
35. Gethsemane and Jesus Arrested
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35. गतसमनी और यीशु का पकड़वाया जाना
गतसमनी: जैतून का तेल निकालने का स्थान
जबकि हम यहुन्ना अध्याय अठारह को शुरू करते हैं, आइए हम इस दृश्य की कल्पना करें। यीशु ने यहुन्ना 17 में अपनी प्रार्थना पूरी की और मंदिर टापू और जैतून पर्वत के बीच किदरोंन घाटी को पार किया। इतिहासकार जोसेफस 66-70 सी.ई (यहूदी युद्धों 6.9.3) के बीच एक साल में फसह के दौरान मंदिर में बलिदान किए गए 256,500 मेमनों के बारे में लिखते हैं। जानवरों से बहे लहू को येरूशलेम के मंदिर टापू की पूर्व दिशा में किदरोंन घाटी में बहाया गया था। फसह के भोज के दौरान, बलिदान और छुटकारे के विषय के विचारों ने परमेश्वर के लोगों के मन को भर दिया होगा। जब वे घाटी में किदरोंन नदी को पार कर जा रहे होंगे तो उन्हें उन बलिदानों का लहू दिखाई दे रहा होगा। इज़राइल में चंद्रमाँ आधारित पंचांग चलता था, इसलिए फसह पूर्णिमा के दौरान मनाया जाता था, और इसलिए यीशु और ग्यारह को जैतून के पर्वत पर चढ़ते हुए देखने में मदद मिली। प्रेरित यहुन्ना लिखता है कि यीशु ने एक बगीचे में प्रवेश किया (पद 1), लेकिन केवल मत्ती और मरकुस बगीचे के नाम का उल्लेख करते हैं; गतसमनी। आर. केंट ह्यूजेस ने अदन की वाटिका और गतसमनी के बगीचे के बीच कुछ दिलचस्प तुलना की है;
- पहले आदम ने एक बगीचे में जीवन शुरू किया। अंतिम आदम, मसीह, अपने जीवन के अंत में एक बगीचे में आया था।
- अदन में, आदम ने पाप किया। गतसमनी में, उद्धारकर्ता ने पाप पर विजय प्राप्त की।
- अदन में, आदम गिर गया। गतसमनी में, यीशु ने विजय प्राप्त की।
- अदन में, आदम ने खुद को छुपाया। गतसमनी में, हमारे प्रभु ने साहसपूर्वक स्वयं को प्रस्तुत किया।
- अदन में, तलवार खींची/ निकाली गई थी। गतसमनी में, इसे म्यान में रखा गया।
यह इस बगीचे में था कि यीशु अक्सर अपने शिष्यों के साथ रात भर रहता था और सुबह जल्दी मंदिर के आँगनों में शिक्षा देता था (यहुन्ना 18:2)। कुछ लोगों को आश्चर्य होता है कि वह बैतनिय्याह में जैतून के पहाड़ के दूसरी ओर लाज़र, मरियम और मार्था के साथ क्यों नहीं रहता था? आखिरकार, हम जानते हैं कि वे यीशु के घनिष्ठ करीबी मित्र थे। यह हो सकता है कि मसीह उन्हें धार्मिक अगवों के न्याय से बचाना चाहता था। यीशु ने पहले से ही फरीसियों के ध्यान और अस्वीकृति को आकर्षित किया था, और किसी को भी यीशु के साथ संबंध रखते देखे जाना उसके लिए एक बड़ी कीमत चुकाने का जोखिम उठाना होता, यहाँ तक कि आराधनालय से बाहर किए जाना भी (यहुन्ना 9:22)।
जैतून पर्वत का नाम पहाड़ के किनारे उगने वाले कई जैतून के पेड़ों के कारण पड़ा था। यह संभवतः एक निजी बगीचा था जिसके चारों ओर एक दीवार थी, और इसका मालिक, शायद, जैतून से तेल निकालने के व्यवसाय में था। हम यह नहीं जानते हैं कि बगीचा पहाड़ पर कितना ऊपर था, लेकिन चार-पाँच सौ गज की दूरी पर मंदिर की दीवार पर बलि की वेदी से उठता धुआँ, पहाड़ की ढलानों पर कहीं भी देखा जा सकता था।
