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22. Jesus Raises Lazarus from the Dead

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22. यीशु ने लाज़र को जिलाया

वैकल्पिक शुरुआती प्रश्न: आपके द्वारा अनुभव की गई अब तक की सबसे बुरी दुर्गन्ध क्या है? दुर्गन्ध का कारण क्या था, और आपने इसका सामना कैसे किया?

 

परमेश्वर जो अपने लोगों के साथ समानुभूति रखते हैं

 

लाज़र के जिलाए जाने की कहानी में, हम अपने मित्रों संग मृत्यु की कड़वाहट से सामना करते हुए प्रभु यीशु द्वारा अनुभव किए गए दर्द की दिल को झकझोड़ देने वाली तस्वीर देखते हैं। जिस खंड का हम आज अध्यन कर रहे हैं, उसमें हमें मसीह की मानवता में प्रदर्शित उसकी भावनाओं की एक झलक दी गई है। पूरी तरह से मनुष्य होते हुए, परमेश्वर की सामर्थ्य का सबसे चमत्कारी प्रदर्शन करते हुए हम उसे मृत्यु पर प्रभुत्व करते देखते हैं। हमारे पिछले अध्ययन में, हमने उन बातों को देखा जो यीशु को मार्था, मरियम और मृत लाज़र के पास वापस लेकर आयीं। मार्था, मरियम और कब्र पर शोक करने वालों के रोने पर यीशु गहरी भावनाओं से द्रवित हो गया;

 

36तब यहूदी कहने लगे, “देखो, वह उससे कैसी प्रीति रखता था।” 37परन्तु उन में से कितनों ने कहा, “क्या यह जिसने अन्धे की आँखें खोली, यह भी न कर सका कि यह मनुष्य न मरता?” 38यीशु मन में फिर बहुत ही उदास होकर कब्र पर आया, वह एक गुफा थी, और एक पत्थर उस पर धरा था। 39 यीशु ने कहा; “पत्थर को उठाओ”; उस मरे हुए की बहिन मारथा उससे कहने लगी, “हे प्रभु, उसमें से अब तो दुर्गंध आती है क्योंकि उसे मरे चार दिन हो गए।” 40यीशु ने उस से कहा, क्या मैंने तुझसे न कहा कि यदि तू विश्वास करेगी, तो परमेश्वर की महिमा को देखेगी।” 41तब उन्होंने उस पत्थर को हटाया, फिर यीशु ने आँखें उठाकर कहा, “हे पिता, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि तू ने मेरी सुन ली है। 42और मैं जानता था, कि तू सदा मेरी सुनता है, परन्तु जो भीड़ आस पास खड़ी है, उनके कारण मैंने यह कहा, जिससे कि वे विश्वास करें, कि तू ने मुझे भेजा है।” 43यह कहकर उस ने बड़े शब्द से पुकारा, “हे लाज़र, निकल आ।” 44जो मर गया था, वह कफन से हाथ पाँव बन्धे हुए निकल आया और उसका मुँह अंगोछे से लिपटा हुआ था। यीशु ने उनसे कहा, “उसे खोलकर जाने दो।” 45तब जो यहूदी मरियम के पास आए थे, और उसका यह काम देखा था, उनमें से बहुतों ने उस पर विश्वास किया। (यहुन्ना 11:36-45)

 

अड़तीस वचन में, यीशु फिर से गहराई से द्रवित हुआ था। यहुन्ना इस बात पर बल देता है कि उसके साथ कब्र पर उपस्थित हर व्यक्ति की गहरी भावनाओं ने यीशु का हृदय छुआ और वह बहुत उदास हुआ। यहुन्ना हमें दूसरी बार क्यों बताता है कि वह बहुत उदास हुआ था? मुझे लगता है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि उसने उस दिन मसीह में कुछ ऐसा देखा था जिस पर वह ध्यान दिलाए बिना जाने नहीं दे सका और वो था मसीह के हृदय का उसके आस-पास एकत्रित मित्रों के दर्द से छू जाना। यीशु सिसक-सिसक कर रोने लगा। यहाँ हम इस संसार के किसी अन्य तथाकथित देवता से कुछ अलग देखते हैं। यह परमेश्वर जिसे हम पवित्रशास्त्र में देखते हैं, अपनी सृष्टि से समानुभूति रखता है। समानुभूति रखने वाला व्यक्ति दूसरे की भावनाओं को समझता और साझा करता है। बाइबिल का परमेश्वर वह महसूस करता है जो हम महसूस करते हैं, यानी वह चीजें जो हमें दर्द देती हैं, उनके हृदय को छूती है। यशायाह भविष्यद्वक्ता ने उसके बारे में लिखा, "निश्चय उसने हमारे रोगों को सह लिया और हमारे ही दु:खों को उठा लिया (यशायाह 53: 4) इब्रानियों का लेखक यीशु के हमारा महायाजक होने के बारे में बात करते हुए लिखता है:

 

