3. The First Disciples of Jesus
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3. वह प्रभु जो भीतर देखता है
मैं दक्षिणी पूर्वी इंग्लैंड के हार्विच नामक एक ऐसे तटीय शहर में बड़ा हुआ जहां सभी लोगों को उनके मुँह बोले नाम से बुलाया जाता था। वहाँ अगर कुछ नाम लूँ, तो कृष्णा कंजूस, टिंकू, भडकू, कानू, मोनू, चीकू, बबलू, बिशु, बाबा, यह सब थे। शहर में हम में से कई उनके असल नाम जानते ही नहीं थे। उन्हें जो मुँह बोला नाम दिया गया था वही उनके साथ जुड़ गए थे। यह इंग्लैंड में काफी आम है। कभी-कभी उन्हें यह मुँह बोला नाम उनकी किसी आदत या किसी विशेषता के कारण दिए जाते थे। उदहारण के लिए, कृष्णा कंजूस बहुत कंजूस था और कानू के कान काफी बड़े थे। अन्य समयों पर उन्हें मुँह बोला नाम उनके जीवन में हुई किसी घटना के कारण मिलता था। भडकू ने दूसरे आदमी के साथ अपनी पत्नी को देख चाकू से गोदकर उसका क़त्ल करने के लिए जेल में समय बिताया था। उसका यह मुँह बोला नाम कोई उसके मुँह पर नहीं बोलता था लेकिन सारा शहर उसे यही बुलाता था। यह बहुत रोचक है कि वह बहुत पसंद किया जाता था और वह काफी नम्र आदमी प्रतीत होता था। ज़्यादातर मुँह बोले नाम अक्सर प्रयोग होते थे। अगर आपका कोई मुँह बोला नाम नहीं था, तो इसका मतलब यह नहीं कि वह है ही नहीं, अधिकतर इसका मतलब था कि आप नहीं जानते कि वो क्या है। मैं नहीं जानता कि मेरा मुँह बोला नाम क्या था और मैं इस बारे में सोचना भी नहीं चाहता यह पुरानी कहावत: “ईंट पत्थर तो मेरी हड्डियाँ तोड़ देंगे लेकिन नाम बुलाने से मुझे कभी चोट न पहुँचेगी” सत्य नहीं है। जो नाम लोग हमें देते हैं, हमारे स्वयं को देखने पर असर डाल सकते हैं। यह हमें झूठी धारणाओं में बाँध सकते और हमारी आत्म-छवि पर प्रभाव डाल सकते हैं। लोग हमें जैसे देखते हैं उससे स्वतंत्र होना कठिन हो सकता है। मुझे अभी भी अपने इंटर की कक्षाओं का पहला साल याद है, मैं दूसरी ओर से आ रहे अपने से बड़े अनेक बच्चों का सामना करते हुए गलियारों से गुज़र रहा था। उनमें से एक ने मेरी ओर देखते हुए औरों से कहा, “देख, वो रहा कालू!” (यह जानी मानी बात थी कि कालू पूरे स्कूल में सबसे बतसूरत बच्चा था, और यह स्कूल काफी बड़ा था।) मैं नहीं जानता कि क्या यह मेरे “कटोरा कट” बाल थे, या वह मोटे चश्मे जो मुझे पहनने पड़ते थे, लेकिन उनके अनचाहे ध्यान ने निशाना साध लिया था। उस समय से मुझे आत्म-सम्मान के साथ काफी जूझना पड़ा। कैसे नाम और नज़रिए हमें प्रभावित कर सकते हैं! 23 साल की उम्र में जब मैं मसीही बन गया, मैंने जाना कि वाकई मेरा कोई उपनाम नाम है; मैं बस जानता नहीं था कि वो क्या है। मुझे निश्चित था कि यह मेरे बदले हुए जीवन से मेल खाता और मेरे मसीह बनने के निर्णय से जुड़ा कोई बुरा शब्द है।
बाइबिल के दिनों में, कभी-कभी नाम उस समय पर हो रही बातों का वर्णन करने के लिए दिए जाते थे। उदहारण के लिए, जब एली महायाजक, और उसके सारे पुत्र एक ही समय पर मर गए, उसके पोते का नाम, जिसका जन्म भी उसी समय पर हुआ था, ईकाबोद पड़ा। ईकाबोद एक निराश कर देने वाला नाम है; इसका अर्थ है महिमा जा चुकी है (1 शमूएल 4:21)। आप ऐसे नाम के साथ बड़ा होना कैसा महसूस करेंगे? फिर एक आदमी था जिसने दाऊद के साथ निर्दयी व्यवहार किया, नाबाल नाम का एक आदमी, जिसके नाम का अर्थ मूर्ख है। यह कैसे संभव है कि उसे ऐसा नाम मिला? एक माँ अपने बेटे को ऐसा नाम कैसे दे सकती है? क्या आप कभी अपने बेटे का नाम मुर्ख रखेंगे? क्या यह एक मुँह बोला नाम था? हमें बताया जाता है कि उसका चरित्र बिलकुल उसके नाम जैसा था (1 शमूएल 25:25)। कभी-कभी हमारे जीवन में प्रभावशील लोग ऐसी बातें बोल जाते हैं जो हमें हमारे प्रति उनके नज़रिए में बाँध देती हैं। माँ-बाप और शिक्षकों द्वारा ऐसे चोट पहुँचाने वाले शब्द बोले गए हैं जो बोले जाने के लम्बे समय तक गूंजते रहते हैं और लोगों को उनके वयस्क जीवनकाल तक प्रभावित करते हैं। माँ-बाप ऐसे शब्द बोल सकते हैं, “तेरा कभी कुछ नहीं होगा!” “तुझे तो कभी अच्छी नौकरी नहीं मिलेगी!” “तू तो हमेशा हार मान लेता है!” “इतना बुज़दिल मत बन!” हमारे बारे में यह नज़रिए हमें वही व्यक्ति होने में बांधे रख सकते हैं जो हम अतीत में थे। अब जब हमारा जीवन एक अलग स्वामी, मसीह के अधीन आ गया है, हम वह होने के लिए स्वतंत्र हो सकते हैं जो परमेश्वर हमें मसीह में बना रहा है। न केवल हम अपने आप को अलग रीती से देखते हैं, लेकिन हमें दूसरों को भी अलग रीती से देखने का चुनाव करना है। प्रेरित पौलुस ने इसे इस प्रकार कहा:
16 सो अब से हम किसी को शरीर के अनुसार न समझेंगे, और यदि हम ने मसीह को भी शरीर के अनुसार जाना था, तौभी अब से उस को ऐसा नहीं जानेंगे। 17 सो यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्टि है: पुरानी बातें बीत गई हैं; देखो, वे सब नई हो गईं। (2 कुरिन्थियों 5:16-17)
वो क्या कह रहा है? जब हम मित्रों या रिश्तेदारों को मसीह के पास आते देखते हैं, हमें उन्हें उस नज़रिए से नहीं देखना है जिसने उन्हें जैसे वह हमेशा रहे हैं उससे बांधे रखा है, लेकिन हमें उन्हें अपनी आँखों पर नए चश्मे लगाकर देखना है। हम यह देख सकते हैं कि अब वह एक नए स्वामी के अधीन हैं, और कुछ भी संभव है! पुराना बीत गया, देखो सब नया हो गया।
आज हम शिमौन के नाम को पतरस में बदलने के बारे में सीखेंगे, एक नाम जिसका अर्थ एक छोटा पत्थर या चट्टान है, और कैसे एक नाम बदलने के सरल कार्य के द्वारा येशु पतरस का चरित्र बदलने लगता है।
शुरुआती प्रश्न: अगर आप अपना नाम बदल सकते, क्या आप ऐसा करेंगे? आप अपना नाम क्या रखेंगे और क्यों?
येशु के पहले चेले
35दूसरे दिन फिर यूहन्ना और उसके चेलों में से दो जन खड़े हुए थे। 36 और उस ने यीशु पर जो जा रहा था दृष्टि करके कहा, देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है। 37तब वे दोनों चेले उस की सुनकर यीशु के पीछे हो लिए। 38यीशु ने फिरकर और उन को पीछे आते देखकर उन से कहा, तुम किस की खोज में हो? उन्होंने उस से कहा, हे रब्बी, अर्थात् (हे गुरू) तू कहाँ रहता है? उस ने उन से कहा, चलो, तो देख लोगे। 39तब उन्हों ने आकर उसके रहने का स्थान देखा, और उस दिन उसी के साथ रहे; और यह दसवें घंटे के लगभग था। 40उन दोनों में से जो यूहन्ना की बात सुनकर यीशु के पीछे हो लिए थे, एक तो शिमौन पतरस का भाई अन्द्रियास था। 41उस ने पहिले अपने सगे भाईं शिमौन से मिलकर उस से कहा, कि हम को ख्रिस्तुस अर्थात् मसीह मिल गया। 42वह उसे यीशु के पास लाया: यीशु ने उस पर दृष्टि करके कहा, कि तू यूहन्ना का पुत्रा शिमौन है, तू केफा, अर्थात् पतरस कहलाएगा।
इससे पहले कि हम पतरस के नाम बदलने में जाएँ, आइये पहले पतरस और येशु के बीच यह मुलाकात कैसे हुई इसका सन्दर्भ समझ लें। हमें यहुन्ना बप्तिस्मा देने वाले के दो चेलों के बारे में बताया गया है जो यहुन्ना को वहाँ से गुज़र रहे येशु को “परमेश्वर का मेमना” कहकर बुलाते सुनते हैं। यहुन्ना बप्तिस्मा देने वाला लोगों को मनफिराव की ओर लेजाकर और मनुष्यों के हृदयों को मसीह को ग्रहण करने के लिए तैयार कर अपनी सेवकाई के अंत की ओर पहुँच रहा था, और अब लोगों का मसीह के, जो जगत की सच्ची ज्योति है, पीछे होने का समय आ गया था। यहुन्ना की कोशिश सदा लोगों का ध्यान अपने उपर से हटा आने वाले मसीह पर केन्द्रित करने की थी। अब, समय आ गया था कि यहुन्ना की सेवकाई का प्रभाव कम होता जाए और येशु की सेवकाई और उसका प्रभाव बढ़ता जाए। परमेश्वर का सच्चा सेवक हमेशा अपने स्वामी का भला खोजेगा, न कि अपना। वह दो चेले कौन थे? हमें यहुन्ना प्रचारक द्वारा बताया जाता है कि उनमें से एक अन्द्रियास था (पद 40), लेकिन वह यह नहीं बताता कि दूसरा कौन था। ज़्यादातर लोग, जिसमें मैं भी शामिल हूँ, मानते हैं कि वह दूसरा चेला स्वयं यहुन्ना प्रचारक है जो अन्द्रियास के साथ येशु के पीछे चलना आरंभ करता है, नहीं तो उसे यह कैसे पता लगा कि जब वह देखने आए तो दिन का दसवां (शाम के 4 बजे) घंटा था (पद 39)? यहुन्ना प्रचारक वचन में अपने नाम को प्रयोग करने से बारंबार बचता है। अपना नाम लेने की बजाय, हम पाँच जगहों पर गौर कर सकते हैं जहाँ वो अपने आप को; “वो चेला जिससे येशु प्रेम रखता था” कहकर बुलाता है। यहुन्ना 13:23; 19:26; 20:2; 21:7; 21:20).