यहुन्ना हमें प्रार्थना में यीशु द्वारा अनुभव व्याकुलता के बारे में कुछ भी नहीं बताता, इसलिए गतसमनी विवरण की पूरी तस्वीर प्राप्त करने के लिए, हमें लूका के सुसमाचार में जाना होगा और यीशु की गिरफ्तारी के लिए यहुन्ना में वापस आना होगा।
39तब वह बाहर निकलकर अपनी रीति के अनुसार जैतून के पहाड़ पर गया, और चेले उसके पीछे हो लिए। 40उस जगह पहुंचकर उसने उनसे कहा; “प्रार्थना करो, कि तुम परीक्षा में न पड़ो।” 41और वह आप उनसे अलग एक ढेला फेंकने के टप्पे भर गया, और घुटने टेक कर प्रार्थना करने लगा। 42 कि “हे पिता यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले, तौभी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो।” 43 तब स्वर्ग से एक दूत उस को दिखाई दिया जो उसे सामर्थ देता था। 44 और वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी हृदय वेदना से प्रार्थना करने लगा; और उसका पसीना मानो लहू की बड़ी बड़ी बून्दों की नाईं भूमि पर गिर रहा था। 45तब वह प्रार्थना से उठा और अपने चेलों के पास आकर उन्हें उदासी के मारे सोता पाया; और उन से कहा, “क्यों सोते हो? 46उठो, प्रार्थना करो, कि परीक्षा में न पड़ो” (लूका 22:39-46)
बगीचे में, हमें पृथ्वी पर उसके नश्वर जीवन के उन अंतिम घंटों में हमारे उद्धारकर्ता के हृदय की स्थिति की एक झलक मिलती है। वह जिस आत्मिक तनाव में था, वह इतना तीव्र था कि उसे उसे सामर्थ देने के लिए एक स्वर्गदूत की आवश्यकता थी (लूका 22:43)।
आपको क्या लगता लगता है कि यीशु को किस हद तक पता था कि क्या होने वाला था? हम यहाँ केवल अटकलें लगा सकते हैं, लेकिन आपको क्या लगता है कि इस समय उसकी सबसे महत्वपूर्ण चिंता क्या थी?
उसकी गिरफ्तारी यीशु के लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं थी; वह जानता था कि उसके पास प्रार्थना करने के लिए कितना समय था और जो वह जानता था उसके साथ होने वाला है, उससे बचने या भागने का उसका कोई विचार नहीं था। प्रभु जानता था कि उनका समय आ गया है (यहुन्ना 17:1)। यहाँ बगीचे में हमारे उद्धारकर्ता के इस नज़दीकी और व्यक्तिगत दर्शन में, हम उसकी अत्यधिक पीड़ा को उसके पसीने के रूप में देखते हैं, जो लहू की बूंदों के समान था (पद 44)। वह खुद को, और साथ ही अपने शिष्यों को अपने अंतिम घंटों के लिए तैयार कर रहा था। यीशु ने जानबूझकर इस जगह को चुना; यह आकस्मिक घटना नहीं थी कि वह इस बगीचे में आए, इसलिए आइए इस जगह के महत्व पर विचार करें। "गतसमनी" का अर्थ है जैतून का तेल निकालने का स्थान। जैतून के तेल का उपयोग दीपक जलाने के लिए किया जाता था। यह महत्वपूर्ण प्रतीत होता है कि जगत की ज्योति गतसमनी में एक कुचलने और अत्यंत दबाव वाले अनुभव से गुज़रेगा।
मेरी नहीं परंतु तेरी इच्छा पूरी हो