क्योंकि हमारा ऐसा महायाजक नहीं, जो हमारी निर्बलताओं में हमारे साथ दुखी न हो सके; वरन वह सब बातों में हमारी नाई परखा तो गया, तौभी निष्पाप निकला। (इब्रानियों 4:15)

 

यीशु अपने लोगों का दर्द महसूस करता है। किंग जेम्स बाइबिल इसका इस तरह से अनुवाद करती है "आत्मा में करहया" (पद 33, 38)। उसने अपनी सृष्टि के पतन के परिणामों के कारण अपने लोगों के करहाने के दर्द को महसूस किया। मत्ती हमें यीशु की इस चंगाई के बारे में इस तरह और बताता है : "ताकि जो वचन यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था वह पूरा हो, कि उसने आप हमारी दुर्बलताओं को ले लिया और हमारी बीमारियों को उठा लिया।" (मत्ती 8:17)मत्ती यह कह रहा है कि मसीह को उन लोगों का दर्द महसूस हुआ जो पीड़ा में थे, और उनकी पीड़ा ने उसे छुआ या गहराई से "छेदा"। आइए एक और उदाहरण देखें : जब एक स्त्री ने जिसे लहू बहने का रोग था, भीड़ में यीशु तक पहुँच कर उसके वस्त्र के आँचल को छुआ, तो यीशु तुरंत रुका और कहा, "किस ने मुझे छूआ है, क्योंकि मैंने यह जान लिया है कि मुझ में से सामर्थ्य निकली है?" (यहुन्ना 8:46)। प्रभु द्वारा एक आलौकिक अदला-बदली हुई, उसने उसकी बीमारी ले ली, और परिणामस्वरूप उस में से सामर्थ्य निकली। उसे लेने से पहले उसने बीमारी का बोझ महसूस किया। यह धारणा गतसमनी के बगीचे में जो हुआ उसके समान ही है, जब यीशु, जिसने कभी पाप नहीं किया था और जो हर तरह से पवित्र था, सभी मनुष्यों के पाप, अपराध और शर्म को क्रूस पर ले जाने के विचार से विकर्षित हुआ (लूका 22:42)

 

जब शाऊल, वह धार्मिक कट्टरपंथी जो प्रेरित पौलुस बना, दमिश्क के मार्ग पर मसीहियों को सताने और उन्हें जेल में फेंकने के लिए जा रहा था, तो प्रभु यीशु उसके सामने सड़क पर प्रकट हुआ। उसने शाऊल से कहा, "हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है? पैने पर लात मारना तेरे लिये कठिन है" (प्रेरितों 26:14)। शाऊल को यह नहीं पता था कि यीशु; मनुष्य के रूप में परमेश्वर, भी वह महसूस करता था जो उसके लोग महसूस करते हैं। प्रभु ने उससे कहा, "तू मुझे क्यों सताता है?" शाऊल मसीहियों को अंधाधुंध सता रहा था, लेकिन यह नहीं समझता था कि यह वास्तव में प्रभु के लोग थे! प्रभु ने शाऊल को यह स्पष्ट किया कि वह अपने लोगों के साथ समानुभूति रखता है और वह वही महसूस करता है जो वो महसूस करते हैं। प्रभु शाऊल के हृदय को दोषसिद्धि के साथ उकसा रहा था, जैसे कि जब उसने स्तिफुनुस, सबसे पहले शहीद (प्रेरितों 7:57-60) की मौत देखी, लेकिन शाऊल स्तीफुनुस में उस भक्ति से दोष-भाव का एहसास करने के बाद भी जो स्वयं उसमें नहीं थी, आगे बढ़ता चला गया। हमारा मल्लयुद्ध और दृढ़ विश्वास के खिलाफ विरोध (पैने पर लात मारना) केवल हमारे लिए नुकसानदायक है। प्रभु ने अपनी दया में शाऊल (पौलुस) को दिखाया कि शाऊल परमेश्वर के बुलाए गए लोगों, कलीसिया के साथ क्या कर रहा था।

 

प्रश्न 1) क्या आप परमेश्वर को एक ऊंचे न्यायाधीश के रूप में देखते हैं, या क्या आप कल्पना करते हैं कि वह आपके दर्द से गहराई से प्रभावित होता है? क्या आप एक ऐसा समय याद कर सकते हैं जब आप शोकाकुल थे? मसीह आपके दर्द में प्रवेश करता है, इस बारे में सोचकर आपको कैसा लगता है?