आपके लिए परमेश्वर के व्यक्तिगत प्रेम की आपकी धारणा क्या है? क्या आप परमेश्वर के प्रेम में सुरक्षित हैं? आप क्या सोचते हैं कि आपके लिए परमेश्वर के प्रेम को लेकर सुरक्षित होने के लिए क्या होना आवश्यक है?
ऐसा प्रतीत होता है कि यहुन्ना के पास परमेश्वर के पीछे चलने में एक गहराई है, वह इस तथ्य में निश्चिंत और सुरक्षित है कि परमेश्वर उससे प्रेम करता है। जब एक स्त्री या पुरुष यह जानता है कि परमेश्वर उससे गहरा प्रेम करता है, वह किसी भी परीक्षा से होकर गुजर सकता है।
जब हमें बताया जाता है कि वह येशु के पीछे हो लिए (पद 37), इसका अर्थ शिष्यता के सन्दर्भ में नहीं है, वह व्यावहारिक रूप से उसके पीछे चलने लगे। वह तो बस उसके साथ व्यक्तिगत रीती से कुछ समय बिताने के लिए उसके साथ चल रहे थे। वह येशु कहलाये जाने वाले इस व्यक्ति के बारे में जिज्ञासु थे। वह उसे नहीं जानते थे, उससे पहले नहीं मिले थे, और उसके बारे में वह केवल इतना जानते थे कि यहुन्ना बप्तिस्मा देने वाले ने उसे परमेश्वर का मेमना कहकर बुलाया था। जब एक व्यक्ति मसीह के बारे में जिज्ञासु होता है, वह इसलिए होता है कि उसके प्राण में एक खालीपन या एक प्यास होती है। येशु ने कहा: "कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिस ने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले; और मैं उस को अंतिम दिन फिर जिला उठाऊंगा” (यहुन्ना 6:44)। अगर किसी की मसीह में एक रूचि है, तो यह इस बात का अच्छा संकेत है कि पिता उस व्यक्ति को मसीह की ओर खींचने के कार्य में लगा है। जब येशु अपने पीछे चल रहे दो लोगों के बारे में अवगत होता है, गौर कीजिये कि वह पीछे मुड़कर उनसे पूछता है कि उन्हें क्या चाहिए। येशु उनकी भूख से अवगत था और उन्हें तृप्त करना चाहता था। येशु के बारे में यह बात मुझे बेहद पसंद है। उसके पास लोगों के लिए हमेशा समय है। वह आगे चलना जारी रख सकता था, यह सोचते हुए कि मुझे तो अपना व्यक्तिगत एकांत चाहिए, या व्यक्तिगत प्रार्थना का समय, लेकिन उसने उनके लिए समय निकला जो परमेश्वर के लिए भूखे थे। येशु ने अपने जीवन में हमेशा उनकी शिष्यता करने के लिए समय निकला जो उसके पीछे चलना चाहते थे।
क्या आप एक समय पर कुछ दूरी से उसके पीछे चल रहे थे? येशु ने आपको कैसे पास बुलाया? क्या आप परमेश्वर की बातों के लिए जिज्ञासु थे?
मसीह के पीछे चलना काफी नहीं है। हमें उसके पीछे सही कारणों से चलना होगा। हमें उसके पीछे चलने के लिए अपने जीवन को खोना होगा। और जो कोई अपना क्रूस न उठाए; और मेरे पीछे न आए; वह भी मेरा चेला नहीं हो सकता (लूका 14:17। ध्यान रखिये, कुछ ऐसे भी थे जो उसके पीछे राजनैतिक कारणों से चले, इस आशा में कि वह रोमी साम्राज्य के विरोध में विद्रोह की अगवाई करेगा। यहूदा के जैसे कुछ ऐसे थे जिनके पास उसके पीछे चलने की मिश्रित मंशाएं थीं। मैं इस बात को देखता हूँ कि येशु ने उन्हें यह प्रश्न पूछने के द्वारा उनके हृदयों में चल रही बातों को बताने का अवसर दिया, “तुम किसकी खोज में हो?” (पद 38)
आइये इस प्रश्न को व्यक्तिगत बनाएं। अगर वह आपसे यह प्रश्न पूछता, “तू किसकी खोज में है?” तो आप उसे क्या उत्तर देते? आपको उससे क्या चाहिए?
