारे कहने और करने में बाहर आ जाएगा। यहूदा के अंदर जो भी था उसके होंठों से बाहर निकल विश्वासघात में समाप्त हुआ। प्रभु ने इसे इस तरह कहा:

 

भला मनुष्य अपने मन के भले भण्डार से भली बातें निकालता है; और बुरा मनुष्य अपने मन के बुरे भण्डार से बुरी बातें निकालता है; क्योंकि जो मन में भरा है वही उसके मुँह पर आता है(लूका 6:45)

 

प्रभु ने यहूदा की आलोचना और मरियम की तरफदारी में कहा कि मरियम ने इस इत्र को उसके गाड़े जाने के दिन के लिए इस इत्र को बचाया था। यह संभव है कि यीशु ने मरियम, मार्था और लाज़र को बताया था कि वह धार्मिक अभिजात वर्ग और रोमियों के हाथों मरने की योजना बना रहा है और फिर उसे दफनाया जाएगा, लेकिन तीन दिनों के बाद, वह फिर से जी उठेगा। परंपरागत दफनाने में शरीर को धोया और सुगंधित तेल से अभिषेक किया जाता था, यानी बिलकुल वही जो मरियम अब प्रभु पर अर्पण कर रही थी। हम नहीं जानते कि क्या मरियम जानते बूझते उसके दफनाए जाने के लिए मसीह का अभिषेक कर रही थी, या फिर ऐसा करने के लिए समय पूर्व आत्मा ने उसे प्रेरित किया था। यह हो सकता है कि वह जानती थी कि यीशु के साथ होने का यह आखिरी मौका हो सकता है।

 

मुझे 1977 में एक समय याद आया जब मैं हाल ही में मसीही बना था। मैं वर्जीनिया, यू.एस.ए में एक मसीही शिविर में था, जहाँ प्रभु ने मेरा नेतृत्व किया था। परमेश्वर के प्रेम और मसीह ने मुझे छुड़ाने और मुझे अपनी दृष्टि में साफ करने के लिए जो कुछ किया था उसके बारे में मैंने अपने जीवन में पहली बार सुना। जब मैंने सुसमाचार को समझा, तो निमंत्रण पर प्रतिउत्तर दिया और आत्मा के साथ मेरा एक सामर्थी सामना हुआ और मैंने अपना जीवन पूर्णत: मसीह को दे दिया। अंतत:, मुझे वह सब कुछ मिला जिसकी लालसा मेरा खाली हृदय करता था। मेरे जीवन में अदृश्य कड़ी की मेरी प्यास मुझे परमेश्वर की खोज में एशिया के कई देशों में लेकर गई। जिस क्षण मैंने प्रतिउत्तर दिया, मुझे पता था कि मेरा दिल परमेश्वर के सम्मुख स्वतंत्र और साफ था। मेरे पाप से दागदार जीवन का अपराध-बोध मुझपर से हटा दिया गया। मुझे यह पता भी नहीं था कि मैं पाप का भारी बोझ झेल रहा था, लेकिन जब इसे मुझ पर से हटा दिया गया, तो मुझे बिलकुल स्वतंत्र महसूस हुआ। मैं पूर्णत: जीवंत हो गया, ऐसा, जैसा मैं उस पल तक कभी नहीं हुआ था।

 

अगले दिन, मैंने अपने से कम उम्र की प्रभु में एक बहन के बारे में सुना, जिसने मुझे मेरे विश्वास में प्रोत्साहित किया था। उसे एक भविष्यवाणी का शब्द मिला था कि उसे इज़राइल में एक छोटी मिशन यात्रा पर जाना था। किसी ने उसे हवाई जहाज टिकट खरीदने में मदद करने वाले पहले व्यक्ति के रूप में थोड़ी सी राशि का योगदान दिया था। मरियम की तरह, मेरे भीतर, मुझे एक विशेष खजाने की याद आई जिसे मैं इंग्लैंड से अमेरिका लाया था।

 

नौ महीने पहले मैं भारत गया था और अपनी यात्रा की यादगार के रूप में मैंने एक निशानी खरीदी थी, एक चांदी का हाथी जिसमें कीमती मणिकाएं जड़ी हुई थीं। यह सस्ता नहीं था। यह मुझे भारत में कुछ सौ अंग्रेजी पाउंड का पड़ा था। अब मुझे यह विचार आया कि मुझे इस उम्मीद के साथ उसे इस युवा महिला को दे देना चाहिए कि वह यात्रा के टिकट के लिए इसे बेचकर इज़राइल में प्रभु के लिए प्रयोग की जा सकेगी। अपने छोटे भारतीय खजाने से जुदा होने और उसे प्रभु के कार्य में समर्पित करने में मुझे बहुत अच्छा लगा। जब भी हम प्रभु के हाथों में कुछ सौंपते हैं, वह कभी बर्बाद नहीं होता। मुझे बाद में पता चला कि वह उस चांदी के हाथी को बेचकर मिले पैसे से इज़राइल गई, और वह मेरे लिए भी इज़राइल जाने के लिए प्रोत्साहन बनी।

