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1. The Word Was God

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1. वचन परमेश्वर था

यहुन्ना की पुस्तक का केंद्र क्या है और मसीह के व्यक्तित्व को समझने में यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है? मती 17 में येशु के रूपांतरण के समय, पिता परमेश्वर अपनी उपस्तिथि प्रकट करता है, यह घोषणा करते हुए; यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिसे मैं प्रेम करता हूँ, जिस से मैं प्रसन्न हूँ: इस की सुनो!” (मती 17:5) पिता ने तीन चेलों को येशु के शब्द सुनने और उनके प्रति आज्ञाकारी होने का आदेश दिया। आगे जाकर महान आज्ञा में हम देखते हैं कि वह अपने सब चेलों को कहता है कि वे सब राष्ट्रों को उसके सब आदेशों पर चलने की शिक्षा देने को कहता है (मती 28:20)। अगर कभी ऐसा समय है जब कलीसिया को येशु के इन शब्दों को सुनने की आवश्यकता है, तो वह अब है। हमें अपने पाप के अन्धकार में डूबे संसार में ज्योति प्रकट करने के लिए येशु के शब्दों की आवश्यकता है। यहुन्ना बार-बार हमारा ध्यान इस प्रश्न की ओर ले जाता है, “वाकई में, येशु कौन है?” व्यक्तिगत रीती से, मुझे इस बात पर एक विशेष बल होने के कारण यहुन्ना की पुस्तक से पढ़ाना अत्यंत भाता है। यहुन्ना की पुस्तक मती, मरकुस और लूका के संयुक्त (संयुक्त का अर्थ “एक साथ देखना है”) सुसमाचारों से बिलकुल भिन्न है। पहले तीन सुसमाचार येशु के कार्यों और शिक्षाओं पर ज्यादा केन्द्रित हैं, जबकि यहुन्ना का ज्यादा केंद्र इस बात पर है कि येशु कौन है

 

यह संभव है की यहुन्ना ने पहले से ही वह पढ़ लिया हो जो अन्य सुसमाचारों के लेखक येशु के बारे में लिखते हैं, क्योंकि ज़्यादातर बाइबिल समीक्षक मानते हैं कि यहुन्ना का सुसमाचार लगभग 90 इसा पश्चात् लिखा गया था यहुन्ना येशु के जीवन में उसके जन्म, बप्तिस्में, जंगल में उसकी परीक्षा, गत्समने में उसकी पीड़ा, उसके उठाये जाने, दुष्ट आत्माओं से सामने और दृष्टांतों जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं को छोड़ देता हैयहुन्ना कई ऐसी बातें भी शामिल करता है जिनके बारे में औरों ने नहीं लिखा, जैसे कि येशु द्वारा पानी को दाखरस में बदलने का वाकया, जिसे येशु का पहला आश्चर्य कर्म मन गया (यहुन्ना 2:1-11); कफर्नूम में राजा के कर्मचारी के बेटे की चंगाई (यहुन्ना 4:46-54); बैतहसदा के कुण्ड पर बीमार की चंगाई (यहुन्ना 5:1-9); जन्म से अंधे आदमी की चंगाई (यहुन्ना 9:1-7); लाज़र का जिलाया जाना (यहुन्ना 11:38-44); और मछलियों के पकड़े जाने का दूसरा आश्चर्य कर्म (यहुन्ना 21:4-6). यहुन्ना का बल येशु के स्वर्ग से आने का नजरिया प्रस्तुत करता है, इस बात को दर्शाते हुए कि वह परमेश्वर है। यहुन्ना का ज़ोर येशु को स्वर्ग से आया हुआ प्रस्तुत करने पर है, यह दर्शाते हुए कि वह परमेश्वर है। यहुन्ना के सुसमाचार को एक उद्देश्य के साथ लिखा गया है; और इसकी मुख्य मंशा येशु को प्रतिज्ञा किये हुए मसीह के रूप में प्रस्तुत करने की है। (क्राइस्ट शब्द इब्रानी भाषा में मसीह का अनुवाद है।) इस पुस्तक का मुख्य पद इसके अंत में मिलता है:

 

परन्तु ये इसलिये लिखे गए हैं, कि तुम विश्वास करो, कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है: और विश्वास करके उसके नाम से जीवन पाओ।(यहुन्ना 20:31)

 

जब हम इस पुस्तक में आगे बढ़ते हुए अपने आप को मसीह के व्यक्तित्व में और वह हमसे आज क्या कह रहा है, डुबो देते हैं, हमारा ज़ोर भी इसी बात पर होगा

 

बातचीत पर शुरुआती प्रश्न: अपने परिवार में किसी के साथ बात चीत करने के लिए आप किन व्यक्तिगत इशारों का प्रयोग करते हैं? क्या यह एक टेढ़ी नज़र है; गले की खराश; मुड़कर देखना; चूंटी काँटना; अडंगी? आप, या ऐसा कोई जिससे आप प्रेम करते, बिना शब्दों के एक दूसरे को सन्देश कैसे देते हैं?

