15. Jesus and the Woman in Adultery
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15. यीशु और व्यभिचारी स्त्री
यहुन्ना 7:53 से यहुन्ना 8:11 को सबसे पुरानी हस्तलिपियों में नहीं पाया जाता है, और इसीलिए पवित्रशास्त्र का यह खंड कुछ विवाद लाया है। कुछ विद्वान यहुन्ना द्वारा इसकी प्रामाणिकता पर संदेह करते हैं। इस कारण से, हमारे कुछ अंग्रेजी अनुवादों में, इसे कोष्ठक के बीच रखा गया है और पृष्ठ के निचले हिस्से में एक नोट दिया गया है। जब मैं इस खंड को पढ़ता हूँ, तो मैं न केवल इसकी प्रामाणिकता बल्कि पवित्रशास्त्र में इसके स्थान को लेकर भी आश्वस्त हूँ। इसमें सच्चाई की छनकार है। यह उस प्रकार का हमला है जैसा यीशु ने अपने शत्रुओं के हाथों सहन किया, और यह उस प्रकार का उत्तर है जो यीशु देता। यदि यह असल नहीं है, तो यहुन्ना 7:52 से 8:12 तक पहुँच पाना मुश्किल होगा। यह हमें समय, स्थान, और किसके लिए के प्रश्नों के साथ छोड़ देगा क्योंकि पद 12 ऐसे शुरू होता है: “तब यीशु ने फिर लोगों से कहा, [यहाँ पर “लोग” कौन हैं?] जगत की ज्योति मैं हूँ; जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अन्धकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा” (यहुन्ना 8:12)। मैं इसकी प्रामाणिकता या स्थान की बहस को विद्वानों के लिए छोड़ दूँगा।
जबकि हम यहुन्ना द्वारा बताए गए मसीह के जीवन के इस अध्ययन में आगे बढ़ते हैं, मुझे किसी तरह यह लगता है कि यह वचन इतनी आलोचना में इसीलिए आए हैं क्योंकि यीशु के कार्यों ने इस तरह की प्रतिक्रिया को उकसाया था। मेरा केंद्र एक दर्शक होना है और इस खंड में परमेश्वर के हृदय के विषय में प्रकट होने वाली उन सब बातों को देखना है जो मैं देख सकता हूँ। मेरा मानना है कि यह एक कारण से यहाँ है, और परमेश्वर ने इस आमने-सामने पर हमारा ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने वचन पर ध्यान दिया है। खंड यहाँ है:
53तब सब कोई अपने अपने घर को गए। 1परन्तु यीशु जैतून के पहाड़ पर गया। 2और भोर को फिर मन्दिर में आया, और सब लोग उसके पास आए; और वह बैठकर उन्हें उपदेश देने लगा। 3तब शास्त्री और फरीसी एक स्त्री को लाए, जो व्यभिचार में पकड़ी गई थी, और उसको बीच में खड़ी करके यीशु से कहा 4“हे गुरू, यह स्त्री व्यभिचार करते ही पकड़ी गई है। 5व्यवस्था में मूसा ने हमें आज्ञा दी है कि ऐसी स्त्रियों को पत्थराव करें: सो तू इस स्त्री के विषय में क्या कहता है?” 6उन्होंने उसको परखने के लिये यह बात कही ताकि उस पर दोष लगाने के लिये कोई बात पाएं, परन्तु यीशु झुककर उंगली से भूमि पर लिखने लगा। 7जब वे उससे पूछते रहे, तो उसने सीधे होकर उनसे कहा, “तुम में जो निष्पाप हो, वही पहले उसको पत्थर मारे।” 8और फिर झुककर भूमि पर उंगली से लिखने लगा। 9परन्तु वे यह सुनकर बड़ों से लेकर छोटों तक एक एक करके निकल गए, और यीशु अकेला रह गया, और स्त्री वहीं बीच में खड़ी रह गई। 10यीशु ने सीधे होकर उससे कहा, “हे नारी, वे कहाँ गए? क्या किसी ने तुझ पर दंड की आज्ञा न दी।” 11उसने कहा, “हे प्रभु, किसी ने नहीं।” यीशु ने कहा, “मैं भी तुझ पर दंड की आज्ञा नहीं देता; जा, और फिर पाप न करना”। (यहुन्ना 7:53-8:11)
उमड़ता हुआ तूफ़ान