 

लाज़र की कब्र

 

यरूशलेम और आसपास के इलाकों का शहर यहूदिया के पहाड़ी क्षेत्र पर बना है। यह ये कठिनाई प्रस्तुत करती है कि कब्र के स्थानों के लिए मिट्टी की गहराई अपर्याप्त है। जो लोग संभ्रांत थे उन्हें चट्टान से काटकर बनाई हुई गुफाओं में दफनाया जाता था। लाज़र की कब्र भी ऐसी ही थी। कब्र या गुफा के प्रवेश द्वार में एक सिक्के के आकार का मोटा-छिद्रित पत्थर होता था, जो कि बैलगाड़ी के एक बड़े चक्के के समान था। यह अक्सर सैकड़ों किलो भारी होता था, जैसा यीशु की कब्र पर था। जब मरियम मगदलीनी, याकूब की माता मरियम, और सलोमी पुनरुत्थान की सुबह यीशु की कब्र पर आईं, तो वे घबराए हुए थे कि वह तीनों उसके आकार और वजन के कारण पत्थर को हटाने के लिए पर्याप्त ताकतवर नहीं होंगे (मरकुस 16:3)। कब्र के प्रवेश द्वार के नीचे काटकर एक खांचा बनता था, और प्रवेश स्थान को बंद करने के लिए उस स्थान पर उस पत्थर के दरवाज़े को लुढ़काया जाता। अक्सर, पूरे परिवार की हड्डियाँ एक ही गुफा में होतीं।

 

उस समय इजराइली लोग मिस्र की शव के लेपन की तकनीकों का उपयोग नहीं करते थे; शरीरों को विघटित होने दिया जाता था। लेकिन वह शरीर को सुगंधित मसालों में लपेटते थे। अपनी पुस्तक द रिएलिटी ऑफ द रेज़रेकशन में, मेरिल टेनी हमें दफनाए जाने की पारंपरिक प्रक्रिया के बारे में बताते हैं :

 

शरीर को आम तौर पर धोया और सीधा किया जाता था और फिर उसे एक फीट चौड़ी कपड़े की पट्टियों से बगलों से लेकर टखनों तक कसकर बाँध दिया जाता था। अक्सर चिपचिपे सुगंधित मसालों का लेप लपेटों की तह के बीच लगाया जाता था। यह आंशिक रूप से कपड़े के लपेटने के ठोस चादर बनने में सीमेंट के रूप में चिपकाने के लिए मदद करते थे। जब शरीर को इस तरह से बाँध दिया जाता था, तब कपड़े के एक वर्ग टुकड़े को सिर के चारों ओर लपेट कर ठोड़ी के नीचे बाँधा जाता था ताकि निचला जबड़ा नीचे न ढलके।

 

निकुदिमुस और अरिमतिया के यूसुफ द्वारा यीशु के शरीर के चारों ओर लगाए मसालों का वजन चौंतीस किलो था (यहुन्ना 19:39)। यदि यह सामान्य था, और वचन के अनुसार ऐसा था, तो फिर लाज़र के लिए दरवाजे तक पहुँचना तो दूर, उठाना भी मुश्किल होनी चाहिए था। वह कब्र के कपड़ों बंधा था। इससे हमारी भी बहुत समानता है। भले ही हमें नया जीवन प्राप्त हुआ है, कभी-कभी हम उन चीज़ों से बंधे होते हैं जो हमें पाप में हमारे पुराने मृत जीवन में रखते हैं। हमें अपने पिछले जीवन में चीजों के वजन से छुटकारा पाने और स्वतंत्र होने की आवश्यकता है, वह आदतें जो हमें हमारे पुराने जीवन में बाँधे रखती हैं।

 

यीशु ने शिष्यों और वहाँ इकट्ठे हुए लोगों को प्रवेश द्वार से पत्थर हटाने की आज्ञा दी। शायद इसकी असंभवता पर डरते हुए, मार्था ने शिकायत की कि मृत्यु की गंध असहनीय होगी क्योंकि लाज़र की मृत्यु को चार दिन हो चुके थे। मैं यह जानने को उत्सुक हूँ कि क्या मकबरे से गंध रही होगी? दरवाज़ा पूर्णत: वायुरोधी बंद नहीं होगा; यह तो केवल एक चट्टान से बना दरवाजा था। हमें स्वयं से पूछना चाहिए कि आश्चर्य-कर्म किस समय हुआ था? मुझे लगता है कि जब वे पत्थर पीछे धकेल रहे थे, तो कब्र से मृत्यु की गंध रही थी। लाज़र के वापस जी उठने के बाद, इस आश्चर्य-कर्म को देखने के लिए वहाँ मौजूद कई यहूदियों ने उसपर विश्वास किया था। उस प्रकार के साक्ष्य को अनदेखा करना मुश्किल होगा। प्रभु ने लाज़र को ज़ोर से आवाज़ लगा यह कहने से पहले “हे लाज़र, निकल आ”, स्वर्ग की ओर देखा और अपने पिता से प्रार्थना की। मसीह ने लाज़र को नाम से बुलाया; अन्यथा, आस-पास में मृत सभी मृतक जी उठते!