 

वैकल्पिक शुरुआती प्रश्न: क्या आपने कभी कुछ बेवकूफी या शर्मिंदगी भरा कह यह इच्छा की है कि काश मैं अपने शब्द वापस ले सकता? आपने जो कहा उसे एक दूसरे के साथ बाँटें

 

बातचीत एक अद्भुत और आवश्यक चीज़ है, लेकिन बातचीत में समस्या विनाशकारी या फिर हास्यास्पद नतीजे भी उत्पन्न कर सकता है। एक विचार को बताने के एक से ज्यादा तरीके होते हैं, जो की तब साफ़ हो जाता है जब आप एक देश से दूसरे में जाते हैं। जब में पहली बार इंग्लैंड से अमरीका आया, तो मेरे साथ बातचीत करने में अनेक समस्याएं हुईं। इनमें से एक तब हुई जब मैं जीन और ऐलिस नामक जोड़े के घर पर रुका हुआ था। जीन ने सुबह जल्दी उठकर लकड़ी चीरने की योजना बनाई, जैसा कि सर्दियों में उसकी आम प्रथा थी। मैंने सोचा की अगली सुबह मैं उसका हाथ बटाऊँगा, तो मैंने एक सन्देश लिख उसके दरवाज़े पर चिपका दिया जिसपर लिखा था: “अगर तुम्हे सुबह मेरी ज़रूरत हो, तो मुझे खड़का देना!” (मैंने बाद में इस बात को जाना की खड़का देना शारीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए अमरीकी कठबोली है!) अगली सुबह उन्होंने मेरा खूब मजाक बनाया। मैंने यह भी जाना कि बात-बात पर यह कह देना की ‘मैं खुला हूँ’ का अर्थ यह नहीं है कि जो ज़्यादातर लोग करना चाहते हैं मैं भी वही कर लूँगा बल्कि इसका अर्थ तो बिलकुल भिन्न था। कभी-कभी दूसरों से बातचीत करने में आपको अपनी गलतियों से सीखना पड़ता है।

नीचे आने वाले खंड हम देखते हैं कि पिता परमेश्वर अपनी बातचीत में विशेष ध्यान देता है। वह हमारे साथ इस प्रकार बातचीत करने का इरादा रखता है जिससे हम उसे पूरी तरह समझ सकें, कि वह अपने इकलौते पुत्र को हमारे पास ओने घर का मार्ग दिखाने के लिए भेजता है। उसने व्यावहारिक रूप से हमें अनंत जीवन का मार्ग दिखाने के लिए महान पीड़ा उठाई। मानव जाती से बातचीत करने के लिए परमेश्वर ने किसी स्वर्गदूत को नहीं भेजा। परमेश्वर स्वयं आया, मानवीय रूप में हमारे लिए अपना सन्देश लेकर। उसके लिए इस प्रकार बातचीत करना काफी कीमती था; सच कहें तो, उसके लिए इसकी कीमत सबकुछ न्योछावर कर देना रहा। हम पहले कुछ शब्दों का सारांश अपने शब्दों में यह कह दे सकते हैं, “आदि में बातचीत थी।” हमारा परमेश्वर कितना कृपाशील है! परमेश्वर का जीवित वचन, स्वयं पुत्र, आपसे और मुझसे बातचीत करने की लालसा रखता है। इसके बारे में सोचने के लिए कुछ समय लें और इसे गहरा जाने दें! अकेले यह विचार ही हमें उसके साथ प्रार्थना में समय बिताने और सम्बन्ध में घनिष्ठता का अभ्यास करने के लिए उकसाना चाहिएअपने सुसमाचार के बिलकुल शुरुआत में, यहुन्ना के लिए बिलकुल स्पष्ट है कि मसीह है कौन – परमेश्वर मनुष्य के पास आता, न केवल हमें घर का मार्ग दिखाने के लेकिन स्वयं मार्ग होकर, अपना जीवन देने के द्वारा कि मनुष्य नए सिरे से पुन:स्थापित हो और पुन: जन्म ले सके, या ऊपर से जन्म ले सके (यहुन्ना 3:3) वह हमें बताता है कि जो उसे ग्रहण करते हैं, परमेश्वर से उत्पन्न हैं (पद 12-13)। आइये इस खंड को पढ़ें और फिर इसे बेहतर समझने के लिए गहराई में जाएँ:

 

वचन देहधारी हुआ

 

1 आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था। 2 यही आदि में परमेश्वर के साथ था। 3 सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उस में से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न हुई। 4 उस में जीवन था; और वह जीवन मुनष्यों की ज्योति थी। 5 और ज्योति अन्धकार में चमकती है; और अन्धकार ने उसे ग्रहण किया। 6 एक मनुष्य परमेश्वर की ओर से उपस्थित हुआ जिस का नाम यूहन्ना था। 7 यह गवाही देने आया, कि ज्योति की गवाही दे, ताकि सब उसके द्वारा विश्वास लाएं। 8 वह आप तो वह ज्योति था, परन्तु उस ज्योति की गवाही देने के लिये आया था। 9 सच्ची ज्योति जो हर एक मनुष्य को प्रकाशित करती है, जगत में आनेवाली थी। 10 वह जगत में था, और जगत उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जगत ने उसे नहीं पहिचाना। 11 वह अपने घर में आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया। 12 परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। 13 वे तो लोहू से, शरीर की इच्छा से, मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं।