यहुन्ना के सुसमाचार के पिछले अध्याय में, हमने देखा है कि किस प्रकार यहूदी धार्मिक नेता यीशु का जीवन लेने की तलाश में एक साथ जुट गए थे (7:1;19;30;32)। उनके मनों में, वह एक ऐसा खतरा बन गया था जिससे निपटना आवश्यक था। जब यीशु साहसपूर्वक झोपड़ियों के पर्व के सबसे उल्लेखनीय दिन पर खड़ा होकर यह घोषणा करता है कि वह वही है जो यहूदी लोगों को जीवन का जल देगा (यहुन्ना 7: 37-39), तब धार्मिक अग्वों के लिए यह बहुत हो गया था। उन्होंने हमले की अपनी अगली योजना तैयार की। अपने खिलाफ उनकी योजना बनाने के बीच, यीशु ने क्या किया? जब मसीह के सभी अनुयायी अपने घर गए, तो उसने वैसा ही किया जैसा वह आमतौर पर किया करता था और रात के लिए गत्समने (जैतून का तेल निकालने का स्थान) में जैतून पर्वत (पद 1) पर सितारों के नीचे सोने के लिए चला गया। जिसने संसार को बनाया उसके सिर रखने के लिए कोई जगह नहीं थी (लूका 9:58)। उसने ऐसा क्यों किया? वह जैतून पर्वत के दूसरी तरफ, अपने दोस्तों, लाज़र, मार्था और मरियम के घर क्यों नहीं गया? शायद, ऐसा इसलिए था क्योंकि वह उसके उनके घर पर सोने से दूसरों को खतरे में नहीं डालना चाहता था। इस जानकरी ने कि यहूदी शासकों के अभिजात वर्ग ने यह सन्देश निकाल दिया है कि यीशु को गिरफ्तार किया जाना था, मसीह से प्रेम करने वाले साधारण लोगों में एक वास्तविक डर बैठ गया था (7:13)। सभी बातों में, हम यीशु को दूसरों के लिए सोचते और चिंता करते देखते हैं।
सुबह-सुबह, वह सितारों के नीचे अपनी नींद से उठा और किद्रोंन घाटी के उस पार चला, और पूर्वी द्वारों में से एक में से प्रवेश कर मंदिर के आंगनों तक पहुँच गया। वहाँ, वह बैठ गया और सुबह उपस्थित अराधकों को सिखाना शुरू कर दिया, पद 2 हमें बताता है, “और सब लोग उसके पास आए; और वह बैठकर उन्हें उपदेश देने लगा।” मैं केवल उस ईर्ष्या की कल्पना कर सकता हूँ जो शास्त्रियों और फरीसियों में उत्पन्न हुई होगी, अर्थात, मंदिर के आंगनों में लोगों का सुबह के प्रवचन के लिए उनके पास आने के बजाय यीशु को सुनने के लिए आना।
एक दिन पहले ही वो मंदिर के दरबानों द्वारा मसीह को गिरफ्तार करवाने में विफल रहे थे (7:45), इसलिए अब उन्होंने एक अलग दिशा से हमले की कोशिश की। यीशु के साथ व्यक्तिगत तौर पर बात करने का इंतजार किए बिना, उन्होंने उसे शिक्षा देते हुए रोका। सुनने वालों की भीड़ के बीच व्यवस्था के शिक्षक और फरीसी एक महिला के साथ आए जिसे उन्होंने उन सभी के सामने खड़ा कर दिया। उन्होंने उसके व्यभिचार के कार्य में पकड़े जाने के बारे में बताया। उसे कितनी शर्मिंदगी महसूस हुई होगी! उन सभी के सामने खड़ी, शायद वो रो रही थी। महिला को उसकी परिस्थिति के परिणाम पता थे। उसका जीवन खतरे में था। वो व्यभिचार की दोषी थी, और उस पाप के लिए दंड मृत्यु थी:
यदि कोई पुरूष दूसरे पुरूष की ब्याही हुई स्त्री के संग सोता हुआ पकड़ा जाए, तो जो पुरूष उस स्त्री के संग सोया हो वह और वह स्त्री दोनों मार डालें जाएं; इस प्रकार तू ऐसी बुराई को इजराइल में से दूर करना। (व्यवस्थाविवरण 22:22)
मिशनाह, यहूदी संहिताबद्ध कानून, यह कहता था कि व्यभिचार के लिए दंड गला घोंटना है, और यहाँ तक कि गला घोंटने की विधि भी निर्धारित की गई थी:
आदमी को उसके घुटनों तक गोबर में घिरा होना है, और एक मोटे तौलिया के अन्दर मुलायम तौलिया को उसकी गर्दन के चारों ओर रखा जाना है... फिर एक आदमी उसे एक दिशा में खींचेगा और दूसरा दूसरी दिशा में तब तक खींचता है जब तक वह मर नहीं जाता। मिशनाह दोहराता है कि पत्थराव द्वारा मृत्यु ऐसी लड़की के लिए दंड है जिसकी मंगनी हो गई है और वह व्यभिचार करती है।
प्रश्न 1) यहूदी कानून के अनुसार, यदि व्यभिचार के कार्य में कोई जोड़ा पकड़ा गया था, तो दोनों को मृत्यु से दंडित किया जाना था। तो, आदमी कहाँ था? न्याय करने के लिए उसे भी यीशु के सामने क्यों नहीं लाया गया था? इस जाल के द्वारा उसके शत्रु क्या हासिल करने की उम्मीद कर रहे थे?