यीशु ने हमें बताया कि एक मसीही के रूप में, हम भी जगत की ज्योतियाँ हैं, ठीक जैसे यीशु जगत की ज्योति है (मत्ती 5:14)। यदि आप परमेश्वर के लिए उज्ज्वल रूप से चमकना चाहते हैं, तो ध्यान रखें कि आपको गतसमनी अनुभव के अंधेरे को सहना पड़ सकता है। अंधकार के उस समय में, आपके पास आत्मिक चुनाव होंगे जिन्हें आप कर सकते हैं, चाहे आप अपनी इच्छा को मसीह के लिए त्यागें या आत्म-संरक्षण चुनें। यदि हम वैसा ही कहते हैं जैसा कि यीशु ने कहा, "मेरी नहीं परंतु तेरी इच्छा पूरी हो" तो हमें यात्रा और परिणाम के साथ परमेश्वर पर भरोसा करना होगा। दबाव और टूटेपन के इस अनुभव में, आपको अपनी इच्छा को मसीह को समर्पित करने के बजाय अपने शारीरिक स्वभाव के सामने आत्मसमर्पण करने का प्रलोभन होगा। हालांकि क्रूस का मार्ग कठिन है और कभी-कभी यह दर्द लाएगा, यह बहुत फल उत्पन्न करता है। यह बहुत आनंद और विजय का मार्ग भी है, जैसा कि यीशु ने हमारे लिए प्रदर्शित किया।
हम यह मान सकते हैं कि जैसे-जैसे हम अपने मसीही जीवन में आत्मिक परिपक्वता (वयस्कता) के करीब पहुँचते हैं, आत्मा की आवाज़ सुनना उतना ही आसान हो जाएगा। जबकि अधिकतर मैं मानता हूँ कि यह सच है, ऐसे समय भी होते हैं जब परमेश्वर द्वारा एक परिपक्व विश्वासी को छोड़ दिया जाता है ताकि वह विश्वास से प्रसन्न होने वाले प्रभु की सतर्क आंखों के नीचे आत्मिक मन से चुनाव कर सके। प्रभु अक्सर यह बताने के बजाय कि क्या करना है, हमें चुनाव करने के लिए छोड़ देता है। परमेश्वर हमारे पास निर्णय क्यों छोड़ देता है? क्या आपने कभी इच्छा की है कि परमेश्वर चीजों को बिलकुल स्पष्ट करे? हम में से कई शिष्य थोमा को समझ सकते हैं। जब उसे मसीह के पुनरुत्थान के बारे में बताया गया, थोमा तब तक विश्वास नहीं कर पाया जब तक उसे प्रमाण नहीं मिला। उसके लिए, देख पाना ही विश्वास करना था। जब तक उसने यीशु के हाथों में कील के निशान नहीं देखे और अपनी उंगली उस स्थान में नहीं डाली जहाँ कीलें थीं और अपना हाथ उसके पंजर में नहीं डाला, थोमा को विश्वास नहीं हुआ (यहुन्ना 20:25)। प्रभु ने उस पर बहुत अनुग्रह दिखाया और उसके लिए स्वयं को शारीरिक रूप में प्रस्तुत किया। यीशु ने उससे कहा, “यीशु ने उस से कहा, तूने तो मुझे देखकर विश्वास किया है, धन्य वे हैं जिन्होंने बिना देखे विश्वास किया” (यहुन्ना 20:29)।
हमारे मानवीय अनुभव में, हम अपने विश्वास के आधार के लिए प्रमाण चाहते हैं, अर्थात, बोध होने वाला प्रमाण, कुछ ऐसा जिसे हम देखते हैं या अनुभव करते हैं। हम सत्य समझने के इस तरीके के अभ्यस्त हैं, लेकिन प्रभु हमारी आत्मिक चेतना को तेज करना चाहता है ताकि हम विश्वास के आधार पर निर्णय लेना सीखें। इस प्रकार का विश्वास परमेश्वर को प्रसन्न करता है, अर्थात्, ऐसा विश्वास, जिसके प्रमाण दिखाई नहीं देते, लेकिन फिर भी पूर्णत: भरोसा करता है। उसकी मानवता में और बुराई की सभी अनदेखी ताकतों के उसके चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश करते हुए, यीशु ने एक चुनाव किया, "मेरी नहीं परंतु तेरी इच्छा पूरी हो" (लूका 22:42)।
क्या आप अपने जीवन में किसी दर्दनाक गतसमनी अनुभव से गुजरे हैं? उस समय से क्या सकारात्मक परिणाम निकले?