उनका उत्तर था, “तू कहाँ रहता है?”। एक तरह से वह लगभग यह पूछ रहे थे, “क्या हम तेरे साथ समय बिता और तुझे जान सकते हैं?” क्या ही अद्भुत अनुभव होगा, येशु के साथ बैठना, उसके रहने के स्थान पर उससे मिलना और बस उसके आस-पास होने में आनंद उठाना। जब वह दो मच्छी की गंध मारते मछ्वारों को अपने निवास पर आमंत्रित करता है, हम मसीह में क्या विनम्रता देखते हैं। अन्द्रियास और यहुन्ना प्रचारक का वह बाकी का दिन येशु के साथ बिताने का क्या परिणाम हुआ? अन्द्रियास अपने आप को रोक नहीं पाया, वह जोश से इतना भर गया था। इससे पहले की वह कुछ करे, उसे अपने भाई शिमौन को ढूंढना था। उसने उत्साहपूर्वक उसे बताया, “हमें मसीह मिल गया है”। क्या यह दो आदमी, (अन्द्रियास और यहुन्ना), मसीह को ढूँढने के कार्य में जुटे थे? जो खोजेगा वह पाएगा, जो खटखटायेगा उसके लिए द्वार खोला जाएगा (मत्ती 7:7)। येशु से मिलने के बाद जो पहली चीज़ अन्द्रियास ने की वो थी अपने भाई से प्रभु का परिचय कराना। जब पतरस प्रभु के सम्मुख खड़ा था, हमें बताया गया है: “यीशु ने उस पर दृष्टि करके कहा, कि तू यूहन्ना का पुत्रा शिमौन है, तू केफा, अर्थात् पतरस कहलाएगा"। यहाँ प्रयोग हुए यूनानी शब्द एम्ब्लिपिएन का अनुवाद “दृष्टि करके देखा” है। इसका अर्थ एकाग्र रूप से ताकते हुए एक इरादे वाली दृष्टि से देखना है। यह परमेश्वर के पुत्र का ताकना है जिसके पास एक व्यक्ति के हृदय में गहराई से वह व्यक्ति कैसा है और उसने क्या किया है, यह देखने की क्षमता है (यहुन्ना 4:39)। चरित्र, समर्पण और विश्वास कुछ ऐसे गुण हैं जो वह देखता है, जबकि अभी तो वह पूरी तरह से उनके चरित्र में गठित नहीं हुए हैं। प्रभु पतरस जैसे मज़बूत अग्वे के भीतरी गुण देख सकता है, लेकिन वह उसके हृदय के उतावलेपन और भरोसा न करने वाली दशा को भी देख पाता है। यह सब देखते हुए, उसने उसे फिर भी चुना।
जब शमूएल नबी को परमेश्वर ने इजराइल के नए राजा का अभिषेक करने के लिए भेजा, उसे बेतलेहम में यिशै के घर भेजा गया। यिशै ने अपने पुत्रों को शमूएल के सामने खड़ा किया और जब उसने एलीआब जो सबसे बड़ा था, उसे देखा, वह इस जवान आदमी के डील-डौल से एकदम प्रभावित हो यह सोचने लगा कि उसके डील-डौल और ताकत के कारण एलीआब ही वह होगा जिसका अभिषेक वह करेगा। लेकिन परमेश्वर चीज़ों को अलग रीती से देख रहा था:
6 जब वे आए, तब उस ने एलीआब पर दृष्टि करके सोचा कि, “निश्चय जो यहोवा के साम्हने है वही उसका अभिषिक्त होगा।“ 7 परन्तु यहोवा ने शमूएल से कहा, “न तो उसके रूप पर दृष्टि कर, और न उसके डील की ऊंचाई पर, क्योंकि मैं ने उसे अयोग्य जाना है; क्योंकि यहोवा का देखना मनुष्य का सा नहीं है; मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है, परन्तु यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है।”
शमूएल के यिशै के सारे परिवार को देख लेने के और सभी ज़ाहिर उम्मीदवारों को ना करने के बाद ही, दाऊद को भेड़ों की देखरेख करने के अपने काम से बुलवा कर नए राजा के रूप में उसका अभिषेक किया गया।
व्यक्तिगत चिंतन के लिए एक प्रश्न: परमेश्वर के पुत्र के एकाग्र ताकने में, आप अपने चरित्र में उसके द्वारा देखे जाने वाले किन गुणों से प्रसन्न हैं? वह कौन से गुण हैं जिन्हे देख वह निराश होगा?