तो, आदमी कहाँ था? हमें पद 6 में बताया गया है कि यह एक जाल था, जो भी निर्णय वह ले उसमें यीशु को फँसाने का, अर्थात, पथराव करने या नहीं करने का। यह घटना न्याय या धार्मिकता के बारे में नहीं थी; यीशु को फँसाने के लिए महिला को सिर्फ एक मुद्दा बनाने के लिए और एक ज़रिये के रूप में उपयोग की जा रही थी। यह योजना संभवत: पूर्व निर्धारित थी। जब गरीब असुरक्षित महिला पर जाल फैला दिया गया, तो धार्मिक अग्वों ने आकर उसे दबोच लिया, मैं समझता हूँ एक ऐसे पुरुष के साथ हमबिस्तर होने पर जो इस समझौते में सह-षड्यंत्र करने वाला व्यक्ति था। इस सह-साजिशकर्ता को महिला के साथ न्याय के लिए नहीं लाया गया था।
अग्वों के मनों में, यह जाल उचित था। व्यभिचार के कार्य में महिला को पकड़ने का कार्य यीशु को ऐसी परिस्थिति में डाल देगा जहाँ वो व्यवस्था और अपनी शिक्षा दोनों को पूरा करने में सक्षम नहीं होगा। यह "बड़ी भलाई" के लिए रची एक दुष्ट योजना थी, क्योंकि उनकी धारणा में, यीशु एक झूठा भविष्यद्वक्ता और सब्त के दिन लोगों को चंगाई देने के द्वारा उसका तोड़ने वाला था। बेशक, उन्होंने आदमी को इसलिए जाने दिया क्योंकि वह इस जाल का हिस्सा था। उसका न्याय और पथराव नहीं किया जा सकता था।
महिला को यीशु के सामने खड़े होने के लिए मजबूर कर, यह सोचते हुए कि उन्होंने मसीह को फंसा लिया है, कहा, “हे गुरू, यह स्त्री व्यभिचार करते ही पकड़ी गई है। 5व्यवस्था में मूसा ने हमें आज्ञा दी है कि ऐसी स्त्रियों को पत्थराव करें: सो तू इस स्त्री के विषय में क्या कहता है?” (पद 4-5) लेखक ए.डब्ल्यू पिंक ने यीशु की इस दुविधा के बारे में एक महान टिप्पणी की है:
अगर उसने कहा होता, "उसे जाने दो," तो वे उसे परमेश्वर की व्यवस्था के खिलाफ दुश्मन होने का आरोप लगा सकते थे, और उसका वचन "यह न समझो, कि मैं व्यवस्था या भविष्यद्वक्ताओं को लोप करने के लिए आया हूँ: मैं लोप करने के लिए नहीं परन्तु पूरा करने के लिए औया हूँ" (मत्ती 5:17)। लेकिन अगर उसने जवाब दिया होता, "इसका पथराव कर दो," तो वह उसकी इस बात का उपहास बनाते कि वह "चुंगी लेने वालों और पापियों" का मित्र था। इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे इस बात से संतुष्ट थे कि उन्होंने उसे पूरी तरह से घेर लिया था। एक ओर, अगर वह इस दोषी महिला के खिलाफ लगाए गए आरोप को नजरअंदाज करता, तो वे पाप से समझौता करने का आरोप लगा सकते थे; दूसरी तरफ, यदि वो उसपर न्याय की घोषणा करता, तो उसके अपने शब्दों का क्या, “परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिये नहीं भेजा, कि जगत पर दंड की आज्ञा दे परन्तु इसलिये कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए।”
(यहुन्ना 3:17)
उस समय यहूदी लोग रोमी शासन के अधीन रह रहे थे, और रोमी कानून के अनुसार प्राणदंड रोमी अदालती प्रणाली का अधिकार था। यहूदियों को रोमी अनुमति के बिना महिला का पथराव करने का अधिकार नहीं था। महिला का पथराव कर परमेश्वर की व्यवस्था का सम्मान करने में यीशु स्वयं के उपर रोम का प्रकोप लाता। धार्मिक अग्वे यह जानते थे कि यीशु एक ऐसा व्यक्ति था जो व्यवस्था का पालन करता था और कि वह उस स्त्री का न्याय दोषी के रूप में कर उसे मृत्यु देने के लिए परमेश्वर की व्यवस्था द्वारा बंधा था। यदि वह ऐसा नहीं करता, तो वे यह कहकर उसे दरकिनार कर सकते थे कि उसने व्यवस्था का पालन नहीं किया और उसने वास्तव में, मूसा की व्यवस्था के विपरीत बातों को सिखाया। वे सोच रहे थे कि अगर वो महिला को मुक्त कर देता है तो बहुत से लोग उससे दूर हो जाएंगे।