मृत्यु के अंतिम पलों तक मसीह उदासी से विचलित
जब वे गतसमनी पहुंचे, तो वह उनसे कुछ ही दूरी पर गया और अपने घुटनों पर प्रार्थना करने लगा (लूका 22:41)। मत्ती लिखता है कि उत्कट प्रार्थना में कई बार उसकी मुद्रा ज़मीन पर मुंह के बल लेटे हुए होने की थी;
37और वह पतरस और जब्दी के दोनों पुत्रों को साथ ले गया, और उदास और व्याकुल होने लगा। 38तब उसने उनसे कहा; “मेरा जी बहुत उदास है, यहाँ तक कि मेरे प्राण निकलना चाहते हैं। तुम यहीं ठहरो, और मेरे साथ जागते रहो।“ 39फिर वह थोड़ा और आगे बढ़कर मुंह के बल गिरा, और यह प्रार्थना करने लगा, कि “हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझ से टल जाए; तौभी जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।” (मत्ती 26:37-39)
यह वाक्यांश, "बहुत उदास है, यहाँ तक कि मेरे प्राण निकलना चाहते हैं" (पद 38), सबसे गहन भावनात्मक स्थिति का वर्णन करता है जो एक जीवित प्राण सहन कर सकता है। मरकुस ने यीशु को "बहुत ही अधीर, और व्याकुल" (मरकुस 14:33) होने के रूप में चित्रित किया है। प्रभु ने अपने शिष्यों को अपने साथ चौकस रहने के लिए कहा।
यीशु के चेले चौकस रहते क्यों नहीं जाग पाए थे? आपको क्या लगता है कि जब उसे उनकी ज़रूरत थी, तो उसके चेलों के सो जाने में किस बात का योगदान था?
लेखक का मानना है कि यह आत्मिक युद्ध के साथ-साथ महत्वपूर्ण शारीरिक संकट की घड़ी थी। यह संभव है कि वे थक गए थे और भावनात्मक रूप से टूट चुके थे या फिर यह कि वे जो कुछ चल रहा था उसका सामना नहीं करना चाहते थे। मेरी राय में, यह इसलिए भी था क्योंकि वे सभी महान आत्मिक हमले का सामना कर रहे थे।
लूका ने यीशु का विवरण "अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी हृदय वेदना से प्रार्थना करने लगा; और उसका पसीना मानो लहू की बड़ी बड़ी बून्दों की नाईं भूमि पर गिर रहा था" (लूका 22:44) के रूप में दिया। यूनानी शब्द जिसका अनुवाद वेदना है, यहीं से हमें हमारा हिन्दी शब्द वेदना प्राप्त होता है। इस यूनानी शब्द का प्रयोग किसी के अत्यंत भय से लड़ाई लड़ने के संदर्भ में किया जाता है।
जिम बिशप ने अपनी पुस्तक, द डे क्राइस्ट डाइड में, उनके पसीने के लहू की बूंदों की तरह होने पर टिप्पणी की;