14 और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उस की ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा। 15 यूहन्ना ने उसके विषय में गवाही दी, और पुकारकर कहा, कि यह वही है, जिस का मैं ने वर्णन किया, कि जो मेरे बाद रहा है, वह मुझ से बढ़कर है क्योंकि वह मुझ से पहिले था। 16 क्योंकि उस की परिपूर्णता से हम सब ने प्राप्त किया अर्थात् अनुग्रह पर अनुग्रह। 17 इसलिये कि व्यवस्था तो मूसा के द्वारा दी गई; परन्तु अनुग्रह, और सच्चाई यीशु मसीह के द्वारा पहुंची। 18 परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा, एकलौता पुत्र जो पिता की गोद में हैं, उसी ने उसे प्रगट किया।”

 

मैं इसे रुचिकर पाता हूँ कि यहुन्ना येशु के जन्म के साथ या उसकी माँ के साथ उसके जीवन से शुरुआत नहीं करता। वह मसीह के पूर्व-अस्तित्व के साथ शुरुआत करता है। यहुन्ना की सोच उसके सुसमाचार के शुरुआत से ही हमारा ध्यान इस तथ्य की ओर खींचने पर है की मसीह वास्तविकता में है कौन। लगभग ऐसा प्रतीत होता है कि यहुन्ना, पवित्र आत्मा के चलाए, मती से कुछ भिन्न लिखना चाहता है, मती जो अपने सुसमाचार की शुरुआत यह साबित करने के द्वारा करता है कि येशु दाऊद की संस्तान और अब्राहम की संतान था और है। लूका इस बात को लेकर आता है कि येशु आदम का पुत्र है (लूका 3:23-38)यहुन्ना सीधे मुद्दे पर आता है, येशु की अलौकिकता की पुष्टि उत्पत्ति 1:1 के समान कथन के साथ, “आदि में परमेश्वर...” यहुन्ना लिखता है: 1 आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था। 2 यही आदि में परमेश्वर के साथ था। प्रकाशितवाक्य की पुस्तक हमें सटीकता से बताती है कि परमेश्वर के वचन नाम से किन से तात्पर्य है क्योंकि अध्याय 19 में, पद 11-13; हमें बताया जाता है कि येशु परमेश्वर का वचन है

 

कुछ ऐसे हैं जिन्हें यह सोच नहीं भाती कि येशु शारीर में प्रकट परमेश्वर है। आज हम में से कई पंथ येशु को एक भले व्यक्ति की तरह अपनाते हैं, एक बुद्धिमान शिक्षक या भाविश्य्दत्ता, लेकिन परमेश्वर नहीं। एक ऐसा ही समूह अपने आप को “यहोवा विटनेस” (यहोवा के गवाह) कहता है। मैं उन्हें यह कहकर बुलाना पसंद नहीं करता, लेकिन उन्हें जे.डब्लू. कहता हूँ, क्योंकि मेरी राय में आखिरकार वह हमारे परमेश्वर के गवाह नहीं, क्योंकि वह मसीह की अलौकिकता को नहीं स्वीकारते। जिस लेख की हम अभी परख कर रहे हैं, उसमें वह एक छोटा शब्द जोड़ देते हैं, वह शब्द है एक, जिससे लिखा हुआ बन जाता है, “वचन एक परमेश्वर था”। एक छोटा सा शब्द इतने महत्वपूर्ण कथन के बताए जाने में कितना फर्क ले आता है! इस खंड के उनके अनुवाद के विषय में, डॉक्टर जूलियस मैनटे कहते हैं, “संसार के सभी विद्वानों में, जितना हमें पता है, इस पद का अनुवाद किसी ने भी इस तरह से नहीं किया जैसा यहोवा विटनेस ने किया है” डॉक्टर विलियम बर्कले येहोवा विटनेस के इस अनुवाद के बारे में यह कहते हैं:

 

"इस समूह के जान-बूझकर सत्य को तोड़ने मरोड़ने को इनके नए नियम के अनुवाद में देखा जा सकता हैयहुन्ना 1:1 का अनुवाद: ‘....वचन एक परमेश्वर था,’ एक अनुवाद जो व्याकरण के अनुसार असंभव है। यह बहुतायत से स्पष्ट है कि एक समूह जो नए नियम का इस प्रकार अनुवाद कर सकता, बौद्धिक रूप से बेईमान है।“

आज ऐसे हैं जो येशु के परमेश्वर होने का खंडन करता हैं, यह कहते हुए कि परमेश्वर एक है, और एक ही है। वह परमेश्वर की त्रिएकता का खंडन करते हैं। यहुन्ना प्रेरित अपने शुरुआती कथन में बिलकुल स्पष्ट है कि परमेश्वर वचन था और वह आदि में परमेश्वर के साथ था।

 

आप किसी ऐसे के प्रति जो सत्य की खोज कर रहा हो और मानता हो कि येशु परमेश्वर नहीं हैं, कैसे प्रतिउत्तर देंगे?

