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20. Jesus and the Father are One

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20. यीशु और पिता एक हैं

यीशु के स्वयं को अच्छा चरवाहा कहे दो महीने बीत चुके थे (यहुन्ना 10: 1-21)। प्रेरित यहुन्ना अब मंदिर के आँगनों में यीशु और यहूदी अग्वों के बीच एक और टकराव प्रस्तुत करता है। यह स्थापन पर्व या हनुका (पद 22) में हुआ था। इस पर्व की उत्पत्ति का बाइबिल में कोई विवरण नहीं है, लेकिन यह 164 ईसा पूर्व में पुराने और नए नियमों के बीच के मध्यवर्ती वर्षों में हुआ। स्थापन पर्व (हनुका) को यह नाम इसलिए दिया गया था क्योंकि यह मंदिर के पुनर्निर्माण के समय ज्योति के पर्व को स्मरण कराता था जिसे सर्दियों में मनाया जाता है।

 

22यरूशलेम में स्थापन पर्व हुआ, और जाड़े की ऋतु थी। 23और यीशु मन्दिर में सुलैमान के ओसारे में टहल रहा था। 24तब यहूदियों ने उसे आ घेरा और पूछा, “तू हमारे मन को कब तक दुविधा में रखेगा? यदि तू मसीह है, तो हम से साफ कह दे।” 25यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैंने तुमसे कह दिया, और तुम प्रतीति करते ही नहीं, जो काम मैं अपने पिता के नाम से करता हूँ वे ही मेरे गवाह हैं। 26परन्तु तुम इसलिये प्रतीति नहीं करते, कि मेरी भेड़ों में से नहीं हो। 27मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं, और मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे-पीछे चलती हैं। 28और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ, और वे कभी नाश नहीं होंगी, और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन न लेगा। 29मेरा पिता, जिसने उन्हें मुझको दिया है, सबसे बड़ा है, और कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता। 30मैं और पिता एक हैं।” 31यहूदियों ने उस पर पथराव करने को फिर पत्थर उठाए। 32इस पर यीशु ने उनसे कहा, “मैंने तुम्हें अपने पिता की ओर से बहुत से भले काम दिखाए हैं, उनमें से किस काम के लिये तुम मुझ पर पथराव करते हो?” 33यहूदियों ने उसको उत्तर दिया, “भले काम के लिये हम तुझ पर पथराव नहीं करते, परन्तु परमेश्वर की निन्दा के कारण और इसलिये कि तू मनुष्य होकर अपने आप को परमेश्वर बनाता है।” (यहुन्ना 10:22-33)

 

क्या यीशु मसीह है?

 

भूमध्य सागर स्तर से 2,500 फीट ऊपर, दिसंबर माह यरूशलेम में साल का ठंडा समय है। हर यहूदी इस तथ्य से बहुत परिचित है कि हनुका सर्दियों के समय में है, इसलिए यह कहना थोड़ा अनावश्यक लगता है। यह हो सकता है कि यहुन्ना उन गैर-यहूदियों के लिए इसका उल्लेख करता है जो हनुका के समय से परिचित नहीं होंगे, या यह हो सकता है कि यहुन्ना हमें यह बताकर पृष्ठभूमि स्थापित करना चाहता था कि वहाँ ठंड थी। सर्दियों के महीनों में यरूशलेम में कभी-कभी बर्फ पड़ती है। (एक बार मैंने जैतून के पहाड़ पर मंदिर के टापू से कुछ सौ गज की दूरी पर बर्फ के गोले बनाकर औरों पर गोले फैंक खेल खेला था!)

 

इस टकराव की पृष्ठभूमि की कल्पना करें। आत्मिक वातावरण में अन्धकार था, और हवा में यीशु के लिए एक ठंडी उदासीनता थी। ऐसा लगता है कि यीशु के खिलाफ इस नए हमले को उसके सुलेमान के ओसारे में सुबह के समय वचन की शिक्षा देने के बाद शुरू किया गया था (पद 23)। यह ओसारा मंदिर टापू के पूर्वी तरफ था। यह नियमित अंतराल पर बने पच्चीस हाथ (करीब अड़तीस फीट ऊँचे) स्तंभों की एक श्रृंखला थी जो बारिश या बर्फ से लोगों की रक्षा करने वाली छत का बोझ सहने के लिए बने थे। रोमी-यहूदी इतिहासकार जोसेफस हमें बताता है कि प्रत्येक स्तंभ एक पूरे पत्थर का था और वह पत्थर सफेद संगमरमर का था। छतों को देवदार से सजाया गया था और उसपर खूबसूरत नक्काशी थी।

 

यीशु अक्सर इस खूबसूरत छत वाले ओसारे के नीचे पढ़ाता था, और यह वही जगह भी थी जहाँ सुंदर फाटक पर पतरस और यहुन्ना की प्रार्थना के बाद वह व्यक्ति चंगा हो गया था। (प्रेरितों 3:8-11)। यह वह जगह भी थी जहाँ शुरुआती विश्वासी पेंतेकूस्त के दिन नए विश्वासियों पर आत्मा के उतरने के बाद एक साथ मिलते थे (प्रेरितों 5:12)

 

यहूदी धार्मिक अग्वों ने उसके चारों ओर इकट्ठा हो उसका मार्ग अवरुद्ध करते हुए यीशु से यह प्रश्न किया, ““तू हमारे मन को कब तक दुविधा में रखेगा? यदि तू मसीह है, तो हम से साफ कह दे।” (पद 24)

 

प्रश्न 1) यीशु सार्वजनिक रूप से हाँ या नहीं में इस प्रश्न का उत्तर देने से क्यों हिचकिचाएगा?