उसे क्या करने की आवश्यकता थी? अगर वो व्यवस्था को कायम रख उसे दोषी ठहराता, तो वह उनके क्रूर जाल में फंस जाएगा, और अधर्मि पुरुष अपने स्वार्थी कारणों के लिए इस महिला को मार डालेंगे। अगर ऐसा होता, तो आपके और मेरे लिए कोई उम्मीद नहीं रह जाती, क्योंकि हम सभी मूसा की व्यवस्था को तोड़ने के दोषी हैं। हम में से कोई भी पाप रहित नहीं है; हम सभी पवित्र और न्यायी परमेश्वर के सम्मुख एक दोषी विवेक द्वारा अपराधी ठहराए गए हैं। हमें इस बात पर भरोसा नहीं होता कि परमेश्वर हमें हमारे पापों के लिए क्षमा करेगा।
परमेश्वर ने उन पुरुषों की मंशाओं को देखा जो उसे उसके पास लेकर आए थे। मसीह का शत्रु (शैतान) मसीह और साधारण लोगों के बीच विभाजन का कारण बनने के लिए मनुष्यों का उपयोग कर रहा था। यीशु ने स्त्री के उस टूटेपन और शर्मिंदगी को देखा जो उसने इन आत्म-धर्मी पुरुषों के हाथों सहन किया था जिनहें उसकी कुछ परवाह नहीं थी। उनके लिए, वो सिर्फ एक वस्तु थी। महिला का कोई नाम नहीं था, कोई भावनाएं नहीं थी, और धार्मिक नेताओं के अनुसार, कोई प्राण नहीं था। वह केवल एक महिला थी जिसे वे अपनी साजिश में लुभा सकते थे।
बहुत से इसी प्रकार के पाप के दोषी हैं। हो सकता है कि हमने व्यभिचार करने के द्वारा कभी पाप न किया हो, लेकिन प्रतिश्रुति के पाप के बारे में क्या? मूसा की व्यवस्था में यह निर्धारित किया गया है कि एक स्त्री के विवाह के दिन, यदि वाचा का चिन्ह, यानी, हायमन (योनी की झिल्ली) का टूटना, शादी की रात को नहीं हुआ, और उस वाचा का लहू जो उन्होंने एक दूसरे के साथ की है अगली सुबह चादरों पर प्रस्तुत नहीं किया जा सकता होता, तो उस स्त्री को शहर के सभी पुरुषों द्वारा पथराव कर मार दिया जाता (व्यवस्थाविवरण 22:20-21)। उन्हें इज़राइल से बुराई को परिशोधित करना था।
हम में से कई लोग इस महिला में खुद को देखते हैं, अर्थात, परमेश्वर की व्यवस्था के सम्मुख दोषी और परमेश्वर से अनुग्रह और दया की आवश्यकता रखते हुए। हममें से अन्य लोग इन धार्मिक अग्वों की तरह रहे हैं, अर्थात, अपनी इच्छाओं और ज़रूरतों को पूरा करने के लिए लोगों को अपने मतलब के लिए उपयोग करने के दोषी। उन्होंने इस टूटी हुई, रोटी-बिलखती महिला के बारे में कोई परवाह नहीं की; वह सिर्फ उनके जाल में फंसी शिकार थी। वे उसे पथराव के द्वारा मरते देखकर बहुत खुश थे। इस प्रकार का पाप जो लोगों को अपने मतलब के लिए उपयोग करता है, परमेश्वर को क्रोधित करता है। यीशु उनके असली उद्देश्यों और इरादों से अच्छी तरह से अवगत था। वह उस महिला के हृदय में भरे टूटेपन और शर्मिंदगी से भी अवगत था। टूटापन और दीनता हमेशा परमेश्वर के अनुग्रह की आस रखते हैं।
अपराधी को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए
हम नहीं जानते कि इस महिला के जीवन में इस घटना से पहले क्या घटनाएं घटीं। लोगों को उसकी बदनामी के बारे में कितने समय से पता था? क्या उसने इस आमने-सामने से पहले यीशु के शब्दों को सुना था? शायद, उसके जीवन में ऐसे क्षेत्र थे या ऐसी आत्मिक ज़रूरतें जिन्हें उसने परमेश्वर के साथ ठीक करने में ढिलाई बरती होगी। हम में से कई के गुप्त पाप हैं जिनके बारे में हम आशा करते है कि कोई भी न देखे। हालांकि, एक है जो हमेशा देखता है। परमेश्वर देखता है, और वह शर्मिंदगी और ग्लानी से आपके उद्धार के लिए उत्सुक है। हम उस ग्लानी और शर्मिंदगी को अनदेखा नहीं कर सकते हैं जो शत्रु महत्वपूर्ण प्रभाव के साथ रणनीति के रूप में उपयोग करता है। ग्लानी की भावना मात्र इसी बात की एक चेतावनी है कि भीतर कुछ गलत है।