चिकित्सा की दृष्टि से, इसे हेमेटिड्रोसिस कहा जाता है। यह तब होता है जब भय के ऊपर और भी भय हावी हो जाता है, जब एक पुरानी पीड़ा के ऊपर एक और वेदना से भरी भारी पीड़ा लाद दी जाती है जब तक कि अति संवेदनशील व्यक्ति अब उस पीड़ा को और बर्दाश्त नहीं कर सकता। उस क्षण में, आमतौर से रोगी चेतना खो देता है। जब ऐसा नहीं होता है, तो चमड़े के नीचे की कोशिकाएं कभी-कभी इतने व्यापक रूप से फैलती हैं कि, जब वे पसीने की ग्रंथियों के संपर्क में आती हैं तो यह छोटी केशिकाएं फट जाती हैं। पसीने के साथ रक्त बहता है, और आमतौर पर, ऐसा पूरे शरीर में होता है
मैंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसी तरह की स्थिति के बारे में पढ़ा था जब जर्मन विमानों ने लंदन में बम विस्फोट किया था जिसे ब्लिट्ज के रूप में जाना जाता है। हर रात जर्मन बमबारी के दैनिक दबाव ने लंदन की आबादी के लिए हेमेटिड्रोसिस के कई मामलों को उजागर किया, जबकि वह अपने ऊपर गिरते बमों को सुनते और जमीन के झटकों को महसूस करते थे, वे भूमिगत रेल स्टेशनों में रहने के लिए मजबूर थे। भय के तनाव के कारण कुछ लोगों को खूनी पसीना आया।
कुछ लोगों का मानना है कि लूका के शब्द, "उसका पसीना मानो लहू की बड़ी बड़ी बून्दों की नाईं…" का मतलब यह नहीं है कि यीशु का लहू पसीने की ग्रंथियों से बहा था। उन्हें लगता है कि यह तो बस पसीने की बड़ी बूंदें थीं। इस तर्क की विचारधारा के साथ, वे कहते हैं कि उचित व्याख्या यह है कि उसके तनाव के कारण उसे सामान्य से अधिक पसीना आया था, लेकिन यदि ऐसा है, तो यहाँ लहू का उल्लेख क्यों किया गया है? यह गर्म तापमान नहीं था जिसके कारण मसीह को पसीना आ गया, क्योंकि उस रात ही कुछ घंटों बाद; वहाँ इतनी ठंड थी कि पतरस कैफा के आंगन में यीशु को बंदी बनाने वालों के साथ आग सेक रहा था।
यीशु को पसीना इसलिए नहीं आ रहा था क्योंकि उसे गर्मी लग रही थी, लेकिन यह उसकी आवेगपूर्ण प्रार्थना या शायद भय या तनाव की ऊर्जा के कारण था कि उसे पसीना आ रहा था। अगर उसके वास्तव में लहू का पसीना बह रहा था, तो वह जब शिष्यों के पास आया तो यह उसके कपड़ों के रंग से स्पष्ट होगा। मैं यह आपको तय करने के लिए छोड़ता हूँ कि आपको कौन सी व्याख्या सबसे विश्वसनीय लगती है। मेरा मानना है की पवित्र-शास्त्र में लहू की बूंदों का उल्लेख इसलिए है क्योंकि वह लहू का पसीना बहा रहा था।
यीशु के इन शब्दों का क्या अर्थ है, "इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले" (लूका 22:42)। कटोरा क्या दर्शाता है, और प्रभु यह क्यों चाहता था कि वह उसके पास से हट जाए?