 

हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि यह यीशु की असल पहचान जानने की वास्तविक इच्छा थी। नहीं, यह उसे दोषी ठहराने के लिए सुराख हासिल करने की इच्छा थी। अगर वे मंदिर के आँगनों में केवल उससे यह कहलवा सकें कि वह मसीहा था, तो वहाँ बहुत से धार्मिक यहूदी होंगे जो उसके शब्दों की गवाही देते हुए उसके अपने परमेश्वर के तुल्य कहने के लिए उसपर पथराव कर देंगे। बस वह केवल उससे यह कहलवा सकते, "मैं परमेश्वर हूँ," तो बस काम बन जाता। मसीहा ने विशिष्ट सामनों में कुछ लोगों को अपनी पहचान प्रकट की थी। उदाहरण के लिए, उसने निकुदिमुस से कहा था कि वह मनुष्य का पुत्र था जो स्वर्ग से नीचे आया था (यहुन्ना 3:13-14)। जब यीशु ने यहुन्ना के चौथे अध्याय में कुएं पर सामरी महिला से बातचीत की थी, तब महिला ने उससे कहा, मैं जानती हूँ कि मसीह जो ख्रीस्तुस कहलाता है, आनेवाला है; जब वह आएगा, तो हमें सब बातें बता देगा।’ यीशु ने उससे कहा, ‘मैं जो तुझ से बोल रहा हूँ, वही हूँ।‘ (यहुन्ना 4:25-26)

 

जब यीशु मण्डपों के पर्व में था, तब उसने कहा था कि वह परमेश्वर को जानता था और उसके द्वारा आया और भेजा गया था। उस समय, उन्होंने उसे पकड़ने की भी कोशिश की थी (यहुन्ना 7:29-30)। फिर, यहुन्ना के सुसमाचार के अध्याय आठ में, परमेश्वर के आलौकिक नाम का उपयोग करते हुए जो उन्होंने मूसा को दिया था, उसने कहा, "पहले इसके कि इब्राहीम उत्पन्न हुआ मैं हूँ” (यहुन्ना 8:58)। अन्य सुसमाचार में भी, यीशु ने घोषणा की कि उसे प्राप्त करना परमेश्वर को प्राप्त करना था (मत्ती 10:40), कि उसका स्वागत करना परमेश्वर का स्वागत करना था (मरकुस 9:37), और कि उसे देखने का अर्थ परमेश्वर को देख लेना था (यहुन्ना 14: 9)

 

एक बच्चे ने एक बार तस्वीर बनाई, और उसकी माँ ने उससे पूछा कि वह क्या कर रहा था। बच्चे ने कहा, "मैं परमेश्वर की एक तस्वीर बना रहा हूँ। माँ ने कहा, "मूर्ख मत बनो। तुम परमेश्वर की तस्वीर नहीं बना सकते। कोई भी नहीं जानता कि परमेश्वर कैसा दिखता है।" बच्चे ने जवाब दिया, "ठीक है, जब मैं बना लूँगा तो वो जान जाएंगे!" यीशु ने इसी तरह कहा था, "यदि तुम जानना चाहते हो कि परमेश्वर कैसा दिखता है, तो मुझे देखो।"

 

प्रभु सार्वजनिक रूप से यह कहने में सावधानी बरत रहा था कि वह कौन है, लेकिन यह उन चीजों से जो उसने कीं और उसके अप्रत्यक्ष दावों से स्पष्ट था कि उसने स्वयं का संबोधन कराया था। उदाहरण के लिए, वह समय ले लीजिये जब उसने लकवाग्रस्त आदमी के पापों को क्षमा किया:

 

3और लोग एक लकवे के रोगी को चार मनुष्यों से उठवाकर उसके पास ले आए। 4परन्तु जब वे भीड़ के कारण उसके निकट न पहुँच सके, तो उन्होंने उस छत को जिस के नीचे वह था, खोल दिया और जब उसे उधेड़ चुके, तो उस खाट को जिस पर लकवे का रोगी पड़ा हुआ था, लटका दिया। 5यीशु ने उनका विश्वास देखकर, उस लकवे के रोगी से कहा, हे पुत्र, तेरे पाप क्षमा हुए।” 6तब कई एक शास्त्री जो वहाँ बैठे थे, अपने अपने मन में विचार करने लगे, 7यह मनुष्य क्यों ऐसा कहता है? यह तो परमेश्वर की निन्दा करता है, परमेश्वर को छोड़ और कोन पाप क्षमा कर सकता है?” 8यीशु ने तुरन्त अपनी आत्मा में जान लिया, कि वे अपने अपने मन में ऐसा विचार कर रहे हैं, और उनसे कहा, “तुम अपने अपने मन में यह विचार क्यों कर रहे हो? 9सहज क्या है? क्या लकवे के रोगी से यह कहता कि तेरे पाप क्षमा हुए, या यह कहना, कि उठ अपनी खाट उठा कर चल फिर? 10परन्तु जिससे तुम जान लो कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का भी अधिकार है।” उसने उस लकवे के रोगी से कहा, 11मैं तुझसे कहता हूँ; उठ, अपनी खाट उठाकर अपने घर चला जा।” 12और वह उठा, और तुरन्त खाट उठाकर और सब के सामने से निकलकर चला गया; इस पर सब चकित हुए, और परमेश्वर की बड़ाई करके कहने लगे, “हमने ऐसा कभी नहीं देखा।” (मरकुस 2:3-12)