 

आइए देखें कि यीशु के दो शब्द कहने के बाद लाज़र के शरीर के साथ क्या हुआ। कुछ पल बीतते ही, जबकि उसके हृदय ने नया जीवन और शक्ति प्राप्त कर उसके शारीर में ताज़ा खून स्पंदित करना शुरू कर दिया, लाज़र का प्राण उसके शरीर में लौट आया। वह जो मर चुका था और विघटित हो रहा था, उसे अचानक जीवन और ऊर्जा प्राप्त हुई। मृत्यु के दो से छह घंटे के बीच हड्डियों और मासपेशियों का अकड़ना शुरू हो गया होगा, लेकिन अब उसके अंग फिर से हिलने-डुलने शुरू हो गए। जीवन के प्रभु की आवाज़ पर, शैतान को लाज़र को मृत्यु के डंक से मुक्त करना पड़ा।

 

क्या आप उस पल में कब्र के चारों ओर भीड़ को देखने की कल्पना कर सकते हैं? यह हमारे लिए आसान है क्योंकि हम विवरण जानते हैं। हम पहले से ही इस कहानी के अंत को जानते हैं। लेकिन, उनके लिए जब उन्होंने यीशु के आदेश को सुना, मुझे यकीन है कि उन लोगों ने जिन्हें मृत्यु की गंध आ रही थी, लाज़र के उस कब्र से जीवित बाहर आने के विचार पर उपहास किया होगा। इसमें कितना समय लगा? लाज़र के द्वार पर खड़े होने से पहले क्या हम कुछ ही पल या दो से तीन मिनट की चुप्पी की बात कर रहे हैं? समय के उस अंतराल में, क्या मृत्यु की गंध स्पष्टता से गायब हो गई? जब हम उन लोगों के चेहरों को देखते हैं जिन्होंने यीशु के शक्तिशाली शब्दों को सुना, तो आप क्या सोचते हैं कि मरियम, मार्था और उनके साथ शोक करने वालों के विचार क्या थे?

 

अभी भी कब्र के कपड़े में लिपटा, लाज़र कब्र के प्रवेश द्वार पर दिखाई दिया। पट्टियों में बंधे होने के कारण चलना तो दूर, लाज़र का खड़ा होना भी मुश्किल होगा।

 

प्रश्न 2) स्वयं को शोक करने वालों की भीड़ में होने की कल्पना करें। उन लोगों की प्रतिक्रिया का वर्णन करें जो मसीह को लाज़र को बाहर आने का आदेश देते और फिर प्रवेश द्वार पर लाज़र को देखते हैं। इस पल में आप यीशु के बारे में सबसे ज्यादा क्या पसंद करते हैं?

एक बात निश्चित है: जब लाज़र दरवाजे पर खड़ा था, तो आश्चर्य की चिल्लाहट और खुशी की चीखें सुनाई दी होंगी। मृत्यु पर विजय प्राप्त की गई थी! हमारे पास एक उद्धारकर्ता है जो मृत्यु और कब्र पर विजय प्राप्त करता है! यीशु हमेशा व्यवहारिकता था और है, क्योंकि जैसे ही लाज़र कब्र के प्रवेश द्वार पर दिखाई दिया, उसने वहाँ हक्के-बक्के खड़े लोगों से कहा “उसे खोलकर जाने दो” (पद 44)। मसीह जो कुछ भी करता है उसमें बहुत व्यवहारिकता है, जैसा हम पवित्रशास्त्र में अन्य जगह देखते हैं कि यीशु अराधनालय के सरदार याईर की पुत्री को मृत्यु से जागने के तुरंत बाद, उसे कुछ खाने के लिए देने को कहता है (लूका 8:55)

 

मरे हुओं में से आने वाला लाज़र हमारे पुनरुत्थान की एक तस्वीर है, क्योंकि जब यीशु अपनी कलीसिया के लिए आता है, तो वह एक तेज़ पुकार के साथ आएगा:

 

क्योंकि प्रभु आप ही स्वर्ग से उतरेगा; उस समय ललकार, और प्रधान दूत का शब्द सुनाई देगा, और परमेश्वर की तुरही फूंकी जाएगी, और जो मसीह में मरे हैं, वे पहले जी उठेंगे। (1 थिस. 4:16)

 

लाज़र का उठना उस दिन के समान नहीं है जब मसीह अपनी कलीसिया के लिए आएगा, क्योंकि लाज़र को एक अविनाशी शरीर नहीं दिया गया था और उसे समय आने पर मरना पड़ा था, लेकिन परमेश्वर ने इस आश्चर्य-कर्म का उपयोग हमें यह याद दिलाने के लिए किया कि एक समय आ रहा है, जब हम जो उससे प्रेम करते हैं, उसकी आवाज सुनेंगे। उस समय, हमारा आत्मा जो प्रभु के साथ है, एक नए, पुन: स्थापित, गौरवशाली और शक्तिशाली शरीर में वापस लौटेगा (1 कुरिंथियों 15:43)। हम हवा में परमेश्वर से मिलने के लिए अपनी कब्रों में से बाहर आएंगे (1 थिस्सलुनीकियों 4:16-17)

 