हे यरूशलेम जाग! जाग उठ! खड़ी हो जा, तूने यहोवा के हाथ से उसकी जलजलाहट के कटोरे में से पिया है, तूने कटोरे का लड़खड़ा देने वाला मद पूरा-पूरा ही पी लिया है। (यशायाह 51:17)
कटोरा परमेश्वर के क्रोध का प्रतीक था जो पाप पर उंडेला गया था। अदन की वाटिका में, जब पहले आदमी, आदम ने पाप किया, तब मानव जाति पर एक अभिशाप आ गया। हम अपने पाप और परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह और हमारे द्वारा किए गए गलत चुनावों के कारण आत्मिक मृत्यु के हकदार हैं। अदन की वाटिका में, परमेश्वर ने आदम को बताया कि जब वह भले और बुरे के ज्ञान के पेड़ के फल को खाएगा, तो वह निश्चित रूप से मर जाएगा। आदम शारीरिक रूप से उस दिन नहीं मरा जिस दिन उसने फल खाया था, लेकिन वह आत्मिक रूप से परमेश्वर से अलग हो गया था, और परमेश्वर और मनुष्य के बीच एक बाधा आ गई थी, अर्थात, परमेश्वर की नज़रों में मृत्यु की परिस्थिति। भविष्यद्वकता यहेजकेल ने पाप के कारण इस दंड के बारे में बात की जब उसने कहा, "जो प्राणी पाप करे वही मर जाएगा" (यहेजकेल 18:4,20)।
मत्ती यह शब्द जोड़ता है, "हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझ से टल जाए; तौभी जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।” (मत्ती 26:37-39)
मसीह को परमेश्वर के क्रोध के इस कटोरे को क्यों पीना पड़ा? कोई और रास्ता क्यों नहीं था? यीशु के लिए इस कटोरे का हटा लिए जाना संभव क्यों नहीं था?
यदि छुटकारे का कोई और तरीका होता, तो पिता ने इसे चुना होता। परमेश्वर के प्रिय पुत्र के अपमान, अत्यधिक शारीरिक और भावनात्मक दर्द में बलिदान होने और सूली पर चढ़ाए जाने की यातनापूर्ण मृत्यु के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। परमेश्वर के न्याय और उसके प्रेम का कोई वैकल्पिक हल नहीं था। इस तरह से मसीही धर्म अद्वितीय है, क्योंकि अन्य किसी धर्म में हम परमेश्वर के अनुग्रह का प्रदर्शन नहीं देखते। यहाँ केवल एक ही रास्ता था, और इसमें परमेश्वर का स्वयं प्रतिस्थापन होना शामिल था। एक सिद्ध बलिदान करने की आवश्यकता थी। यीशु ही एकमात्र बलिदान था जो हमारे प्रायश्चित के लिए पर्याप्त होता। अन्य सभी धर्मों में, मनुष्य को अपने ईश्वर की माँगों को पूरा करने के लिए नियमों का पालन करना पड़ता है, लेकिन किसी भी नियम-कानून का पालन मनुष्य के हृदय में क्षमा प्राप्त करने के आंतरिक शून्य को नहीं भर सकता।
यहाँ हम परमेश्वर के प्रेम को प्रकट होते हुए देखते हैं, क्योंकि यह प्रभु था जिसने ऑपरेशन छुटकारा की योजना बनाई थी। परमेश्वर ने स्वयं, अपने पुत्र के व्यक्ति में, पाप के लिए मृत्यु के बलिदान की कीमत, प्रतिपूर्ति कर इस मूल्य को चुकाया। हमारे लिए इसकी कीमत मुफ्त है लेकिन सस्ती नहीं। पाप से मुक्ति में परमेश्वर के लिए कीमत उसका पुत्र था। उन्होंने मनुष्य का स्थान लिया। फैसला दृढ़ और न्यायपूर्ण था। जो प्राण पाप करता है, वह मर जाएगा, लेकिन यीशु, परमेश्वर का पुत्र, हमारा स्थान लेगा, अर्थात्, हमें परमेश्वर के निकट लाने के लिए अन्यायपूर्ण का स्थान न्यायी जन ने लिया।
इसलिये कि मसीह ने भी, अर्थात अधमिर्यों के लिये धर्मी ने पापों के कारण एक बार दुख उठाया, ताकि हमें परमेश्वर के पास पहुंचाए। वह शरीर के भाव से तो घात किया गया, पर आत्मा के भाव से जिलाया गया। (1 पतरस 3:18)
परमेश्वर के प्रेम ने कटोरे के टल जाने की यीशु की प्रार्थना को "ना" कहा; यह एकमात्र समय था जब मसीह की प्रार्थना को अस्वीकार किया गया था। इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं था कि वह कटोरा ले और इसे पूरा पी ले।
और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के द्वारा हम उद्धार पा सके। (प्रेरितों के कार्य 4:12)
जब हम वास्तव में परमेश्वर द्वारा हमारे लिए किए गए सभी कार्यों को समझते हैं, तो इसकी एकमात्र प्रतिक्रिया उसके लिए प्रेम है जिसने पाप से हमारी स्वतंत्रता और उद्धार संभव किया है।
क्या कोई और रास्ता है? (मत्ती 26:39)
यह क्या था जिससे मसीह को इतनी घृणा की कि वह पिता से पूछेगा कि क्या कोई और रास्ता था?