 

पवित्रशास्त्र के इस खंड में यीशु के शानदार साहस पर ध्यान दें। वह जानता था कि व्यवस्था के शिक्षक वहाँ थे, और यह जानते हुए भी कि धार्मिक यहूदी टकराव करेंगे, जबकि वह सभी सुन सकते थे, उसने उस मनुष्य के पापों को क्षमा कर उसे चंगा किया।

 

सी.एस. लुईस के पास, अपनी पुस्तक मीयर क्रिश्चियेनिटी में, उपर्युक्त खंड पर कुछ विचार हैं:  

दावे का एक हिस्सा इसलिए हमारे गौर करने से बचकर निकल जाता है क्योंकि हमने इसे इतनी बार सुना है कि अब हम यह नहीं देख पाते कि इसके क्या मायने हैं। मेरा अर्थ है पापों को क्षमा करने का दावा: कैसा भी पाप क्षमा करना। यदि यह कहने वाला परमेश्वर नहीं, तो यह बड़ा दावा हास्यास्पद है। हम सब समझ सकते हैं कि एक व्यक्ति अपने विरुद्ध अपराध कैसे क्षमा करता है। आप मेरे पैर की अंगुली पर चढ़ते हैं और मैं आपको क्षमा करता हूँ, आप मेरा पैसा चुराते हैं और मैं आपको क्षमा करता हूँ। लेकिन हमें एक ऐसे व्यक्ति के बारे में क्या कहें, जिसे स्वयं लूटा या कुचला न गया हो, जो आपके अन्य लोगों के पैर की उंगलियों पर चलने और उनके पैसे चोरी करने के लिए क्षमा करने की घोषणा करता है? यदि इस आचरण को सबसे दयालु तरह से कहा जाए तो यह चरम मूर्खता कहलाया जाएगा। लेकिन, यीशु ने यही किया। उसने लोगों से कहा कि उनके पापों को क्षमा कर दिया गया था, और उन सभी अन्य लोगों से परामर्श करने का इंतजार नहीं किया जिनहें उनके पापों ने निस्संदेह घायल किया था। वह बेहिचक ऐसा व्यवहार कर रहा था जैसे कि सभी अपराधों में वह मुख्य रूप से अघात हुआ व्यक्ति था। यह केवल तभी समझ में आता है जब वह वास्तव में परमेश्वर था जिसके नियम तोड़े गए थे और जिसका प्रेम हर पाप में अघात होता है। किसी भी वक्ता के मुँह से जो परमेश्वर नहीं है, मैं इन शब्दों को इतिहास में किसी भी अन्य चरित्र की मूर्खता और छल की तुलना में बेजोड़ मानूँगा।

 

बेशक, जब हम यहुन्ना की पुस्तक का अध्ययन करते हैं, वहाँ हम ऐसे कई अन्य साक्ष्य पाएंगे जहाँ यीशु ने जानबूझ कर धार्मिक यहूदियों को अपने शब्दों के द्वारा क्रोधित करते हुए, यह स्पष्ट किया है कि वह कौन था और है, लेकिन इस समय तक प्रभु ने स्पष्ट और सार्वजनिक रूप से नहीं कहा था कि वह मसीहा है। हमें याद रखना चाहिए कि यहूदी लोग रोमी शासन से उन्हें बचाने के लिए एक योद्धा राजा मसीहा की तलाश में थे, और पाप से उद्धार दिलाने वाला विनम्र सेवक उनकी सूची पर नहीं था। यहूदी अग्वों और फरीसियों को पाप से उद्धार की आवश्यकता नहीं दिखाई देती थी। लेकिन प्रभु ने उनसे कहा कि जिस कारण से वे विश्वास नहीं करते थे वह यह था कि वे उसकी भेड़ नहीं थीं। 26परन्तु तुम इसलिये प्रतीति नहीं करते, कि मेरी भेड़ों में से नहीं हो (पद 26)

 

प्रश्न 2) क्या पृथ्वी ग्रह पर सभी परमेश्वर की संतान नहीं हैं? आपको क्या लगता है कि जब उसने उन लोगों को संदर्भित किया जो उसकी “भेड़ों में नहीं थे”, तो यीशु का क्या मतलब था? प्रभु यह कैसे कह सकता था कि जो लोग सुन रहे थे वह उसकी भेड़ों में से नहीं थे?