जब येशु मनुष्य को देखता है, वह न केवल यह देखता है कि वह व्यक्ति क्या है, लेकिन यह कि वह क्या बनेगा। केवल उसी के पास हमारे जीवन को आकृत करने की सक्षमता है, वैसे ही जैसे कुम्हार की मिट्टी को, ताकि वह अपने उस उद्देश्य को पूर्ण कर सके जो होने और करने के लिए उसने हमें ठहराया है। यह ऐसा ही है जैसे उसका नाम दिया जाना पतरस को याद दिलाता रहेगा कि उसे कैसा व्यक्ति बनना है; एक चट्टान, न कि भरोसा न करने योग्य और मनचला शिमौन, जो बिना सोचे-समझे बोल उठता था। सुसमाचार कई ऐसे अनुभवों के बारे में बताता है जिन के द्वारा पतरस को उस पुरुष में ढालने में मदद की गई जिसका प्रतीक उसका नया नाम होगा। यह एक आसान रूपांतरण नहीं था; इसमें समय लगा और इसमें पतरस के सीखने के लिए सबक शामिल थे। अंतिम भोज के समय, जब चेलों के बीच इस बारे में विवाद उठ खड़ा हुआ कि सबसे महान चेला कौन है, येशु ने पतरस की ओर रुख कर के (ऐसा इसलिए कि संभावना यह है कि पतरस ही इस विवाद का स्रोत था), उसके मसीह से मुलाकात से पहले के उसके पुराने नाम को लेकर बुलाया, जैसे कि वह उसे वापस अपने पुराने मार्गों और जीवनशैली की ओर मुड़ने के लिए फटकार रहा हो। 31 “शिमौन, हे शिमौन, देख, शैतान ने तुम लोगों को मांग लिया है कि गेंहूं की नाई फटके। 32 परन्तु मैं ने तेरे लिये बिनती की, कि तेरा विश्वास जाता न रहे: और जब तू फिरे, तो अपने भाइयों को स्थिर करना। (लूका 22:31-32)
पतरस का प्रतिउत्तर इस बात को दर्शाता है कि वह सोच रहा था कि उसके पास अपनी भक्ति को लेकर किसी भी परीक्षा को आसानी से अव्वल अंकों से पार करने की अंदरूनी क्षमता है। वह कभी अपने स्वामी को नहीं नकारेगा! अंतिम परीक्षा उस रात आई जब वह उसके पकड़वाए जाने की रात को येशु के पीछे चला। उसे भरोसा था कि वह कभी मसीह को नहीं त्यागेगा लेकिन जब उसपर दबाव आया, उसने प्रभु को कभी जानने से भी इनकार किया। आगे चल कर, महायाजक के निवास पर, उसने अपने आप को चेला होने की सच्चाई छुपाने के लिए श्राप भी दिए (मरकुस 14:71). यह संभव है कि यह पूरा अनुभव जिससे होकर पतरस गुज़रा प्रभु द्वारा रचा गया हो ताकि इससे यह प्रकट हो सके कि वाकई में आत्मिक तौर पर पतरस कहाँ है। उसके हृदय को टूट कर एक बार फिर प्रभु जो कुम्हार है उसके चक्के पर पुन: गठित होने की आवश्यकता थी। पतरस को शिमौन की जीवनशैली से मनफिरा और मुड़कर अंतत: वह चट्टान होन था जो परमेश्वर उसे बना रहा था। पतरस नाम दिए जाने से उसे यह याद दिलाने में मदद हुई कि किस प्रकार परमेश्वर वह देखता है जो इंसान के भीतर है।
टॉमी लासोर्दा, जो लॉस एंजेलीज़ डोजरज़ के पूर्व मेनेजर थे, एक युवा, पतले-दुबले गेंदबाज़ की कहानी बताते हैं, जो डोजरज़ की दूसरी श्रेणी की टीम के प्रशिक्षण का हिस्सा थे। यह युवा काफी हद तक सहमा हुआ था, लेकिन इसके पास एक आश्चर्यजनक रूप से शक्तिशाली और सटीक कन्धा था। लासोर्दा को यकीन था कि इस युवा गेंदबाज़ के पास अब तक का सबसे महान गेंदबाज़ होने की काबिलियत थी। लेकिन, लासोर्दा कहते हैं, इस जवान को ज्यादा प्रखर और प्रत्योगी होने की आवश्यकता थी। उसे अपनी कायरता खोने की आवश्यकता थी। तो लासोर्दा ने उसे एक ऐसा नाम दे दिया जो उसके व्यक्तित्व से एकदम विपरीत था: “प्रखर भेड़िया।” आने वाले वर्षों में, ओरेल हेर्शिशर बिलकुल यही बना – बेसबॉल में मैदान पर उतरने वाले सबसे जुझारू प्रतियोगियों में से एक। यह दिया गया मुँह बोला नाम उसके लिए इस बात को हमेशा यह याद दिलाने वाला बन गया कि उसे क्या होना है, और कुछ ही समय में, इसने उसे आचरण को रूप दिया।
एक मनुष्य के हृदय को तोड़ने में परमेश्वर का क्या भला कारण होगा?
यह एक आत्मिक सत्य है कि हम केवल वही पुन: उत्पन्न कर सकते हैं जो हम हैं। एक पेड़ का उदहारण लेकर, येशु इसे ऐसे कहते हैं:
“15 झूठे भविष्यद्वक्ताओं से सावधान रहो, जो भेड़ों के भेष में तुम्हारे पास आते हैं, परन्तु अन्तर में फाड़नेवाले भेड़िए हैं। 16 उन के फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे क्या झाड़ियों से अंगूर, वा ऊंटकटारों से अंजीर तोड़ते हैं? 17 इसी प्रकार हर एक अच्छा पेड़ अच्छा फल लाता है और निकम्मा पेड़ बुरा फल लाता है।” (मत्ती 7:15-17)
जब हम अपने जीवन को येशु के पीछे चलने के लिए समर्पित करते हैं, हम मसीह के स्वरुप और चरित्र में बदले जाने के लिए हाथ खड़ा कर रहे हैं। जहाँ तक आप स्वयं गए हों, उससे आगे आप लोगों की अगवाई नहीं कर सकते। येशु हमें अपनी आँख में से लट्ठा निकालने को कहता है ताकि हम अपने भाई की आंख का तिनका भली भांति देख निकाल सकें। (मत्ती 7:4-5) जितना ज्यादा मसीह का स्वभाव हम में गठित होगा, उतना ही ज्यादा हम औरों को उसी तरह का मसीही चरित्र पुन: उत्पन्न करने में मदद कर पाएंगे। यहाँ हम कार्य नहीं करते; यह परमेश्वर के आत्मा का कार्य है जो उस आदर्श अग्वे का प्रयोग करता है जिसने औरों के लिए अपना जीवन दे दिया। पेड़ को अच्छा बनाओ और वह अच्छा फल उत्पन्न करेगा। येशु नें इसे इस प्रकार कहा:
“1 सच्ची दाखलता मैं हूं; और मेरा पिता किसान है। 2 जो डाली मुझ में है, और नहीं फलती, उसे वह काट डालता है, और जो फलती है, उसे वह छांटता है ताकि और फले।“ (यहुन्ना 15:1-2) (लूका 13:7-9, में भी इसी प्रकार का विचार है जहाँ एक पेड़ को खाद डालने के द्वारा बेहतर करने की सोच है।)
दाखलता की डाली को छांटने का उदहारण हम में से हर एक के साथ कैसे सम्बंधित है? प्रभु हमसे किस बारे में बात कर रहा है?
