top of page

6. God So Loved

हिंदी में अधिक बाइबल अध्ययन देखने के लिए, यहाँ क्लिक करें।

6. परमेश्वर ने ऐसा प्रेम किया 

अब तक का सबसे रूमानी नज़ारा जिसे मैंने देखा है कोल्चेस्टर, एसेक्स, इंग्लैंड में एक खुबसूरत, पुराणी कलीसिया के भवन में आयोजित विवाह समारोह में था। सबसे यादगार लम्हा वो था जब दुल्हन ने गलियारे के आरंभ से आगे बढ़ना शुरू किया; और जब वह दूल्हे की ओर बढ़ रही थी दूल्हे ने उसके लिए एक प्रेम गीत गाना शुरू कर दिया। एक स्त्री और पुरुष के बीच इस सबसे कोमल लम्हे का गवाह होना कितनी सुन्दर बात थी, जहाँ दुल्हन दूल्हे के इस प्रेम के रूमानी कार्य से पूरी तरह चौंक गयी थी।

 

शुरुआती प्रश्न: वह कौन सी सबसे प्रेम भरी या रूमानी बात है जिसके बारे में आपने कभी सुना हो या आप उसके गवाह ठहरे हों?

 

परमेश्वर ने हमें बुलाने के लिए स्वयं स्वर्ग से पृथ्वी तक पहुँचने की पहल की, अपनी दुल्हन के साथ विवाह के सम्बन्ध में आ जाने के लिए। उत्पत्ति से प्रकाशितवाक्य तक, बाइबिल हमें एक ऐसे परमेश्वर की दास्तान बयां करती है जो मानवजाति से इतना प्रेम करता है कि वह हमें अदन की वाटिका में पतन से वापस अपने पास रिझाने के लिए महान दूरियों को दूर करने के लिए असाधारण हदों तक गया है। बाइबिल की अंतिम पुस्तक, प्रकाशितवाक्य की पुस्तक, परमेश्वर के संतों के बारे में बताती है, जिन्हें परमेश्वर अपने आत्मा से नए सिरे से जन्म लेने के द्वारा अपने साथ सम्बन्ध में लाता है, और वह स्वर्ग से एक नगर की तरह उतरते हैं:

 

फिर मैं ने पवित्र नगर नए यरूशलेम को स्वर्ग पर से परमेश्वर के पास से उतरते देखा, और वह उस दुल्हिन के समान थी, जो अपने पति के लिये सिंगार किए हो। फिर मैं ने सिंहासन में से किसी को ऊंचे शब्द से यह कहते सुना, कि देख, “परमेश्वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है; वह उन के साथ डेरा करेगा, और वे उसके लोग होंगे, और परमेश्वर आप उन के साथ रहेगा; और उन का परमेश्वर होगा।”

 

(प्रकाशितवाक्य 21:2-3 ज़ोर मेरे द्वारा जोड़ा गया है)

 

कलीसिया के मसीह की दुल्हन होने के इसी विचार को पौलुस कलीसिया को विवाह के लिए तैयार करने वाली अपनी शिक्षा में भी लिखता है, वह कहता है: क्योंकि मैं तुम्हारे विषय मे ईश्वरीय धुन लगाए रहता हूँ, इसलिये कि मैं ने एक ही पुरूष से तुम्हारी बात लगाई है, कि तुम्हें पवित्र कुंवारी की नाई मसीह को सौंप दूँ।” (2 कुरिन्थियों 11:2) परमेश्वर मनुष्य पर प्रकट करता है कि केवल एक बदले के बलिदान के द्वारा ही परमेश्वर के साथ इस मिलन को हासिल किया जा सकता है। उसके लोगों के छुड़ाए जाने के लिए, या बंधुआई से वापस मोल लिए जाने के लिए, एक निर्दोष मेमने को मरने की आवश्यकता है (निर्गमन 12:3-13) आगे जाकर, बियाबान में अपने भटकने के समय में, परमेश्वर इजराइलियों को दिखाता है कि मनुष्य का अपने पाप से शुद्ध हो इस पवित्र परमेश्वर के निकट आ पाने का एकमात्र जरिया, उसके बदले में किसी बलिदान किये पशु का लहू ही है। (निर्गमन 29:44-45) पुराने नियम में पाप के लिए किये सभी बलिदान सम्पूर्ण संसार में कभी भी देखे गए प्रेम के सर्वोच्च आत्म-बलिदान के कार्य की परछाई मात्र हैं। सबसे पवित्र परमेश्वर मनुष्य बना और स्वेच्छा एवं प्रेम से, हमारे पापों की पूरी कीमत चुकाते हुए, उसने एक बलिदान के रूप में अपने प्राण दे दिए।

 