मेरी इच्छा है कि काश यहुन्ना ने बाद में मार्था के घर पर हुए उत्सव के बारे में हमें और बताया होता, क्या आप ऐसा नहीं चाहते? अंतिम संस्कार के बाद की बैठक और लाज़र के जीवन के बारे में याद करने के बजाए, वे मरने और स्वर्ग में परमेश्वर के साथ होने के उसके अनुभव को उत्सुकता से सुन रहे होंगे। मेरी इच्छा है कि काश उस उत्सव में मैं “दीवार पर मक्खी” की तरह होता! मुझे उनकी बातें सुनना और रोते हुए अपने भाई को गले लगाते हुए बहनों की राहत और प्रसन्नता को देखना बहुत भाता, उस समय से लेकर जब उन्होंने सोचा कि वह उसे हमेशा के लिए खो चुकीं हैं तब तक के वाकये को याद करते हुए जब यीशु ने वह आदेश दिया। मुझे यकीन है कि जब वे इस आश्चर्य-कर्म की घटना के बारे में सोचते होंगे, यह प्रभु को समर्पित बड़ा स्तुति-प्रशंसा का उत्सव होगा।

 

यीशु को मारने का षड्यंत्र

 

हमेशा ऐसे लोग होंगे जो हमारी खुशी पर पानी फेर देंगे, और यही हम आगे देखते हैं। मसीह का विरोध करने वालों में से कुछ ने धार्मिक अभिजात वर्ग के लिए उस खतरे को देखा जो इस सुंदर आश्चर्य-कर्म ने खड़ा किया था; वे फरीसियों के पास गए और उन्हें बताया कि बैतनिय्याह में क्या हुआ था।

 

46परन्तु उनमें से कितनों ने फरीसियों के पास जाकर यीशु के कामों का समाचार दिया। 47इसपर महायाजकों और फरीसियों ने मुख्य सभा के लोगों को इकट्ठा करके कहा, “हम करते क्या हैं? यह मनुष्य तो बहुत चिन्ह दिखाता है। 48यदि हम उसे यूँ हीं छोड़ दें, तो सब उस पर विश्वास ले आएंगे और रोमी आकर हमारी जगह और जाति दोनों पर अधिकार कर लेंगे।” 49तब उनमें से काइफा नामक एक व्यक्ति ने जो उस वर्ष का महायाजक था, उनसे कहा, “तुम कुछ नहीं जानते। 50और न यह सोचते हो, कि तुम्हारे लिये यह भला है, कि हमारे लोगों के लिये एक मनुष्य मरे, और सारी जाति नाश न हो।” 51यह बात उसने अपनी ओर से न कही, परन्तु उस वर्ष का महायाजक होकर भविष्यद्वणी की, कि यीशु उस जाति के लिये मरेगा। 52और न केवल उस जाति के लिये, वरन इसलिये भी, कि परमेश्वर की तितर बितर सन्तानों को एक कर दे। 53सो उसी दिन से वे उसके मार डालने का षड्यंत्र रचने लगे। 54इसलिये यीशु उस समय से यहूदियों में प्रगट होकर न फिरा; परन्तु वहाँ से जंगल के निकटवर्ती प्रदेश के इफ्राईम नामक एक नगर को चला गया; और अपने चेलों के साथ वहीं रहने लगा। 55और यहूदियों का फसह निकट था, और बहुतेरे लोग फसह से पहले देहात से यरूशलेम को गए कि अपने आप को शुद्ध करें। 56सो वे यीशु को ढूंढ़ने और मन्दिर में खड़े होकर आपस में कहने लगे, “तुम क्या समझते हो? 57क्या वह पर्व में नहीं आएगा?” और महायाजकों और फरीसियों ने भी आज्ञा दे रखी थी, कि यदि कोई यह जाने कि यीशु कहाँ है तो बताए, कि उसे पकड़ लें। (यहुन्ना 11:38-57)

 

जब धार्मिक अभिजात वर्ग ने लाज़र के जी उठने की खबर सुनी, तो महासभा की आपातकालीन बैठक बुलाई गई। महासभा सत्तर पुरुषों की संख्या का अध्यक्षता का धार्मिक समूह था। महायाजक उन सबके उपर होता था, जिससे उनकी संख्या इकहत्तर होती थी। सत्तर पुरुषों की स्थापना मूसा के समय हुई थी। जब मूसा अपने काम से अभिभूत हो गया, तो यहोवा ने मूसा पर से आत्मा के कुछ सामर्थ्य को लिया और इसे इजराइल के बुजुर्गों पर परामर्श और आध्यात्मिक दिशा में मदद करने के लिए रखा (गिनती 11:17)। मसीह के समय तक, यहूदी धर्म और राजनीतिक जीवन के सभी पहलुओं के विषय में कानून बनाते हुए, महासभा अपने महत्व के शिखर तक पहुँच गया था। महासभा फरीसियों और सदूकियों से बनी थी। फरीसी व्यवस्था के प्रति पूर्ण आज्ञाकारिता में अपने जीवन जीने पर ध्यान केंद्रित करते थे, और वह देश की राजनीति में शामिल या उसकी बहुत अधिक परवाह नहीं करते थे, सिवाय जब वह व्यवस्था को बनाए रखने से संबंधित हो। दूसरी ओर, सदूकी कुलीन, अमीर और तीव्र राजनीतिज्ञ थे। सभी याजक सदूकी थे, और वे पुनरुत्थान में विश्वास नहीं करते थे; जबकि फरीसी करते थे।