 

आज ऐसे लोग हैं जो मसीह की अलौकिकता को यह कहकर गलत साबित करने की कोशिश करेंगे की मसीह ने स्वयं कभी परमेश्वर होने का दावा नहीं किया। यह सत्य है की वह यह कहता नहीं घूमा, “मुझे सुनो, मैं परमेश्वर हूँ”। जो बातें उसने अपने बारे में कहीं और जो बातें उसने करीं इस बात का प्रमाण हैं कि येशु ने अपने आप को परमेश्वर की तरह देखा। जब कोई अनेकों वचनों को देखता है, तो उनसे यह प्रमाणित हो जाता है की वचन मसीह के शारीर में परमेश्वर के चित्रण में बिलकुल स्पष्ट है। आइये ऐसे कुछ उदहारण देखें:

 

मैं जो हूँ सो हूँ

 

जलती झाड़ी में, जब परमेश्वर ने मूसा से बातचीत की, उसको यह बताते हुए कि वह मिस्र में उनकी बंधुवाई से छुड़ाने के लिए उसे इस्राइलियों को पास भेज रहा है, मूसा ने परमेश्वर से पूछा कि वह क्या कहे कि उसे किसने भेजा हैपरमेश्वर ने मूसा से कहा, मैं जो हूँ सो हूँ फिर उस ने कहा, तू इस्राएलियों से यह कहना, कि जिसका नाम मैं हूँ है उसी ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।(निर्गमन 3:14) यहुन्ना के अध्याय 8 में, यहुन्ना एक घटना का विवरण दे रहा है जहाँ येशु फरीसियों की आलोचना का प्रतिउत्तर दे रहा था। उन्होंने समझा की उन्होंने उसे फांस लिया है जब उसने कहा की उसने अब्राहम को देखा है। उसने कहा:

 

56 तुम्हारा पिता इब्राहीम मेरा दिन देखने की आशा से बहुत मगन था; और उस ने देखा, और आनन्द किया। 57 यहूदियों ने उस से कहा, अब तक तू पचास वर्ष का नहीं; फिर भी तू ने इब्राहीम को देखा है? 58 यीशु ने उन से कहा; मैं तुम से सच सच कहता हूँ; कि पहिले इसके कि इब्राहीम उत्पन्न हुआ मैं हूँ 59 तब उन्होंने उसे मारने के लिये पत्थर उठाए, परन्तु यीशु छिपकर मन्दिर से निकल गया।” (यहुन्ना 8:56-59)

 

उसने यह नहीं कहा, “पहले इसके कि अब्राहम उत्पन्न हुआ, मैं था,” या “पहले इसके कि अब्राहम उत्पन्न हुआ, मैं पहले से था” नहीं, इसके बजाय उसने जानबूझकर उस नाम के यूनानी भाषा के अनुवाद का प्रयोग किया, ईगो एमी, वह नाम जिसके द्वारा परमेश्वर ने स्वयं को इस्रालियों के उपर प्रकट किया था, महान मैं हूँ ध्यान दीजिये कि उन्होंने उसके इस कथन पर कैसे प्रतिक्रिया दी। उन्होंने परमेश्वर की निंदा करने के लिए उसे मारने के लिए पत्थर उठा लिए, क्योंकि वह परमेश्वर होने का दावा कर रहा था। यहुन्ना 8:24 में येशु के कुछ ही पद पूर्व कहे कथन के कारण यह हमारे समझने के लिए महत्वपूर्ण सत्य है, जहाँ येशु कहता है: इसलिये मैं ने तुम से कहा, कि तुम अपने पापों में मरोगे; क्योंकि यदि तुम विश्वास करोगे कि मैं वहीं हूँ (जो होने का दावा मैं करता हूँ), तो अपने पापों में मरोगे।(यहुन्ना 8:24) ध्यान दीजिये कि ज़्यादातर अंग्रेजी अनुवादो में “वह जो होने का दावा मैं करता हूँ” (ब्रैकेट) में हैसंपादकों ने इन शब्दों को (ब्रैकेट) में क्यों रखा? क्योंकि यह मूल प्रति में नहीं है! यह इस पूरे खंड पर एक अलग ज़ोर ले आता है, हाँ या ना? येशु कह रहा है कि छुटकारा तभी आता है जब हम येशु कौन है- परमेश्वर का अलौकिक पुत्र, महान मैं हूँ, इसकी सत्य तस्वीर न पा लें जिस तरह से भी देखें, येशु का मतलब स्पष्ट है। अनंत जीवन वह कौन है इसकी समझ पर निर्भर है। अगर वह केवल एक मनुष्य है, अनंत जीवन उस सत्य पर आधारित होगा जिसकी शिक्षा उसने दी। इसके बजाय, जिस सबसे महान सत्य के साथ हमें शुरुआत करनी चाहिए वह यह है कि वो महान “मैं हूँ” है। वह मार्ग, सत्य और जीवन है।

 

आप सुसमाचारों में किन और मैं हूँ के कथनों के बारे में सोच सकते हैं?

 

यहुन्ना 10 में उसके सीधे दावे के बारे में क्या:

 

27 मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं, और मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं। 28 और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ, और वे कभी नाश नहीं होंगी, और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन लेगा। 29 मेरा पिता, जिस ने उन्हें मुझ को दिया है, सब से बड़ा है, और कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता। 30 मैं और पिता एक हैं। 31 यहूदियों ने उसे पत्थरवाह करने को फिर पत्थर उठाए। 32 इस पर यीशु ने उन से कहा, कि मैं ने तुम्हें अपने पिता की ओर से बहुत से भले काम दिखाए हैं, उन में से किस काम के लिये तुम मुझे पत्थरवाह करते हो? 33 यहूदियों ने उस को उत्तर दिया, कि भले काम के लिये हम तुझे पत्थरवाह नहीं करते, परन्तु परमेश्वर की निन्दा के कारण और इसलिये कि तू मनुष्य होकर अपने आप को परमेश्वर बनाता है।” (यहुन्ना 10:27-33)