इस संसार का सबसे महान प्रेमी संसार द्वारा देखे गए प्रेम के सबसे महान कार्य के द्वारा हमारे हृदयों को मंत्रमुग्ध करने आया है, कलवरी के क्रूस पर मसीह की भयावर मृत्यु के द्वारा। अगर यह काफी नहीं, तो यह इस प्रेम के सबसे महान कार्य को सबसे ज्यादा लोगों के लिए सबसे ज्यादा सरलता से उपलब्ध करा देता है। यह संपन्न किया कार्य है और हम न इसमें कुछ जोड़ सकते न कुछ कर सकते हैं। बस इस सबसे महान उपहार को ग्रहण कर सकते हैं। आइये हम यीशु और नीकुदेमुस के बीच इस बातचीत को आगे पढ़ें, वह मुख्य खंड जिसका हम अध्यन कर रहे हैं, जो परमेश्वर के उपहार को समझाता है और कि कैसे यह उनको दिया जाता है जो विश्वास द्वारा उसे प्रतिउत्तर देते हैं:

 

11मैं तुझ से सच सच कहता हूँ कि हम जो जानते हैं, वह कहते हैं, और जिसे हम ने देखा है उस की गवाही देते हैं, और तुम हमारी गवाही ग्रहण नहीं करते। 12जब मैं ने तुम से पृथ्वी की बातें कहीं, और तुम प्रतीति नहीं करते, तो यदि मैं तुम से स्वर्ग की बातें कहूँ, तो फिर क्योंकर प्रतीति करोगे? 13और कोई स्वर्ग पर नहीं चढ़ा, केवल वही जो स्वर्ग से उतरा, अर्थात् मनुष्य का पुत्र जो स्वर्ग में है। 14और जिस रीति से मूसा ने जंगल में साँप को ऊँचे पर चढ़ाया, उसी रीति से अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र भी ऊँचे पर चढ़ाया जाए। 15ताकि जो कोई विश्वास करे उस में अनन्त जीवन पाए। “16क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। 17परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिये नहीं भेजा, कि जगत पर दंड की आज्ञा दे परन्तु इसलिये कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए। 18जो उस पर विश्वास करता है, उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती, परन्तु जो उस पर विश्वास नहीं करता, वह दोषी ठहर चुका; इसलिये कि उस ने परमेश्वर के एकलौते पुत्र के नाम पर विश्वास नहीं किया। 19और दंड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्यों ने अन्धकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उन के काम बुरे थे। 20क्योंकि जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामों पर दोष लगाया जाए। 21परन्तु जो सच्चाई पर चलता है वह ज्योति के निकट आता है, ताकि उसके काम प्रगट हों, कि वह परमेश्वर की ओर से किए गए हैं।” (यहुन्ना 3:11-21)

 

पिछले अध्यन में, (पद 1-10), हमने जीवन के कठिन प्रश्नों के उत्तर के बारे में नीकुदेमुस की खोज के बारे में देखा था; एक व्यक्ति परमेश्वर के सम्मुख धर्मी कैसे हो सकता है, और यह धार्मिकता कैसे हासिल की जा सकती है? जब यीशु उसे बताता है कि उसे ऊपर से या नए सिरे से जन्म लेना होगा, तो वो यह कहकर प्रतिउत्तर देता है, यह बातें कैसे हो सकती हैं” (यहुन्ना 3:9) आज हम इस खंड को और गहराई से देखेंगे। लेकिन पहले, आइये इस खंड के एक मुख्य शब्द पर केन्द्रित हों:

 

इन 11 वचनों में कौन सा शब्द सात बार पाया जाता है? इस शब्द के बारे में ऐसा क्या महत्वपूर्ण है कि इसे इतनी बार दोहराया गया है?

 

यह अति महत्वपूर्ण यूनानी शब्द है पिस्टियू, जिसका हिंदी में अनुवाद विश्वास शब्द से किया गया है। इसका अर्थ किसी की सच्चाई में भरोसा और विश्वास रखना। मुझे इस प्रकार के भरोसे को समझाने के लिए एक तस्वीर बयां करने की अनुमति दें। प्रभु यीशु को एक व्यक्ति के किले रूपी जीवन में आते, अपने प्रवेश के लिए उसके फाटकों के खोले जाने की प्रतीक्षा करते हुए कल्पना करें। ऊपर की युद्धशिला “किला मेराप्राण” पर, ऐसे तीन व्यक्ति खड़े हैं जिन्हें उसे अंदर प्रवेश की अनुमति देने के लिए एक साथ निर्णय लेना है। विवेक सबसे पहले बोलता है। वह औरों से कहता है, “हम तो आफत में हैं क्योंकि हमने निश्चित ही उसके नियमों को तोड़ा है और उससे विद्रोह के दोषी हैं।” दूसरा, मन बोल उठता है, कहते हुए, “फाटक को खोलने पर, क्षमा की उसकी पेशकश, हमारी आशा से कहीं बढ़कर है। हमें तो उसके लिए खोल देना चाहिए।” सच्चाई तो यह है कि केवल तीसरे व्यक्ति के पास ही फाटक खोलने की समर्थ है। हमारे स्वाभाव के तीसरे भाग को इच्छा कहा जाता है। इच्छा दूसरों से सलाह तो लेती है लेकिन फाटक के कुंडे पर हाथ केवल उसी का है। मसीह कभी हमारे जीवनों में ज़बरदस्ती नहीं करेगा। परमेश्वर ने हमें स्वतंत्र इच्छा का उपहार दिया है। मसीह पर भरोसा करना और उसे ग्रहण करना हमारी इच्छा का कार्य है, न केवल सुसमाचार की सच्चाइयों का मानसिक रूप से अपना लेना।