 

एक निर्णायक क्षण

 

हम नहीं जानते कि सभी सत्तर पुरुष इकट्ठे हुए यह नहीं, लेकिन ऐसे सबूत हैं जो संकेत देते हैं कि जो लोग मसीह के प्रति समानुभूति रखते थे, उन्हें बैठक की सूचना नहीं दी गई थी। सत्तर के करीब बुजुर्गों ने यीशु को लेकर हाल में हुए विकास के बारे में बात करना शुरू किया, क्योंकि वह "निर्णायक क्षण" का सामना कर रहे थे। निर्णायक क्षण का क्या मतलब है? यह हमारे जीवन में एक ऐसा समय है जो परिभाषित करता है कि हम कौन हैं और हम कौन होंगे, यानी एक ऐसी घटना जो बाद में होने वाली सभी संबंधित घटनाओं को निर्धारित करती है। एक निर्णायक क्षण कैसा दिखता है? प्रेरित पतरस के लिए, यह तब था जब उसने यीशु का प्रचार सुना और यीशु ने उसे मछली पकड़ने के लिए अपने जाल छोड़ने के लिए कहा। भले ही उसने शिकायत की कि उसने पूरी रात कोशिश की थी, फिर भी, उसने अपने जाल को छोड़ा और बड़ी मात्रा में मछली पकड़ी। निर्णायक क्षण तब था जब यीशु ने उसे अपने जाल को छोड़ मसीह के पीछे होने के लिए कहा, और तब से पतरस मनुष्यों को पकड़ने वाला हो गया (लूका 5:1-11)

 

मैं अपने जीवन में एक महत्वपूर्ण निर्णायक क्षण याद कर सकता हूँ। मेरे लिए, यह वो समय था जब मैं अपने पिता के साथ उनकी मछली पकड़ने की नाव पर काम कर रहा था, और सरकार ने सभी मछली पकड़ने वाली नौकाओं पर प्रतिबंध लगा दिया था क्योंकि उस वर्ष के लिए पकड़ी जाने वाली मछली का कोटा पूरा हो गया था। मेरे पिता ने फैसला किया कि भले ही उस वर्ष और मछली पकड़ने की इजाजत नहीं थी, वह फिर भी मछली पकड़ेंगे और उसे एक निजी खरीदार को बेच, और अधिक लाभ प्राप्त करेंगे। मैं उस समय में उनके तर्क को समझता हूँ। सरकार के द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों ने मछुआरों के लिए जीविका कमाना बहुत मुश्किल बना दिया था, और कई मछुआरे इसे अनुचित मानते थे। एक मसीही होने के नाते, मैं दो विकल्पों में बंटा था : अपने पिता के साथ अवैध तरीके से मछली पकड़ना जारी रखना, या व्यापार छोड़ अपने जाल से दूर चले जाना। परमेश्वर ने मुझसे वचन से बात की, "मेरे पीछे चले आओ, तो मैं तुम को मनुष्यों के पकड़नेवाले बनाऊंगा" (मत्ती 4:19)। मैंने उस समय वाणिज्यिक मछली पकड़ने को छोड़ने का फैसला किया, और मैं कभी वापस नहीं गया। उस क्षण में किए मेरे फैसले ने मेरा जीवन बदल दिया।

 

निर्णायक क्षण अक्सर नहीं होते, लेकिन उस क्षण में आप कैसे प्रतिक्रिया करते हैं, इस पर निर्भर होता है कि वे आपके जीवन को किस प्रकार बदलते हैं। उस समय महासभा के सामने निर्णायक क्षण इस वर्तमान घटना पर प्रतिक्रिया थी। आस-पास का क्षेत्र लाज़र वाले आश्चर्य-कर्म के बारे में चर्चा कर रहा होगा। शायद, कुछ ऐसे होंगे, जो

एक बार संदेहजनक थे, लेकिन अब आश्वस्त थे कि यीशु वास्तव में मसीहा था। वे इस चमत्कारिक घटना पर कैसी प्रतिक्रिया करेंगे? क्या वे इसे समझाकर अपनी स्थिति को तर्कसंगत बनाएंगे? क्या वे इसे अनदेखा करेंगे और इस "आंदोलन" को नियंत्रित करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे जिसे वे अब खतरनाक मानते हैं?

प्रश्न 3) क्या आप ऐसी घटना के बारे में सोच सकते हैं जिसे आप निर्णायक क्षण के रूप में वर्णित करेंगे जिसने आपके मूल्यों या आपके जीवन को पूरी तरह बदल दिया? इससे आपके जीवन में क्या बदलाव आया?