क्या आपने टूट जाने वाले अनुभव को सहा है? परमेश्वर ने उस अनुभव से आपको पुन: गठित करने के लिए कैसे प्रयोग किया?
एक बदले हुए और फलदायी जीवन के उदहारण के रूप में, आइये प्रेमश्वर के इस जन की विरासत देखें, जोनाथन एडवर्ड्स, 18वीं शताब्दी के विख्यात प्रचारक और जागृति लाने वाले। देखें कि किस प्रकार परमेश्वर ने इस एक के जीवन को कईयों के जीवनों पर प्रभाव डालने के लिए प्रयोग किया।
जोनथन एडवर्ड्स के पिता एक पासबान थे और उनकी माता एक पादरी की पुत्री। उनके वंशजों में चौदह कॉलेजों के प्रधानाचार्य, सौ से ज्यादा कॉलेज प्रोफेसर, एक सौ से ज्यादा वकील, तीस न्यायाधीश, साठ डॉक्टर, सौ से ज्यादा पादरी, मिशनरी और धर्मशास्त्र के प्रोफेसर, और लगभग साठ लेखक। मुश्किल से ही ऐसा कोई अमरीकी व्यवसाय होगा जिसके शुरुआती बढ़ाने वाले उनके परिवार में से एक न हों। यह ऐसे एक अमरीकी परिवार की उपज है जिसका सबसे बढ़िया परिस्तिथियों में पालन-पोषण किया गया। इसका विपरीत जूक परिवार में पाया जाता है, जिसे पढ़ाया न जा सका और न उन्होंने कोई काम किया, और कहा जाता है कि इसकी कीमत न्यू यॉर्क प्रदेश को साढ़े छ: करोड़ रूपए पड़ी। उनका पूरा इतिहास कंगाली, अपराध, पागलपन और मूर्खता का है। उनके पहचाने गए बारह सौ वंशजों में, तीन सौ दस पेशेवेर कंगले थे, चार सौ चालीस अपनी दुष्टता के कारण तहस-नहस हुए, साठ आदत से चोर थे, एक सौ तीस सज़ा काट चुके अपराधी, पचपन अपवित्रता के शिकार, केवल बीस ने कोई काम सीखा (और इनमें से दस ने इसे जेल में सीखा), और इस कुख्यात परिवार ने सात कातिल उत्पन्न किये।
जो आप हैं, आप वही पुन: उत्पन्न करेंगे। जॉन विम्बर विनयार्ड मसीही संगती, अनाहैम, कैलिफ़ोर्निया के पासबान बनने से पहले कुछ समय तक कलीसिया की बढौतरी के सलाहकार थे। एक दिन, जब वह पासबानों के समूह को सिखा रहे थे कि वह अपनी कलीसियाओं को कैसे बढाएं, उन्हें अपनी शिक्षा देते ज्यादा समय नहीं हुआ था कि एक बेसब्र पासबान ने खड़े होकर कहा, “मुझे यह सब पता है, बस मुझे अपनी कलीसिया में और लोगों को जोड़ना सिखाओ।” जॉन पहली बार उनके साथ काफी धीरज से पेश आए, लेकिन जब इन झुंझलाए हुए जनाब ने दोबारा खड़े
होकर प्रश्न किया तो जॉन को उस व्यक्ति के लिए एक गहरा विचार, एक ज्ञान का शब्द मिला। उन्होंने सीधे उस व्यक्ति की आँखों में देखा और कहा, “आप अपने जैसे और कितने चाहेंगे?” वह व्यक्ति उस विचार से चित अपनी कुर्सी में गिरते हुए बोला, “मैं अपने जैसे और नहीं चाहता, मैं चाहता हूँ कि वह येशु के जैसे हों!” सरलता से सत्य यह है कि आप लोगों को उससे आगे नहीं ले जा सकते जहाँ आप स्वयं हैं। अग्वे अपने जैसे ही पुन: उत्पन्न करते हैं। सेब के पेड़ सेब उत्पन्न करते हैं, नाशपाती के नाशपाती, भेडें भेड़ों को जन्म देती हैं, और मसीह लोग और मसीही लोगों को। जो हम हैं वही हम पुन: उत्पन्न करते हैं। परमेश्वर ऐसे जन को गठित करने में समर्पित है जिसका प्रयोग करने का निश्चय उसने किया है। हमारे आज के अध्यन के उदहारण में, उसने पतरस के जीवन को रूपांतरित कर