पश्चाताप करने और सुसमाचार पर भरोसा करने के लिए पुकार पूरे संसार में दी गई है, लेकिन कुछ ऐसे हैं जो अपने हृदय को कठोर करते हैं और अपने पापों की क्षमा के लिए परमेश्वर के प्रस्ताव को खारिज कर देते हैं। परमेश्वर समय से पहले उन लोगों को जानता है जो प्रतिउत्तर देंगे क्योंकि वह सभी चीजों को जानता है, यहाँ तक ​​कि उन चीजों को भी जो समय से परे है। हमारे लिए यह समझना मुश्किल है, लेकिन परमेश्वर समय के अनुसार सीमित नहीं है। वह केवल यह जानने तक ही सीमित नहीं है कि अतीत में क्या हुआ है या वर्तमान में क्या हो रहा है। परमेश्वर की संप्रभुता और चुनाव उन लोगों में भी कार्य करते हैं जो विश्वासी नहीं हैं। परमेश्वर की संप्रभुता उनके अविश्वास के लिए उनकी ज़िम्मेदारी नहीं हटाती है, न ही यह उस विश्वास करने के निमंत्रण से समझौता करती है जो सभी के लिए दिया जाता है। इन पुरुषों ने जिन्होंने यह स्वीकार करने से इंकार कर दिया कि यीशु मसीह था, ने यीशु को ग्रहण करने और उसे उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करने के लिए अपना चुनाव कर लिया था। परमेश्वर के साथ अनन्त जीवन का उपहार उन सभी को स्वतंत्र रूप से दिया जाता है जो पुकार सुनेंगे और प्रतिउत्तर देंगे:

 

और आत्मा, और दुल्हिन दोनों कहती हैं, “!” और सुननेवाला भी कहे, “!” और जो प्यासा हो, वह आए और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले। (प्रकाशितवाक्य 22:17)

 

मसीह में किसी के भरोसे के कार्य या उसमें भरोसा करने में तीन चरण हैं जो उद्धार दिलाने वाले विश्वास को लाते हैं। सबसे पहले, उसकी पुकार पर ध्यान देना या सुनना है; दूसरा, उसके साथ घनिष्ठता है, यानी परमेश्वर का उन्हें जानना, और तीसरा, उसके पीछे चलने की एक पुकार है। मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं, और मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे-पीछे चलती हैं। (पद 27)। हममें से प्रत्येक को इस पद को ध्यान से देखना चाहिए और अपने आप से ईमानदार होना चाहिए, क्योंकि हमारे अनंत जीवन इस पर निर्भर करते हैं। क्या हम परमेश्वर के वचन को सुनते समय इस पर प्रतिउत्तर देने की इच्छा रखते हुए सुनने की चाह रखते हैं? क्या हम मसीह के माध्यम से परमेश्वर से अधिक गहराई से परिचित हो रहे हैं? क्या हमारा जीवन उसी रीती से जीने के द्वारा जिस तरह यीशु ने अपना जीवन जीया हमारे विश्वास को दर्शाता है, यानी अपने जीवन का नमूना उस पर बनाना? क्या हम एक शिष्य, एक सीखने वाला बनने का विकल्प चुन रहे हैं? यदि नहीं, तो क्या हम ईमानदारी से उसके वचन पर विश्वास करते हैं?

 

अनन्त सुरक्षा

 

जब हम अपने हृदयों को स्वयं की सेवा करने के लिए नहीं बल्कि प्रभु यीशु के दास बनने के लिए तैयार कर लेते हैं, तो हमारे लिए परमेश्वर की ओर से उसका दिव्य जीवन प्रदान होता है जो परमेश्वर की ओर से एक उपहार है। पवित्र आत्मा हमारे पास आता है, और हम ऊपर से पैदा होते हैं। प्रेरित पतरस ने इसे इस तरह रखा:

 

 

22सो जब कि तुम ने भाईचारे की निष्कपट प्रीति के निमित सत्य के मानने से अपने मनों को पवित्र किया है, तो तन मन लगाकर एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो। 23क्योंकि तुमने नाशमान नहीं पर अविनाशी बीज से परमेश्वर के जीवते और सदा ठहरनेवाले वचन के द्वारा नया जन्म पाया है। (1 पतरस 1:22-23)

 

जब हम ईमानदारी और संपूर्णता से प्रभु यीशु में अपना विश्वास रखते हैं, तो वह हमें अनन्त जीवन का उपहार देता है:

 

28और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ, और वे कभी नाश नहीं होंगी, और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन न लेगा। 29मेरा पिता, जिसने उन्हें मुझको दिया है, सबसे बड़ा है, और कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता। 30मैं और पिता एक हैं। (यहुन्ना 10:28-30)

 

उसने यह नहीं कहा, "यदि वे अच्छे लोग होने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, तो मैं उन्हें अनन्त जीवन दूँगा। सुसमाचार का सन्देश एक दिव्य लेन-देन के बारे में है जो पापियों के सुसमाचार पर विश्वास कर पाप से पश्चाताप करने, और मसीह की ओर मुड़कर उसमें अपना विश्वास रखने से होता है। उद्धार परमेश्वर से एक उपहार है (इफिसियों 2:8-9) परमेश्वर देकर इसे फिर से वापस नहीं लेता। यह हमारे कार्यों पर या हमने जो प्राप्त किया है उस पर हम कितनी अच्छी तरह से चलते हैं, इसपर निर्भर नहीं है। हमें प्रभु यीशु से अनन्त जीवन का उपहार दिया गया है, लेकिन हम में से प्रत्येक पिता से प्रभु यीशु के लिए भी एक उपहार है, क्योंकि मसीह कहता है, मेरा पिता, जिसने उन्हें मुझको दिया है, सबसे बड़ा है, और कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता।”

 