ध्यान दीजिये कि जब उन्होंने उसपर परमेश्वर होने का दावा करने के लिए आरोप लगाया, येशु ने उन्हें सही नहीं किया अगर वह मात्र एक भाविश्य्दत्ता होता, न कि परमेश्वर, वह ऐसा कहता! आखिरकार, उसने सत्य होने का दावा किया; मार्ग, सत्य और जीवन मैं ही हूँ” कोई जो सत्य की अभिव्यक्ति होने का दावा करता है अपने बारे में ऐसी गहन ग़लतफहमी होने की अनुमति नहीं देता आगे जाकर, जब वह अंतत: थोमा के सम्मुख प्रकट होता है, बारह चेलों में से एक, अपने क्रूस पर चढ़ाये जाने के बात उपरी कमरे में, उसने थोमा को सहीं नहीं किया जब उस चेले ने उत्साह से भर येशु से कहा; “मेरे प्रभु और मेरे परमेश्वर!” अगर येशु वाकई परमेश्वर नहीं होता, हम येशु को परमेश्वर की निंदा में उसे ऐसा कथन कहने के लिए फटकारते देखते। इसके बजाय, वह खंड इशारा करता है कि जब येशु यह कहते हुए उसे अपने घाव देखने का आमंत्रण देता है, थोमा ने आखिरकार समझ लिया था कि येशु वास्तविकता में कौन था:

...27 तब उस ने थोमा से कहा, अपनी उंगली यहां लाकर मेरे पंजर में डाल और अविश्वासी नहीं परन्तु विश्वासी हो।” (यहुन्ना 20:27)

परमेश्वर एक होते हुए भी यहाँ इस जगह पर कैसे हो सकता है, और यहुन्ना 1:1 में, हम दो व्यक्तियों को देखते हैं, परमेश्वर का वचन (येशु) पिता के साथ? क्या मसीही लोग तीन परमेश्वरों में विश्वास रखते हैं?

यह एक अच्छा प्रश्न है! यहूदी लोग को लगभग पालने से ही सिखाया जाता है कि यहूदी धर्म में सबसे महत्वपूर्ण वचन है: 4 हे इस्राएल, सुन, यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है;(निर्गमन 6:4) जैसे काफी मसीह लोग यहुन्ना 3:16 याद करते हैं, यहूदी लोग इस वचन को याद करते हैं जब कोई किसी यहूदी व्यक्ति से मसीह के बारे में बात करता है, उनके लिए यह ठोकर का एक मुख्य कारण है, क्योंकि वह मानते हैं कि मसीही लोग एक नहीं बल्कि तीन परमेश्वरों में विश्वास रखते हैंयह विचार एक समर्पित यहूदी की सोच में बेहुदा और परमेश्वर के लिए अति निंदनीय है याद है हमने देखा था कि कैसे एक छोटा सा शब्द कितना महत्वपूर्ण हो सकता है? वह इब्रानी शब्द जिसका निर्गमन 6:4 में अंग्रेजी शब्द ‘वन’ यानी की एक के साथ अनुवाद हुआ है, वह शब्द एचड है

एचड एक यौगिक-एकता की संज्ञा है इसका अर्थ यह है कि यह एक ऐसी संज्ञा है जो एकता दर्शाती है, लेकिन उसके साथ ही विभिन्न भाग इसमें सम्मिलित होते हैंहम इस शब्द एचड को पति और पत्नी के एक तन होने को दर्शाने में प्रयोग होते पाते हैं (उत्पत्ति 2:24) जब बारह भेदियों को कनान देश में उस भूमि का भेद लेने के लिए भेजा गया था, तब वह उस भूमि की फलदायकता दिखाना चाहते थे, तो वह अंगूरों के गुच्छों की एक टहनी काट लाए। यहाँ गुच्छों शब्द हमारा शब्द एचड है एज्रा 2:64 में भी, हमें बताया गया है कि, 64 समस्त मण्डली मिलकर बयालीस हजार तीन सौ साठ की थी, यहाँ शब्द समस्त मण्डली वही शब्द एचड है जब परमेश्वर एक और केवल एक के बारे में बात करना चाहता था, उसने एक अलग इब्रानी शब्द का प्रयोग किया, वह शब्द है याचिद हम इस शब्द को अब्राहम की परीक्षा में प्रयोग होते पाते हैं:

अपने पुत्र को, अर्थात् अपने एकलौते पुत्र इसहाक को, जिस से तू प्रेम रखता है, संग लेकर मोरिय्याह देश में चला जा...(उत्पत्ति 22:2) केवल एक ही पुत्र था जिसे परमेश्वर ने अब्राहम की प्रतिज्ञाओं का वारिस ठहराया था, उसका एकमात्र (याचिद) पुत्र इसहाक। जब वह परमेश्वर की त्रिएकता के बारे में बात करना चाहता है वह एचड शब्द का प्रयोग करता है। यहुन्ना प्रेरित हमें बताता है कि,वह आदि में परमेश्वर के साथ था।” (यहुन्ना 1:2) क्या हम परमेश्वर को उत्पत्ति, अध्याय एक में बहुवचन द्वारा बताए जाते पाते हैं? हाँ! आत्मा को जल के उपर मंडराता बताया गया है (पद 2) और फिर पद 26 में: फिर परमेश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं; और वे अधिकार रखें। (उत्पत्ति 1:26) परमेश्वर शब्द भी बहुवचन रूप में है, यह इब्रानी शब्द इलोहीम है, जो कि एक बहुवचन संज्ञा है