 

जब एक व्यक्ति का सामना मसीह के सुसमाचार के दावों से होता है तो अक्सर उसके प्राण में एक युद्ध छिड़ जाता है। हमारे प्राण का शत्रु अक्सर एक व्यक्ति की इच्छा को फाटक न खोलने के लिए समझाने की कोशिश में उसके मन में अनेकों प्रकार के प्रश्न डाल देता है। हम चुनाव कर सकते हैं कि हम कुंडे को खोलें या न खोलें, मसीह को अपने जीवन में प्रवेश कर अपने अंदरूनी मानस पर, अपने “किला मेराप्राण पर, राज करने की अनुमति दे न दें।” विश्वास करना इच्छा का कार्य है। मन और विवेक की गवाही लेने के पश्चात् एक स्त्री या पुरुष विश्वास का हाथ उठा परमेश्वर से जुड़ने के लिए आगे बढ़ता है, यह भरोसा करते हुए कि परमेश्वर अपने वचन के प्रति सच्चा है। अगर वह अपनी इच्छा को अधीन कर मसीह ने जो उसके लिए किया है उसपर विश्वास द्वारा भरोसा करता है, तो वह नए सिरे से या फिर ऊपर से आत्मिक रीती से जन्म लेता है। एक बार अपने जीवन को मसीह के लिए समर्पित करने का निर्णय ले लिया जाता है, वो प्रतिज्ञा देता है कि वो हमें कभी न छोड़ेगा या त्यागेगा (इब्रानियों 13:5), लेकिन एक व्यक्ति को प्रतिदिन अपना क्रूस उठा उसके पीछे चलने का निर्णय लेना पड़ता है। (लूका 9:23) निरंतर परमेश्वर के मार्गों में चलना इच्छा का एक कार्य है। हम एक ऐसे युद्ध में प्रवेश करते हैं जो हमारे साथ सम्पूर्ण जीवन रहेगा। हमारा मन रणभूमि बन जाता है। युद्ध लड़े जाते है, और हमारे निर्णयों के आधार पर, जीते या हारे जाते हैं। कुछ युद्ध हम परीक्षा से हार बैठेंगे, लेकिन मैं भरोसा करता हूँ कि जैसे आप और मैं परिपक्वता में बढ़ेंगे, परमेश्वर से अनुग्रह पाकर हम ज्यादा, और ज्यादा परीक्षा से उबर पाएंगे। प्रभु यीशु द्वारा यह प्रावधान भी है कि जब हम पाप में भी पड़ जाते हैं, अगर हम पश्चाताप कर उसकी क्षमा मांगते हैं, हमें उसके साथ संगती में पुन: स्थापित किया जाता है। (1 यहुन्ना 1:9)

 

क्या आपको मसीह पर भरोसा करने का लिए निर्णय लेने से पूर्व अपने मन में चल रहा युद्ध याद है? इसके बारे में चर्चा करें। अगर आपको महसूस होता है कि आपने अभी तक इस निर्णय को नहीं लिया है, तो आप क्या सोचते हैं कि आपको क्या बातें रोके हुए हैं?

 

इस बात से अवगत रहें कि मन ही वह स्थान है जहाँ आत्मिक युद्ध धधकता है। आपके प्राण का शत्रु चाहेगा कि आप मान लें कि आपके विचारों का स्रोत केवल आप में है। यह सत्य नहीं है। परमेश्वर का वचन, जैसा कि यीशु द्वारा बीज बोने वाले के दृष्टांत में बीज के विषय में बताता है, हमारे हृदयों की भूमि में बोया जाता है (लूका 8:4-15), लेकिन झाड़ियों के दृष्टांत में (मत्ती 13:24-26), हम शत्रु को भी उपजाऊ भूमि में बीज बोते देखते हैं। मैं हृदय को मनुष्य के अंदरूनी गठन के प्रतीक के रूप में देखता हूँ, जिसमें उसकी आत्मा, मन, इच्छा और भावनाएं शामिल हैं। (1 थिस्स्लुनिकियों 5:23) शत्रु आपके मन की भूमि में भी बीज बोता है। सभी विचार जिनके बारे में आप सोचते हैं आपके मन में उत्पन्न नहीं होते। इनके आत्मिक स्रोत भी हैं। वह विचार जो आपके हृदय और मन में बोए जाते हैं तीन अलग-अलग स्रोतों से हैं; परमेश्वर, शैतान और आपके अपने विचार। जो आप वहाँ फलने देंगे और आपके द्वारा पोषित किये गए विचारों के आधार पर आप जो निर्णय लेंगे, वही आप बनेंगे। विश्वास करना जो कुछ भी आपका है और जो कुछ भी आप हैं, उसे मसीह के अधीन करने का जागरूक चुनाव है। आप अब अपने नहीं रहे, आपको एक दाम देकर मोल ले लिया गया है, मसीह के बहाए लहू का दाम (1 कुरिन्थियों 6:20). 