यहाँ दो अद्भुत सच्चाई हैं। 1) परमेश्वर ने हमें मसीह को दिया है, और हम उसके हैं। 2) अगर हम नए सिरे से आत्मा द्वारा जन्में हैं और मसीह के हैं, तो शैतान हमें किसी भी तरह से वापस छीन नहीं सकता है। यीशु ने कहा, कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता।” हाँ, हम उससे दूर जाकर पाप में पड़ सकते हैं, परन्तु नए सिरे से जन्में परमेश्वर की संतान फिर से दूर जाना नहीं चाहते। वह उस जन को खुश करना चाहते हैं जिसे वह प्रेम करते हैं। मुझे गलत न समझें; विश्वासियों के रूप में हम अब भी पाप कर सकते हैं, पर हमें ऐसा करने की आवश्यकता नहीं! हम पाप से बंधे नहीं हैं। पाप से उबरने की सामर्थ पवित्र आत्मा के द्वारा हमारे भीतर निवासरत है।

 

जैसे-जैसे हम मसीह में बढ़ते हैं, हमें अपने पाप और स्वार्थी-जीवन से उबरने के लिए परमेश्वर द्वरा बल, अनुग्रह और सामर्थ दिया जाएगा। माउंट एवरेस्ट पर विजयी पहले पर्वतारोही एडमंड हिलेरी ने यह सही जाना, जब उन्होंने कहा, "हम पहाड़ पर विजयी नहीं होते हैं लेकिन स्वयं पर”। रूस के महान पीटर को यह कहते बताया गया है, "मैं साम्राज्य पर विजयी होने में कामयाब हो गया हूँ, लेकिन मैं खुद पर विजयी होने में सक्षम नहीं हुआ हूँ।” डच विधिवेत्ता और विद्वान ग्रोटियस ने कहा, "यदि कोई व्यक्ति एक शहर पर शासन नहीं कर सकता है तो वह एक राष्ट्र पर शासन नहीं कर सकेगा, यदि वह एक परिवार पर शासन नहीं कर सकता है तो वह किसी शहर पर शासन नहीं कर सकेगा, और जब तक उसकी भावनाएं तर्कों के अधीन नहीं हो जाते, तब तक वह स्वयं पर शासन नहीं कर सकेगा।अगर मैं आदतन पाप में पड़ जाता हूँ तो परमेश्वर मुझे अनुशासित करने के लिए मेरे लिए जीवन इतना दुखी करने में सक्षम है कि मैं उसके पास वापस आकर, अपने पापों से उबरना और स्वयं पर विजय प्राप्त करना चाहूँगा। परमेश्वर का वचन स्पष्ट है कि वह अनुशासित कर सकता और करता है क्योंकि प्रभु, जिस से प्रेम करता है, उसकी ताड़ना भी करता है; और जिसे पुत्र बना लेता है, उसको कोड़े भी लगाता है(इब्रानियों 12: 6)। तो, हमारे सामने प्रश्न यह है कि वह हमें कैसे दंडित या अनुशासित करता है?

 

प्रश्न 3) क्या आपने पाप में गिरने के बाद आपके वापस मुड़ने के लिए परमेश्वर की अनुशासनात्मक सामर्थ का अनुभव किया है? किस बात ने आपको उसके पास वापस मोड़ा? आत्मिक शिक्षाएं देने के लिए परमेश्वर हमारे कार्यों के प्राकृतिक परिणामों का उपयोग कैसे करता है?

 

हम जानते हैं कि परमेश्वर दर्द और पीड़ा का दाता नहीं है; लेकिन, जब हम लुभाए जाते हैं, खिंचे चले जाते हैं, और पाप करते हैं, तब हम दुश्मन क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। यह हमें परमेश्वर की संतान होते हुए अनजाना सा महसूस होना चाहिए। यदि हम पाप में बने रहते हैं, तो हम दुश्मन क्षेत्र में प्रवेश करने के प्राकृतिक परिणामों की उम्मीद कर सकते हैं। हम जो बोते हैं, वही काटेंगे (गलतियों 6:7)। परमेश्वर हमारी परिस्थितियों को हमें सिखाने के लिए अनुमति देता है, लेकिन हमारे सीखने में, वह हमें बचाए रखने में सक्षम है।

 

हमारे आज के खंड में, प्रभु यीशु के अनुसार पृथ्वी पर ऐसी कोई शक्ति नहीं है जो हमें परमेश्वर के हाथ से जुदा कर सकती है या छीन सकती है। उसने कभी मसीही जन्म प्रमाण पत्र को नहीं फाड़ा है। इसका कारण कि कोई मसीही कभी भी पिता के हाथों से छीना नहीं जा सकता यह है कि वह पिता ही थे जिसने उसे वहाँ रखा था। जॉन कॉटन ने एक बार लिखा, "ऐसा हो सकता है कि हम पापी हैं; परन्तु परमेश्वर ने हमें हमारी भलाई के कारण प्रेम नहीं किया, और न ही वह हमें हमारी दुष्टता के लिए त्याग देगा।” हम दूर चले जा सकते हैं, लेकिन यदि हम वास्तव में नए सिरे से जन्मे और उसकी एक संतान हैं, तो परमेश्वर हमें वापस लाने और हमारा मार्ग सही करने में बहुत सक्षम हैं। परमेश्वर का बीज परमेश्वर की कटनी के लिए आएगा! यदि हम बिना ग्लानी या नैतिक पछतावे के साथ पाप करना जारी रखते हैं, तो हमें स्वयं से पूछना होगा कि क्या हम वास्तव में कभी भी परमेश्वर के आत्मा द्वारा नए सिरे से जन्मे हैं। डोनाल्ड ग्रे बार्नहाउस ने एक बार कहा, "हम अनन्तकाल की सुरक्षा में विश्वास करते हैं, लेकिन हम शाश्वत धारणा में विश्वास नहीं करते हैं। एक आदमी को स्वयं की जाँच करने दें।” प्रेरित यहुन्ना ने लिखा;