 

अगर मैंने कभी अपना खजाना नहीं दिया होता, तो शायद मैं खुद इज़राइल जाने का मौका चूक गया होता, और मैं उस देश में डेढ़ साल रहने के द्वारा प्राप्त अंतर्दृष्टि और ज्ञान के बहुत से आत्मिक खजाने से चूक गया होता। मैं अपने साथ बहुत से लोगों को उस देश में वापस ले गया हूँ, तो इसकी आशीष तो अभी तक जारी है! बाइबिल हमें अपनी रोटी जल पर डालने को कहती है, ताकि हम बहुत दिनों के बाद उसे वापस पाएं (सभोपदेशक 11:1)पौला सू, अगर आप कभी इसे पढ़ें तो आपका धन्यवाद!

 

प्रश्न 4) यीशु ने कहा कि लेने से अधिक धन्य देना है (प्रेरितों 20:35)। क्या आप मसीह के प्रेम की गवाही के उदाहरण के रूप में किसी गवाही, या भले ही किसी आशीष के किस्से के बारे में सोच सकते हैं, जो घूम-फिर कर देने वाले तक वापस आ जाती हैं?

 

यीशु येरूशलेम में राजा के रूप में आता है

 

12दूसरे दिन बहुत से लोगों ने जो पर्व में आए थे, यह सुनकर, कि यीशु यरूशलेम में आता है 13खजूर की डालियाँ लीं, और उससे भेंट करने को निकले, और पुकारने लगे, “होशाना! धन्य इस्त्राएल का राजा, जो प्रभु के नाम से आता है।” 14जब यीशु को एक गदहे का बच्चा मिला, तो उस पर बैठा। 15जैसा लिखा है, “हे सिरयोन की बेटी, मत डर; देख, तेरा राजा गदहे के बच्चे पर चढ़ा हुआ चला आता है।” 16उसके चेले ये बातें पहिले न समझे थे, परन्तु जब यीशु की महिमा प्रगट हुई, तो उनको स्मरण आया, कि ये बातें उसके विषय में लिखी हुई थीं; और लोगों ने उससे इस प्रकार का व्यवहार किया था। 17तब भीड़ के लोगों ने जो उस समय उसके साथ थे यह गवाही दी कि उसने लाजर को कब्र में से बुलाकर, मरे हुओं में से जिलाया था। 18इसी कारण लोग उससे भेंट करने को आए थे क्योंकि उन्होंने सुना था, कि उसने यह आश्चर्यकर्म दिखाया है। 19तब फरीसियों ने आपस में कहा, “सोचो तो सही कि तुम से कुछ नहीं बन पड़ता। देखो, संसार उसके पीछे हो चला है। (यहुन्ना 12:12-19)

 

यहुन्ना यरूशलेम में इस प्रवेश के समय के बारे में स्पष्ट है। जैसा कि वह पहले वचन में कहता है, मसीह फसह से छ: दिन पहले बैतनिय्याह लौट आता है (यहुन्ना 12:1)। वह यह भी लिखता है कि एक गधे पर सवारी कर यरूशलेम में यादगार प्रवेश अगले दिन हुआ था (यहुन्ना 12:12)। मरकुस 11:11 हमें बताता है कि यरूशलेम में यह आगमन देर दोपहर या शुरुआती शाम के समय हुआ था:

 

और वह यरूशलेम पहुँचकर मन्दिर में आया, और चारों ओर सब वस्तुओं को देखकर बारहों के साथ बैतनिय्याह गया क्योंकि सांझ हो गई थी(मरकुस 11:11)

 

यह भी महत्वपूर्ण लगता है कि यहुन्ना ने लिखा कि यीशु का अपने शिष्यों के साथ अंतिम फसह का भोज यरूशलेम में आयोजित मुख्य फसह से एक दिन पहले आयोजित किया गया था: "फसह के पर्व से पहले" (यहुन्ना 13:1)। यहूदी इतिहासकार, जोसेफस ने लिखा कि, मसीह के समय में, फसह पूर्व संध्या में सूर्यास्त से दो घंटे पहले के समय में दस लाख से अधिक मेमने बलि चढ़ाए जाते थे। यह केवल दो घंटों में बहुत सारे मेमने हैं। इतने कम समय में यह सब कैसे हो सकता है? समय सीमा को समझने में हमारी मदद करने के लिए, जॉन मैकआर्थर अपनी पुस्तक द मर्डर ऑफ जीसस में फसह के समय के बारे में लिखते हैं:

 

यीशु के दिनों के यहूदियों के पंचांग की गणना करने के दो अलग तरीके थे, और इससे समस्या को कम करने में मदद मिली। फरीसियों, और साथ ही साथ गलील के यहूदी और इज़राइल के उत्तरी जिलों के लोग सूर्योदय से सूर्योदय तक अपने दिन गिनते थे। लेकिन सदूकी, और यरूशलेम और आसपास के जिलों के लोग दिन की गणना सूर्यास्त से सूर्यास्त तक करते थे। इसका अर्थ यह है कि एक गलीली के लिए 14 नीसान [फसह] गुरुवार को पड़ा, जबकि यरूशलेम के निवासियों के लिए 14 नीसान शुक्रवार को पड़ा। (कालक्रम में वह मोड़ समझाता है कि यीशु और उसके शिष्यों, सभी गलीलियों ने गुरुवार की शाम को ऊपरी कक्ष में फसह का भोजन खाया, फिर भी यहुन्ना 18:28 में लिखा है कि यहूदी अग्वों और यरूशलेम के सभी निवासियों ने अगले दिन जब यीशु प्रेटोरियम में पिलातुस के सामने उपस्थित हुआ था, तब तक फसह नहीं मनाया था। यह इसे भी समझाता है कि यूहन्ना 19:14 इस ओर क्यों इशारा करता है कि यीशु का परीक्षण और क्रूस पर चढ़ाया जाना फसह की तैयारी के दिन हुआ था।)

 

मैं यहुन्ना के सुसमाचार में समय के बारे में इस बिंदु पर क्यों समय बिता रहा हूँ? समय इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि फसह के मेमने को बलि चढ़ाने से चार दिन पहले फसह तैयार करने वाले घर में लाया जाना था:

3....इसी महीने के दसवें दिन को तुम अपने अपने पितरों के घरानों के अनुसार, घराने पीछे एक एक मेम्ना ले रखो। 4और यदि किसी के घराने में एक मेम्ने के खाने के लिये मनुष्य कम हों, तो वह अपने सब से निकट रहनेवाले पड़ोसी के साथ प्राणियों की गिनती के अनुसार एक मेम्ना ले रखे; और तुम हर एक के खाने के अनुसार मेम्ने का हिसाब करना। 5तुम्हारा मेम्ना निर्दौष और पहिले वर्ष का नर हो, और उसे चाहे भेड़ों में से लेना चाहे बकरियों में से। 6और इस महीने के चौदहवें दिन तक उसे रख छोड़ना, और उस दिन गोधूलि के समय इज़राइल की सारी मण्डली के लोग उसे बलि करें(निर्गमन 12:3-6)

 

मेमना एक वर्ष का होना चाहिए था (निर्गमन 12:5) और फसह के बलिदान से चार दिन पहले से उसकी जाँच की जानी थी (पद 3)। प्रभु यीशु ने फसह के चार दिन पहले यरूशलेम में प्रवेश करके इस फसह के मेमने की आवश्यकता को विस्तार से पूर्ण किया ताकि वह नीसान के चौदहवें दिन से चार दिन पहले जाँचा जा सके।

 

कल्पना कीजिए कि प्रत्येक इजराइली परिवार के लिए चार दिनों तक मेमने का ख्याल रखना कैसा होगा। बच्चे भी मेमने से जुड़ाव महसूस करना शुरू कर सकते हैं। चार दिनों के घनिष्ठ निरीक्षण और इस छोटे मेमने का ख्याल रखने के बाद, फिर उस छोटे मेमने को 14 नीसान की शाम को उनमें से प्रत्येक के लिए एक विकल्प के रूप में उसका लहू बहा देना दिल तोड़ देने वाला होता होगा। परमेश्वर केवल निर्दोष और निष्कलंक मेमना स्वीकार करता, यानी एक ऐसा मेमना जिसकी सम्पूर्णता में बारीकी से जाँच की गई हो। उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ती थी। प्रभु यीशु ने इस वर्णन को हर तरह से पूरा किया। वह हमारा फसह का मेमना है।

 

दानिय्येल की पुस्तक में एक भविष्यवाणी थी कि, यरूशलेम का पुनर्निर्माण करने की घोषणा से मसीहा (मसीहा का अर्थ "अभिषिक्त") के आने तक, उनहत्तर सप्ताह या 173,880 दिन होंगे।

 