कई वर्ष पहले इंग्लैंड में रहते हुए, मैं अपनी पत्नी सैंडी, और पाँच अन्य लोगों के साथ फ्रांस, स्पेन और पुर्तगाल होते हुए एक अल्पकालिक मिशन यात्रा पर गया। हम विभिन्न कलीसियाओं का दौरा कर रहे थे, सड़कों पर सुसमाचार प्रचार कर रहे थे और अपने मार्ग पर आगे बढ़ते हुए लोगों को मसीह के पास ला रहे थे। फ्रांस के ग्रामीण हिस्सों में गाड़ी से यात्रा करते समय, गाडी के डैशबोर्ड पर इंजन की लाल बत्ती जल गई, और हम घर से सैकड़ों मील दूर थे। हम गाडी का खराब होना बर्दाश्त नहीं कर सकते थे; अगर चेतावनी की बत्ती को नजरअंदाज किया गया तो परिणाम बहुत विशाल होते। हमें बत्ती की जाँच कर समस्या को ठीक करने के लिए आस-पास किसी को ढूँढने के लिए सुबह तक रुकना और इंतज़ार करना पड़ा। हम उजाड़ में कहीं एक उड़े हुए इंजन के साथ फंसे नहीं रहना चाहते थे। यदि आगे जाकर किसी भी मदद से मीलों दूर गाड़ी बिगड़ जाती तो इस मुद्दे को संबोधित किए बिना आगे बढ़ना मूर्खता और संभवत: विनाशकारी होता। अगर हमने उस बत्ती को नजरअंदाज कर दिया होता तो क्या होता? जबकि किसी की गाड़ी में चेतावनी की लाल बत्ती जल रही हो तो आगे बढ़ते रहना मूर्खता है।
मैं ग्लानी के विषय में उसे प्राण की लाल चेतावनी की बत्ती के रूप में सोचता हूँ। ग्लानी आपके प्राण के डैशबोर्ड पर बुरी तरह से हावी होती है। यह रुक-कर स्वयं से यह पूछने का समय है कि क्या आपने वास्तव में कुछ साल पहले जो कुछ हुआ, उसे लेकर परमेश्वर के साथ बातें ठीक कर लीं हैं। क्या यह ऐसा कुछ है जो आपके मन में बार-बार उठता रहता है? यदि ऐसा है, तो शायद ऐसा इसलिए है क्योंकि आपने कभी भी वास्तव में उस विशेष पाप से पश्चाताप कर उसे त्यागा नहीं है। यदि यह एक व्यक्ति है जो ध्यान में आता रहता है, तो यहाँ क्षमा करने का मुद्दा हो सकता है जिसे आपको संबोधित करने की आवश्यकता है। झूठी ग्लानी के रूप में एक ऐसी चीज भी है जो शत्रु हमारे ऊपर लादता है, अर्थात, हमारे ऊपर किसी ऐसी बात का आरोप लगाना जिसे हम ईमानदारी से पिता के पास लाकर उसका अंगीकार कर उसे त्याग चुके हैं। आपको अपने भीतर यह जानने की आवश्यकता है कि क्या आपके साथ यह परमेश्वर कर रहा है, या यदि यह शत्रु है। जब आप दोषी महसूस करते हैं, तब यह जानने का सुराग कि कौन आपको आपके पाप की याद दिला रहा है यह है कि आप अपने आप से यह प्रशन करें कि क्या यह विचार आपको मसीह के पास लाते हैं या मसीह से दूर ले जाते हैं? यदि यह शत्रु है जो पाप के विषय में आप पर दोष लगा रहा है, तो वह हमेशा दोषारोपण के साथ आपको आपके पाप की ओर इशारा करते हुए अपने विश्वास को त्यागने की कोशिश करता है। जब पवित्र आत्मा हमें दोषी ठहराता है, तो वह हमेशा हमें हमारे पापों के लिए मसीह के बलिदान के प्रावधान की याद दिलाता है। पश्चाताप, और जब कभी भी पुन: स्थापना की आवश्यकता होती है, और हमारे पाप का त्यागा जाना, परमेश्वर के साथ संबंध को पुन: स्थापित करता है।
हमारे पाप को ढाँपने के लिए अनुग्रह
प्रश्न 2) आपको क्या लगता है कि यीशु नीचे झुक कर धूल में क्यों लिख रहा था? आप क्या सोचते हैं कि वो क्या लिख रहा था?