लोग जो कहते हैं कि येशु ने कभी ऐसा नहीं कहा की वो परमेश्वर है, उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण वचन छोड़ दिए हैं, जैसे कि जब उसने कहा कि उसे ग्रहण करना मतलब परमेश्वर को ग्रहण करना है:

40जो तुम्हें ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है; और जो मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है। (मती 10:40)

 

37 जो कोई मेरे नाम से ऐसे बालकों में से किसी एक को भी ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है; और जो कोई मुझे ग्रहण करता, वह मुझे नहीं, वरन मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है। (मरकुस 9:37)

 

9 यीशु ने उस से कहा; हे फिलिप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साथ हूँ, और क्या तू मुझे नहीं जानता? जिस ने मुझे देखा है उस ने पिता को देखा है। तू क्यों कहता है कि ‘पिता को हमें दिखा’।(यहुन्ना 14:9)

 

क्या अब तक आपको यकीन हो गया है कि येशु प्रभु है? कितनी बहादुरी और भलाई के साथ वह अपने क्रूस पर चढ़ाये जाने से पहले की रात वह महासभा के सम्मुख खड़ा रहा, जबकि वह उसपर दोष लगाते और उसे मारते रहे। कोई भी झूठा गवाह उनकी बातों की सहमति में नहीं मिल रहा था। अंतत: महायाजक ने, इस बात से झुंझलाया प्रतीत होते हुए कि “बे सिर-पैर की सभा” सही नहीं नहीं जा रही है, सीधे येशु से उसके मुँह पर पूछ लिया, 61 क्या तू उस परम धन्य का पुत्र मसीह है? 62 यीशु ने कहा; हां मैं हूँ: और तुम मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान की दहिनी और बैठे, और आकाश के बादलों के साथ आते देखोगे। (मरकुस 14:61-62)

 

इसका क्या प्रतिउत्तर रहा? महायाजक ने इस बात के प्रति घृणा को प्रकट करते हुए कि यह आदमी महान मैं हूँ का नाम लेते हुए परमेश्वर होने का दावा कर रहा है, अपने वस्त्र फाड़ दिए और फिर इस सब के उपर, येशु ने कहा कि उसे परमेश्वर के सिंहासन पर उसके साथ बैठे और आकाश के बादलों के साथ आते देखा जायेगा, एक ऐसा दृश्य जिसे कोई भी यहूदी मसीहा के महान समर्थ और महिमा में आने की तस्वीर के रूप में साफ़ तौर पर समझता था

 

येशु के परमेश्वर होने के क्या मायने हैं? अगर वह परमेश्वर नहीं है तो इसके क्या मायने हैं?

मैं ऐसे प्रेम की कल्पना नहीं कर सकता, जहाँ सम्पूर्ण जगत का परमेश्वर मेरे पाप की सज़ा अपने उपर लेकर मेरे स्थान पर मरा। सी.टी. स्टड ने एक बार कहा, “अगर येशु मसीह परमेश्वर होते हुए मेरे लिए मरा, तो फिर मेरे लिए उसकी खातिर कोई भी बलिदान बड़ा नहीं हो सकता” अगर मसीह के लिए मेरे पाप के स्थान पर मरने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था, तो यह पाप की पापमयता को साबित करता है और यह भी कि परमेश्वर के लिए यह कितना महत्वपूर्ण है कि उसके साथ संगती हो पाने के लिए मेरे पाप के दोष से निपट लिया जाए। हमें अपने पापों से उबर कर अपने बाकी के जीवनों में सब बातों में उसकी आज्ञा पर चलने की चेष्टा में अपनी शक्ति में सबकुछ करना चाहिए।

 

शुरुआती कुछ वचनों में यहुन्ना का अगला महत्वपूर्ण मुद्दा है कि, 3 सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उस में से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न हुई।” (यहुन्ना 1:3) मैं इसका अर्थ यह मानता हूँ कि येशु सृष्टि का जरिया था, शुरुआत में वहां पिता और पवित्र आत्मा के साथ पौलुस, आत्मा की प्रेरणा में कुलुसियों की कलीसिया को कुछ ऐसा ही लिखता है:

 

16 क्योंकि उसी में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हो अथवा पृथ्वी की, देखी या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुतांए, क्या प्रधानताएं, क्या अधिकार, सारी वस्तुएं उसी के द्वारा और उसी के लिये सृजी गई हैं 17 और वही सब वस्तुओं में प्रथम है, और सब वस्तुएं उसी में स्थिर रहती हैं।” (कुलुसियों 1:16-17).

 

यह विचार कि वह शुरुआत में सृष्टि के समय था और कि उसके द्वारा सब चीज़े बनाई गयीं हैं, उपर दिए दो स्थानों के अलावा दो अन्य स्थानों पर भी प्रकट होती है पौलुस इफ़िसुस की कलीसिया को लुखता है, परमेश्वर..... सभी की सृष्टि मसीह के द्वारा की” (इफिसियों 3:9) एक बार फिर, इब्रानियों की पुस्तक में लेखक यह कथन करता है कि, ... इन दिनों के अन्त में हम से पुत्र के द्वारा बातें की, जिसे उस ने सारी वस्तुओं का वारिस ठहराया और उसी के द्वारा उस ने सारी सृष्टि रची है।” (इब्रानियों 1:2).