यह जान और समझ ले, कि यरूशलेम के फिर बसाने की आज्ञा के निकलने से लेकर अभिषिक्त प्रधान के समय तक सात सप्ताह बीतेंगे। फिर बासठ सप्ताहों के बीतने पर चौक और खाई समेत वह नगर कष्ट के समय में फिर बसाया जाएगा। (दानिय्येल 9:25)

 

मेरे मुकाबले होशियार लोगों ने बैठकर अनुमान लगाया है कि उक्त भविष्यवाणी को सटीकता से पूरी करते हुए यरूशलेम में पुनर्निर्माण के आदेश के ठीक 173,880 दिनों बाद यीशु ने गधे पर यरूशलेम में प्रवेश किया। जिस दिन यीशु ने एक गधे पर यरूशलेम में प्रवेश किया वह वही दिन था जिसकी भविष्यवाणी भविष्यवक्ता दानिय्येल ने की थी। मुझे यकीन है कि सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग, महायाजक, फरीसियों, सदूकियों, शास्त्रियों और शायद सड़क पर साधारण रोज़मर्रा के लोगों के बीच भी ऐसे बुद्धिमान लोग थे, जो इस भविष्यवाणी के बारे में पूर्णत: जानते थे।

 

जब यीशु ने बैतनिय्याह छोड़ा, तो उसने जानबूझकर एक गधे पर यरूशलेम में प्रवेश किया। भले ही उसके शिष्य इसके बारे में तब तक अवगत न थे, वह जानता था कि पवित्रशास्त्र को पूरा किया जाना था (यहुन्ना 12:16)

 

हे सिय्योन बहुत ही मगन हो! हे यरूशलेम जयजयकार कर! क्योंकि तेरा राजा तेरे पास आएगा; वह धर्मी और उद्धार पाया हुआ है, वह दीन है, और गदहे पर वरन गदही के बच्चे पर चढ़ा हुआ आएगा। (जकर्याह 9:9)

 

इज़राइल का राजा विजय के एक सफेद घोड़े पर सवारी कर नहीं आया, लेकिन बोझ के नम्र जानवर पर, जैसा कि शास्त्रों ने भविष्यवाणी की थी। एक बड़ी भीड़ थी जो पर्व के लिए यरूशलेम में आई थी लेकिन वह जैतून के पर्वत से यरूशलेम की ओर उतरा तो उन्होंने शहर छोड़कर उसका स्वागत किया। जिन लोगों ने उसकी सवारी के दौरान शिष्यों की भावनाओं को शांत करने की कोशिश की; उन्होंने कहा, "हे गुरू अपने चेलों को डांट।उसने उत्तर दिया, “मैं तुमसे कहता हूँ, यदि ये चुप रहें, तो पत्थर चिल्ला उठेंगे।(लूका 19:39-40) मसीहा का स्वागत करने वाले लोगों की संख्या इतनी विशाल थी कि फरीसियों ने एक-दूसरे से कहा, सोचो तो सही कि तुम से कुछ नहीं बन पड़ता। देखो, संसार उसके पीछे हो चला है।” (यहुन्ना 12:19)

 

हमारे लिए यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यीशु ने मरियम को बहुमूल्य इत्र से अभिषेक करने के लिए फटकारा नहीं था, और न ही उसने स्वागत करने वाली भीड़ को उसकी स्तुति करने के लिए फटकारा। दोनों उदाहरणों में, हमारे पास पवित्रशास्त्र में दर्ज प्रभु के लिए भक्ति और आराधना के कार्य हैं, और इस तरह, उनकी भक्ति हर समय याद की जाती है। क्या आप मानते हैं कि प्रभु आपके स्तुति के आपके शब्दों, भक्ति के आँसुओं को याद रखता है? यह प्रभु के तक स्तुति के बलिदान के रूप में चढ़ाए जाते हैं। वह स्तुति और भक्ति के आपको शब्दों को संजोता है, खासतौर से उस समय जब हम जीवन के प्रश्नों के साथ जूझते हैं, अर्थात तब जब हम अपनी कठिनाइयों के बीच में उसकी स्तुति करना चुनते हैं।

 

जब हम आज अपने अध्ययन का समापन करते हैं, मुझे आपको इस प्रश्न के साथ छोड़ने दें: आप मसीह के प्रति अपनी आराधना और भक्ति को कैसे व्यक्त करेंगे?

 

प्रार्थना: पिता, कृपया हमें अपने खजानों को तेरी महिमा के लिए समर्पित कर, मरियम की तरह हमेशा आराधना करने का हृदय दे। होने दे कि हम तेरे पुत्र को ग्रहण कर सकें और जब वह हमारे पास आए तो हम उसके लिए तैयार रहें। अमीन।

 

कीथ थॉमस

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