यहुन्ना 8:6 में प्रयोग किए गए यूनानी शब्द, कैटाग्राफ़ो, का शाब्दिक अर्थ है, "विरोध में लिखना।" हमें नहीं पता कि उसने क्या लिखा, लेकिन यह संभव है कि वह नीचे झुककर धूल में उनके पाप लिख रहा था। यह भी हो सकता है कि वह उनकी ओर देखने से इसलिए बच रहा था ताकि आत्मा उस समय में उनको उनके पाप के विषय में दोषी ठहरा सके। यह भी संभव है कि वह अपने हृदय में अपने पिता से अगले कदम के लिए ज्ञान माँगते हुए प्रार्थना कर रहा था ।
यहाँ हम पिता पर पूर्ण निर्भरता देखते हैं। दबाव में होने पर क्या मैं आपको भी वही करने की सलाह दे सकता हूँ। हम में से कई तनाव के बीच में पिता को सुनने के लिए समय लेने में व्यस्त हैं। यहाँ कितने क्षण बीते होंगे, यह हम नहीं जानते, लेकिन यहूदी अधिकारियों ने जवाब देने का दबाव बढ़ा दिया। यीशु उठ खड़ा हुआ, अपने चारों ओर उन आरोपियों को देखा, और कहा, “तुम में जो निष्पाप हो, वही पहले उसको पत्थर मारे” (पद 7)। बम का क्या गोला गिरा! वे इसकी बिल्कुल उम्मीद नहीं कर रहे थे! वे वहाँ थे, पत्थरों के साथ तैयार, व्यवस्था के विपरीत बातों को सिखाने के लिए यीशु या फिर स्त्री में से एक पर उन्हें फेंकने के लिए, और उन्हें उनमें से किसी पर भी पत्थर फैंकने का मौका मिलने के बजाय, यीशु ने फिर से ज़मीन पर झुककर धूल में लिखना जारी रखा।
मसीह ने बुद्धिमानी से धार्मिक अग्वों पर ज़िम्मेदारी डाल दी। उसने महिला के आरोपियों को याद दिलाया कि इस कृत्य के गवाहों को चाहिए कि “उसके मार डालने के लिये सब से पहिले साक्षियों के हाथ, और उनके बाद और सब लोगों के हाथ उस पर उठें। इसी रीति से ऐसी बुराई को अपने मध्य से दूर करना।” निर्गमन 17:7
प्रश्न 3) आप क्या सोचते हैं कि महिला के मन से तब क्या चल रहा होगा जब उसने मसीह के शब्दों को सुना? बूढ़े लोगों ने पहले क्यों जाना शुरू कर दिया?
मैं सोचता हूँ कि क्या महिला अपनी पीठ आरोपियों की ओर फेर कर पहले की चोट खाने के लिए तैयार थी। इसके बजाए, उसने तबतक एक के बाद एक पत्थर के ज़मीन पर गिरने की आवाज़ सुनी जब तक दर्शकों की भीड़ से पूरी तरह से चुप न हो गई। धीरे-धीरे, शायद कई मिनटों में, सबसे वृद्ध से शुरुआत करते हुए, उसके आरोपियों में से प्रत्येक अपने पत्थर छोड़ वहाँ से चले गए। सबसे वृद्ध सबसे जल्दी क्यों चले गए? जितना बड़े हम होते जाते हैं, हम उतने ही बुद्धिमान भी होते जाते हैं, और हमारे पाप भी अधिक हो जाते हैं जिनके लिए हम उत्तरदायी हैं। हम सभी ने गलतियाँ की हैं। हममें से कोई भी ऐसा नहीं जो अतीत में किए गए कुछ कार्य के लिए दोष रहित नहीं हैं। इससे पहले कि हम दूसरों को उनकी आँख का तिनका निकालने में मदद करें (मत्ती 7:3-5), हम सभी को अपनी आँख से लट्ठा निकलना होगा। जब हम सभी ने स्वयं पाप किया है तो हम दूसरों पर पत्थर कैसे फेंक सकते हैं?