 

जब आप इस बात के बारे में सोचते हैं कि वह एक जिसके द्वारा सारे संसार की सृष्टि हुई उसने आपको अपने साथ सम्बन्ध में बुलाया है, तब आपको कैसा महसूस होता है?

 

आर. केंट हयूज़ इसके बारे में लिखते हैं:

 

औसतन एक आकाशगंगा में लगभग 100 अरब तारे होते हैं, और जाने गए अन्तरिक्ष में कम से कम सौ अरब आकाशगंगाएं हैं। आइंस्टाईन मानता था कि हमने अपनी सबसे बड़ी दूरबीनों से संभावित अन्तरिक्ष का केवल एक अरबवां हिस्सा ही जाँचा है। इसका अर्थ है कि अन्तरिक्ष में अनुमानत: लगभग 10,000,000,000,000,000,000,000,000,000 सितारे हैं (दस ओक्टिलियन) यह कितना हुआ? 1,000 हज़ार = दस लाख; 1,000 दस लाख = एक अरब; 1,000 अरब = एक ट्रिलियन; 1,000 ट्रिलियन = एक क्वैडरिलयन; 1,000 क्वैडरिलयन = एक क्विंटिलियन; 1,000 क्विंटिलियन = एक सेक्सटिलियन; 1,000 सेक्सटिलियन = एक सेपटिलियन; 1,000 सेपटिलियन = एक ओकटिलियन तो दस ओकटिलियन एक दस के पीछे सत्ताईस शून्य से बनेगा और येशु ने इन सब की रचना की! न केवल वह सम्पूर्ण जगत की विराट चीज़ों का सृजनहार है, लेकिन सबसे छोटे कण के के अति सूक्ष्म अंतरिम संसार का भी कुलुसियों का लेख समझाता है कि वह सबसे छोटे कण और उसके अंतरिम और बाहरी ब्रम्हांड को एक साथ संजोता है (“सब वस्तुएँ उसमें स्थिर रहती हैं”)

 

अगर यह हमारे दिमाग़ को इतना नहीं बौखलाता, यहुन्ना आगे कहता है कि, 4 उस में जीवन था; और वह जीवन मुनष्यों की ज्योति थी। 5 और ज्योति अन्धकार में चमकती है; और अन्धकार ने उसे ग्रहण किया।(यहुन्ना 1:4-5) वह मेरे प्राण के अन्धकार को देख हमें ज्योति देने आया। जबतक हम मसीह के पास नहीं आते, हमारा भीतरी स्वभाव, हमारी आत्मा, हमारे पाप के कारण अंधकारमय और मृत है। परमेश्वर ने आदम को अदन की वाटिका में चेतावनी दी थी कि जिस दिन वह परमेश्वर को सुनने और उसकी आज्ञा मानने के बजाय सर्प को सुनने का चुनाव करेगा, वह और उसके आने वाले वंशज निश्चित ही मृत हो जाएंगे (उत्पत्ति 2:17) मेरे साथ इफिसुस की कलीसिया को पौलुस के पत्र की ओर देखिये:

 

1 और उस ने तुम्हें भी जिलाया, जो अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे। 2 जिन में तुम पहिले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात् उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा माननेवालों में कार्य करता है। 3 इन में हम भी सब के सब पहिले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे, और शरीर, और मन की मनसाएं पूरी करते थे, और और लोगों के समान स्वभाव ही से क्रोध की सन्तान थे। 4 परन्तु परमेश्वर ने जो दया का धनी है; अपने उस बड़े प्रेम के कारण, जिस से उस ने हम से प्रेम किया। 5 जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे, तो हमें मसीह के साथ जिलाया; (अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है।) 6 और मसीह यीशु में उसके साथ उठाया, और स्वर्गीय स्थानों में उसके साथ बैठाया। 7 कि वह अपनी उस कृपा से जो मसीह यीशु में हम पर है, आनेवाले समयों में अपने अनुग्रह का असीम धन दिखाए। 8 क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है। 9 और कर्मों के कारण, ऐसा हो कि कोई घमण्ड करे। 10 क्योंकि हम उसके बनाए हुए हैं; और मसीह यीशु में उन भले कामों के लिये सृजे गए जिन्हें परमेश्वर ने पहिले से हमारे करने के लिये तैयार किया। (इफिसियों 2:1-10)

 

यह अन्धकार मसीह के व्यक्ति में बप्तिस्मा लेने से पूर्व हम सभी में व्याप्त है। एक व्यक्ति के मसीह के पास आने से पूर्व, उनकी आत्मा ने प्रभु येशु से अभी तक जीवन प्राप्त नहीं किया है। वो अभी वह हैं जिसे बाइबिल “मृत” कहती है। एकमात्र ज़रिया जिसके द्वारा वह आत्मिक रूप से जीवित हो सकते हैं वह है परमेश्वर के जीवन के अर्क को पा लेना, उसकी ज़ोई, जिसका यहाँ यहुन्ना के सुसमाचार में जीवन के शब्द से अनुवाद किया गया है (यहुन्ना 1:4) यहुन्ना 10 में भी हमें यही शब्द मिलता है, जहाँ येशु कहता है, मैं इसलिये आया कि वे जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं।(यहुन्ना 10:10) मेरा अध्यन बाइबिल इस यूनानी शब्द के बारे में जो कहता है वो यह है:

 

ज़ोई कुछ हद तक एक अध्यात्मिक शब्द है, जो स्वयं जीवन-शक्ति को दर्शाता है, वह जीवनाधार सिद्धांत जो जीवित प्राणियों को चेतना प्रदान करता है। नए नियम में यह अक्सर अनंत जीवन के सम्बन्ध में प्रयोग किया गया है। यह जीवन स्वयं परमेश्वर का जीवन है जिसका भागीदार विश्वासियों को बनाया गया है।

 

यह जीवन और ज्योति एक आदमी, स्त्री या बच्चे को कैसे दिया जाता है?