 

हम जानते हैं, कि जो कोई परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है, वह पाप नहीं करता; जो परमेश्वर से उत्पन्न हुआ, उसे वह बचाए रखता है: और वह दुष्ट उसे छूने नहीं पाता। (1 यहुन्ना 5:18)

 

परमेश्वर संग मसीह की एकता

 

प्रभु कभी भी झगड़े से दूर भागने वाला नहीं था। वह आदमियों का आदमी है। जिस चीज को वे खोज रहे थे, उसने उन्हें अपने शब्दों में दे दी, "मैं और पिता एक हैं" (पद 30)। जब यीशु ने यह कहा, तो उन्होंने उसे मारने के लिए पत्थर उठाए। एक बार फिर, हम मसीह को उसके शब्दों के असर के बावजूद सत्य बोलने में उसके साहस को देखते हैं। यहूदी अग्वे एक टकराव के लिए तैयार हो पत्थर लेकर आए थे। यीशु ने उनसे कहा;

 

मैंने तुम्हें अपने पिता की ओर से बहुत से भले काम दिखाए हैं, उनमें से किस काम के लिये तुम मुझ पर पथराव करते हो?” यहूदियों ने उसको उत्तर दिया, “भले काम के लिये हम तुझ पर पथराव नहीं करते, परन्तु परमेश्वर की निन्दा के कारण और इसलिये कि तू मनुष्य होकर अपने आप को परमेश्वर बनाता है।” (यहुन्ना 10:32-33)

 

जब उन्होंने यीशु पर परमेश्वर होने का दावा करने का आरोप लगाया, तो प्रभु ने उन्हें सही नहीं किया। अगर वह केवल एक नबी था, परमेश्वर नहीं, तो उसने ऐसा कहा होता! आखिरकर, उसने सत्य होने का दावा किया था; मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूँ (यहुन्ना 14:6) जो कोई सच्चाई का अवतार होने का दावा करता है वह अपने बारे में इस तरह की गंभीर गलतफहमी पर विश्वास करने की अनुमति नहीं देगा। बाद में, क्रूस पर चढ़ाए जाने और पुनरुत्थान के बाद, तब यीशु ने थोमा को सही नहीं किया जब जी-उठा प्रभु चेले थोमा के सामने प्रकट हुआ और थोमा ने आराधना में घुटनों पर आकर यीशु के बारे कहा मेरे प्रभु और मेरे परमेश्वर(यहुन्ना 20:28) अगर यीशु परमेश्वर नहीं थे, तो वह थोमा को इस तरह के परमेश्वर-निंदा के कथन पर फटकारते। इसके बजाए, यह खंड दर्शाता है कि जब यीशु ने उसे अपने घाव जाँचने और संदेह करना छोड़ विश्वास करने का आमंत्रण दिया, तब थोमा अंततः समझ गया कि यीशु कौन था (यहुन्ना 20:26-29)

 

अगर मैं आपसे पूछूँ कि मसीही धर्म का सारांश देने वाला मुख्य वचन कौन सा है, तो शायद आप कहेंगे, "क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए (यहुन्ना 3:16)। यदि आप किसी यहूदी व्यक्ति को यहूदी धर्म में सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक वचन चुनने के लिए कहेंगे, तो वे आपको बताएँगे, "हे इजराइल, सुन, यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है(व्यवस्थाविवरण 6:4)। यही कारण है कि यहूदियों ने उसे मारने के लिए पत्थर उठाए थे क्योंकि यीशु ने वहीँ परमेश्वर के मंदिर के आँगनों में कहा था कि वह और परमेश्वर एक हैं (पद 30)

 

जब कोई यहूदी लोगों के साथ यीशु के मसीह होने के बारे में बात करता है, तो यह उनके लिए एक महत्वपूर्ण ठोकर का कारण हो सकता है, क्योंकि उनका मानना ​​है कि मसीही लोग एक नहीं बल्कि तीन परमेश्वरों में विश्वास करते हैं। इस प्रकार की सोच एक भक्त यहूदी के मन में भद्दी और निंदाजनक है, ठीक जैसा एक मसीही के लिए भी होना चाहिए। उपरोक्त खंड, व्यवस्थाविवरण 6:4 में वह शब्द जिसका अनुवाद अंग्रेजी शब्द एक किया गया है, इब्रानी शब्द ईकाद है। यह इब्रानी शब्द एक यौगिक-एकता संज्ञा है। इसका अर्थ यह है कि यह एक ऐसा संज्ञा है जो एकता का प्रदर्शन करता है, लेकिन फिर भी कई हिस्सों का बना हुआ है। हम ईकाद शब्द को पति और पत्नी को एक तन बनने के लिए प्रयोग होते देखते हैं (उत्पत्ति 2:4)। जब बारह जासूसों को कनान देश की जासूसी करने के लिए भेजा गया था, तो वे भूमि की फलदायकता दिखाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने अंगूर के गुच्छे वाली एक शाखा काट ली। एक समूह (गुच्छे) शब्द हमारा इब्रानी यौगिक शब्द ईकाद है। इसके अलावा, एज्रा 2:64 में, हमें बताया जाता है कि "समस्त मण्डली मिलकर बयालीस हजार तीन सौ साठ की थी।" समस्त मण्डली वही शब्द है, ईकाद।