 

हमने पहले ही देखा है कि महासभा के सामने निर्णायक क्षण वह निर्णय था जिसे अब उन्हें लेना था। हर कोई उनकी ओर देख रहा होगा क्योंकि बहुत से लोग सोच रहे होंगे कि क्या वह (यीशु) वास्तव में मसीहा था, जिसके आने के बारे में पहले से कहा गया था। पहले, धार्मिक अग्वों ने उसे पूरी तरह से खारिज कर दिया था। इस सार्वजनिक अस्वीकृति ने उन लोगों के लिए दुविधा पैदा कर दी होगी जो धार्मिक अग्वों का भरोसे से पालन कर रहे थे। नासरत के यीशु के बारे में उन्हें क्या करना चाहिए? महासभा की चिंता यह थी, कि अगर उन्होंने यीशु को नहीं रोका, तो सभी लोग उसके पास जायेंगे, और इससे उनका अधिकार कमजोर हो जाएगा। वे व्यवस्था को निचोड़ देने वाला अपना आरामदायक और सुखी जीवन खो देंगे, वो व्यवस्था जिसे उन्होंने बनाया था, जिस प्रणाली पर वे समुदाय में अपनी आजीविका और सामाजिक पैठ के लिए निर्भर थे।

 

एक बार फिर, हम यीशु के व्यक्तित्व को लोगों को निर्णय लेने के लिए मजबूर करते देखते हैं जो उनकी अनंतकाल की नियति को प्रभावित करेगा। महायाजक, काइफा ने उन्हें इस हद तक प्रभावित किया कि वे यहूदी लोगों के बीच धार्मिक विभाजन देखने के बजाय, जिससे कि रोमी महासभा के अधिकार छिन जाते, यीशु की हत्या कर दें। अग्वों ने एक ऐसा निर्णय लिया जो उनकी समझ में उनके अस्तित्व के लिए सबसे उत्तम और पूरे यहूदी समुदाय के लिए अच्छा था।

 

51यह बात उसने अपनी ओर से न कही, परन्तु उस वर्ष का महायाजक होकर भविष्यद्वाणी की, कि यीशु उस जाति के लिये मरेगा। 52और न केवल उस जाति के लिये, वरन इसलिये भी, कि परमेश्वर की तितर बितर सन्तानों को एक कर दे। (यहुन्ना 11:51-52)

 

प्रश्न 4) क्या यह भविष्यद्वाणी जो काइफा ने की थी, परमेश्वर की आत्मा से प्रेरित एक सच्ची भविष्यद्वाणी थी? आप क्या सोचते हैं?

 

मुझे भरोसा है कि परमेश्वर का आत्मा सभी भविष्यद्वाणियों को प्रेरित नहीं करता है; अन्यथा, पौलुस कलीसिया को विश्वासियों की देह के बीच बोले गए भविष्यद्वाणियों के शब्द को तोलने या परखने की सलाह क्यों देता :

 

भविष्यद्वक्ताओं में से दो या तीन बोलें, और शेष लोग उन के वचन को परखें। (1 कुरिन्थियों 14:29)

 

बाइबिल के भविष्यद्वक्ताओं ने भी गलतियाँ कीं। जब शमूएल को उसके पुत्रों में से एक को भविष्य के राजा के रूप में अभिषेक करने के लिए यिशै के घर भेजा गया था, तो शमूएल सबसे बड़े और सबसे लम्बे के सामने खड़ा हुआ, और उसने सोचा कि परमेश्वर का अभिषिक्त उसके सामने था। परमेश्वर को उससे बात करनी पड़ी कि एलीआब वह नहीं था जिसे परमेश्वर ने चुना था (1 शमूएल 16:6)। जब राजा दाऊद ने यरूशलेम में परमेश्वर के लिए मंदिर बनाने की इच्छा रखी, तो उसने भविष्यद्वक्ता नातान के साथ अपनी योजनाएं साझा कीं। नातान की प्रतिक्रिया थी, "जो कुछ तेरे मन में हो उसे कर; क्योंकि यहोवा तेरे संग है” (2 शमूएल 5:37) लेकिन परमेश्वर की अन्य योजना थी और रात में उसने नातान से बात की कि वह गलत था और वह दाऊद को यह बताए कि दाऊद का एक पुत्र और उत्तराधिकारी मंदिर का निर्माण करेगा, न कि खुद दाऊद। एक बार फिर, एक भविष्यवक्ता गलत हो गया।

 