 

इस अध्यन के शुरुआत में हमने अपने और मानव के बीच एक मिलन स्थापित करने की परमेश्वर की योजना के बारे में, और इस योजना के समझे जाने और सबसे सरल रीती से अपनाये जाने की आवश्यकता के बारे में देखा था। कई लोगों को सुसमाचार की सरलता के साथ कठनाई होती है। वह तर्क देते हैं कि मनुष्य के अनंत नियति जैसी इतनी महत्वपूर्ण बात को हासिल करना तो कठिन होना चाहिए। वह महसूस करते हैं कि यह ऐसा होना चाहिए जिसे केवल कठिन परिश्रम और कोशिश के द्वारा ही हासिल किया जा सके, वरना वह इसे एक मायावी रहस्य की तरह देखते हैं जिसके बारे में निश्चित नहीं हुआ जा सकता।

 

29 देखो, मैं ने केवल यह बात पाई है, कि परमेश्वर ने मनुष्य को सीधा बनाया, परन्तु उन्हों ने बहुत सी युक्तियाँ निकाली हैं। (सभोपदेशक 7:29)

मनुष्य अपने हृदय की प्रतीति को राहत देने या कम करने के लिए कई प्रकार की योजनाएं इजात करता है। ऐसे कई झूठे धर्म हैं जो हमें बताते हैं कि यदि हम कर्मों की सीढ़ी चढ़ने में कठिन परिश्रम करें, तो अपने जीवनों के अंत तक हम उसे हासिल कर लेंगे। भला कितना अच्छा, काफी अच्छा होता है? नीकुदेमुस ने भी इस बात को स्वीकारा कि 6000 फरीसियों में से एक होना, इजराइल के 70 अग्वों में से एक होना, और राष्ट्र का सिखाने वाला होना भी काफी नहीं था! जो लोग कठिन परिश्रम कर उद्धार हासिल करने की खोज में थे उनके लिए यीशु के पास स्पष्ट सन्देश था:

 

28उन्हों ने उस से कहा, “परमेश्वर के कार्य करने के लिये हम क्या करें?” 29यीशु ने उन्हें उत्तर दिया; “परमेश्वर का कार्य यह है, कि तुम उस पर, जिसे उस ने भेजा है, विश्वास करो।“ (यहुन्ना 6:28-29)

 

परमेश्वर ने सबसे महान उपहार को सबसे बड़ी सरलता से अपनाये जाने के लिए बनाया है, और उसने इस उपहार को उन सभी के लिए उपलब्ध कराया है जो विश्वास करेंगे। उसने कहा कि परमेश्वर ने इसे इतना सरल बना दिया कि बच्चे, इस विषय पर सीमित ज्ञान के साथ, बिना कीमत के उद्धार के उपहार को ग्रहण कर सकते हैं। यहाँ तक कि उसने कहा, मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो कोई परमशॆवर के राज्य को बालक की नाई ग्रहण न करेगा वह उस में कभी प्रवेश करने न पाएगा।” (लूका 18:17)

 

हम बच्चों से विश्वास के बारे में क्या शिक्षाएं ले सकते हैं? हमें परमेश्वर के राज्य के निकट बालकों की नाई क्यों जाना चाहिए?

 

बच्चे हमें यहाँ कई बातें सिखा सकते हैं, क्योंकि बच्चे तो बस जो उनके माता-पिता उन्हें बताते हैं उसपर सरलता से विश्वास कर लेते हैं। जब मेरा बेटा छोटा बच्चा था, मुश्किल से चल पाने वाला, वह मेरी बाहों में कूद कर आता, बिना एक बार भी नीचे गिरने के डर से या नीचे देखे कि फर्श कितना नीचे है। जब हम उम्र में बढ़ने लगते हैं, यह तभी होता है कि हम अपने पिता की बाहों में कूदने से पहले सब कुछ समझना चाहते हैं। यीशु ने नीकुदेमुस को एक ऐसी कहानी स्मरण कराई जो विश्वास और भरोसे को इस सरलता से समझाती है कि एक व्यक्ति केवल क्रूस पर मसीह के संपन्न कार्य की ओर देख कर नए सिरे से जन्म पा सकता है। 14और जिस रीति से मूसा ने जंगल में साँप को ऊँचे पर चढ़ाया, उसी रीति से अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र भी ऊँचे पर चढ़ाया जाए। 15ताकि जो कोई विश्वास करे उस में अनन्त जीवन पाए। (यहुन्ना 3:14-15) आइये और समझने के लिए हम गिनती की पुस्तक में उस खंड में इसे गौर से देखें जिसे वह यहाँ प्रयोग करता है:

 

4फिर उन्हों ने होर पहाड़ से कूच करके लाल समुद्र का मार्ग लिया, कि एदोम देश से बाहर बाहर घूमकर जाएं; और लोगों का मन मार्ग के कारण बहुत व्याकुल हो गया। 5सो वे परमेश्वर के विरूद्ध बात करने लगे, और मूसा से कहा, “तुम लोग हम को मिस्र से जंगल में मरने के लिये क्यों ले आए हो? यहाँ न तो रोटी है, और न पानी, और हमारे प्राण इस निकम्मी रोटी से दुखित हैं।” 6सो यहोवा ने उन लोगों में तेज विष वाले साँप भेजे, जो उनको डसने लगे, और बहुत से इस्त्राएली मर गए। 7तब लोग मूसा के पास जाकर कहने लगे, “हम ने पाप किया है, कि हम ने यहोवा के और तेरे विरूद्ध बातें की हैं; यहोवा से प्रार्थना कर, कि वह साँपों को हम से दूर करे।” तब मूसा ने उनके लिये प्रार्थना की। 8यहोवा ने मूसा से कहा, “एक तेज विष वाले साँप की प्रतिमा बनवाकर खम्भे पर लटका; तब जो साँप से डसा हुआ उसको देख ले वह जीवित बचेगा।” 9सो मूसा ने पीतल का एक साँप बनवाकर खम्भे पर लटकाया; तब साँप के डसे हुओं में से जिस जिस ने उस पीतल के साँप को देखा वह जीवित बच गया। (गिनती 21:4-9)

 

परमेश्वर के विरुद्ध उनकी शिकायत करने का क्या नतीजा रहा? अपनी चंगाई प्राप्त करने के लिए उन्हें क्या दो बातें करनी थी और यह उसके समान कैसे है जो यीशु नीकुदेमुस को सिखा रहा था?

 

हमें बताया गया है कि कई इजराइलियों की मृत्यु हुई (पद 6) मैं सोचता करता हूँ कि इनमें से कितने इसलिए मरे होंगे क्योंकि उन्होंने उन्हें दी गयी सरल पूर्ति को अपनाने और उसे करने से मना कर दिया। उनके उद्धार का उत्तर वहाँ बिलकुल उनके सामने था, लेकिन आज हम में से कईयों के समान, उन्होंने उस पूर्ति को इसलिए नज़रंदाज़ कर दिया क्योंकि यह बहुत सरल था। मुझे यकीन है कि कुछ लोग अपने मनों को सही दिशा में एक खम्भे पर लटके पीतल के साँप को देखने की सरलता के लिए तैयार नहीं कर पाए। तर्क करने वाला मन कहता होगा, “यह भला कैसे संभव हो सकता है कि मैं केवल एक खम्भे पर लटकते पीतल के साँप को देखने के द्वारा चंगा हो जाउँगा?” साँप पाप का एक प्रतीक है; जबकि पीतल वही धातु होते हुए जिससे बलिदान की वेदी बनाई गयी थी, न्याय का प्रतीक है। यहाँ तस्वीर यह है कि पाप का न्याय हो चुका है और जो कोई भी पाप का न्याय होने की तस्वीर को विश्वास के साथ देखेगा, उसे चंगाई प्राप्त होगी। यह सादृश्य ठेठ है क्योंकि बाइबिल कहती है, जो पाप से अज्ञात था, उसी को उस ने हमारे लिये पाप ठहराया, कि हम उस में होकर परमेश्वर की धार्मिकता बन जाएं।” (2 कुरिन्थियों 5:21) उसने हमारा स्थान ले लिया और कलवरी पर परमेश्वर ने पाप का न्याय किया; तीसरे पहर यीशु ने बड़े शब्द से पुकार कर कहा, इलोई, इलोई, लमा शबक्तनी? जिस का अर्थ है; हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?” (मरकुस 15:34) जब मसीह क्रूस पर लटका, उसमें पाप का न्याय हुआ। वह बदले का बलिद्दन था और छुड़ाने वाला मेमना। हम सर्प के दर्दनाक काटने से चंगाई पाने के लिए उसकी ओर विश्वास भरी नज़रों से देखते हैं।