दिया कि वह ऐसा टूटा पात्र हो जाए जिसे परमेश्वर ने ढाला है, जो पेंतेकूस्त के दिन सुसमाचार का प्रचार करेगा और तीन हज़ार को मसीह के पास आते देखेगा, और अन्य जातियों (गैर यहूदियों) के लिए भी उद्धार का द्वार खोलने का ज़रिया बनेगा। (प्रेरितों 10:34-35) हम सभी पतरस की तरह नहीं हो सकते, लेकिन उसकी हम में से हर एक के लिए एक विशिष्ठ योजना है कि हम अपने जीवनों द्वारा लोगों को मसीह में लायें। ऐसा नहीं है कि सभी को प्रचारक होने की बुलाहट है, लेकिन हम सभी के पास अलग-अलग वरदान हैं जो मसीह की देह की बढौतरी में योगदान देते हैं। हम जो हैं, वही हम उनके जीवनों में पुन: उत्पन्न करंगे जो हमारे पीछे चलते हैं। अग्वे ऐसे नमूने हैं जिनके पीछे दूसरे चलते हैं। पौलुस इस सिद्धांत को समझता था: 17हे भाइयो, तुम सब मिलकर मेरी सी चाल चलो, और उन्हें पहिचान रखो, जो इस रीति पर चलते हैं जिस का उदाहरण तुम हम में पाते हो (फिलिपियों 3:17) येशु ने पतरस के हृदय में देखा और उसके चरित्र के रूपांतरण की शुरुआत उसका नाम बदलने से की। आइये यहुन्ना के सुसमाचार में अगले खंड में चलें:
येशु फिलिप्पुस और नतनएल को बुलाता है
43दूसरे दिन यीशु ने गलील को जाना चाहा; और फिलिप्पुस से मिलकर कहा, “मेरे पीछे हो ले”। 44फिलिप्पुस तो अन्द्रियास और पतरस के नगर बैतसैदा का निवासी था। 45फिलिप्पुस ने नतनएल से मिलकर उस से कहा, “कि जिस का वर्णन मूसा ने व्यवस्था में और भविष्यद्वक्ताओं ने किया है, वह हम को मिल गया; वह यूसुफ का पुत्र, यीशु नासरी है।” 46नतनएल ने उस से कहा, “क्या कोई अच्छी वस्तु भी नासरत से निकल सकती है?” फिलिप्पुस ने उस से कहा, “चलकर देख ले।” 47यीशु ने नतनएल को अपनी ओर आते देखकर उसके विषय में कहा, “देखो, यह सचमुच इस्त्राएली है: इस में कपट नहीं।” 48नतनएल ने उस से कहा, “तू मुझे कहाँ से जानता है?” यीशु ने उस को उत्तर दिया; “उस से पहिले कि फिलिप्पुस ने तुझे बुलाया, जब तू अंजीर के पेड़ के तले था, तब मैं ने तुझे देखा था।” 49नतनएल ने उस को उत्तर दिया, “कि हे रब्बी, तू परमेश्वर का पुत्र है; तू इस्त्राएल का महाराजा है।” 50यीशु ने उस को उत्तर दिया; “मैं ने जो तुझ से कहा, कि में ने तुझे अंजीर के पेड़ के तले देखा, क्या तू इसी लिये विश्वास करता है? तू इस से बड़े बड़े काम देखेगा।” 51फिर उस से कहा, “मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि तुम स्वर्ग को खुला हुआ, और परमेश्वर के स्वर्गदूतों को मनुष्य के पुत्र के उपर उतरते और उपर जाते देखोगे।”
इस खंड में पहली बात जो मैंने देखी वह यह थी कि फिलिप्पुस येशु के पीछे नहीं गया। येशु उसे ढूंढता हुआ आया!
क्या आपने कभी ऐसा महसूस किया है कि परमेश्वर आपके जीवन में चीज़ों की शुरुआत करते हुए आपके पीछे लगा हुआ है क्यूंकि वह आपके पास वहीँ आना चाहता था जहाँ आप हैं? एक दूसरे को बताएं परमेश्वर क्या कर रहा था।
आपको क्या लगता है कि फिलिप्पुस को जब यह एहसास हुआ होगा कि यह मसीह है और व्यक्तिगत रीती से उसे खोजते आया है, तब उसे कैसा महसूस हुआ होगा?