 

जब परमेश्वर एक और एकमात्र कहना चाहता था, तब उसने एक अलग इब्रानी शब्द, याकिद का प्रयोग किया। हम इस शब्द का प्रयोग अब्राहम की परीक्षा में पाते हैं; "अपने पुत्र को अर्थात् अपने एकलौते पुत्रा इसहाक को, जिस से तू प्रेम रखता है, संग लेकर मोरिरयाह देश में चला जा” (उत्पत्ति 22:2)। परमेश्वर ने इब्राहीम की प्रतिज्ञा के वारिस के रूप में केवल एक ही पुत्र को मान्यता दी, अर्थात, उसका एकलौता (याकिद) पुत्र इसहाक, इब्राहीम की पत्नी सारा द्वारा प्रतिज्ञा की हुई संतान।

 

जब परमेश्वर अपनी त्रि-एकता को बताना चाहता था, तो उसने ईकाद शब्द का प्रयोग किया। यहुन्ना, प्रेरित ने हमें शुरुआत में यीशु के बारे में बताया, "यही आदि में परमेश्वर के साथ था" (यहुन्ना 1:2)। क्या हम परमेश्वर को उत्पत्ति अध्याय 1 में बहुवचन में संदर्भित करते पाते हैं? हाँ! आत्मा को पानी पर मंडराते वर्णित किया गया है (उत्पत्ति 1: 2) और फिर पद 26 में: "फिर परमेश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं” (उत्पत्ति 1: 26)। अंग्रेजी में परमेश्वर के रूप में अनुवादित शब्द इब्रानी शब्द ईलोहीम है, जो एक बहुवचन संज्ञा है। परमेश्वर स्वयं एकता के समुदाय में रहता है। मैंने पहले एक मनुष्य के उदाहरण का प्रयोग किया है। बाइबिल घोषित करता है कि हम में से प्रत्येक की प्रकृति तीन भागों से बनी है; आत्मा, प्राण, और शरीर (1 थिस्सलुनिकियों 5:23); हम में से प्रत्येक एक है, लेकिन हमारे पास अपनी "एकता" के तीन अलग-अलग हिस्से हैं।


 

सभी न्यायियों का न्यायी

फिर यीशु ने पवित्रशास्त्र में भजनों की पुस्तक से खंड प्रस्तुत करते हुए उसका पथराव करने के उनके प्रयासों का प्रतिउत्तर दिया।

 

34यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या तुम्हारी व्यवस्था में नहीं लिखा है ‘मैंने कहा, तुम परमेश्वर हो’? 35यदि उसने उन्हें परमेश्वर कहा जिनके पास परमेश्वर का वचन पहुँचा (और पवित्र शास्त्र की बात असत्य नहीं हो सकती।) 36तो जिसे पिता ने पवित्र ठहराकर जगत में भेजा है, तुम उससे कहते हो कि ‘तू निन्दा करता है’, इसलिये कि मैंने कहा, ‘मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ’। 37यदि मैं अपने पिता के काम नहीं करता, तो मेरी प्रतीति न करो। 38परन्तु यदि मैं करता हूँ, तो चाहे मेरी प्रतीति न भी करो, परन्तु उन कामों की तो प्रतीति करो, ताकि तुम जानो, और समझो, कि पिता मुझ में है, और मैं पिता में हूँ।” 39तब उन्होंने फिर उसे पकड़ने का प्रयत्न किया परन्तु वह उन के हाथ से निकल गया। 40फिर वह यरदन के पार उस स्थान पर चला गया, जहाँ यहुन्ना पहले बपतिस्मा दिया करता था, और वहीं रहा। 41और बहुतेरे उसके पास आकर कहते थे, “यहुन्ना ने तो कोई चिन्ह नहीं दिखाया, परन्तु जो कुछ यहुन्ना ने इसके विषय में कहा था वह सब सच था।” 42और वहाँ बहुतेरों ने उस पर विश्वास किया। (यहुन्ना 10:34-42)

 

जिस खंड को यीशु ने यहाँ कहा वह भजन 82 में पाया जाता है और यह परमेश्वर के बारे में बात करता है जो स्वयं उन न्यायियों के बीच आता है जो अपनी सेवकाई को देवताओं के समान में समझते थे;

 

1परमेश्वर की सभा में परमेश्वर ही खड़ा है; वह ईश्वरों के बीच में न्याय करता है। 2तुम लोग कब तक टेढ़ा न्याय करते और दुष्टों का पक्ष लेते रहोगे? 3कंगाल और अनाथों का न्याय चुकाओ, दीन दरिद्र का विचार धर्म से करो। 4कंगाल और निर्धन को बचा लो; दुष्टों के हाथ से उन्हें छुड़ाओ। 5वे न तो कुछ समझते और न कुछ बूझते हैं, परन्तु अन्धेरे में चलते फिरते रहते हैं; पृथ्वी की पूरी नीव हिल जाती है। 6 मैंने कहा था, “तुम परमेश्वर हो, और सब के सब परमप्रधान के पुत्र हो; 7तौभी तुम मनुष्यों की नाई मरोगे, और किसी प्रधान के समान गिर जाओगे। 8हे परमेश्वर उठ, पृथ्वी का न्याय कर; क्योंकि तू ही सब जातियों को अपने भाग में लेगा!” (भजन 82:1-8)

 