मेरा मानना है कि इसका कारण दुष्ट लोगों के हाथों उसके अपमान और उसके क्रूस पर चढ़ने के दर्द से अधिक था। जो बात विशिष्ट रूप से अलग थी वह यह थी कि मसीह आपके और मेरे पाप से दागदार हुआ। जब हम पाप से संघर्ष करते हैं, तो हमें यह प्रलोभन आता है कि हम अपने पापी विचारों और कार्यों से पवित्रता की तलाश करें। मसीही लोगों के रूप में, पाप के विरुद्ध हमारी लड़ाई एक ही समय में तीन अलग-अलग युद्धक्षेत्रों में है, अर्थात्, वह विश्व व्यवस्था जिसमें हम रहते हैं; हमारा पापी स्वभाव, और हमारा विरोधी, शैतान और उसके शैतानी दूत। इब्रानियों का लेखक यह कहते हुए उस परीक्षा की बात करता है जिसका सामना हम सभी करते हैं, कि हम जितना भी कठिन संघर्ष करते हों, वह उस अनदेखे युद्ध के समीप भी नहीं है जिसका सामना यीशु ने उस रात किया था।
“तुमने पाप से लड़ते हुए उससे ऐसी मुठभेड़ नहीं की, कि तुम्हारा लहू बहा हो” (इब्रानियों 12:4)।
जब हमारी प्राक्रतिक प्रवृत्ति, हमारी स्वाभाविक प्रकृति, पाप की ओर होती है तो हम पवित्र होने के लिए संघर्ष करते हैं। लेकिन, हमारे प्रभु यीशु के लिए यह पूरी तरह से अलग था। कुंआरी माँ से पवित्र आत्मा द्वारा जन्मा, उसने कभी पाप को नहीं जाना और हमेशा पवित्र था। मसीह का सामान्य रीति से गर्भ धारण नहीं हुआ था; इसलिए, उसने पापी स्वभाव नहीं पाया। यीशु जीवन भर पाप से मुक्त रहा ताकि वह हमारे लिए और हमारे जैसे एक निर्दोष मेमने के रूप में मरे। प्रेरित पतरस यीशु के साथ तीन साल से अधिक समय तक रहा था, और उसने मसीह के बारे में कहा; "न तो उस ने पाप किया, और न उसके मुंह से छल की कोई बात निकली" (1 पतरस 2:22)। एक पवित्र व्यक्ति के रूप में, उस दिन बगीचे में मसीह का संघर्ष पाप को धारण करना और पाप का जीवित अवतार होना था। उसका संघर्ष पाप के खिलाफ नहीं था, लेकिन पाप होना था जबकि उसके पवित्र अस्तित्व का हर कण पाप के विरुद्ध चीख रहा था। “तेरी आंखें ऐसी शुद्ध हैं कि तू बुराई को देख ही नहीं सकता, और उत्पात को देख कर चुप नहीं रह सकता” (हबक्कूक 1:13)।
उसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति, अर्थात्, उसके लौकिक अस्तित्व के प्रत्येक आवेग को पाप से घृणा थी, फिर भी, हमें पवित्र बनाने के लिए उसे पाप को धारण करना पड़ा। उसका प्रेम कितना अद्भुत है! "जो पाप से अज्ञात था, उसी को उसने हमारे लिये पाप ठहराया, कि हम उसमें होकर परमेश्वर की धामिर्कता बन जाएं" (2 कुरिन्थियों 5:21)। जिस परीक्षा का सामना वह कर रहा था, वह पवित्रता को त्यागने और पाप को गले लगाने की थी, अर्थात्, सभी समय का सभी पाप और वह भी पूरी मानव जाति के लिए। सबसे बुरे प्रकार के पाप उसके संपूर्ण चरित्र को दागदार करेंगे; प्रत्येक पाप जो आपने और मैंने कभी किया है, वह यीशु पर रखा गया था, अर्थात्, न केवल वर्तमान में किए गए पाप, बल्कि अतीत और भविष्य के भी। इसीलिए उसने क्रूस से पुकारा, "हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?" (मत्ती 27:46)।