हमारा परमेश्वर वो भला चरवाहा है जो 99 भेड़ों को छोड़ हम में से हर एक को खोजते आता है। वह परमेश्वर जिसने अनगिनत/ ओक्टिलियन सितारे बनाए, उसके पास हम में से हर एक के लिए समय है! क्या यह अद्भुत नहीं? हम में से कोई भी उसकी नज़रों ओर देखरेख से दूर नहीं हैं। वह सटीकता से जानता है कि दिन के हर एक सेकंड हम कहाँ हैं।
1हे यहोवा, तू ने मुझे जाँच कर जान लिया है। 2तू मेरा उठना बैठना जानता है; और मेरे विचारों को दूर ही से समझ लेता है। 3मेरे चलने और लेटने की तू भली भांति छानबीन करता है, और मेरी पूरी चालचलन का भेद जानता है। 4हे यहोवा, मेरे मुँह में ऐसी कोई बात नहीं जिसे तू पूरी रीति से न जानता हो। 5तू ने मुझे आगे पीछे घेर रखा है, और अपना हाथ मुझ पर रखे रहता है। 6यह ज्ञान मेरे लिये बहुत कठिन है; यह गंभीर और मेरी समझ से बाहर है। 7मैं तेरे आत्मा से भागकर किधर जाउँ? वा तेरे साम्हने से किधर भागूं? 8यदि मैं आकाश पर चढूं, तो तू वहां है! यदि मैं अपना बिछौना अधोलोक में बिछाऊं तो वहां भी तू है! 9यदि मैं भोर की किरणों पर चढ़कर समुद्र के पार जा बसूं, 10तो वहाँ भी तू अपने हाथ से मेरी अगुवाई करेगा, और अपने दहिने हाथ से मुझे पकड़े रहेगा। (भजन 139:1-10)
मसीह के साथ सम्बन्ध समूचा संसार हासिल करने से कहीं अधिक है। मसीह के साथ एकता में आने की तुलना पृथ्वी पर किसी भी चीज़ के साथ तुलना नहीं की जा सकती। यह वो सच्चा धन है जो सदा बना रहेगा! (लूका 16:11) औरों को इसके बारे में बताना स्वाभाविक है। फिलिप्पुस अपने आप को रोक नहीं पाया। उसे नतनएल को ढूंढ कर बताना था। नतनएल की पहली प्रतिक्रिया क्या थी? तिरस्कार और संदेह! लेकिन फिलिप्पुस के चेहरे के हाव-भाव और आनंद ने नतनएल के हृदय में काँटा डाल दिया । फिलिप्पुस के बारे में कुछ ऐसा अलग दिख रहा था जिससे शायद वह उत्सुक हो गया। फिलिप्पुस तो बस आकर उसे येशु से मिलाना चाहता था। नाजरेथ काना के पास था, जो नतनएल का शहर था, और शायद वह उस समय उस शहर में हो रही बातों के बारे में जानता था, लेकिन फिलिप्पुस किसी बारे में बात नहीं कर रहा था – “चलकर देख ले,” फिलिप्पुस बस यही कह रहा था। काश आज हमारे पास लोगों से परिचय कराने के लिए शारीररिक रूप में येशु मौजूद होता! क्या यह मित्रों और अज़ीज़ों तक पहुँचने के लिए आसान नहीं होता? यहुन्ना 4:29 में सामरी स्त्री की गवाही यही थी “एक मनुष्य को देखो, जिस ने सब कुछ जो मैं ने किया मुझे बता दिया।” बस अगर मैं अपने मित्रों को येशु से मिलवा पाता। लेकिन, जबतक वो नहीं आता, आप और मैं उसका प्रतिनिधित्व करते हैं।
जबकि नतनएल अभी येशु के समीप पहुँच ही रहा था, प्रभु ने उसे हृदय की ओर ताक उसे बिलकुल वह बताया जो उसने देखा। “देखो, यह सचमुच इस्त्राएली है: इस में कपट नहीं।” (47 पद) नतनएल ने उस से कहा, “तू मुझे कहाँ से जानता है?” यीशु ने उस को उत्तर दिया; “उस से पहिले कि फिलिप्पुस ने तुझे बुलाया, जब तू अंजीर के पेड़ के तले था, तब मैं ने तुझे देखा था।” (48 पद) नतनएल को बस इन्ही शब्दों से उसी क्षण यकीन हो गया और वह पलट गया। यह कैसे संभव है कि नतनएल जैसे संदेहवादी व्यक्ति के विश्वास तंत्र में केवल एक मुलाकात में बिलकुल उल्ट परिवर्तन हो गया? एक बार फिर हम येशु को बिलकुल कम शब्दों से किसी के दिल को छूते पाते हैं। उसने नतनएल को देख उसके हृदय में देखा, बिलकुल वैसे ही जैसे पतरस के साथ। यह छोटी मुलाकात नतनएल के जीवन को इस पल से हमेशा के लिए बदल देगी।
येशु के पास ऐसा कुछ था जिसे “ज्ञान का शब्द” कह सकते हैं; एक तस्वीर भी जो उसके मन में आई। संभव है कि यह कुछ ऐसा हो जो नतनएल ने तब कहा हो जब वह अंजीर के पेड़ तले बैठा था, कोई प्रश्न या कथन जो उसने परमेश्वर से कहा हो, जो केवल वह और प्रभु जानते थे। हो सकता है की झुंझलाहट में अंजीर के पेड़ तले बैठ उसने परमेश्वर को अपने आप पर प्रकट होने के लिए कहा हो। परमेश्वर के लिए किसी के उपर प्रकट होकर उसके जीवन की दिशा को पलटने के लिए बस एक खुले कोमल हृदय की आवश्यकता हैI परमेश्वर इसे हर समय करता है; उसके लिए यह कठिन नहीं। हम बाइबिल में ऐसी कई कहानियाँ पाते हैं और यह अभी भी हो रही हैं।
क्या आप परमेश्वर को और बेहतर जानने के लिए भूखे हैं? क्या आपको यकीन है कि आपको प्रेरित यहुन्ना की तरह ही परमेश्वर द्वारा गहरा प्रेम किया गया है? वह भीतर का सब देखता है, अच्छा और बुरा, और फिर भी आपको एक अनंत प्रेम से प्रेम करता है। अगर आप उसे खोजेंगे, वह आपसे आप जहाँ हैं वहाँ मुलाकात करने की प्रतिज्ञा देता है। यह सरल प्रार्थना करें:
प्रभु येशु, मेरी हृदय में आ मुझे बदल दे। मैं तेरे बिन अपने इस खोखले जीवन से थक गया हूँ। मैं अपने पास और स्वार्थी जीवन से मुड़ तेरे लिए जीयूँगा। मुझे मेरे पापों के लिए क्षमा कर अपने घर में प्रवेश करने की अनुमति दे। मुझपर अपना महान प्रेम प्रकट कर। अमीन