फिर, प्रेरितों की पुस्तक में, हमें अगबुस नामक एक भविष्यद्वक्ता के बारे में बताया गया है, जिसने प्रेरित पौलुस को उसके पटके से पकड़ा और उससे उसके हाथ-पैर बांध दिए। उसने कहा, "पवित्र आत्मा यह कहता है, ‘जिस मनुष्य का यह पटका है, उसको यरूशलेम में यहूदी इसी रीति से बान्धेंगे, और अन्यजातियों के हाथ में सौंपेंगे’” (प्रेरितों 21:11)। वह बहुत गलत नहीं था, लेकिन वह रोमि थे, न कि यहूदी, जिन्होंने पौलुस को बाँधा था। यहूदी उसे मारना चाहते थे! मुझे गलत मत समझिए, मैं भविष्यद्वाणी के वरदान में विश्वास करता हूँ, लेकिन मैं यह देखने के लिए कि क्या भविष्यद्वाणी का वचन कुछ ऐसा हो है जिसे परमेश्वर का आत्मा मजबूत करने, प्रोत्साहन, या आराम देने के शब्द के रूप में बोल रहा है (1 कुरिन्थियों 14:3), हमेशा परमेश्वर के वचन का उपयोग करता हूँ।

 

आज हमारे सामने इस उदाहरण में, यह संभव है कि काइफा ने इस भविष्यद्वाणी को एक स्वार्थी मंशा से कहा था। लेकिन, परमेश्वर की संप्रभुता में, उन्होंने इसे भविष्यद्वाणी के रूप में दर्ज होने की अनुमति दी, क्योंकि शत्रु की योजना भी परमेश्वर के अनंत उद्देश्यों को पूर्ण कर रही थी। जब काइफा ने इन शब्दों को कहा, तो शायद वह एक धर्मी व्यक्ति, यीशु, को मारने के कार्य में लोगों का साथ पाने की एक चाल थी। उसने देखा कि कुछ धार्मिक अभिजात वर्ग इस पर विचार कर रहे थे कि जितना अधिक उन्होंने यीशु के कार्यों का विरोध किया, उतना ही ज्यादा ध्यान उसकी ओर जा रहा था : "सोचो तो सही कि तुम से कुछ नहीं बन पड़ता; देखो, संसार उसके पीछे हो चला है!" (यूहन्ना 12:19)। उनके निर्णायक क्षण ने उन्हें या तो उसे स्वीकारने या उसे अस्वीकार करने के लिए मजबूर किया, और उन्होंने मसीह के प्रभुत्व में अपने घुटने झुकाने के बजाय अपना अधिकार, आराम और स्थान रखने का फैसला किया – ऐसे चिन्हों और आश्चर्य-कर्मों के बीच भी जो मसीह की असली पहचान के स्पष्ट साक्ष्य थे।

 

यहुन्ना के अनुसार सुसमाचार और यीशु के जीवन के विद्यार्थी होने के नाते, शायद यह आपके लिए एक निर्णायक क्षण है। मसीह के व्यक्तित्व के विषय में निर्णय लेने के लिए आपको कितने सबूतों की आवश्यकता है? जब आप पवित्र आत्मा के प्रति अपनी प्रतिक्रिया का चुनाव करते हैं, तो क्या यह एक निर्णायक क्षण है? क्या कोई पाप या आदत है जो आपको प्रभु के पीछे चलने से रोक रही है? क्या आप किसी ऐसी चीज़ को नकार देंगे जिसे आप अपने दिल में जानते हैं कि परमेश्वर के सम्मुख यह ठीक नहीं है? आप में से उनके लिए जो इन शब्दों को पढ़ रहे हैं, परमेश्वर का आत्मा कहता है, "यह तुम्हारा दिन है। यह तुम्हारा निर्णायक क्षण है।" यदि आप उसका अनुसरण करना चुनते हैं, तो वह आपको बदलने में मदद करने के लिए आपके साथ रहने का वादा करता है। हमारे सामने आज इस चुनाव की अविश्वसनीय संभावनाएं हैं। हमारे निर्णयों पर हमारा अनंत-काल निर्भर है। पदवी, आराम और सुख के हर उस विचार को छोड़ दें जो आपको सृष्टिकार परमेश्वर के सम्मुख अपने घुटने टेकने से रोकता है। मसीह से अपने पाप क्षमा करने के लिए कहें और उसके साथ चलना शुरू करें। यदि आप पहले से ही यह निर्णय ले चुके हैं, तो यह विचार करने के लिए समय लें कि क्या आपको एक शिष्य के रूप में फलवंत होने से कुछ रोक रहा है। वह आपको उत्तर देगा। इस अध्ययन में, हमने मृतकों से लाज़र को जी उठाने में उसकी सामर्थ्य देखी है। यह वही आत्मा है जो आपको जीवन की नवीनता में लाने के लिए काम करेगा।

 

प्रार्थना : पिता, आपके शब्दों की सामर्थ्य के लिए धन्यवाद। हमें अंधकार से अपने अद्भुत प्रकाश में बुलाने के लिए धन्यवाद। हमें जीवन के निर्णायक क्षणों से अवगत होने में और आपके पवित्र आत्मा को "हाँ" कहने में मदद करें। आमिन।

 

कीथ थॉमस

-मेल: keiththomas7@ groupbiblestudy.com

वेबसाइट: www.groupbiblestudy.com

 

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