 

परमेश्वर के मार्ग हमारे मार्गों से श्रेष्ठ हैं। अगर उसने इसे बस क्रूस की ओर देख पश्चाताप करने जितना सरल बनाया है, तो हम क्यों उसपर विश्वास और भरोसा नहीं करें? भविष्यद्वक्ता यशायाह ने, केवल एक बार देखने के द्वारा उद्धार पाने की सरलता के बारे में लिखा: हे पृथ्वी के दूर दूर के देश के रहनेवालो, तुम मेरी ओर फिरो और उद्धार पाओ! क्योंकि मैं ही ईश्वर हूँ और दूसरा कोई नहीं है।(यशायाह 45:22. ज़ोर मेरी ओर से जोड़ा गया है) इस वचन को परमेश्वर ने चार्ल्स स्पर्ज़यन, महान अंग्रेज़ प्रचारक, को बचाने के लिए किया। वह एक बार चोल्चेस्टर, एसेक्स, इंग्लैंड में उस जगह के पास जहाँ एक बार मैं कुछ समय के लिए रहा, बर्फ के तूफ़ान में फंस गए थे। अपनी सामान्य कलीसिया तक पहुँचने में असमर्थ, वह रास्ते में एक छोटे गिरजाघर में रुक गए। सामान्यत: प्राचार्र करने वाला व्यक्ति भी उस दिन कलीसिया नहीं पहुँच पाया तो कलीसिया के एक प्राचीन ने खड़े होकर बड़ी सरलता से इस बारे में बात की कि एक व्यक्ति को केवल एक-टक, विश्वास के साथ क्रूस पर उद्धारकर्ता की ओर टकटकी लगाए रखने की आवश्यकता है। सी.एच. स्पर्ज़यन कठिन परिश्रम द्वारा अपने उद्धार पर कार्य करने की कोशिश कर रहे थे और क्रूस की ओर टकटकी लगाने के सरल सत्य के बारे में उन्हें यकीन हुआ। उस छोटे गिरजाघर में 16 वर्ष की कोमल उम्र में उन्होंने नए सिरे से जन्म पाया और जल्द ही 19 वर्ष की उम्र तक वह विशाल दर्शकों के सामने प्रचार कर रहे थे।

 

मैं यह नहीं समझा सकता कि कैसे क्रूस पर उद्धारकर्ता की ओर देख मेरा पाप दूर कर दिया जाता है; मैं तो बस इसपर विश्वास करता हूँ और मेरा जीवन परमेश्वर की समर्थ से बदला गया है। सुसमाचार “हर एक विश्वास करनेवाले के लिये..... उद्धार के निमित्त परमेश्वर की सामर्थ है।” (रोमियों 1:16) उसके लिए हृदय और मन से समर्पण करने के कदम को उठाने से पहले सब कुछ समझ लेने की कोशिश न करें बस सब कुछ एक बच्चे के जैसे त्याग कर उसके हाथों में दे दें!

परमेश्वर लोगों के उद्धार पाने को इतना सरल क्यों बनाता है? लोगों के सुसमाचार की सरलता को समझने में क्या ठोकर के कारण हैं?

 

उद्धार पाने को इतना सरल रखने में परमेश्वर की मंशा यह थी कि ज्यादा से ज्यादा लोग उसकी ओर मुड़ कर उद्धार प्राप्त कर सकें। बाइबिल हमें बताती है कि, प्रभु अपनी प्रतिज्ञा के विषय में देर नहीं करता, जैसी देर कितने लोग समझते हैं; पर तुम्हारे विषय में धीरज धरता है, और नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; वरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।” (2 पतरस 3:9 जोर मेरी ओर से जोड़ा गया है) परमेश्वर की मंशा हमारे भीतर के उस स्थान के लिए प्रेम और चिंता है जिसे वो देखता है। वह हमें पाप और शत्रु के आत्मिक कपट की बंधुवाई में देखता है। शत्रु, जो हमें परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप से दूर रखना चाहता है, हमारे मनों में परमेश्वर की एक गुस्से से भरे पिता की तस्वीर का बीज बो देता है, जो हर अवसर पर हमें दण्ड देने की खोज में रहता है, लेकिन सत्य तो बिलकुल विपरीत है:

 

16क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। 17परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिये नहीं भेजा, कि जगत पर दंड की आज्ञा दे परन्तु इसलिये कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए। (यहुन्ना 3:16-17)

 