सुबह की शिक्षा के लिए मंदिर के आंगनों में उपस्थित सभी के लिए यह क्या ही नज़ारा होगा। यहाँ, वे न केवल मूसा के नियम को लागू होते देख रहे थे बल्कि मसीह द्वारा प्राप्त अनुग्रह और सत्य भी देख रहे थे। पवित्रशास्त्र कहता है, “इसलिये कि व्यवस्था तो मूसा के द्वारा दी गई; परन्तु अनुग्रह, और सच्चाई यीशु मसीह के द्वारा पहुँची।” (यहुन्ना 1:17) यह हम सभी के लिए, जिन्होंने पाप किया है, कितना प्रोत्साहित करने वाला होना चाहिए। हर पाप को ढाँपने के लिए अनुग्रह है। यदि आप कभी विवाह के बाहर यौन अनैतिकता के कार्य में शामिल हुए हैं, या कभी व्यभिचार या कोई अन्य गलती की है, तो यदि आप सच्चाई से पश्चाताप कर इसे छोड़ देंगे, और आपके लिए किये मसीह के कार्य और उसके व्यक्ति को ग्रहण करेंगे तो आपके पाप को ढाँपने के लिए पर्याप्त अनुग्रह है।
प्रश्न 4) पुराने नियम में परमेश्वर ने प्रतिश्रुति और व्यभिचार पर इतनी कड़ी सजा क्यों रखी? क्या नए नियम के समय में यह कुछ अलग है? आप क्या सोचते हैं?
नया नियम सभी बातों में परमेश्वर के लोगों को पवित्रता और शुद्धता के लिए प्रोत्साहित करता है। पौलुस प्रेरित हमारे यौन जीवनशैली के लिए परमेश्वर के दर्शन का सारांश देता है: "3और जैसा पवित्र लागों के योग्य है, वैसा तुम में भी व्यभिचार, और किसी प्रकार का अशुद्ध काम, या लोभ की चर्चा तक न हो। 4 और न निर्लज्जता, न मूढ़ता की बातचीत, न ठट्ठे की, क्योंकि ये बातें सोहती नहीं, वरन धन्यवाद ही सुना जाए" (इफिसियों 5:3-4)। कुछ लोग कह सकते हैं कि परमेश्वर के मापदंड कठोर हैं, और वे हैं भी। लेकिन परमेश्वर जानता है कि उसके बच्चों के लिए सबसे अच्छा क्या है, और वह आज्ञाकारिता की अपेक्षा रखता है। यौन अनैतिकता परमेश्वर के लिए बहुत ही व्यक्तिगत है क्योंकि यह उसमें हमारी पहचान से जुड़ा हुआ है। यौन पाप करना परमेश्वर के साथ-साठ अपने विरुद्ध पाप करना है। एक दूसरी जगह, पौलुस ने लिखा, "परन्तु देह व्यभिचार के लिये नहीं, वरन प्रभु के लिये; और प्रभु देह के लिये है” (1 कुरिन्थियों 6:13)। इसलिए, अशुद्धता के कार्य करना हमारी स्वाभाविक प्रवृत्ति के विरुद्ध है।
यौन संभोग का कार्य, यानी, दो लोगों का एक तन होना, पवित्र है। यह मसीह के साथ हमारे एक होने जैसा दिखता है। पौलुस प्रेरित बताता है कि कैसे हमारे शरीर मसीह के सदस्य हैं। यौन संतुष्टि के लिए विवाह की वाचा के बाहर अपने शरीरों को किसी दूसरे के साथ एक करने में, हम न केवल परमेश्वर और अपने विरुद्ध बल्कि अपने पति/पत्नी (वर्तमान या भविष्य) के विरुद्ध भी पाप करते हैं, वह व्यक्ति जिनके साथ हम अभी सम्बन्ध में हैं, और अपने विरुद्ध भी। हमारे शरीर प्रभु के लिए मंदिर हैं।
पौलुस ने आगे कहा:
18व्यभिचार से बचे रहो: जितने और पाप मनुष्य करता है, वे देह के बाहर हैं, परन्तु व्यभिचार करनेवाला अपनी ही देह के विरूद्ध पाप करता है। 19क्या तुम नहीं जानते, कि तुम्हारी देह पवित्र आत्मा का मन्दिर है; जो तुम में बसा हुआ है और तुम्हें परमेश्वर की ओर से मिला है, और तुम अपने नहीं हो? 20कयोंकि दाम देकर मोल लिये गए हो, इसलिये अपनी देह के द्वारा परमेश्वर की महिमा करो। (1 कुरिन्थियों 6:18-20)