इस सब में, यीशु पिता की आज्ञा मानने से भटका नहीं। मानव और यहाँ तक कि पृथ्वी पर उसके सबसे करीबी लोगों की नज़र में जो पराजय प्रतीत हो रही थी, पाप और मृत्यु पर विजय आज तक की सबसे महत्वपूर्ण जीत थी।
प्रसिद्ध अंग्रेजी क्रिकेटर, सी.टी. स्टड, 1870 के दशक में धन और विलासिता में पैदा हुए थे। उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में दीक्षा लेते हुए पैसे द्वारा उपलब्ध बेहतरीन शिक्षा प्राप्त की, जहाँ वे अंग्रेजी राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के कप्तान बने। सी.टी. स्टड को इंग्लैंड का सबसे महान क्रिकेटर माना गया। उनके पास सब कुछ था, उदाहरण के लिए, उनके पिता की मृत्यु पर उनके कदमों पर एक विशाल विरासत थी। लेकिन, इस संसार में दौलत से बढ़कर, उनके लिए परमेश्वर की एक अलग योजना थी। वह डी.एल. मूडी को मसीह के बारे में बात करते सुनने गए और उन्होंने प्रभु को अपना जीवन दे दिया। उन्होंने अपनी संपत्ति और अपनी दौलत को छोड़ना चुना और और सबकुछ मिशन के कार्यों के लिए दे दिया; यहाँ तक कि वह स्वयं इस कार्य के लिए चीन, भारत और अफ्रीका गए। कई लोगों के लिए, यह निर्णय एक आवेग में लिया निर्णय और बुद्धि और क्षमता का एक बड़ा व्यर्थ किया जाना था। हालांकि, स्टड और छह अन्य के लिए जो गए थे, यह अपनी प्रतिभा का पूर्णतः: उपयोग करना था। उन्होंने परमेश्वर की पुकार और उद्देश्यों के लिए अपनी इच्छा नकार दी। "जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।" सी. टी. स्टड ने एक बार कहा था:
यदि यीशु मसीह परमेश्वर है और मेरे लिए मरा है, तो मेरा उसके लिए किया कोई भी बलिदान बड़ा नहीं हो सकता। (सी. टी. स्टड)
क्या आपने कभी परमेश्वर के लिए अपनी इच्छा त्यागी है? क्या आपकी इच्छा आपके हाथ में है या प्रभु के? अलग-अलग समय पर जब मैं मृत्यु के निकट आया हूँ, तब मैंने महसूस किया है कि मैं अपनी मृत्यु के दिन के नियंत्रण में नहीं हूँ, लेकिन यीशु है! मसीह अपनी मदद के लिए अपने स्वर्गदूतों को बुलाकर आसान रास्ता चुन सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उसने क्रोध के उस कटोरे को स्वीकारा जिसके हकदार हम थे।
यीशु पकड़वाया गया
गतसमनी में जो हुआ, उसकी पूरी तस्वीर के साथ, आइए हम अब यहुन्ना द्वारा लिखे मसीह के पकड़वाए जाने के बारे में पढ़ें।
1यीशु ये बातें कहकर अपने चेलों के साथ किद्रोन के नाले के पार गया, वहाँ एक बारी थी, जिस में वह और उसके चेले गए। 2और उसका पकड़वाने वाला यहूदा भी वह जगह जानता था,