परमेश्वर ने आपसे और मुझसे ऐसा प्रेम किया कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया। अगर इसके अलावा मनुष्य के लिए परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप का कोई और मार्ग होता, तो क्या आप नहीं सोचते कि वह उसे चुन लेता? अगर नियमों और कानूनों को मानने और भले होने से मेल-मिलाप हासिल किया जा सकता, तो निश्चित ही परमेश्वर अपने पुत्र को इतनी दर्दनाक मृत्यु से होकर गुज़रने के लिए नहीं भेजता। हमें बताया गया है कि परमेश्वर ने ऐसा प्रेम किया। इस शब्द ऐसा को जोर देने के लिए लिखा गया है। परमेश्वर ने केवल प्रेम ही नहीं किया, उसने ऐसा प्रेम किया कि अपने पुत्र को दुष्ट मनुष्यों के हाथों प्रताड़ित और मारे जाते हुए देखने को सहा। किसके हाथों ने उसके साथ कैसा किया? जिन्होंने कोड़े बरसाए और यह कहकर चिल्लाये, “इसे क्रूस पर चढ़ा दो” निश्चित रूप से उनका न्याय किया जाएगा जब तक कि वो सभी उसकी क्षमा को ग्रहण न कर लें, लेकिन यह मेरा और आपका पाप था जो मसीह को क्रूस तक लेकर आया। मृत्यु के समय अलगाव और नरक को, जिसके योग्य मैं अपने पापों के कारण था, उसने अपने उपर ले लिया।

 

समस्या यह थी कि मृत्यु के समय, उद्धारकर्ता के बिना मेरा नाश (पद 16) हो जाता। एक व्यक्ति जो विश्वास नहीं करता, मसीह के क्रूस की ओर नहीं देखता, उद्धारकर्ता के बिना नाश हो जाएगा। वह नहीं चाहता कि किसी का भी नाश हो लेकिन यह कि वह सब पश्चाताप करें। यहाँ पद 16 में जिस हिन्दी शब्द “प्रेम” का प्रयोग किया गया है, असल में यूनानी भाषा का शब्द अगापे है। इसका अर्थ प्रेम, अनमोल जानना, संजोना, सम्मान, कृपा, समर्पण, आदर, निष्ठा और चिंता रखना है। इसका प्रयोग धार्मिक इतिहास के बाहर कम ही किया जाता है, और इसे आम तौर पर सबसे ज्यादा इब्रानी शब्द हेसेड का अनुवाद करने के लिए किया जाता है, जिसका अर्थ करुणा है। अगापे ऐसा शब्द है जिसका उपयोग आत्म-बलिदान के प्रेम का विवरण देने के लिए किया जाता है, एक ऐसा प्रेम जो ऐच्छिक है या एक व्यक्ति की इच्छा के अनुसार किया गया निर्णय है। मसीह की मृत्यु आपके लिए परमेश्वर के निकट आ पाने के लिए उसका प्रयोजन है, और इसे करने में जब आप प्रतिदिन के जीवन में उसकी ओर देखते हैं, आपके पास उसकी मदद उपलब्ध है। पाप की रूकावट को आपके स्थान पर विकल्प की मृत्यु के द्वारा रस्ते से हटा दिया गया है।

 

मैं एक ऐसी कहानी बाँटना चाहता हूँ जो मैं सोचता हूँ इस प्रकार के प्रेम को समझने में हमारी मदद करेगी जिसे बारे में हम बात कर रहे हैं:

 

अपनी पुस्तक, मिरेकल ओन द रिवर क्वाई, अर्नेस्ट गॉर्डोन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा रेल मार्ग पर कार्य कर रहे युद्ध के बंधियों के समूह की एक सच्ची घटना बताते हैं। कार्य करने वाले समूहों से दिन के अंत में सारे औजार वापस इक़ट्ठे कर लिए जाते थे। एक अवसर पर, एक जापानी पहरेदार ने चिल्लाकर कहा कि एक बेलचा गायब है और यह जानने की मांग करने लगा कि किस व्यक्ति ने इसे लिया है। वह बक-बक करने और गाली-गलौच करते हुए आपे से बाहर होता गया और दोषी व्यक्ति को आगे बढ़कर सामने आने का आदेश दिया। कोई नहीं हिला। सब मरेंगे! सब मरेंगे! कैदियों की ओर अपनी बन्दूक हिलाते और निशाना साधते वह चीखा। उस समय पर एक आदमी सामने आया और जबकि वह शांत खड़ा रहा, पहरेदार ने उसे अपनी बन्दूक के हत्थे से वार कर-कर के मार डाला। जब वह शिविर में वापस पहुँचे, औज़ारों की पुनह गिनती हुई और कोई बेलचा गायब नहीं था। जापानी सैनिक ने गलत गिनती की थी। वह एक व्यक्ति बाकी सभों को बचाने के लिए एक विकल्प के रूप में आगे आया।

 