 

मसीह ही वह सच्ची ज्योति है जो हर मनुष्य को ज्योति देती है (यहुन्ना 1:9) यहुन्ना लिखता है कि वह, (मसीह) अपनी सृष्टि में आया, वह जो उसी के द्वारा और उसी के लिये सृजी गई हैं(कुलुसियों 1:16), और उन्होंने न ही उसे पहचाना और न ही ग्रहण किया (यहुन्ना 1:11)। यह कितना दुखद है!

 

12 परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं।13 वे तो लोहू से, शरीर की इच्छा से, मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं। 14 और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उस की ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा। (यहुन्ना 1:12-14)

 

परमेश्वर ने अनंत जीवन को पा लेने को इतना सरल बना दिया है कि एक बच्चा भी इसे ग्रहण कर सकता हैसच तो यह है कि अगर आप एक बालक के समान मसीह को, और उसके साथ-साथ जीवन के उपहार को ग्रहण नहीं करते, तो आप जीवन में प्रवेश नहीं करेंगे (मरकुस 10:15)

 

शायद आप में से कुछ ने पहले से ही इस जीवन को पा लिया है? उस पल के आगे से आपका जीवन कैसे बदला? अपनी मसीह को ग्रहण करने की कहानी को एक दूसरे के साथ बाँटें

 

मसीह को ग्रहण करना और नया जन्म पा लेना, या परमेश्वर में जन्म लेना, कलीसिया जाने से नहीं होता। प्रेरित यहुन्ना कहता है कि यह मसीही परिवार में जन्म लेने से नहीं होता, न ही वंश में जन्म लेने से” यह मसीही परिवार में शादी होने से भी नहीं, “एक पति की इच्छा”। मसीह को ग्रहण करने में आवश्यक है कि हमारे पास जो कुछ भी है और हम जो कुछ भी हैं, सबको त्याग उसके हाथों में सौंप देना। यहुन्ना उनके बारे में बात करता है कि जिन्होंने उसके नाम में विश्वास किया है, वही वो हैं जिन्हे परमेश्वर की संतान होने का अधिकार दिया गया है। विश्वास केवल आपकी ख़ातिर मसीह के द्वारा क्रूस पर किये कार्य का बौद्धिक रूप से स्वीकारना नहीं है; यह केवल और केवल मसीह में ही अपना विश्वास और भरोसा रखना है हम ब्लोंदीन के सदृश्य उदहारण का प्रयोग कर सकते हैं, वह महान रस्सी पर चलने वाला जिसने निआग्रा झरने के एक छोर से दूसरे तक रस्सी पर चलकर पार किया था1000 फुट रस्सी पर अनेकों बार पार करने के बाद वह भीड़ की ओर मुड़ा और पूछा कि क्या वह भरोसा करते हैं कि वह उनमें से एक को अपने साथ पार ले जा सकता है। सहमति के गर्जन के बाद जहाँ सब लोगों ने स्वीकृति दी, वह एक-एक कर उनसे अपनी पीठ पर चढ़ उसके साथ आने को पूछने के लिए आगे बढ़ाउन्होंने ऐसा नहीं किया। मसीह में विश्वास करना, अपना भरोसा सम्पूर्णता से उसमें रखना है। यह बस बौद्धिक रूप से यह मानना नहीं है कि मसीह ने आपके लिए उद्धार जीत लिया है, यह अपने जीवन में उसे ग्रहण करना और उसे उस दिन से आगे अपने आप को आगे ले जाने देना है। क्या आप आज मसीह को एक बालक की तरह ग्रहण कर सकते हैं? एक सरल प्रार्थना करें, इसपर विश्वास और भरोसा करते कि मसीह ने क्रूस पर अपना कार्य संपन्न कर लिया है। यह भरोसे की एक सरल प्रार्थना है:

 

प्रार्थना: पिता, मैं अपने सम्पूर्ण हृदय से विश्वास करता हूँ कि येशु मुझे जीवन देने आया। आज मैं उसमें और मेरी ख़ातिर मसीह के द्वारा क्रूस पर किये संपन्न कार्य पर भरोसा करता हूँ। मैंने पाप किया है और अपने जीवन में गलत कार्य किये हैं। मैं अपने पाप से मुड़कर मसीह की ओर आता हूँ। अपने पुत्र को मुझे मेरे पाप से बचने के लिए इस संसार में भेजने के लिए धन्यवाद। मैं आज मसीह को ग्रहण करना चाहता हूँ। आमीन!

 

कीथ थॉमस

नि:शुल्क बाइबिल अध्यन के लिए वेबसाइट: www.groupbiblestudy.com

-मेल: keiththomas7@gmail.com या pastorthomas@groupbiblestudy.com

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