लेखक और शिक्षक चक स्विंडोल हमें यह बेहतर समझने में मदद करता है कि मसीह अपने सामने खड़े विश्वासघाती चरवाहों और इजराइल की महासभा के न्यायियों को क्या कह रहा है:

 

भजनकर्ता ने इज़राइल के नियुक्त न्यायियों को याद दिलाया कि वे छोटे देवताओं की तरह थे क्योंकि सर्वोच्च न्यायाधीश ने अपने स्थान पर उन्हें शासन करने के लिए नियुक्त किया था; इसलिए, वे उसके प्रति उत्तरदायी थे। यीशु भजन में बेकार न्यायियों की पहचान उसके सम्मुख खड़े धार्मिक अग्वों के रूप में करता है, और वह स्वयं को कविता की उद्घाटन पंक्ति की पूर्ति के रूप में घोषित करता है; "परमेश्वर की सभा में परमेश्वर ही खड़ा है; वह ईश्वरों के बीच में न्याय करता है” (भजन 82:1)। इज़राइल के इन धर्मत्यागी शासकों के लिए सर्वोच्च न्यायाधीश का न्याय करना परमेश्वर-निंदा से कुछ कम नहीं था। वे ही वह थे जिनपर पथराव किया जाना चाहिए था।

 

पुराने नियम में, न्यायियों को परमेश्वर द्वारा मनुष्यों तक परमेश्वर का न्याय पहुँचाने के लिए नियुक्त किया गया था। उन्हें यह जानते हुए कि वे एक दिन परमेश्वर के सामने खड़े होंगे और उसके द्वारा उनका न्याय किया जाएगा कि उन्होंने मनुष्यों के ऊपर इतनी शक्ति के साथ क्या किया है, परमेश्वर के स्थान पर न्याय करना था। असल में, इब्रानी शब्द ईलोहीम, जिसे आमतौर पर अंग्रेजी शब्द परमेश्वर में अनुवादित किया जाता है, को निर्गमन 21:6 में न्यायियों के रूप में अनुवादित किया गया है। यीशु यह कह रहा था कि यदि पवित्रशास्त्र मनुष्यों के बारे में ऐसा कह सकता है, तो स्वयं परमेश्वर का सच्चा पुत्र कितना कुछ बोल सकता है।

 

यीशु ने फिर से सुलैमान के ओसारे में खड़े यहूदियों को यह स्पष्ट किया कि उसकी पहचान के रूप में वे "समझें, कि पिता मुझ में है, और मैं पिता में हूँ।" (यहुन्ना 10:38)। यदि यह पहले उनके लिए स्पष्ट नहीं था, तो अब यह उनके लिए बहुत साफ था। यीशु ने कहा कि वह पिता के साथ एक है। क्या आप उसपर विश्वास करते हैं? एक बार फिर उनकी प्रतिक्रिया उसे पकड़ने की कोशिश करना थी, लेकिन वह उनकी पकड़ से बाहर निकल गया (पद 38-39)। जब यीशु उनके हाथों से बच निकला, तो वह एक परिचित स्थान पर गया, अर्थात वह स्थान पर जहाँ यूहन्ना बपतिस्मा देता था और जहाँ यीशु की सेवकाई शुरू हुई थी। यह जगह यीशु के लिए एक विशेष महत्व रखती थी।

 

प्रश्न 4) जब आप अपने विचार इकट्ठा करने या आत्मिक रूप से ताज़ा होने के लिए अकेले रहना चाहते हैं तो ऐसे में आपकी पसंदीदा जगह कहाँ है?

 

ऐसे विशिष्ट स्थानों पर लौटने के बारे में कुछ कहना आवश्यक है जहाँ हमारा सामना परमेश्वर से हुआ है, यानी ऐसे समय जब हमें अपने विचारों के साथ अकेले रहने की आवश्यकता थी। यीशु के लिए, यह यर्दन घाटी में था जहाँ उसकी सेवा शुरू हुई, वह जगह जहाँ उसने बपतिस्मा लिया था और उन्होंने पिता की वाणी सुनी जब तीता ने उनसे बात की थी जिन्होंने आत्मा को उसके ऊपर उतरते देखा था (मत्ती 3:16)। जब उन लोगों ने यीशु के बारे में यहुन्ना बप्तिस्मा देने वाले के शब्दों को याद किया, तो उन्होंने उसपर विश्वास किया (पद 42)

 

आप क्या? क्या आपने अभी तक मसीह की वास्तविक प्रकृति के बारे में पर्याप्त सबूत पाए हैं? क्या आपने उसमें अपना विश्वास रखा है और उसे इजराइल के अच्छे चरवाहे के रूप में पाया है? वह आपके उसके पास आने और विश्राम पाने के अपने निमंत्रण के साथ इंतजार कर रहा है (मत्ती 11:28-30)

 

प्रार्थना: प्रभु, आपका प्रेम हमें आश्चर्यचकित करता है। हमारे लिए कितना सुंदर है कि आप, स्वर्ग के राजा ने नीचे उतरकर इतने तरीकों से हमारे लिए अपना प्रेम प्रकट किया। हम आपको अपने हृदयों में अपना घर बनाने के लिए आमंत्रित करते हैं। अमीन।

 

कीथ थॉमस

नि:शुल्क बाइबिल अध्यन के लिए वेबसाइट: www.groupbiblestudy.com

ई-मेल: keiththomas7@gmail.com

 

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