परमेश्वर मसीह में था; संसार को अपने पास मेल-मिलाप करने के लिए बुलाता हुआ। उसने आपसे और मुझसे ऐसा प्रेम किया कि हमारे लिए अपने आप को दे दिया। जब मैंने पहली बार इसे सुना कि परमेश्वर मुझसे व्यक्तिगत रीती से प्रेम करता है तो यह मेरे लिए अभी तक सुनी सबसे महान ख़बर थी! आखिर आज तक यह बात किसी ने भी मुझे बताई क्यों नहीं थी? मैं इसपर यकीन नहीं कर पाया कि मैं जीवन के प्रश्नों के उत्तर ढूँढने के लिए सारे संसार भर में फिरता रहा लेकिन मेरे अपने शहर में मुझे यह किसी ने कभी नहीं बताया। जब मैं पाँच साल का था तो मैंने अपनी माँ को खो दिया। मैंने कभी यह शब्द “मैं तुमसे प्रेम करता/ती हूँ नहीं सुने थे।” मेरे हृदय में यह गहरी लालसा थी कि मुझे, मैं जो हूँ उसके लिए प्रेम किया जाए न कि उसके लिए जो मैं कर सकता हूँ। एक पहेली की तरह जबतक उसका आखरी हिस्सा नहीं बूझ जाता तबतक वह अधूरी रहती है, मेरे जीवन में भी कुछ गायब था जिसे मैं पहचान नहीं पा रहा था। जब मैं मसीह से मिला तो मेरा हृदय टूट कर मसीह के प्रेम के कारण पिघल गया। मुझे उस जगह से बाहर निकल जहाँ मैं मसीही बना था, एक सरकारी बस में फ्लोरिडा की ओर जाते हुए हन्नाह हर्नार्ड द्वारा इस पुस्तक को पढ़ना याद है, हाइंड्स फीट ओन हाए प्लेसिज़। जब मैंने इसके बारे में और जाना कि कैसे परमेश्वर मुझे अपने निकट खींच रहा था मैं कई आँसू रोया। उसने मुझे उस समय से कभी नहीं छोड़ा था जब मैंने ज्यादा नशा कर मरते-मरते बचने के बाद उसकी ओर गुहार लगाई थी।

 

लगभग पाँच वर्ष तक मैं उन सच्चाइयों की आत्मिक खोज पर था जिन्हें आखिरकार मुझे बताया गया था। मैंने सन्देश को सुना और जब यह जाना कि परमेश्वर मुझसे प्रेम करता है तो मैंने नए सिरे से जन्म लिया। मैं तब भी, और आज भी, इस बात से अचंभित हूँ कि कोई मुझ जैसे व्यक्ति, एक पूर्व-नशेड़ी और एक मछुवारे से कैसे प्रेम कर सकता है। मेरे बारे में कुछ खास न था न है, लेकिन फिर भी उसने मुझसे प्रेम किया, और आपसे भी करता है। चाहे आपने कुछ भी किया हो या आप कहीं भी रहे हों, वो आपसे प्रेम करता है। उसके पास आएं; आपके लिए उसके व्यक्तिगत प्रेम को अनुभव करें! उसने हमारी नए सिरे से जन्म लेने की आवश्यकता को देखा, कि परमेश्वर का जीवन हम में जागृत हो और भर जाए, और उस एकमात्र जन की जो अपने जीवन को देकर हमें शैतान के पाप की बंधुवाई के बाज़ार से आज़ाद कराने के लिए इस छुडौती की कीमत को चुका सकता है। जो कोई इसपर विश्वास करता है अनंत जीवन पाता है (पद 16).

 

अगर हमने अनंत जीवन पा लिया है, तो वह क्या है जो हमारे पास है? इस उक्ति, ‘अनंत जीवन’, का अर्थ क्या है?

 

अनंत जीवन इस जीवन को जो अभी हमारा है अनंत काल तक अनुभव करने से कहीं ज्यादा है; यह एक बिलकुल नए स्तर पर जीवन है। यह वैसा जीवन है जिसका इरादा परमेश्वर ने किया था। एक मसीह केन्द्रित जीवन, एक ऐसा जीवन जो अगापे प्रेम में आत्मा द्वारा चलित है। जब हम मसीह को ग्रहण करते हैं, हमें क्षमा किया जाता है और क्रूस पर मसीह के संपन्न कार्य के आधार पर परमेश्वर के साथ सही रीती में स्थापित किया जाता है। इसमें कुछ नहीं जोड़ा जा सकता और इसे अर्जित भी नहीं किया जा सकता, इसे तो केवल परमेश्वर के उपहार के रूप में ही ग्रहण किया जा सकता है। यह जीवन सच्चाई से मसीह को अपने जीवन में प्रवेश करने के लिए स्वागत करने से, और हमारे पाप से पश्चाताप करने पर शुरू होता है। हमें अपने जीवनों में अनंत जीवन के प्रकट होने के लिए मृत होने तक का इंतज़ार करने की आवश्यकता नहीं, यह हमारे उपर से जन्म या नए सिरे से जन्म लेने के साथ शुरू हो जाता है।

 

bottom of page