सभी पाप के परिणाम होते हैं, लेकिन यौन पाप विशेष रूप से हानिकारक परिणाम लाता है, और परमेश्वर हमें इससे बचाने की इच्छा रखता है। यौन पाप के कुछ प्रभावों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:
1. हम परमेश्वर को खेदित करते हैं।
2. हमारा प्राण आत्मिक रीती से उस व्यक्ति से जुड़ जाता है जिसके साथ हम यौन संबंध रखते हैं (1 कुरिन्थियों 6: 15-16)।
3. हम अपने जीवन में पवित्र आत्मा की गतिविधि को दबाते हैं।
4. हमारे पति/पत्नी के साथ हमारा सम्बन्ध क्षतिग्रस्त होता है।
5. भविष्य में प्रलोभन के लिए हमारी याददाश्त यौन छवियों से भर जाती है।
6. हम यौन संक्रमित बीमारी पा सकते हैं।
7. हमारे विचार बुराई से भ्रष्ट हो सकते हैं (रोमियों 8:6)।
8. हम सभी प्रकार के भ्रम के लिए दरवाजा खोलते हैं।
9. अगर एक बच्चा गर्भ में आ जाता है, तो क्या? बच्चे को पालने-पोसने की ज़िम्मेदारी भी तो है।
स्त्री और मसीह के बीच हुई वार्तालाप को देखना और सुनना कितना ही सुंदर नज़ारा होगा। वह सारी धरती के न्यायी के सम्मुख खड़ी थी, और उसके होंठों से यह दयालु शब्द उत्पन्न हुए, “10यीशु ने सीधे होकर उससे कहा, “हे नारी, वे कहाँ गए? क्या किसी ने तुझ पर दंड की आज्ञा न दी।” 11उसने कहा, “हे प्रभु, किसी ने नहीं।” यीशु ने कहा, “मैं भी तुझ पर दंड की आज्ञा नहीं देता; जा, और फिर पाप न करना”। (यहुन्ना 7:53-8:11) मुझे नहीं पता कि यह शब्द उस स्त्री के लिए क्या अर्थ रखते थे, लेकिन मुझे ये पता है कि इनका मेरे जीवन पर क्या प्रभाव रहा हैं। आह, किसी के पाप से क्षमा किये जाने का अचंभा! मेरे पाप ने मृत्यु के दंड को अपने ऊपर लागू किया, और साथ ही, परमेश्वर के साथ हमेशा के लिए अलगाव, लेकिन परमेश्वर ने अपने पुत्र को मेरे द्वारा किये गए कर्ज का भुगतान करने के लिए भेजा। पौलुस ने उस अनुग्रह के बारे में लिखा जो हमारे पाप को ढाँपता है: "परन्तु जहाँ पाप बहुत हुआ, वहाँ अनुग्रह उससे भी कहीं अधिक हुआ।" (रोमियों 5:8)।
मसीह ने उसके पाप को नजरअंदाज या अनदेखा नहीं किया। वह क्रूस पर अपनी आने वाली मौत की प्रतीक्षा कर सकता था ताकि स्त्री के साथ अनुग्रह कर सके क्योंकि उसकी मृत्यु उसके लिए और उसके स्थान पर न केवल उसके लिए बल्कि आपके और मेरे लिए भी एक विकल्प थी। उसने उसे जाकर अपने पाप के जीवन को छोड़ने के लिए कहा। हम नहीं जानते कि यीशु के साथ इस मुलाकात के बाद उसके साथ क्या हुआ, लेकिन सब बातों में हम जानते हैं कि, "दया न्याय पर जयवन्त होती है" (याकूब 2:13)। मेरी प्रार्थना यह है कि जो भी लोग इन शब्दों को पढ़ते हैं उनके लिए न्याय पर दया जयवंत होगी। वह आपके माँगने की प्रतीक्षा कर रहा है, कि आप प्राप्त कर सकें।
प्रार्थना: पिता, आपकी दया और अनुग्रह के लिए धन्यवाद जिसे आपने न केवल इस खंड में स्त्री के लिए बल्कि हम प्रत्येक के लिए भी प्रदर्शित किया है। उस आशा के लिए धन्यवाद जो आपमें हमारे पास है। अमीन!
कीथ थॉमस
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